राजस्थान में क्यों खूंखार हो रहे आवारा कुत्ते?:2 महीने में 5 बच्चों ने गंवाई जान, 3 को नोच-नोचकर मार डाला, सैकड़ों हॉस्पिटल में
जयपुर
राजस्थान में आवारा कुत्ते मासूम बच्चों की जान के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गए हैं। स्कूल, पार्क, बाजार से लौटते समय आवारा कुत्ते बच्चों को निशाना बना रहे हैं। पिछले 2 महीने में आवारा कुत्तों ने हमला कर 5 बच्चों की जान ले ली।
अकेले जयपुर में 1500 से ज्यादा बच्चों को अस्पताल पहुंचा दिया। कई बच्चों को इतने गहरे जख्म दिए हैं कि परिवार वाले उस घटना को याद कर आज भी सहम उठते हैं।
इंसानों के सबसे भरोसेमंद और पालतू जानवरों में से एक कुत्ते आखिर क्यों बच्चों की जान ले रहे हैं? पढ़िए- इस खबर में…
सबसे पहले वो 4 घटनाएं जिनसे पूरा राजस्थान सहम गया….
18 मार्च 2024 : स्कूल जा रहे बच्चे को कुत्तों ने नोच-नोचकर मार डाला
घटना चित्तौड़गढ़ जिले के पारसोली गांव की है। स्कूल जा रहे 6 साल के मासूम पर 8-10 कुत्तों ने हमला बोल दिया। मासूम को कुत्तों ने 20 जगह काटा। सांस की नली कटने से बच्चे की मौत हो गई।
चित्तौड़गढ़ के पारसोली गांव में कुत्तों के हमले से 6 साल के आयुष की मौत हो गई।
10 मार्च 2024 : कुत्तों ने 9 साल की बच्ची को नोच-नोच कर मार डाला
बाजार जा रही 9 साल की मासूम को 8-10 कुत्तों ने घेरकर करीब 40 जगह नोच डाला। लहूलुहान हालत में बच्ची को अस्पताल लेकर गए। इलाज के दौरान बच्ची की मौत हो गई। घटना अलवर के बानसूर की श्यामपुरा की ढाणी बगावली की है।
10 मार्च 2024 : घर के बाहर खेल रहे ढाई साल के बच्चे को काटा, मौत
बीकानेर के आर्मी कैंट में बने एक क्वार्टर के बाहर खेल रहे ढाई वर्ष के एक बच्चे को आवारा कुत्तों ने बुरी तरह काट खाया। उसके सिर, पेट और पांव में गंभीर घाव हो गए। गंभीर रूप से जख्मी महितोश ने पीबीएम अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर में दम तोड़ दिया।
बानसूर की मोनिका (9) श्यामपुरा गांव के बाजार में सामान लेने जा रही थी, तभी 8-10 कुत्तों ने एक साथ हमला कर दिया था।
20 जनवरी 2024 : आवारा कुत्तों ने दो बच्चों को दौड़ाया, दोनों की हुई मौत
जोधपुर में माता का स्थान इलाके में स्कूल से लौट रहे दो बच्चों युवराज और अनन्या कंवर के पीछे आवारा कुत्ते पड़ गए। बचने के लिए भागे भाई-बहन मालगाड़ी ट्रेन की चपेट में आ गए। इससे उनकी दर्दनाक मौत हो गई।
आखिर क्यों खूंखार हो रहे स्ट्रीट डॉग?
डॉग एक्सपर्ट वीरेन शर्मा ने बताया कि आवारा कुत्तों की नसबंदी हो और एंटी रेबीज टीका समय पर लगे तो ये घटनाएं कम होती हैं। क्योंकि एंटी रेबीज टीका लगाने से इसका संक्रमण नहीं फैलता, वहीं नसबंदी से हार्मोंस बैलेंस हो जाते हैं। जिससे स्ट्रीट डॉग्स की आक्रामकता अपने आप ही कम हो जाती है।
हमारी पड़ताल में सामने आया कि न तो स्ट्रीट डॉग्स को एंटी रेबीज वैक्सीन लग रही हैं और न ही नसबंदी ऑपरेशन उस अनुपात में हो रहा है, जिस अनुपात में इनकी आबादी बढ़ रही है। एंटी रेबीज टीकों का स्टॉक ही 31 जनवरी से खत्म है।
जयपुर में हर साल अनुमानित स्ट्रीट डॉग्स की संख्या 60-70 हजार बढ़ जाती है।
एंटी रेबीज वैक्सीन का स्टॉक खत्म
जयपुर शहर में एंटी रेबीज टीकों का स्टॉक ही इसी साल 31 जनवरी को खत्म हो गया था। उस वक्त जयपुर सहित राज्य के सभी जिलों में रेबीज वैक्सीनेशन के लिए निशुल्क कैम्प लगाए गए थे। तब से वैक्सीन का स्टॉक खत्म हुआ है। अब तक विभाग को नया स्टॉक ही नहीं मिल सका है।
क्या बोले जिम्मेदार?
पशुपालन निदेशक डॉ. भवानी सिंह राठौड़ ने बताया कि एंटी रेबीज वैक्सीन के लिए हमने इमरजेंसी फंड से पैसा दे दिया है। एक-दो दिन में वैक्सीन उपलब्ध हो जाएंगी। फिलहाल टेंडर प्रोसेस में है। फाइनेंस और आचार संहिता के चलते इसमें विलंब हुआ है। प्रदेश स्तर पर वैक्सीन के लिए टेंडर और जिलों की जरूरत के हिसाब से पैसा दे दिया गया है। बाकी पोली क्लिनिक के लिए हम तुरंत वैक्सीन की व्यवस्था कर रहे हैं।
डॉ. जितेंद्र राजोरिया।
जयपुर के पांच बत्ती पोलीक्लिनिक के उप-निदेशक डॉ. जितेन्द्र राजोरिया से जब संवाददाता ने वैक्सीन के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि हमने वैक्सीन के लिए कंपनी को ऑर्डर दिया हुआ है, जैसे ही आएंगी लगाना शुरू कर देंगे। अभी जॉइंट डायरेक्टर की ओर से आदेश दिया गया है।
नतीजा : वैक्सीनेशन नहीं हुआ, उसी दौरान बढ़ी घटनाएं
हैरानी की बात यह है कि प्रदेश में कुत्ते के काटने की बीती पांच बड़ी घटनाएं जनवरी से मार्च में उसी दौरान ही हुई हैं, जब स्टॉक में वैक्सीन नहीं थी।
नसबंदी : हर साल बढ़ रहे 60-70 हजार आवारा डॉग्स, नसबंदी महज 9 हजार की
जयपुर में वर्तमान में 80-85 हजार से ज्यादा आवारा कुत्ते हैं। नसबंदी न होने के कारण इनसे हर साल औसतन 60 हजार बच्चे पैदा हो रहे हैं। एक मादा डॉग साल में दो बार डॉग्स को जन्म देती है। एक सीजन में औसतन 8 बच्चे पैदा करती है।
एक्सपर्ट मानते हैं कि नसबंदी करने के बाद कुत्तों का हार्मोन बैलेंस रहने से उनमें एग्रेशन कम हो जाता है। लेकिन जिस अनुपात में इनकी संख्या बढ़ रही है, उस अनुपात में नसबंदी ऑपरेशन बहुत धीमा है। जयपुर के दोनों नगर निगम मिलकर भी सालभर में 15-20 हजार से ज्यादा डॉग्स की नसबंदी नहीं कर पाते। ऐसे में जब तक टीकाकरण अभियान और नसबंदी ऑपरेशन पूरा होता है, तब तक करीब 60 से 70 हजार की संख्या और बढ़ जाती है।
आवारा कुत्तों की नसबंदी और वैक्सीनेशन की रफ्तार बहुत धीमी है।
जयपुर में पालतू डॉग्स का हाल
रजिस्ट्रेशन और लाइसेंस : मात्र 150 डॉग्स (नगर निगम ग्रेटर), 138 डॉग्स (नगर निगम हेरिटेज)
डॉग्स की अनुमानित संख्या : करीब 80 से 85 हजार (पालतू+आवारा)
नसबंदी की स्थिति : ग्रेटर निगम का दावा है कि साल 2011-12 से अब तक 40 हजार से ज्यादा स्ट्रीट डॉग्स की नसबंदी कर चुका है। हर महीने करीब औसत 750 से 1200 कुत्तों की नसबंदी की जाती है।
वहीं हेरिटेज नगर निगम का दावा है कि हर महीने करीब 750 कुत्तों की नसबंदी होती है। 2022-23 के आंकड़ों के अनुसार करीब 9000 कुत्तों की नसबंदी व टीकाकरण हुआ था।
क्या बोले जिम्मेदार?
जयपुर नगर निगम ग्रेटर की महापौर सौम्या गुर्जर ने कहा कि शहर में आवारा कुत्तों को पकड़ने, उनकी नसबंदी करने और रजिस्ट्रेशन करने के लिए समय समय पर अभियान चलाते हैं। इसके बाद उन्होंने नगर निगम ग्रेटर में आवारा कुत्तों का स्टरलाइजेशन के लिए जिम्मेदार डॉ. हरेन्द्र चिराणा को फोन कर रजिस्ट्रेशन बढ़ाने और कैम्प लगाने की बात कही।
नगर निगम हेरिटेज की डॉ. नेहा गौड़ ने बताया कि उन्होंने हाल ही में इस पोस्ट पर जॉइन किया है। इसलिए इस संबंध में ज्यादा जानकारी नहीं है।
प्रदेश के बाकी शहरों के निकायों के पास आंकड़े तक नहीं
जोधपुर : नगर निगम के पास पालतू डॉग्स का एक भी रजिस्ट्रेशन नहीं। आवारा डॉग्स की संख्या का भी डेटा उपलब्ध नहीं है।
उदयपुर : नगर निगम के स्वास्थ्य अधिकारी सत्यनारायण शर्मा कहते हैं कि पालतू कुत्तों को लेकर अभी कोई डेटा नहीं है। अब इसको लेकर स्थानीय स्तर पर नियम बनाने की प्रक्रिया शुरू करने की कवायद चल रही है।
जिओ टैगिंग नहीं होने से बिगड़ रहे हालात
डॉग बिहेवियर एक्सपर्ट वीरेन शर्मा ने बताया कि कुत्ते अपना इलाका छोड़कर कभी नहीं जाते। आवारा कुत्तों के साथ होने वाला दुर्व्यवहार भी इसके लिए जिम्मेदार हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद नसबंदी करने के बाद आवारा कुत्तों को उसी एरिया में वापस नहीं छोड़ा जाता, जहां से उन्हें पकड़ा गया था। इसकी वजह से अक्सर कुत्ते ट्रॉमा में आ जाते हैं और अपने आस-पास मौजूद हर व्यक्ति को दुश्मन की तरह देखते हैं। बच्चों को काटने के पीछे यह एक बड़ी वजह है क्योंकि वही सॉफ्ट टारगेट होते हैं।
सुझाव : वीरेन शर्मा ने बताया कि नसबंदी के बाद कुत्तों की जिओ टैगिंग (माइक्रोचिप) नहीं होती। कुत्ता उठाते समय उस जगह और कुत्ते की फोटो, गूगल लोकेशन के साथ टैग कर ग्रुप में शेयर कर दें ताकि नसबंदी के बाद उसे वापस पहली जगह छोड़ा जा सके।
– आमतौर पर डॉग बाइट्स में काटने वाले 95 फीसदी मेल डॉग होते हैं। ऐसे आक्रामक कुत्ते को पकड़कर उसे नसंबंदी करने के बाद ही छोड़ा जाए। अगर बहुत ज्यादा आक्रमक है तो उसे ओपन एरिया में कैद कर शेल्टर होम की सुविधा दी जा सकती है।
दूसरे राज्यों में मुआवजा, राजस्थान में क्या?
आवारा कुत्ते के मामले में छत्तीसगढ़ में सरकार मामला साबित होने पर पीड़ित परिवार को 11 लाख रुपए तक का मुआवजा देती है। वहीं हरियाणा में प्रति दांत 10 हजार रुपए की पेनल्टी लगाई जाती है।
यानी अगर कुत्ते ने शरीर में 4 दांत गड़ाए तो उसके बदले डॉग मालिक को 40 हजार रुपए देने पड़ते हैं। जबकि राजस्थान में अभी कुत्ते के काटने से होने वाली मौतों में मुआवजा देने जैसी कोई व्यवस्था नहीं है। यानी किसी भी मामले में प्रशासन और निगम ने कोई जिम्मेदारी और जवाबदेही तय नहीं कर रखी है।
हरियाणा में कुत्ता काटने पर उसके मालिक से हर्जाना वसूला जाता है।
जयपुर में 9 साल पहले हुई थी मौत, कोर्ट से मिला था 10 लाख का हर्जाना
जयपुर में कुत्ते के काटने से मौत का मामला करीब 9 साल पुराना है, जिसमें कोर्ट के दखल के बाद नगर निगम जयपुर को 10 लाख रुपए हर्जाना देना पड़ा था। मामला मैनेजर राय बनाम नगर निगम जयपुर के तहत करीब 9 साल कन्ज्यूमर कोर्ट में चलता रहा। जिसमें दो साल पहले परिवादी के पक्ष में फैसला आया।
पालतू और खूंखार कुत्ते भी बना रहे बच्चों को शिकार
जुलाई 2021 में वैशाली नगर के हनुमान वाटिका इलाके में विशाल मीणा नाम के बच्चे को अमेरिकन पिटबुल ने इस कदर नोंचा था कि बच्चे की बीते तीन साल में 32 से ज्यादा सर्जरी हो चुकी हैं। उसका बांया कान भी खत्म हो गया हे। होली के बाद उसके कान की सर्जरी कर लगाया जाएगा।
ऐसे ही जून 2022 में झालाना डूंगरी की शिव कॉलोनी में सात साल की बच्ची पूनम पर आवारा कुत्तों ने हमला कर दिया था। कुत्ते ने बच्ची के हाथ पर इस तरह से नोचा था कि उसकी कलाई की हड्डी साफ दिख रही थी। प्लास्टिक सर्जरी के बाद उसका हाथ सही हुआ।
विशाल मीणा को पिटबुल ने इतना काटा कि अबतक 32 बार उसकी सर्जरी हो चुकी है।
पालतू को डंप करने की आदत भी एक बड़ी वजह
डॉग एक्सपर्ट वीरेन शर्मा ने बताया कि अब लोग पालतू कुत्तों को भी डंप करने लगे हैं। महंगी ब्रीड के कुत्तों के बीमार पड़ने पर, विदेश जाने पर मालिक अपने डोग एनजीओ में छोड़कर चले जाते हैं। बीते साढ़े चार साल में 5000 से ज्यादा आवारा कुत्तों को रेस्क्यू कर चुके हैं।
अग्रवाल फार्म स्थित हेल्प इन सफरिंग के केयर टेकर विजय कुमार ने बताया कि अक्सर हमारे पास लोग अपने बूढ़े, बीमार, आक्रामक और ब्रीडिंग से कैंसर ग्रस्त हो चुके कुत्तों को लेकर आते हैं।
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