हलाल बनाम झटका: मुसलमानों का अकीदा और हिंदुओं की आस्था का सवाल समझें
हलाल और झटका में खास अंतर है पशु की हत्या के तरीके का। हलाल की प्रक्रिया में गर्दन रेत-रेतकर पशु की हत्या की जाती है जबकि झटके का संबंध गर्दन पर एक प्रहार से पशु का सिर उसके धड़ से अलग करने से है। पहला तरीका शरीयत का है तो दूसरा बलि का।
हाइलाइट्स
- केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता गिरिराज सिंह के बयान पर सियासत
- गिरिराज ने हिंदुओं से सिर्फ झटका मांस खाने की अपील की
- मंत्री ने कहा मुसलमान कभी झटका नहीं खाते तो हिंदू हलाल क्यों खाएं
गिरिराज सिंह बोले- हलाल नहीं, झटका मीट खाएं हिंदू
गिरिराज सिंह बोले- हलाल नहीं, झटका मीट खाएं हिंदूनई दिल्ली: हलाल बनाम झटका का मुद्दा फिर चर्चा में लौट आया है। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने अपने संसदीय क्षेत्र बेगूसराय में जब हिंदुओं से हर हाल में हलाल मीट छोड़ने और सिर्फ झटका मीट खाने की अपील की तो राजनीति गरमा गई। पड़ोसी राज्य झारखंड से राज्यसभा सांसद महुआ माजी ने गिरिराज के बयान को चुनावी राजनीति साधने की कवायद बता दी। उन्होंने कहा, ‘चुनाव से पहले पता नहीं क्यों इस तरह से धार्मिक चीजें लाकर जान-बूझकर माहौल को अलग किया जाता है।’ उन्होंने एक कहावत दुहराते हुए कहा कि आप रुचि खाना, पर रुचि पहनना। उन्होंने सवाल किया कि भोजन अपने पसंद से किया जाता है, कोई क्या खाएगा, क्या नहीं खाएगा ये डिसाइड करने वाले वो (गिरिराज) कौन होते हैं?
हलाल और झटके पर गिरिराज सिंह ने क्या कहा, जानें
उधर, गिरिराज सिंह का कहना है, ‘मैंने अपने यहां (बेगूसराय में) ये जरूर कहा है, मुस्लिम भाइयों का मैं सम्मान करता हूं। उनकी अपने धर्म के प्रति इतने अटूट आस्था है कि कोई मुसलमान भाई हलाल छोड़कर दूसरा मीट नहीं खा सकता। तो सनातनी हिंदू भाइयों से भी मेरी प्रार्थना है कि अपने धर्म की रक्षा के लिए हलाल मीट खाना बंद करें और झटका मीट ही खाएं। न मिले तो न खाएं, चाहे जितने दिन भी न मिले। आने वाले दिन में जब आप हलाल मीट नहीं खाएंगे तो झटका मीट की दुकानें भी खुलने लगेंगी। पूरे देश से कहना चाहता हूं कि धर्मो रक्षति रक्षित:। धर्म की रक्षा करेंगे तभी धर्म आपकी रक्षा करेगा। इसलिए हलाल नहीं खाएं, झटका ही खाएं।’ निश्चित रूप से यह गिरिराज सिंह की अपील है, न कि वो अपना निर्णय किसी पर थोप रहे हैं जैसा कि महुआ ने कहा।
हलाल और झटका का अंतर समझिए
हलाल शब्द का अर्थ अरबी में ‘वैध’ या ‘स्वीकृत’ होता है। इस्लाम के नियमों में जिसकी अनुमति है, वो सब हलाल है। इसके उलट जिसकी अनुमति नहीं, वो हराम। मुस्लिम जीवन के हर पहलू में हलाल और हराम का एंगल ढूंढते हैं- उपयोग की वस्तु हो या जीवनशैली। मुसलमानों की जिंदगी में पग-पग पर क्या और कैसे का सवाल होता है और वो उन्हें हलाल और हराम के पैमाने पर रखकर तय करते हैं कि क्या करना है क्या नहीं, कैसे करना है कैसे नहीं। हलाल मीट का सवाल ‘कैसे’ से जुड़ा है। मांस के लिए पशु की हत्या करनी पड़ेगी। वो कैसे की जाए? इस्लाम में इसकी विधि बताई गई है- धीरे-धीरे गर्दन रेतकर मारो। इस तरह मारे गए पशु का मांस हलाल है, वरना हराम।
वहीं, झटका का मतलब है- तुरंत, चटपट। दैनिक जीवन की बातचीत में हम ‘एक झटके में’ का टर्म कई बार कहते-सुनते हैं। इसका मतलब है- बिना लेट-लतीफ, फटाक से। तो जिस तरह हलाल मीट का संबंध पशु की हत्या के तरीके से है, उसी तरह झटका मीट का भी। झटका मीट वह है जो पशु के एक झटके में काटने के बाद मिले। हिंदुओं की कई देवी-देवताओं को जब बलि दी जाती है तो इसी तरीके से यानी झटके से। इसमें पशु की गर्दन रेतने के बजाय उसे एक झटके में काटकर सिर को धड़ से अलग कर दिया जाता है। सिख परंपरा में भी झटका मांस खाने का ही चलन है। बल्कि सिखों के 10 गुरुओं ने झटा को ही अनिवार्य किया है। यानी किसी सिख के लिए वही मांस उपयोग के लायक है जिसे पाने के लिए पशु की गर्दन को एक ही प्रहार में काट दिया जाए। यानी अगर हलाल मुस्लिमों का अकीदा है तो झटका हिंदुओं-सिखों की आस्था।
हलाल से दिक्कत क्या?
जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है- हलाल सिर्फ मांस तक सीमित नहीं है। अब तो दुनियाभर में बहुत बड़ी ‘हलाल इकॉनमी’ खड़ी हो चुकी है। इस्लामी संगठन अब उत्पादों को हलाल सर्टिफिकेट देने के लिए कंपनियों से मोटी फी वसूलते हैं। हद यह है कि हलाल सर्टिफिकेट देने वाले ऐसे संगठन पर्यटन के तौर-तरीकों पर भी हलाल-हराम का भेद करते हैं। भारत में भी कई ऐसे संगठन हैं जो कंपनियों को उनके प्रॉडक्ट्स के लिए हलाल सर्टिफिकेट जारी करते हैं और बदले में उनकी मोटी कमाई होती है। सोशल मीडिया पर ऐसे दावे भरे पड़े हैं कि ये हलाल सर्टिफिकेशन से होने वाली मोटी कमाई से इस्लामी संगठन आतंकियों, देश विरोधियों और जिहादियों के मुकदमे लड़ती है। ऐसे दावे किए जाते हैं कि हिंदुओं समेत तमाम गैर-मुस्लिमों के खिलाफ तरह-तरह के जिहाद में संलिप्त मुसलमानों और उनके परिवारों की भी भरपूर मदद इन्हीं पैसों से होती है। इसी वजह से देश में जिहादी गतिविधियां तेजी से बढ़ रही हैं- खासकर लव जिहाद के मामले करीब-करीब हर दिन ही सामने आते हैं। इन दावों की पुष्टि नवभारत टाइम्स नहीं कर सकता। यह गहन जांच का विषय है।
यूपी में हलाल प्रॉडक्ट्स की बिक्री पर बैन
लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि हाल ही में उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने राज्य में हलाल प्रॉडक्ट्स की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया और कड़े शब्दों में निर्देश दिया कि हलाल प्रॉडक्ट बेचने वाली कंपनी पर कड़ी कार्रवाई होगी। सरकार का कहना है कि आखिर जो संस्था हलाल सर्टिफिकेट जारी कर रही है, उसे यह अधिकार किसने दिया? आखिर किस नियम-कानून के तहत हलाल सर्टिफिकेट जारी किए जा रहे हैं? देश में किसी प्रॉडक्ट की क्वॉलिटी सर्टिफिकेशन के लिए आईएसआई, एफएसएसएआई जैसी सरकारी संस्थाएं हैं। ऐसे में सवाल है कि हलाल सर्टिफिकेशन देने वाले संस्थानों ने कहां से लाइसेंस लिया, उन्हें किस सरकार ने किस नियम के तहत परमिशन दिया? कितनी हैरत की बात है कि जो इस्लामी नियम-कानूनों यानी शरिया की नजर में हलाल यानी वैध का सर्टिफिकेट देते हैं, वो खुद ही अवैध हैं।
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