यमन के हूती विद्रोहियों के पास इस वक्त ड्रोन, रॉकेट लॉन्चर और छोटी मिसाइलें भी हैं। (फाइल)
लाल सागर में दुनिया के तमाम देशों के सिरदर्द बनते जा रहे यमन के हूती विद्रोहियों को रविवार को बड़ा झटका लगा। एक कार्गो शिप पर कब्जे की कोशिश कर रहे हूती विद्रोहियों के खिलाफ अमेरिकी नेवी ने ऑपरेशन किया। नेवी हेलिकॉप्टर्स ने सिर्फ 34 मिनिट में हूती विद्रोहियों की तीन नावों को बमबारी में तबाह करके उन्हें समंदर में डुबा दिया।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक- लाल सागर में अमेरिकी नेवी के कमान संभालने के बाद यह अब तक का सबसे बड़ा मिलिट्री ऑपरेशन है।
रविवार सुबह अमेरिकी नेवी का अलर्ट मिला था कि हूती विद्रोहियो डेनमार्क के कार्गो शिप को हाईजैक करने वाले हैं। इसके बाद वॉरशिप आनजनहॉवर को अलर्ट किया गया। (फाइल)
कैसे हुआ ऑपरेशन
- ‘वॉइस ऑफ अमेरिका’ की रिपोर्ट के मुताबिक- रविवार सुबह अमेरिकी नेवी का अलर्ट मिला था कि हूती विद्रोहियो डेनमार्क के कार्गो शिप को हाईजैक करने वाले हैं। इसके बाद लाल सागर यानी रेड सी में तैनात वॉरशिप आनजनहॉवर को अलर्ट किया गया। इस पर तैनात नेवी हेलिकॉप्टर्स ने कुछ देर बाद डेनमार्क के शिप की तरफ रुख किया।
- इस शिप से कुछ दूरी पर उन्हे अलग-अलग दिशाओं में हूतियों की तीन बोट्स नजर आईं। बोट्स के अमेरिकी हेलिकॉप्टर्स पर फायरिंग की गई। इसके बाद हेलिकॉप्टर्स में मौजूद मरीन्स ने ऑपरेशन शुरू किया और सिर्फ 34 मिनट में हूतियों की तीनों बोट्स को तबाह करते हुए, उन्हें समंदर में डुबा दिया।
- अब तक यह साफ नहीं हो सका है कि तीन बोट्स में कुल कितने हूती विद्रोही सवार थे। हालांकि, हूती विद्रोहियों की नावें काफी बड़ी होती हैं और इनमें काफी लोग मौजूद रहते हैं। कुछ दिन पहले हूती विद्रोहियों ने अमेरिका को इस इलाके से निकल जाने की धमकी दी थी।
- एक रिपोर्ट में कहा गया है कि हूती विद्रोही चार बोट्स से आए थे और एक बोट का अब तक पता नहीं चल सका है। अमेरिकी नेवी ने सिर्फ यह बताया है कि ऑपरेशन में उसे किसी तरह का नुकसान नहीं हुआ।
- एबीसी न्यूज के मुताबिक- क्रिसमस के पहले 30 दिन में हूती विद्रोहियों ने 20 शिप्स को अटैक किया। ये सभी कार्गो शिप्स थे और रविवार को जिस डेनमार्क के शिप को अमेरिका ने बचाया, उस पर 10 दिन में दूसरी बार हमले की कोशिश हुई।
- हूती विद्रोहियों के पास ड्रोन और छोटी मिसाइलें भी हैं। यही वजह है कि कई बार वो लाल सागर में किसी छोटे मिलिट्री शिप पर भी भारी पड़ जाते हैं। हालांकि, अब अमेरिका और ब्रिटेन के वॉरशिप यहां अलर्ट मोड पर हैं।
अमेरिका ने लाल सागर में अपना वॉरिशप आईजनहॉवर तैनात किया है।
मेस्क ने 48 घंटे ट्रैवल ऑपरेशन रोके
- दुनिया की सबसे बड़ी नेवल कार्गो ऑपरेशन कंपनी मेस्क ने 48 घंटे के लिए रेड में ट्रैवल ऑपरेशन रोक दिए हैं। कंपनी ने 15 दिसंबर के बाद भी इसी तरह का कदम उठाया था। कंपनी के कार्गो शिप पर बाब अल मंदाब खाड़ी में रविवार को हमले की कोशिश हुई थी।
- यह रास्ता भारत के लिए अहम है। इसके जरिए ही हमारे शिप अरब, अफ्रीका और यूरोप तक जाते हैं। दुनिया का 12% कारोबार और 30% कंटेनर ट्रैफिक इसी रूट से होता है। 2023 में हूती विद्रोहियों के हमले काफी बढ़ गए।
- बाब अल मंदाब खाड़ी या लाल सागर के रास्ते में हूती विद्रोहियों का खतरा बढ़ने के बाद अब शिप्स को केप ऑफ गुड होप या अफ्रीका के किनारों वाले रास्ते का इस्तेमाल करना पड़ेगा। इससे रास्ता 40% ज्यादा लंबा तय करना होगा। इससे न सिर्फ वक्त ज्यादा लगेगा, बल्कि ट्रांसपोर्टेशन कॉस्ट भी काफी बढ़ जाएगी। खासतौर पर क्रूड ऑयल और LNG इम्पोर्ट महंगा हो जाएगा।
कौन हैं हूती विद्रोही
- साल 2014 में यमन में गृह युद्ध शुरू हुआ। इसकी जड़ शिया-सुन्नी विवाद है। कार्नेजी मिडल ईस्ट सेंटर की रिपोर्ट के मुताबिक दोनों समुदायों में हमेशा से विवाद था जो 2011 में अरब क्रांति की शुरूआत से गृह युद्ध में बदल गया। 2014 में शिया विद्रोहियों ने सुन्नी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
- इस सरकार का नेतृत्व राष्ट्रपति अब्दरब्बू मंसूर हादी कर रहे थे। हादी ने अरब क्रांति के बाद लंबे समय से सत्ता पर काबिज पूर्व राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह से फरवरी 2012 में सत्ता छीनी थी। हादी देश में बदलाव के बीच स्थिरता लाने के लिए जूझ रहे थे। उसी समय सेना दो फाड़ हो गई और अलगाववादी हूती दक्षिण में लामबंद हो गए।
- अरब देशों में दबदबा बनाने की होड़ में ईरान और सउदी भी इस गृह युद्ध में कूद पड़े। एक तरफ हूती विद्रोहियों को शिया बहुल देश ईरान का समर्थन मिला। तो सरकार को सुन्नी बहुल देश सउदी अरब का।
- देखते ही देखते हूती के नाम से मशहूर विद्रोहियों ने देश के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया। 2015 में हालात ये हो गए थे कि विद्रोहियों ने पूरी सरकार को निर्वासन में जाने पर मजबूर कर दिया था।
2014 में कैसे शुरु हुई थी यमन की जंग?
- साल 2014 में यमन में गृह युद्ध की शुरुआत हुई। इसकी जड़ शिया और सुन्नी विवाद में है। दरअसल यमन की कुल आबादी में 35% की हिस्सेदारी शिया समुदाय की है जबकि 65% सुन्नी समुदाय के लोग रहते हैं। कार्नेजी मिडल ईस्ट सेंटर की रिपोर्ट के मुताबिक दोनों समुदायों में हमेशा से विवाद रहा था जो 2011 में अरब क्रांति की शुरूआत हुई तो गृह युद्ध में बदल गया। 2014 आते-आते शिया विद्रोहियों ने सुन्नी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
- इस सरकार का नेतृत्व राष्ट्रपति अब्दरब्बू मंसूर हादी कर रहे थे। हादी ने अरब क्रांति के बाद लंबे समय से सत्ता पर काबिज पूर्व राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह से फरवरी 2012 में सत्ता छीनी थी। देश बदलाव के दौर से गुजर रहा था और हादी स्थिरता लाने के लिए जूझ रहे थे। उसी समय सेना दो फाड़ हो गई और अलगाववादी हूती दक्षिण में लामबंद हो गए।
- अरब देशों में दबदबा बनाने की होड़ में ईरान और सउदी भी इस गृह युद्ध में कूद पड़े। एक तरफ हूती विद्रोहियों को शिया बहुल देश ईरान का समर्थन मिला। तो सरकार को सुन्नी बहुल देश सउदी अरब का। देखते ही देखते हूती के नाम से मशहूर विद्रोहियों ने देश के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया। 2015 में हालात ये हो गए थे कि विद्रोहियों ने पूरी सरकार को निर्वासन में जाने पर मजबूर कर दिया था।
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