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ईरान की लड़कियां हिजाब क्यों जला रहीं:इस्लामी क्रांति से पहले स्कर्ट पहनती थीं, अब हिजाब पहनने को मजबूर, तस्वीरों में देखिए बदलाव

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ईरान की लड़कियां हिजाब क्यों जला रहीं:इस्लामी क्रांति से पहले स्कर्ट पहनती थीं, अब हिजाब पहनने को मजबूर, तस्वीरों में देखिए बदलाव

ईरान की सड़कों पर एक बार फिर महिलाएं हैं। हवा में हिजाब उछालते हुए और धार्मिक पुलिस के खिलाफ नारे लगाते हुए। वजह है पुलिस की पिटाई से 22 साल की महसा अमीनी की मौत। कसूर सिर्फ इतना कि उसने ठीक तरीके से हिजाब नहीं पहना था।

13 सितंबर को मेहसा अमीनी अपने भाई के साथ ईरान की राजधानी तेहरान गई थी। मॉरालिटी पुलिस ने ठीक तरीके से हिजाब न पहनने का आरोप लगाकर उसे हिरासत में लिया।

13 सितंबर को मेहसा अमीनी अपने भाई के साथ ईरान की राजधानी तेहरान गई थी। मॉरालिटी पुलिस ने ठीक तरीके से हिजाब न पहनने का आरोप लगाकर उसे हिरासत में लिया।

ईरानी महिलाओं पर हिजाब पहनने की अनिवार्यता 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद लागू हुई थी। उससे पहले शाह पहलवी के शासन में महिलाओं के कपड़ों के मामले में ईरान काफी आजाद ख्याल था। इधर, भारत में हिजाब पहनने को लेकर मुस्लिम लड़कियों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है।

हम 1979 की इस्लामी क्रांति से पहले और बाद के ईरान में महिलाओं की जिंदगी में आए बदलावों के बारे में जानेंगे…

पहलवी शाह ने हिजाब पहनने पर ही बैन लगा दिया था

1925 में ईरान में पहलवी वंश का शासन आया। पहले शासक रजा शाह अमेरिका और ब्रिटेन से प्रभावित थे। 1941 में उनके बेटे मोहम्मद रजा शाह भी पश्चिमी देशों के तौर-तरीके और महिलाओं के बराबरी के हक को समझते थे। इन दोनों शासकों ने महिलाओं की हालत सुधारने के लिए कई बड़े फैसले किए…

  • 8 जनवरी 1936 को रजा शाह ने कश्फ-ए-हिजाब लागू किया। यानी अगर कोई महिला हिजाब पहनेगी तो पुलिस उसे उतार देगी।
  • 1941 में शाह रजा के बेटे मोहम्मद रजा ने शासन संभाला और कश्फ-ए-हिजाब पर रोक लगा दी। उन्होंने महिलाओं को अपनी पसंद की ड्रेस पहनने की अनुमति दी।
  • 1963 में मोहम्मद रजा शाह ने महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिया और संसद के लिए महिलाएं भी चुनी जानें लगीं।
  • 1967 में ईरान के पर्सनल लॉ में भी सुधार किया गया जिसमें महिलाओं को बराबरी के हक मिले।
  • लड़कियों की शादी की उम्र 13 से बढ़ाकर 18 साल कर दी गई। साथ ही अबॉर्शन को कानूनी अधिकार बनाया गया।
  • पढ़ाई में लड़कियों की भागीदारी बढ़ाने पर जोर दिया गया। 1970 के दशक तक ईरान की यूनिवर्सिटी में लड़कियों की हिस्सेदारी 30% थी।

अब नीचे तस्वीरों में देखिए, ईरान में 1979 की इस्लामी क्रांति से पहले महिलाओं की जिंदगी कैसे थी…

शाह मोहम्मद रजा पहलवी अपनी पत्नी रानी फौजिया और प्रिंसेज शहनाज के साथ। इस तस्वीर में रानी फौजिया ने कोई हिजाब या इस्लामी ड्रेस नहीं पहनी है। (सोर्सः एपी)

शाह मोहम्मद रजा पहलवी अपनी पत्नी रानी फौजिया और प्रिंसेज शहनाज के साथ। इस तस्वीर में रानी फौजिया ने कोई हिजाब या इस्लामी ड्रेस नहीं पहनी है। (सोर्सः एपी)

तेहरान यूनिवर्सिटी में पढ़ने जाती लड़कियां। ये पहली यूनिवर्सिटी थी, जहां ईरान की लड़कियां पढ़ सकती थीं। (Nevit Dilmen)

तेहरान यूनिवर्सिटी में पढ़ने जाती लड़कियां। ये पहली यूनिवर्सिटी थी, जहां ईरान की लड़कियां पढ़ सकती थीं। (Nevit Dilmen)

तेहरान की सड़कों पर पिकनिक मनाती लड़कियां। उस दौर के ईरान में वेस्टर्न ड्रेस पहने लड़कियां अक्सर देखी जा सकती थीं। (Nevit Dilmen)

तेहरान की सड़कों पर पिकनिक मनाती लड़कियां। उस दौर के ईरान में वेस्टर्न ड्रेस पहने लड़कियां अक्सर देखी जा सकती थीं। (Nevit Dilmen)

मेकअप और खुले बालों के साथ ईरान की लड़कियां। महिलाओं का सड़कों पर चलना तो अभी भी नहीं मना, लेकिन ऐसे मेकअप और बाल दिखने बंद हो गए हैं, क्योंकि अब बिना हिजाब के सड़कों पर निकलना मना है।

मेकअप और खुले बालों के साथ ईरान की लड़कियां। महिलाओं का सड़कों पर चलना तो अभी भी नहीं मना, लेकिन ऐसे मेकअप और बाल दिखने बंद हो गए हैं, क्योंकि अब बिना हिजाब के सड़कों पर निकलना मना है।

1971 की तस्वीर। इसमें वेस्टर्न ड्रेस में एक युवती शाह मोहम्मद रजा पहलवी के करीब जाने की कोशिश कर रही है।

1971 की तस्वीर। इसमें वेस्टर्न ड्रेस में एक युवती शाह मोहम्मद रजा पहलवी के करीब जाने की कोशिश कर रही है।

शियाओं के धार्मिक नेता आयोतोल्लाह रुहोल्लाह खोमेनी ने शाह की इन नीतियों का विरोध किया। 1978 में उनके नेतृत्व में 20 लाख लोग शाह के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए शाहयाद चौक में जमा हुए। इसे ही इस्लामिक रिवॉल्यूशन कहा जाता है। इसमें महिलाओं ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।

1979 में शाह रजा पहलवी को देश छोड़कर जाना पड़ा और ईरान इस्लामिक रिपब्लिक हो गया। खोमेनी को ईरान का सुप्रीम लीडर बना दिया गया। यहीं से ईरान दुनिया में शिया इस्लाम का गढ़ बन गया। खोमेनी ने महिलाओं के अधिकार काफी कम कर दिए…

  • 1981 में हिजाब अनिवार्य करने के साथ कॉस्मेटिक्स पर बैन लगा दिया गया। धार्मिक पुलिस ने महिलाओं की लिपस्टिक रेजर ब्लेड से हटाना शुरू कर दिया।
  • इस्लामिक सरकार ने 1967 के फैमिली प्रोटेक्शन लॉ के सुधार खत्म कर दिए, जिसमें महिलाओं को बराबरी के हक मिले थे।
  • लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल से घटाकर 9 साल कर दी गई।
  • हालांकि खोमेनी की मौत के बाद ईरान के राष्ट्रपति रफसंजानी ने उन कड़े कानूनों में थोड़ी छूट दी और औरतों की शिक्षा पर फोकस बरकरार रखा।

अब नीचे तस्वीरों में देखिए, ईरान में 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद महिलाओं की जिंदगी कैसी हो गई…

9 मार्च 1979 को ईरान की राजधानी तेहरान की सड़कों पर 1 लाख से ज्यादा ईरानी महिलाएं इकट्ठा हुईं। वो नई इस्लामी सरकार के कंपल्सरी हिजाब के फैसले का विरोध कर रही थीं।

9 मार्च 1979 को ईरान की राजधानी तेहरान की सड़कों पर 1 लाख से ज्यादा ईरानी महिलाएं इकट्ठा हुईं। वो नई इस्लामी सरकार के कंपल्सरी हिजाब के फैसले का विरोध कर रही थीं।

1980 में बुरके में जुमे की नमाज के लिए जाती महिलाएं।

1980 में बुरके में जुमे की नमाज के लिए जाती महिलाएं।

2006 में सभी महिलाओं के लिए हिजाब के नियम को सख्ती से लागू करने को लेकर प्रदर्शन करती महिलाएं। इस तस्वीर में सभी महिलाएं बुरके में हैं, सिवाए एक छोटी बच्ची के।

2006 में सभी महिलाओं के लिए हिजाब के नियम को सख्ती से लागू करने को लेकर प्रदर्शन करती महिलाएं। इस तस्वीर में सभी महिलाएं बुरके में हैं, सिवाए एक छोटी बच्ची के।

कंपल्सरी हिजाब के विरोध में ईरान में महिलाएं लगातार विरोध प्रदर्शन करती रहती हैं। अप्रैल 2018 में तेहरान में एक महिला ने ढीला हिजाब पहना था। जिस पर महिला मॉरलिटी पुलिस ऑफिसर ने उसकी सरेआम पिटाई की थी। इस घटना ने पूरी दुनिया में चर्चा पाई थी। नीचे देखिए पिटाई का वीडियो…

अब एक बार फिर मेहसा अमीनी की मौत ने ईरान की महिलाओं को हिजाब के विरोध में खड़ा कर दिया है। ईरानी औरतें नाचते गाते हंसते खेलते हिजाब और बुरका जला रही हैं…

भारत में हिजाब पहनने को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंची मुस्लिम लड़कियां

28 दिसंबर 2021 को कर्नाटक के उडुपी में PU कॉलेज की 6 छात्राओं ने आरोप लगाया कि उन्हें हिजाब पहनकर क्लासरूम में नहीं बैठने दिया जा रहा है। मुस्लिम लड़कियों ने हिजाब पहनकर कॉलेज में एंट्री के लिए प्रदर्शन शुरू कर दिए। स्कूल प्रशासन नहीं माना तो लड़कियों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

हाईकोर्ट ने हिजाब को इस्लाम की जरूरी धार्मिक प्रथाओं का हिस्सा नहीं माना और सभी याचिकाएं खारिज कर दी। इसके बाद हिजाब का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां लगातार बहस जारी है।

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