आत्म चिंतन और धैर्य की युवा पीढ़ी को आवश्यकता”
हम सभी जब अपने बचपन से निकल कर किशोरवस्था और फिर युवावस्था में आ जाते है तो यह पूरा संसार अपनी मुट्ठी में दिखाई देने लगता है और ऐसा प्रतीत होता है कि मानो अब जहाँ तक मेरे पत्थर का उछाल जायेगा वहां तक सब मेरा सिक्का मान ही लेंगे। दुनियां मेरे हिसाब से रंग बदलना आरम्भ करेगी और अगर मैं चाहूँ तो सब कुछ बदल जायेगा। मगर हम कुछ भी मेहनत नहीं कर पाएंगे जो कुछ मिले वो नाम से या जुगाड़ से मिल जाये।
मेरा मानना है कि वहीं दूसरी तरफ हमारी युवा पीढ़ी में बहुत से युवा जिम्मेदार और जोश से परिपूर्ण है, ऐसी युवा पीढ़ी अपने भविष्य के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण रखती है और विश्व को एक सामरिक, समृद्ध, और सामाजिक दृष्टिकोण से देखती है। उन्हें सामाजिक न्याय, पर्यावरण संरक्षण, और तकनीकी उन्नति में रुचि होती है। वे अपने क्षमताओं का सही तरीके से उपयोग करके समस्याओं का समाधान निकालने के लिए उत्सुक हैं। यह युवा पीढ़ी, एक नए सोच का प्रतीक है, जो दुनिया को नए दृष्टिकोण से देखने का ख्वाब देखती है। उनकी आंखों में सिर्फ ख्वाब हैं, जो सीमाएं तय नहीं करते, जहाँ सफलता का माप कठोर परिश्रम और गहनता की जगह सिर्फ सोच और साहस है। ये युवा, अपने सपनों की पुर्वाह किए बिना ही नए आधारों पर खड़े हो रहे हैं, जहाँ महत्वपूर्ण नहीं है कि कितना कठिन है, बल्कि यह कि कैसे कठिनाईयों का सामना किया जा रहा है।
इस यौवन शक्ति को और अधिक ओजपूर्ण, आध्यात्मिक, सामाजिक, भावनात्मक रूप से मजबूत बनाने के लिए आत्मचिंतन और धैर्य के सर्वाधिक प्रयोग महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये उन्हें अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में मदद करते हैं। आत्मचिंतन उन्हें अपनी भावनाओं और मूल्यों का समीक्षण करने का अवसर देता है, जो उनके व्यक्तिगत और पेशेवर विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं। यह स्वयं को समझने और सुधारने का माध्यम होता है।
धैर्य से युक्त रहने से युवा पीढ़ी सभी चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहती है। जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए धैर्य एक अत्यंत महत्वपूर्ण गुण है, क्योंकि समय, प्रयास, और संघर्ष के बावजूद अगर युवा धैर्यपूर्वक काम करता है, तो उसे सफलता दुगुने रूप में अवश्य मिलती है। किसी भी प्रकार का असंभव सा दिखने वाला काम या ख्वाब एक ऐसे जूनून और जज्बे की छाँव में पलता है तो केवल सफलता और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। एक नयी पहचान मिलती है।
आज के दौर में तो जो सबसे ज्यादा जरुरी है वो है भावनाओं और विचारों का ठीक से आदान प्रदान। आत्मचिंतन उन्हें अपनी भावनाओं और मूल्यों का समीक्षण करने का अवसर देता है, जो उनके व्यक्तिगत और पेशेवर विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं। यह स्वयं को समझने और सुधारने का माध्यम होता है। इस तरह से आज की हमारी खूबसूरत युवा पीढ़ी अपने मानवीय और सामाजिक संबंधों में भी सहारा प्राप्त करती है। ये गुण उन्हें विनम्र तथा साहसी बनाकर हर प्रकार की समस्याओं का सामना करने में मदद करते हैं, जो कि व्यक्तिगत और सामाजिक पूर्वाग्रह को मजबूत करने में मदद करते हैं और उन्हें सकारात्मक दिशा में बढ़ने का सामर्थ्य प्रदान करते हैं। इसके परिणामस्वरूप, वे कौशल एवं समृद्धि के द्वारा प्रगति कर, समाज में योगदान करने के लिए तैयार होते हैं।
किन्तु आजकल insta reels और TV या screen , और मोबाइल का बहुतायत में प्रयोग वो भी जब नकारात्मक दिशा में हो तब तो इसी जिम्मेदार युवा पीढ़ी का भविष्य सोच कर भी घबराहट होती है। आज के कम्प्यूटर और टेक्नोलॉजी के युग में कैसे बच्चों और युवाओं का ध्यान पूर्णतया सकारात्मक दिशा में लगाया जाये और उनके खूबसूरत स्वप्न और कल्पनाओं से भरी दुनियां को मजबूत बना कर उनके और देश के कल्याण में उनकी भूमिका सुनिश्चित की जाये, ऐसे प्रश्न बार बार माता पिता को या सभी बड़ों को घेर लेते हैँ। सामाजिक मीडिया और अन्य मनोरंजन स्रोतों का अत्यधिक उपयोग करने से युवा वर्ग अक्सर अपने लक्ष्यों से भटक जाता है, जिससे उनकी एकाग्रता पर असर पड़ता है।
आज के समय में, एकाग्रता की आवश्यकता ने जीवन के विभिन्न पहलुओं में महत्वपूर्ण भूमिका बना ली है। यह नहीं केवल शिक्षा में, बल्कि सामाजिक और आध्यात्मिक संबंधों में भी महत्वपूर्ण है। याद आती है मुझे वो मेरे बचपन की कहानी जो मेरे पिताजी मुझे सुनाया करते थे कि एक बार एक राजा अपनी प्रजा और अपने राजकाज से बेहद खुश था लेकिन जब भी वही राजा अपने लिए कुछ करना चाहता था तो हर बार प्रयास विफल हो जाता। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि उसके अथक प्रयासों के बावजूद भी उसका कोई भी काम पूरा नहीं हो पाता है और वह कुछ भी शुरू करने के बाद सफलता क्यूँ प्राप्त नहीं कर पाता है, तो एक दिन मंत्री गण के साथ जब यह विचार विमर्श हुआ तब उसे किसी एक अधेड़ उम्र के ज्ञानी व्यक्ति के बारे में पता चला कि वह सबकी समस्या सुलझा सकता है… फिर क्या था वह राजा सुबह होते ही उस व्यक्ति के आश्रम चला गया पर वहां कोई भी नहीं था सिर्फ एक माली था जो उस बगीचे में काम कर रहा था। राजा ने हाथ जोड़ कर प्रणाम करके उस ज्ञानी महापुरुष से मिलने का आग्रह किया तो राजा को इंतजार करने को कहा गया और वही माली जब साधु वेश में आया तो राजा अचंभित हुआ, जानने पर राजा ने अचरज भरी वाणी में रहस्य जानने की इच्छा प्रकट की कि वह इतना शांत कैसे है और उसकी मदद कैसे कर सकता है जिससे राजा अपनी एकाग्रता को वापस प्राप्त कर सके और अपने व्यक्तिगत कार्यों को पूर्ण कर सके। उस आश्रम के साधु वस्त्रधारी ज्ञानी व्यक्ति ने राजा को अगले दिन आने को कहा और दूसरे दिन राजा को अपने बगीचे में
अपना बचा हुआ काम करने को कह दिया… राजा को मात्र 15 पौधों को पानी डालने को कहा, राजा को लगा कि सिर्फ 5 मिनट का कार्य है इससे क्या ही होगा? किन्तु शर्त यह थी कि सहज भाव से, बिना अधीर हुए, बिना कुछ भी विचार मन में लाये, बिना क्रोध के सिर्फ वहीं पौधों को पानी देना है। अगर किसी भी क्षण कोई भी विचार आये या तकलीफ हो तो वापस पहले पौधे से शुरू कर देना है।
राजा ने आरम्भ किया तो दूसरे या तीसरे पौधे तक जाते जाते ना जाने क्या क्या ख्याल आते और वह अधीर हो जाता लेकिन वचनबद्ध था तो वापस पहले पौधे को पानी देता फिर आगे बढ़ता और कभी पानी कभी राजमहल, कभी मिट्टी, कभी जीवन सब याद आ जाता तो फिर शुरू से शुरू करता।
शाम तक राजा वहीं बैठा रहा और उस महापुरुष के आते ही राजा ने क्षमा मांगी और इस सबका उपाय पूछा कि कैसे वह विचारों को संयमित कर पाए… उस महापुरुष ने बताया कि जहाँ जिस काम को किया जा रहा है उसका औचित्य समझते हुए उस काम को जीना है, वहीं रहकर उसमें व्यस्त रहना है जब तक कि वह कार्य पूर्ण ना हो जाये। इसे आजकल हम युवा पीढ़ी की भाषा में “prsence of mind” कहते है। यदि धीरज के साथ स्वयं को समझ कर एवं किसी भी कार्य को महत्त्व देते हुए बिना इधर उधर की बातों में उलझते हुए उस कार्य पर एकाग्र होकर काम करने की कोशिश होंगी तो जरूर सफलता मिलेगी।
यह हमारी युवा पीढ़ी आज बहुत कुछ अनुभव ले रही है कुछ तो व्यावहारिक है, तो कभी कुछ कहे कहाये और सुने हुए पारम्परिक विचारधारा के भी है। मुझे लगता है अधिकांशतया हमारे युवा एक balance लाने का प्रयास भी करेंगे जिसमें वो अपने नये अत्याधुनिक विचारों के साथ बड़े बुजुर्गो के तमाम तार्किक और महत्वपूर्ण अनुभवों का समावेश करके नव भारत को विकसित देश बनने में अपना स्वर्णिम योगदान देंगे।
अपने समय का सही सदुपयोग करके, अपने लक्ष्य को सुनिश्चित कर एवं अपनी और बड़ों की प्राथमिकताओं में संतुलन बनाकर जो अपने मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य का ध्यान रख सके, अपने निज मूल्यों को समर्थन देकर, सकारात्मक सोच के साथ देश विदेश की विकास की नीतियों में और योजनाओं में अपनी भूमिका निभाना ही आज की युवा पीढ़ी का भी पवित्र उद्देश्य बनता जा रहा है। समस्त युवाओं को ऐसी विचारधारा के साथ जुड़ कर एवं अपनी अच्छी शिक्षा के अनुभवों के माध्यम से सभी को साथ लेकर आगे बढ़ने का लक्ष्य सर्वोपरि रखना है। जिसमें हम सभी को गौरवन्वित होने का मौका भी हमारी युवा पीढ़ी ही देगी।
ऐसा विश्वास है कि युवा पीढ़ी का यह नया दृष्टिकोण समाज में उत्थान की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण योगदान साबित होगा। जो कि इस समाज के लिए सकारात्मक परिवर्तन और एक नये विश्वास की उम्मीद की लहर पैदा करेगा जिससे नये विवेकानंद, नये दयानन्द, और नये रामानुजन, नये कलाम, हमारे देश को मिलते रहेंगे।
इन्दु तोमर (एडवोकेट)
Relationship & Behavioral Counselor
Founder & President
SRIJAN FOUNDATION
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