श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह परिसर का सर्वे होगा:हाईकोर्ट ने हिंदू पक्ष की याचिका स्वीकार की, 13.37 एकड़ जमीन का सर्वे करेंगे कोर्ट कमिश्नर
श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह के बीच 13.37 एकड़ जमीन पर विवाद है। इसमें से करीब 2.37 एकड़ भूमि शाही ईदगाह के पास है।
मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवादित परिसर का सर्वे कराया जाएगा। गुरुवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह फैसला दिया है। हिंदू पक्ष की याचिका स्वीकार करते हुए कोर्ट ने सर्वे के लिए कोर्ट कमिश्नर नियुक्त करने का आदेश दिया है।
कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष यानी वक्फ बोर्ड की उन दलीलों को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने याचिका को सुनने योग्य नहीं होने का दावा किया था।
हाईकोर्ट के जस्टिस मयंक कुमार जैन की सिंगल बेंच ने यह फैसला सुनाया। 16 नवंबर को इस अर्जी पर सुनवाई के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस दिन विवादित परिसर की 18 याचिकाओं में से 17 पर सुनवाई हुई थी। ये सभी याचिकाएं मथुरा जिला अदालत से इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई के लिए शिफ्ट हुईं थीं।
कोर्ट कमिश्नर की टीम जुटाएगी साक्ष्य
हाईकोर्ट के फैसले के बाद अब श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह के 13.37 एकड़ विवादित जमीन का कोर्ट कमिश्नर सर्वे करेंगे। यह सर्वे वाराणसी की ज्ञानवापी में मई 2021 में हुए कमिश्नर सर्वे की तरह होगा। इसमें कोर्ट कमिश्नर की टीम वहां जाकर साक्ष्य एकत्रित करके कोर्ट को रिपोर्ट देगी।
फैसला आने के बाद हिंदू पक्ष के लोगों ने हाईकोर्ट के इस फैसले को ऐतिहासिक बताया।
18 दिसंबर को तय होगा कोर्ट कमिश्नर का पैनल
हाईकोर्ट के फैसले के बाद हिंदू पक्ष के पक्ष वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा, “आज हमने मांग की थी कि मथुरा में 13.37 एकड़ विवादित भूमि योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण की है। मस्जिद का गलत कब्जा है। उस कब्जे को हटाया जाए। 12 अक्टूबर 1968 के समझौते को अवैध घोषित किया जाए।”
उन्होंने कहा, ”हमने कोर्ट में मांग की थी कि कोर्ट कमिश्नर सर्वे बहुत जरूरी है। कोर्ट ने आज आदेश दे दिया है। कोर्ट कमिश्नर की टीम में कितने सदस्य होंगे? कौन-कौन होंगे? कब सर्वे करेंगे? कैसे फोटो-वीडियोग्राफी होगी? ये सब 18 दिसंबर को हाईकोर्ट में होने वाली अगली सुनवाई में तय होगा।”
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि 1968 का यह समझौता धोखाधड़ी से किया गया था, जो कानूनी रूप से वैध नहीं है।
18 याचिकाओं में से 17 पर सुनवाई
श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद को लेकर मथुरा कोर्ट में 18 याचिकाओं में से 17 पर सुनवाई हुई थी। इनमें से ज्यादातर याचिकाओं में कोर्ट कमिश्नर सर्वे की मांग की गई थी। मई 2023 में श्रीकृष्ण विराजमान की याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई थी। इस पर कोर्ट ने मथुरा कोर्ट में चल रहे सभी मामलों से संबंधित मुकदमों को हाईकोर्ट में ट्रांसफर करवा लिया था।
श्रीकृष्ण विराजमान की याचिका में हरिशकंर जैन, विष्णु जैन और रंजना अग्निहोत्री याचिककर्ता हैं। जस्टिस मयंक जैन ने बारी-बारी से मुकदमों की सुनवाई की। पक्षकारों की तरफ से अर्जियां और हलफनामे दाखिल किए गए। किसी ने पक्षकार बनाने, तो किसी ने संशोधन की अर्जी दी। इसके बाद कोर्ट ने दूसरे पक्ष यानी मुस्लिम पक्ष को सिविल वाद और अर्जियों पर जवाब दाखिल करने का समय दिया था।
एक पक्षकार ने मंदिर का पौराणिक पक्ष रखते हुए कहा था कि भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र ने मथुरा मंदिर का निर्माण कराया था। मंदिर के लिए जमीन दान में मिली। इसलिए जमीन के स्वामित्व का कोई विवाद नहीं है। मंदिर तोड़कर शाही मस्जिद बनाने का विवाद है। राजस्व अभिलेखों में जमीन अभी भी कटरा केशव देव के नाम दर्ज है।
मुस्लिम पक्ष ने दर्ज कराई आपत्ति
शाही ईदगाह मस्जिद और यूपी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के वकील ने कोर्ट में आपत्ति दर्ज कराई थी। मुस्लिम पक्षकारों का कहना था कि यह याचिका सुनवाई योग्य नहीं है, इसको खारिज किया जाए, जिसे कोर्ट ने नहीं माना।
हिंदू पक्षकारों ने समझौते को बताया अवैध
श्रीकृष्ण जन्मस्थान शाही ईदगाह मामले में 12 अक्टूबर 1968 को एक समझौता हुआ था। श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट के सहयोगी संगठन श्रीकृष्ण जन्मभूमि सेवा संघ और शाही ईदगाह के बीच हुए इस समझौते में 13.37 एकड़ भूमि में से करीब 2.37 एकड़ भूमि शाही ईदगाह के लिए दी गई थी।
हालांकि इस समझौते के बाद श्रीकृष्ण जन्मभूमि सेवा संघ को भंग कर दिया गया। इस समझौते को हिंदू पक्ष अवैध बता रहा है। हिंदू पक्ष के अनुसार, श्रीकृष्ण जन्मभूमि सेवा संघ को समझौते का अधिकार था ही नहीं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के कोर्ट कमिश्नर नियुक्त करने के फैसले के बाद मथुरा में केस से जुड़े लोगों की प्रतिक्रिया आई, पढ़िए क्या-कुछ कहा गया…
कोर्ट का फैसला आने के बाद श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले के वादी दिनेश शर्मा ने कहा, “मथुरा में श्रीकृष्ण का भव्य मंदिर था। मुगल शासकों द्वारा इस पर अवैध कब्जा किया गया था। कोर्ट ने कहा है कि कोर्ट कमिश्नर परिसर में जाएगा। रिपोर्ट तैयार होने के बाद कोर्ट में प्रस्तुत करेगा। अब वो दिन दूर नहीं, जब अयोध्या की तरह मथुरा में श्रीकृष्ण का भव्य मंदिर बनेगा।”
श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के सचिव कपिल शर्मा ने कहा, “कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया है। यह फैसला श्रीकृष्ण जन्मभूमि को मुक्त कराने के लिए चल रहे आंदोलन में मील का पत्थर साबित होगा।”
वहीं, श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति संघर्ष न्यास के अध्यक्ष महेंद्र प्रताप सिंह ने कहा, “कोर्ट कमिश्नर के सर्वे से दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।”
1968 में हुआ समझौता क्या था?
1946 में जुगल किशोर बिड़ला ने जमीन की देखरेख के लिए श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट बनाया था। साल 1967 में जुगल किशोर की मौत हो गई थी। कोर्ट के रिकॉर्ड के अनुसार, 1968 से पहले परिसर बहुत विकसित नहीं था। साथ ही 13.37 एकड़ भूमि पर कई लोग बसे हुए थे।
1968 में ट्रस्ट ने मुस्लिम पक्ष से एक समझौता कर लिया। इसके तहत शाही ईदगाह मस्जिद का पूरा मैनेजमेंट मुस्लिमों को सौंप दिया गया। 1968 में हुए समझौते के बाद परिसर में रह रहे मुस्लिमों को इसे खाली करने को कहा गया। साथ ही मस्जिद और मंदिर को एक साथ संचालित करने के लिए बीच में दीवार बना दी गई।
समझौते में यह भी तय हुआ कि मस्जिद में मंदिर की ओर कोई खिड़की, दरवाजा या खुला नाला नहीं होगा। यानी यहां उपासना के दो स्थल एक दीवार से अलग होते हैं।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि 1968 का यह समझौता धोखाधड़ी से किया गया था और कानूनी रूप से वैध नहीं है। उन्होंने कहा कि किसी भी मामले में देवता के अधिकारों को समझौते से खत्म नहीं किया जा सकता है, क्योंकि देवता कार्यवाही का हिस्सा नहीं थे।
ईदगाह मस्जिद साल 1670 में औरगंजेब ने बनवाई थी। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि मस्जिद को श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर बनाया गया है। उन्होंने इसे वहां से हटाने की मांग की है।
विवादित भूमि पर है किसका अधिकार?
शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण 1670 में औरंगजेब ने कराया था। माना जाता है कि इस मस्जिद का निर्माण एक पुराने मंदिर की जगह कराया गया था। इस इलाके को नजूल भूमि यानी गैर-कृषि भूमि माना जाता है। इस पर पहले मराठों और बाद में अंग्रेजों का आधिपत्य था।
1815 में बनारस के राजा पटनी मल ने 13.37 एकड़ की यह भूमि ईस्ट इंडिया कंपनी से एक नीलामी में खरीदी थी, जिस पर ईदगाह मस्जिद बनी है और जिसे भगवान कृष्ण का जन्म स्थान माना जाता है।
राजा पटनी मल ने ये भूमि जुगल किशोर बिड़ला को बेच दी थी और ये पंडित मदन मोहन मालवीय, गोस्वामी गणेश दत्त और भीकेन लालजी आत्रेय के नाम पर रजिस्टर्ड हुई थी। जुगल किशोर ने श्रीकृष्ण जन्म भूमि ट्रस्ट नाम से एक ट्रस्ट बनाया, जिसने कटरा केशव देव मंदिर के स्वामित्व का अधिकार हासिल कर लिया।
1968 में एक समझौता हुआ था। इसके तहत मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान मंदिर और ईदगाह मस्जिद के बीच में दीवार बना दी गई थी।
एक देवता के अधिकार क्या हैं?
भारतीय कानून के मुताबिक, एक देवता को प्राकृतिक व्यक्ति के बजाय एक न्यायिक व्यक्ति माना जाता है। देवी-देवताओं को संपत्ति अर्जित करने, बेचने, खरीदने, ट्रांसफर करने और कोर्ट केस लड़ने समेत सभी कानूनी अधिकार होते हैं।
कानून में देवता को नाबालिग जैसा माना गया है और कोर्ट में वह पुजारी के माध्यम से अपना केस लड़ सकते हैं। हिंदुओं के देवी-देवताओं को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत संपत्ति के अधिकार मिलते हैं।
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