*सौतेले व्यवहार से परेशान हैं रक्षा क्षेत्र के चार लाख कर्मी, वित्त मंत्रालय ने क्यों रोका ‘बोनस’*
रक्षा क्षेत्र के सिविल कर्मियों को जो बोनस दशहरे से पहले मिलता रहा है, इस बार दीवाली का पर्व बीतने के बाद भी वह बोनस नहीं मिल सका है। बाकी विभागों में वह बोनस दीवाली से पहले ही जारी कर दिया गया था।
*REPORT BY SAHIL PATHAN*
रक्षा क्षेत्र के सिविल कर्मियों के साथ सौतेला व्यवहार हो रहा है। रक्षा मंत्रालय का बजट 5.25 लाख करोड़ रुपये का है। अगर इस राशि को यूनियन बजट के संदर्भ में देखें तो उसका 13.3 प्रतिशत है। इसके बावजूद रक्षा मंत्रालय उस तरह खुद से निर्णय नहीं ले पाता, जैसे रेलवे मंत्रालय लेता है।
एआईडीईएफ के महासचिव सी.श्रीकुमार ने बताया कि रक्षा मंत्रालय में खासतौर से कर्मियों के हितों से जुड़े मामलों की फाइलें, वित्त मंत्रालय या डीओपीटी के पास भेजी जाती हैं। वहां से नब्बे फीसदी फाइलें रिजेक्ट हो जाती हैं या उन्हें वर्षों तक ठंडे बस्ते में डाल देते हैं। ताजा उदाहरण बोनस का है।रक्षा क्षेत्र के सिविल कर्मियों को जो बोनस दशहरे से पहले मिलता रहा है, इस बार दीवाली का पर्व बीतने के बाद भी वह बोनस नहीं मिल सका है। बाकी विभागों में वह बोनस दीवाली से पहले ही जारी कर दिया गया था। अगर रक्षा क्षेत्र के कर्मियों को यह बोनस मिलता है तो चार लाख से ज्यादा सिविल कर्मियों को 7 हजार रुपये से 9 हजार रुपये तक का आर्थिक फायदा हो सकता है।
*पीएलबी’ के लिए वित्त मंत्रालय से नहीं मिल रही मंजूरी*
बता दें कि इस बार नेवी, एयरफोर्स, ईएमई, एओसी, डीजीक्यूए, डीजीएक्यूए, डायरेक्ट्रेट ऑफ ऑर्डिनेंस (सीएंडएस) और ऑर्डिनेंस फैक्ट्री अस्पताल के कर्मियों को अभी तक प्रोडक्टिविटी लिंक्ड बोनस (पीएलबी) नहीं दिया गया है। लाखों कर्मियों को उम्मीद थी कि दीवाली तक यह बोनस मिल जाएगा, लेकिन वह अभी तक जारी नहीं हो सका।बता दें कि इस तरह के बोनस के लिए केंद्रीय कैबिनेट ने एक फार्मूला तैयार कर रखा है। उसी आधार पर वह बोनस मिलता है। इसके बावजूद रक्षा मंत्रालय खुद से निर्णय नहीं ले रहा। बोनस की फाइल वित्त मंत्रालय को एक माह पहले ही भेज दी गई थी, लेकिन वहां से पीएलबी फाइल बिना मंजूरी के लौट आई। दस दिन पहले दोबारा से वह फाइल वित्त मंत्रालय को भेजी गई। अभी तक उस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है।
रेलवे कर्मचारियों को सितंबर में ही 78 दिन का बोनस देने की घोषणा कर दी गई थी। लगभग 11.56 लाख नॉन गैजेट्ड कर्मचारियों को इसका फायदा हुआ था। पीएलबी का मकसद कर्मचारियों को बेहतर प्रदर्शन के लिए प्रेरित करना होता है।
*कारखानों का निजीकरण करना चाहती है सरकार*
अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ एआईडीईएफ के महासचिव सी.श्रीकुमार का कहना है कि जब से 41 आयुध कारखानों को सात निगमों में तबदील किया गया है, तभी से सिविल कर्मियों को मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। कर्मियों को पीएलबी नहीं मिला तो दूसरी ओर भारतीय सेना के लिए 11 लाख ‘कॉम्बैट डिजिटल प्रिंटेड वर्दी’ तैयार करने का आर्डर, इस बार किसी प्राइवेट फर्म को देने की तैयारी हो रही है। पिछले साल से ही इन कारखानों से धीरे-धीरे सप्लाई आर्डर छीने जा रहे हैं। यह सब एक साजिश के तहत हो रहा है।
दरअसल, केंद्र सरकार नहीं चाहती कि सात निगमों में विभाजित किए गए 41 आयुध कारखानें, आगे बढ़ते रहें। सरकार, इन कारखानों का निजीकरण करना चाहती है। टीसीएल के अंतर्गत 4 आयुध कारखानें, कॉम्बैट डिजिटल वर्दी’ बनाने में सक्षम हैं, लेकिन इन्हें सीधा आर्डर नहीं दिया गया। नतीजा, कई कारखानों के पास 2023-24 के लिए वर्कलोड ही नहीं है।
*एक साल से अनुकंपा आधार पर नहीं दी जा रही नौकरी*
श्रीकुमार के मुताबिक, रक्षा क्षेत्र के सिविल कर्मियों के साथ सौतेले व्यवहार का एक उदाहरण यह भी है कि पिछले एक साल से अनुकंपा आधार पर नौकरी नहीं दी जा रही है। कोरोनाकाल में 150 कर्मियों की मौत हुई थी, अभी तक किसी भी कर्मी के आश्रित को नौकरी नहीं मिल सकी। निगम बनने के बाद तो हालात बिल्कुल खराब होते जा रहे हैं। पहले रक्षा क्षेत्र के सिविल कर्मियों के परिजनों को पांच फीसदी कोटे के हिसाब से अनुकंपा आधार पर नौकरी मिलती थी। अब यह किया जाने लगा है कि आर्मी में जो शहीद होते हैं, उनके आश्रितों को भी इसी कोटे से नौकरी दी जा रही है।आईडीईएफ ने इस तरह के मामलों में एक बारगी छूट देने का आग्रह किया था, जिसे सरकार ने सिरे से नकार दिया। रेलवे में अनुकंपा आधार पर सौ फीसदी मिलने का प्रावधान है। समय पर कैडर रिव्यू नहीं हो रहा है। डीआरडीओ, डिफेंस सिविलियन पेरा मेडिकल स्टाफ व एमईएस कर्मचारियों सहित अन्य दर्जनभर मांगें लंबित हैं। श्रीकुमार ने 25 अक्तूबर को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को लिखे पत्र में कहा है कि इस मुद्दों के हल के लिए कर्मचारी एसोसिएशन और रक्षा मंत्रालय के सीनियर अफसरों की एक बैठक बुलाई जाए।
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