सोलर प्रोजेक्ट के लिए पेड़ काटने पर अब एक कंपनी को ढाई हजार पेड़ लगाने होंंगे। इसके अलावा 2 लाख रुपए का जुर्माना भी भरना होगा। दरअसल, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने सोलर प्लांट लगाने के लिए पेड़ों को काटने के मामले में यह फैसला सुनाया है।
NGT ने जोधपुर जिले में एक प्राइवेट सोलर कंपनी एएमपी एनर्जी ग्रीन फोर प्राइवेट लिमिटेड के कर्मचारियों ने 250 खेजड़ी व रोहिड़ा के पेड़ काट दिए और मामला छुपाने के लिए इन पेड़ों को जमीन में गाड़ दिया। खेजड़ी के पेड़ को देवता की तरह पूजने वाले बिश्नोई समाज ने इसे लेकर आंदोलन छेड़ दिया और आखिरकार एनजीटी के चेयरपर्सन न्यायाधीश आदर्श कुमार की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मामले में जांच कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर कंपनी को अवैध तरीके से पेड़ों की कटाई करने के मामले में दोषी करार दिया।
यह पहला ऐसा मामला है जिसमें एनजीटी ने सोलर कंपनी को पेड़ काटने के लिए दोषी करार दिया है। जोधपुर में बड़ी संख्या में सोलर प्लांट स्थापित हो चुके हैं और कई प्लांट स्थापित हो रहे हैं। यह
चार महीने पहले काटे थे पेड़
इस साल 10 जून को फलौदी उपखंड के बड़ी सिड्ड गांव में एनर्जी ग्रीन फोर प्राइवेट लिमिटेड की ओर से सोलर प्लांट के लिए बड़ी संख्या में खेजड़ी के पेड़ों को काट दिया था। इसके बाद कंपनी ने इसे जमीन में दफना दिया था। इसकी जानकारी बिश्नोई समाज के लोगों को मिलने पर वे चार दिन में जमीन में दफन पेड़ों के अवशेष लेकर आ गए।
इसके बाद बिश्नोई समाज धरने पर बैठ गया और कार्रवाई की मांग करने लगा। पेड़ों को बचाने के लिए 15 जून से करीब 5 दिन से ज्यादा भूख हड़ताल हुई और विरोध प्रदर्शन हुआ। मामला बढ़ने लगा तो जिला प्रशासन ने मामले की जांच का आश्वासन दिया था।
बिश्नोई समाज ने 10 हजार पेड़ काटने का लगाया आरोप
अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा की ओर से आरोप लगाया गया था कि सोलर प्लांट लगाने के लिए खेजड़ी के लगभग 10 हजार पेड़ों को काटा गया है। उन्होंने मांग की थी कि सरकार की तरफ से भविष्य में खेजड़ी नहीं काटने, काटे गए पेड़ों की जगह 10 गुना पेड़ लगाने, सोलर प्लांट के 30 फीसदी भाग को ग्रीन जोन में विकसित करने, पेड़ काटने के दोषी लोगों के खिलाफ कार्रवाई और पेड़ काटने में मिलीभगत करने वाले प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ एक्शन लिया जाए.।
इसके बाद एनजीटी में याचिका दायर कर दी। एनजीटी ने प्रदूषण निवारण मंडल को एक कमेटी बना पूरे मामले की जांच कर रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया था। इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में सोलर कंपनी को दोषी करार दिया था।
रिपोर्ट में कहा गया कि कंपनी ने सोलर प्लांट लगाने के लिए 3200 बीघा जमीन लीज पर ली। इस जमीन से 250 पेड़ काट दिए गए। एनजीटी ने कहा कि हमने रिपोर्ट को देखा है और उसे स्वीकार न करने का कोई कारण नहीं है।
जून में मामला सामने आने के बाद भी संत समेत समाज के लोग फलौदी उपखंड में धरने पर बैठ गए थे।
फॉरेस्ट डेवलपमेंट के लिए उपयोग हो पैसा
अपने आदेश में एनजीटी ने कहा कि एएमपी कंपनी वन विभाग की तरफ से बताई गई जमीन पर काटे गए पेड़ों से दस गुना ज्यादा पेड़ फिर से लगाए। साथ ही संबंधित विभाग में दो लाख रुपए जमा करवाए। इस राशि का उपयोग फॉरेस्ट के डेवलपमेंट के लिए किया जाए।
साथ ही कंपनी को आदेश दिया है कि पर्यावरण के नुकसान की भरपाई करने के लिए वह एक महीने के भीतर एक लाख रुपए कलेक्टर के पास जमा करवाए। इस राशि का उपयोग जिले के पर्यावरण प्लान के अनुसार किया जाए। यदि कंपनी यह राशि जमा नहीं कराती है तो कलेक्टर नियमानुसार यह राशि वसूल करने के लिए कानूनी प्रक्रिया अपना सकते है।
इस कारण हो रहा सोलर कंपनियों का विरोध
बिश्नोई समुदाय का कहना है कि पश्चिमी राजस्थान में पर्यावरण की स्थिति को खराब करने के लिए सोलर कंपनी सरकारों की अनुमति से खेजड़ी, रोहिड़ा जैसी रेगिस्तानी पेड़ प्रजातियों सहित हमारे वन संसाधनों को बेतरतीब ढंग से काटा जा रहा है। इन पेड़ों पर रहने वाले पक्षियों की सैकड़ों प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं। सौर कंपनियों ने हजारों एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया है। इन जमीनों पर कई पेड़ काटे जा चुके हैं और यह काम अभी भी जारी है।
समाज की मांग है कि सोलर कंपनियां राज्य सरकार से मास्टर प्लान बनाकर सोलर पार्क विकसित करें ताकि उनका सोलर प्लांट लगाया जा सके, जो स्वीकृत भूमि है, जिसमें वृक्षारोपण, वनस्पति और आबादी नहीं है। पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए निर्धारित क्षेत्र को छोड़कर वृक्षारोपण किया जाना चाहिए। यदि सोलर पार्क बनाना है तो 30 प्रतिशत भूमि वृक्षारोपण के लिए आरक्षित कर उसे विकसित करने की शर्त भी जोड़ी जानी चाहिए।
अमृता देवी ने संभाली थी विरोध की कमान
वर्ष 1787 में जोधपुर (मारवाड़) के महाराजा अभयसिंह ने मेहरानगढ़ में फूल महल का निर्माण शुरू कराया। इसके लिए लकड़ियों की आवश्यकता पड़ी। महाराजा के कारिन्दों ने खेजड़ली गांव में एक साथ बड़ी संख्या में पेड़ देखे तो काटने पहुंच गए। गांव की अमृता देवी विश्नोई ने इसका विरोध किया।
विरोध को अनसुना करने पर अमृता देवी पेड़ के चारों तरफ हाथों से घेरा बना कर खड़ी हो गई। राजा के कारिन्दों ने तलवार से उसे मार दिया। इसके बाद बारी-बारी से उसकी तीन पुत्रियों ने पेड़ को बचाने के लिए अपना बलिदान दे दिया। पेड़ बचाने के लिए अमृता देवी के शहीद होने का समाचार आसपास के गांवों में फैला तो बड़ी संख्या में लोग एकत्र हो गए। आसपास के 60 गांवों के 217 परिवारों के 294 पुरुष, 65 महिलाएं विरोध करने गांव पहुंच गईं।
ये सभी लोग पेड़ों को पकड़ कर खड़े हो गए। राजा के कारिन्दों ने बारी-बारी से सभी को मौत के घाट उतार दिया। एक साथ इतनी बड़ी संख्या में लोगों के मारे जाने की जानकारी महाराजा तक पहुंची तो उन्होंने तुरंत सभी को वापस लौटने का आदेश दिया।
अब नहीं काटा जा सकता खेजड़ी को
इसके बाद महाराजा ने लिखित में आदेश जारी किया कि मारवाड़ में कभी खेजड़ी के पेड़ को नहीं काटा जाएगा। इस आदेश की आज तक पालन होती आई है। तब से लेकर आज तक भादवा सुदी दशम को बलिदान दिवस के रुप में खेजड़ली गांव में मेला लगता है। यहां इन शहीदों का एक स्मारक व वन क्षेत्र विकसित किया हुआ है। इस मेले में हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं और बलिदानियों को नमन करते हैं।
खेजड़ी का महत्व
रेगिस्तान के कल्पवृक्ष खेजड़ी को शमी वृक्ष के नाम से भी जाना जाता है। यह मूलतः रेगिस्तान में पाया जाने वाला वृक्ष है जो थार के मरुस्थल एवं अन्य स्थानों पर भी पाया जाता है। अंग्रेजी में शमी वृक्ष प्रोसोपिस सिनेरेरिया के नाम से जाना जाता है। रेगिस्तान में भी हरियाली बरकरार रखने में इस पेड़ की अहम भूमिका रही है। इस पेड़ पर लगने वाले फल सांगरी का उपयोग सब्जी बनाने में होता है। इसकी पत्तियों से बकरियों को भोजन मिलता है। इस कारण ग्रामीण क्षेत्र में खेजड़ी आय का प्रमुख जरिया भी मानी जाती है।
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