हार के डर ने भारत को फिर हराया:2013 से 10 ICC टूर्नामेंट खेले, 9वीं बार फाइनल-सेमीफाइनल हारे; क्या है फियर ऑफ फेल्योर
टीम इंडिया ने एक बार फिर ICC ट्रॉफी जीतने का मौका गंवा दिया। रविवार को अहमदाबाद के नरेंद्र मोदी स्टेडियम में खेले गए वर्ल्ड कप फाइनल में ऑस्ट्रेलिया ने भारत को 7 विकेट से हरा दिया।
यह 2013 के बाद से 9वां मौका है जब भारतीय टीम ने सेमीफाइनल या फाइनल मैच हारकर खिताब जीतने का मौका गंवाया है।
पूरे टूर्नामेंट में शानदार खेल दिखाने वाली भारतीय टीम अहम मैचों में अचानक से चोक क्यों कर जाती है? इस सवाल का जवाब स्पोर्ट्स साइकोलॉजी से मिलता है। भारतीय टीम के साथ फाइनल में जो हुआ, उसे खेल और खिलाड़ियों का विश्लेषण करने वाले मनोवैज्ञानिक फियर ऑफ फेल्योर कहते हैं। यानी हार का खौफ।
भारतीय टीम इसका शिकार कैसे हुई, इसे समझने के लिए पहले फियर ऑफ फेल्योर को समझना होगा
फियर ऑफ फेल्योर एक ऐसी अवस्था है जिसमें लोग ऐसा कोई फैसला नहीं लेते, जिसमें हार की संभावना हो। वो न तो नई चीजें ट्राई करते हैं और न ही रिस्क लेना चाहते हैं। इसके पीछे चार प्रमुख कारण बताए जाते हैं…
फाइनल में कहां और कैसे अप्लाई हुआ फियर ऑफ फेल्योर
1. टॉस के वक्त रोहित का डिफेंसिव माइंडसेट
ऑस्ट्रेलिया ने टॉस जीतकर पहले बॉलिंग चुनी। उस वक्त रोहित ने कहा कि वे अगर टॉस जीतते तो पहले बैटिंग करते। इस ग्राउंड पर इस वर्ल्ड कप के चार मैचों में से तीन में बाद में बैटिंग करने वाली टीम जीती। रोहित की मनः स्थिति डिफेंसिव थी और वे फाइनल में चेज नहीं करना चाहते थे। वह भी तब जब इसी ग्राउंड पर पाकिस्तान के खिलाफ उन्होंने चेज करने का फैसला किया था और टीम जीती थी।
टॉस हार जाने के बाद भी रोहित शर्मा बोले कि उन्हें पहले बैटिंग ही करनी थी। जबकि इस मैदान पर बाद में बैटिंग करने वाली टीमों ने 75% मैच जीते थे।
2. गिल और अय्यर प्रेशर नहीं झेल पाए
इस मैच से पहले पूरी टीम इंडिया शानदार खेल दिखा रही थी, लेकिन हमारे टॉप-4 के दो बल्लेबाज बड़े मौके पर प्रेशर नहीं संभाल पाए। गिल स्टार्क की गेंद पर खराब शॉट खेलकर आउट हुए। वहीं, अय्यर ऑफ स्टंप के बाहर की गेंद को छेड़ते हुए आउट हुए।
3. रोहित शर्मा का गैरजरूरी शॉट
रोहित शर्मा इस वर्ल्ड कप में आक्रामक शॉट खेलते हुए आउट हो रहे थे। इस बार भी ऐसा हुआ। फिर आप कह सकते हैं कि ये तो नॉर्मल था। नहीं। यह नॉर्मल नहीं था। रोहित जिस ओवर में आउट हुए, उसमें पहले ही 10 रन आ गए थे। इसके बावजूद वे एक पार्ट टाइम गेंदबाज के खिलाफ खराब शॉट खेलकर आउट हो गए।
4. केएल राहुल की बेहद धीमी बल्लेबाजी
81 रन पर 3 विकेट गिरने के बाद केएल राहुल बैटिंग करने उतरे। उन्होंने विराट कोहली का साथ तो दिया, लेकिन कुछ ज्यादा ही धीमी बैटिंग की। उन्होंने ग्लेन मैक्सवेल और ट्रैविस हेड जैसे पार्ट टाइम स्पिनर्स के सामने भी अटैक नहीं किया। जिस कारण ऑस्ट्रेलिया मैच में हावी हो गया। राहुल ने 107 बॉल पर 61.68 के स्ट्राइक रेट से 66 रन बनाए।
5. तीन विकेट गिराने के बाद डिफेंसिव सोच अपनाई
240 रन पर ऑलआउट होने के बाद भारतीय गेंदबाजों की बारी आई। टीम ने 47 रन पर ही ऑस्ट्रेलिया के 3 विकेट भी गिरा दिए, लेकिन यहां से टीम ने डिफेंसिव सोच अपना ली।
ट्रैविस हेड सेट नहीं हुए थे और मार्नस लाबुशेन क्रीज पर नए-नए ही आए थे। रोहित ने उनके सामने रवींद्र जडेजा और कुलदीप यादव से बॉलिंग तो करवाई, लेकिन दोनों ने अटैकिंग बॉलिंग नहीं की।
जडेजा की बॉलिंग पर कोई स्लिप नहीं लगाई, वहीं कुलदीप की बॉलिंग पर भी लाबुशेन के सामने स्लिप को यूज नहीं किया। मिडिल ओवर्स में कुलदीप की बॉलिंग पर लाबुशेन के बैट का बाहरी किनारा भी लगा, लेकिन तब स्लिप मौजूद नहीं थी। ऐसा ही एक मौका हेड के सामने जडेजा की बॉलिंग पर भी आया।
रोहित ने मोहम्मद सिराज को भी 17वें ओवर में पहली बार गेंदबाजी दी। सिराज ने पूरे 10 मैचों में नई गेंद से बॉलिंग की, लेकिन फाइनल में इस बदलाव से टीम को उनकी नई बॉल से गेंदबाजी का फायदा नहीं मिला। साथ ही शमी के 5 ओवर शुरुआती 10 ओवर में ही खत्म हो गए और टीम को फर्स्ट चेंज बॉलर का फायदा नहीं मिल पाया।
मैच को चैलेंज की जगह थ्रेट के तौर पर लिया
स्पोर्ट्स साइकोलॉजिस्ट करनबीर सिंह और मेंटल कोच प्रकाश राव के मुताबिक बड़े मैच में प्रेशर होता ही है। अगर खिलाड़ी मैच को चैलेंज की तरह लेते हैं तो पॉजिटिव रिजल्ट्स की संभावना ज्यादा होती है और अगर थ्रेट की तरह लेते हैं तो खेल पर नेगेटिव इम्पैक्ट पड़ता है। भारतीय खिलाड़ियों के एटीट्यूड से साफ जाहिर था कि वे इस मुकाबले को थ्रेट की तरह ले गए।
फियर ऑफ फेल्योर दिमाग में आता है शरीर पर असर डालता है
करनबीर सिंह कहते हैं- खिलाड़ी जब ये सोचता है कि फैन्स क्या बोलेंगे, कोच क्या सोचेगा, हार गए तो क्या होगा… ऐसे विचार प्रेशर डालते हैं। इनकी वजह से खिलाड़ियों ने जो न्यूरल पाथवेज डेवलप किए हैं, वो ब्लॉक हो जाते हैं। मसल मेमोरी शॉर्ट टर्म के लिए मिटने लगती है और खिलाड़ी ब्लैक आउट हो जाता है। ब्लैक आउट होने पर सिचुएशन के मुताबिक फैसले नहीं ले पाता। खिलाड़ी को रूटीन मोशन पाने में भी दिक्कत होती है।
प्रोसेस भूलकर रिजल्ट पर हो जाता है फोकस
मेंटल कोच प्रकाश राव कहते हैं- बड़े मैच में प्रेशर की वजह से प्रोसेस की बजाय नतीजे पर ज्यादा फोकस किया जाता है। जिससे दिमाग तय नहीं कर पाता कि अभी क्या करना चाहिए। इससे खिलाड़ी की मूवमेंट धीमी हो जाती है। इसका मैच के नतीजे पर नकारात्मक असर पड़ता है। चोकिंग किसी के साथ कभी भी हो सकती है। चाहे खिलाड़ी कितना भी अनुभवी क्यों न हो।
याद नहीं रहा धोनी का मंत्र
भारत के पूर्व कप्तान एमएस धोनी भी कई बार कह चुके हैं कि किसी भी मैच में उनका फोकस रिजल्ट से ज्यादा एक्शन पर होता है। यानी वो क्या कर सकते हैं उस पर फोकस करते हैं न कि नतीजा क्या होगा। भारतीय खिलाड़ी इस मुकाबले में धोनी की फिलॉसफी पर अमल नहीं कर सके।
माल्कम ग्लैडवेल ने अपनी स्टडी ‘द आर्ट ऑफ फेल्योर’ में लिखा कि फियर ऑफ फेल्योर की वजह से चोकिंग होती है। पैनिक और चोकिंग बिल्कुल विपरीत हैं। कम सोचने से पैनिक होता है, जबकि ज्यादा सोचने से चोकिंग होती है। चोकिंग में खिलाड़ी की इंस्टिंक्ट गायब हो जाती है।
फियर ऑफ फेल्योर भारतीय टीम की पुरानी समस्या, जानिए टाइम लाइन
बड़े मैचों में इंडिया के फियर ऑफ फेल्योर को समझने के लिए हमने ICC टूर्नामेंट में टीम इंडिया के 48 सालों के सफर का एनालिसिस किया है। इसे हमने 4 फेज में बांटा है…
- 1975 से 1983: 1975 और 1979 वर्ल्डकप में भारत नॉकआउट में पहुंचा ही नहीं। 1983 में पहली बार नॉकआउट में पहुंचे और चैंपियन बने।
- 1984 से 2006: भारत ने 11 ICC टूर्नामेंट में हिस्सा लिया। इनमें से 5 में हम सेमीफाइनल या फाइनल में हारे। 1 फाइनल बारिश के कारण पूरा नहीं हुआ, जिसमें भारत संयुक्त विजेता बना था। 5 टूर्नामेंट ऐसे थे जिसमें भारत नॉकआउट राउंड में पहुंचा ही नहीं। 1983 वर्ल्डकप के बाद से 2007 के वनडे वर्ल्डकप तक भारत एक भी ICC टूर्नामेंट नहीं जीत सका।
- 2007 से 2013: 2007 टी-20 वर्ल्डकप से लेकर 2013 चैंपियंस ट्रॉफी तक 7 ICC टूर्नामेंट में भारत ने हिस्सा लिया। इसमें टीम इंडिया 3 के नॉकआउट राउंड में पहुंची और तीनों में खिताब जीता।
- 2014 से 2023: 2013 के बाद से में 10 में से 9 ICC टूर्नामेंट के नॉकआउट में पहुंचा और एक भी खिताब नहीं जीत पाया है।
लीग स्टेज में 86% मैच जीतते हैं
पिछले 10 सालों में भारतीय टीम ICC टूर्नामेंट के लीग मैचों में शानदार खेल दिखा रही है, लेकिन सेमीफाइनल या फाइनल में बड़े अंतर से हार जाती है।
2013 की चैंपियंस ट्रॉफी के बाद से जितने भी ICC टूर्नामेंट हुए हैं, उनमें टीम इंडिया मैच जीतने के लिहाज से सबसे कामयाब टीम है। भारत ने तब से अब तक अलग-अलग ICC टूर्नामेंट के 44 लीग मैचों में से 38 जीते हैं। यानी भारत ने 86% लीग मैच जीते हैं। वहीं, भारतीय टीम इस दौरान 10 में से 9 टूर्नामेंट में नॉकआउट राउंड में बाहर हुई। यानी 90% मौकों पर भारत को एग्जिट टिकट नॉकआउट राउंड में ही मिला।
लीग मैचों में भारत की सफलता से जाहिर है कि टीम अगर 10 साल से कोई बड़ा खिताब नहीं जीत पाई है तो उसके पीछे क्रिकेटिंग रीजन नहीं है।
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