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होलिका दहन का क्या रहेगा शुभ मुहूर्त,जानिए होलिका दहन के दिन किन बातों का रखना है विशेष ध्यान……

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ज्योतिषाचार्य मोहित बिस्सा
होलिका दहन मुहूर्त व अन्य बातें

होलीका दहन :- फाल्गुन पूर्णिमा 24 मार्च वार रविवार को रात्रि :- 11:13 से 12:30 तक
रंगोत्सव :- 25 मार्च को

फाल्गुन पूर्णिमा तिथि 24 मार्च को सुबह 09 : 57am से शुरू होगी। वहीं इस तिथि का समापन अगले दिन यानी 25 मार्च को दोपहर 12 बजकर 32 मिनट पर होगा।

विशेष योग

इस विशेष दिन पर सर्वार्थसिद्धि एवं रवियोग बनेगा. रवि योग इतना प्रबल होता है कि इस योग में जो भी अशुभ शक्ति होती है, उसका प्रभाव पूर्ण रूप से नष्ट हो जाता है। होलिका दहन पर इस साल भद्रकाल का साया भी रहेगा।

ऋग्वेदीय रांका वेद पाठशाला के ज्योतिषाचार्य मोहित बिस्सा के अनुसार 24 मार्च को सुबह से भद्राकाल लग जाएगी। इस दिन भद्रा का प्रारंभ सुबह 09 बजकर 54 मिनट से हो रहा है, जो रात 11 बजकर 13 मिनट तक रहेगी। होलिका दहन के लिए शुभ मुहूर्त देर रात 11 बजकर 13 मिनट से लेकर 12 बजकर 27 मिनट तक है। ऐसे में होलिका दहन के लिए आपको कुल 1 घंटे 14 मिनट का समय मिलेगा।
होली का विशेष महत्व

  • होली हिंदूओं का सांस्कृतिक,धार्मिक और पारंपरिक त्योहार है। सनातन धर्म में प्रत्येक मास की पूर्णिमा का बड़ा ही महत्व है और यह किसी न किसी उत्सव के रूप में मनाई जाती है। उत्सव के इसी क्रम में होली, वसंतोत्सव के रूप में फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। यह दिन सतयुग में विष्णु भक्ति का प्रतिफल के रूप में सबसे अधिक महत्वपूर्ण दिनों में से माना जाता है।
  • भक्त प्रह्लाद से जुड़ा है होली का पर्व हिन्दू धर्म के अनुसार होलिका दहन मुख्य रूप से भक्त प्रह्लाद की भक्ति के लिए किया जाता है। भक्त प्रह्लाद राक्षस कुल में जन्मे थे परन्तु वे भगवान नारायण के अनन्य भक्त थे। उनके पिता हिरण्यकश्यप को उनकी ईश्वर भक्ति अच्छी नहीं लगती थी इसलिए हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को अनेकों प्रकार के जघन्य कष्ट दिए। उनकी बुआ होलिका जिसको ऐसा वस्त्र वरदान में मिला हुआ था जिसको पहन कर आग में बैठने से उसे आग नहीं जला सकती थी। होलिका भक्त प्रह्लाद को मारने के लिए वह वस्त्र पहनकर उन्हें गोद में लेकर आग में बैठ गई। भक्त प्रह्लाद की विष्णु भक्ति के फलस्वरूप होलिका जल गई और प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ। शक्ति पर भक्ति की जीत की ख़ुशी में यह पर्व मनाया जाने लगा। साथ में रंगों का पर्व यह सन्देश देता है कि काम, क्रोध,मद,मोह एवं लोभ रुपी दोषों को त्यागकर ईश्वर भक्ति में मन लगाना चाहिए।
  • राधा-कृष्ण के पवित्र प्रेम से है संबंध होली का त्योहार राधा-कृष्ण के पवित्र प्रेम से भी जुड़ा हुआ है। पौराणिक समय में श्री कृष्ण और राधा की बरसाने की होली के साथ ही होली के उत्सव की शुरुआत हुई। आज भी बरसाने और नंदगाव की लट्ठमार होली विश्व विख्यात है।
  • कामदेव की तपस्या से भी जुड़ा हे होली का संबंध शिवपुराण के अनुसार ,हिमालय की पुत्री पार्वती शिव से विवाह हेतु कठोर तपस्या कर रहीं थीं और शिव भी तपस्या में लीन थे। इंद्र का भी शिव-पार्वती विवाह में स्वार्थ छिपा था कि ताड़कासुर का वध शिव-पार्वती के पुत्र द्वारा होना था। इसी वजह से इंद्र आदि देवताओं ने कामदेव को शिवजी की तपस्या भंग करने भेजा। भगवान शिव की समाधि को भंग करने के लिए कामदेव ने शिव पर अपने ‘पुष्प’ वाण से प्रहार किया था। उस वाण से शिव के मन में प्रेम और काम का संचार होने के कारण उनकी समाधि भंग हो गई।इससे क्रुद्ध होकर शिवजी ने अपना तीसरा नेत्र खोल कामदेव को भस्म कर दिया। शिवजी की तपस्या भंग होने के बाद देवताओं ने शिवजी को पार्वती से विवाह के लिए राज़ी कर लिया। कामदेव की पत्नी रति को अपने पति के पुनर्जीवन का वरदान और शिवजी का पार्वती से विवाह का प्रस्ताव स्वीकार करने की खुशी में देवताओं ने इस दिन को उत्सव की तरह मनाया यह दिन फाल्गुन पूर्णिमा का ही दिन था। इस प्रसंग के आधार पर काम की भावना को प्रतीकात्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है।
  • ज्योतिष के अनुसार भी नव वर्ष की शुरुआत है, वादिक हिंदी माह का पहला महीना चैत्र कृष्ण पक्ष प्रतिपदा, उत्तर भारतीय पंचांग के अनुसार चैत्र मास का पहला दिन। अतः होलिका दहन फाल्गुन महीने के अंतिम दिन मनाते हैं और अगले दिन नव वर्ष के स्वागत के लिए होली मनाते हैं।
  • वैज्ञानिक दृष्टि से होली वसंत की शुरुआत में मनाई जाती है, जो ठंड से गर्म मौसम में संक्रमण को चिह्नित करता है। होली के दौरान इस्तेमाल होने वाले रंग पारंपरिक रूप से प्राकृतिक सामग्री से बने होते हैं जिनमें चिकित्सीय गुण होते हैं। माना जाता है कि इन रंगों के साथ खेलने से शरीर और मन पर सफाई का प्रभाव पड़ता है, जिससे समग्र कल्याण को बढ़ावा मिलता है जो गर्मियों में गर्मी को संभालने में मदद करता है।
  • दुर्गा सप्तशती के अनुसार होली की रात्रि विशेष रात्रियो में से एक रात्रि है जो मंत्र सिद्धि के लिए सर्वश्रेष्ठ है इस रात्रि को किया गया ध्यान,जप, तप, भजन कई गुना अधिक फलदाई होता है इस रात्रि को की गई मंत्र साधना बहुत महत्वपूर्ण और सिद्धि दाई है अनिष्ट शक्तियों से रक्षा, रोग निवारण, शत्रु बाधा आदि समस्त नकारात्मक बधाओ के निवारण के लिए किसी आध्यात्मिक रक्षा कवच की साधना करने के लिए इस अवसर का लाभ हमें लाभ लेना चाहिए।

*होलिका दहन पर ध्यान रखने योग्य

  • होलिका दहन के समय परिवार के सभी सदस्यों को एक साथ भगवान से प्रार्थना करें और अपने अंदर की सारी बुराइयों को नष्ट करें।
  • होलिका की पूजा करें और फिर होलिका की कम से कम 5 या 7 परिक्रमा करें। इस बात का खास ख्याल रखें की होलिका की पूजा करते समय आपका मुख पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए.
  • मनोकामना की पूर्ति- हेतु होली के दिन से शुरू करके प्रतिदिन हनुमान जी को पांच लाल पुष्प चढ़ाएं, मनोकामना शीघ्र पूर्ण होगी।
  • होली के दिन होलिका-पूजन के उपरान्त “विष्णु-सहस्त्रनाम” तथा “नारायण-कवच” के तीन पाठ करें व मनोकामना पूर्ण होने की प्रार्थना करें।
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