NATIONAL NEWS

कांग्रेस में गांधी परिवार का दबदबा क्या कम हो गया है?

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare

कांग्रेस में गांधी परिवार का दबदबा क्या कम हो गया है?

REPORT BY DR MUDITA POPLI

सोनिया गांधी और राहुल गांधी
इमेज कैप्शन,सोनिया गांधी और राहुल गांधी

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समर्थकों ने पिछले दो दिनों में जो किया उसके बाद ये सवाल खड़ा हो गया है कि क्या कांग्रेस में गांधी परिवार का दबदबा कम हो गया है?

दो साल पहले राजस्थान में कांग्रेस की सरकार को बीजेपी के कथित ऑपरेशन लोट्स से बचाने वाले अशोक गहलोत के गुट ने जयपुर में तय कार्यक्रम की जगह अपनी बैठक कर पार्टी पर दबाव बनाने की कोशिश की और दिल्ली से कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा भेजी गई टीम को विधायकों से भेंट किए बिना ही बैरंग वापस लौटना पड़ा.

जयपुर प्रकरण को लेकर कौन क्या कहेगा ये इस पर निर्भर करेगा कि आप बात किससे कर रहे हैं.

कांग्रेस के लोग इसे पार्टी में लोकतंत्र की जड़े होने के रूप में बढ़ा-चढ़ा कर पेश करने की कोशिश करेंगे, गहलोत ख़ेमे का तर्क होगा कि ये ऐसे कुछ लोगों का बुना गया जाला है जो उन्हें अध्यक्ष पद पर नहीं देखना चाहते हैं. वहीं बीजेपी वाले व्यंग्य से कहेंगे कि राहुल पहले अपना घर बचाएं फिर भारत जोड़ने निकलें.

लेकिन राजनीति पर पैनी नज़र रखनेवालों का मानना है कि कांग्रेस हाई-कमान का प्रभाव सालों नहीं बल्कि दशकों से धीरे-धीरे नीचे जाता रहा है, हां, आजकल उनकी अनदेखी बार-बार खुलकर सामने आती रहती है.

राजनीतिक विश्लेषक और लेखक रशीद क़िदवई कहते हैं, “ये याद रखने की ज़रूरत है कि हम राजनीति और राजनीतिज्ञ से डील कर रहे हैं जहां आपकी ऑथरिटी इस बात पर निर्भर करती है कि आप चुनाव में कितनी बड़ी जीत दिला सकते हैं.”

“पार्टी को नरेंद्र मोदी की तरह विजय रथ पर बिठाने की क्षमता हो तो आप चुनाव हारे हुए पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री के पद पर स्थापित कर सकते हैं.”

भोपाल से फ़ोन पर हमसे बात करते हुए रशीद क़िदवई कहते हैं, “मध्य प्रदेश की बागडोर शिवराज सिंह चौहान को मिल सकती है, बावजूद इसके कि प्रदेश चुनाव में जब बीजेपी पीछे रह गई थी, तब वो ही सूबे के प्रमुख थे.”

“बिहार में मार्च 1990 में लालू प्रसाद यादव की सरकार बनने के पहले नौवीं राज्य विधानसभा में ‘चार मुख्यमंत्री’ बिठाए गए और हर बार थोड़े हो-हल्ला के बाद मामला ‘सबकी सहमति से सुलझ’ गया जिसके लिए ‘कंसेंसस’ शब्द का प्रयोग कांग्रेस के लोग किया करते थे.”

कोरोना वायरस

कांग्रेस – इस्तीफ़ा देने वाले बड़े नाम

  • ग़ुलाम नबी आज़ाद – 26 अगस्त 2022
  • कपिल सिब्बल – 25 मई 2022
  • हार्दिक पटेल – 18 मई 2022
  • सुनील जाखड़ – 14 मई 2022
  • आरपीएन सिंह – 25 जनवरी 2022
  • कैप्टन अमरिंदर सिंह – 2 नवंबर 2021
  • ज्योतिरादित्य सिंधिया – 10 मार्च 2020
कोरोना वायरस
राहुल गांधी और अशोक गहलोत
इमेज कैप्शन,राहुल गांधी और अशोक गहलोत

बदल गए हैं हालात

अब लेकिन चंद सालों से हालात बदले दिख रहे हैं. इसी साल की बात करें तो 23 बड़े नेताओं ने पार्टी प्रमुख को पत्र भेजकर संगठन में कमियों को उजागर किया, उनमें से ग़ुलाम नबी आज़ाद और कपिल सिब्बल पार्टी छोड़ चुके हैं, आनंद शर्मा ने ख़ुद को अलग-थलग कर लिया है.

राहुल गांधी के इनर सर्किल में समझे जानेवाले ज्योतिरादित्य सिंधिया, आरपीएन सिंह, जितिन प्रसाद का क़िस्सा भी बहुत पुराना नहीं है.

अंग्रेज़ी दैनिक डेक्कन हेराल्ड के पूर्व संपादक के सुब्रमन्या का मानना है कि किसी भी राजनीतिक दल की ओर आकर्षण के दो मुख्य बिंदु होते हैं – विचारधारा और शक्ति यानी सत्ता तक पहुंच की संभावना.

इस पैमाने पर के सुब्रमन्या के अनुसार ‘कांग्रेस पार्टी किसी भी रूप में एक विकल्प नहीं है, पार्टी छह सालों से सत्ता के बाहर है और क्या किसी को यक़ीन है कि कांग्रेस साल 2024 में सत्ता में वापसी कर पाएगी?’

वो कहते हैं “जो आज 60 साल के हैं वो सोचते हैं कि जब 2029 आएगा तब हम 70 के, या जो आज 70 के हैं वो सोचते हैं कि हम 80 के होंगे, तो हमारे बारे में तब कौन सोचेगा, हमें मौक़ा मिलेगा.”

अशोक गहलोत और प्रियंका गांधी
इमेज कैप्शन,अशोक गहलोत और प्रियंका गांधी

सुब्रमन्या ने कहा कि 1990 के दशक के शुरुआती सालों में जब नरसिम्हा राव पार्टी के पद पर रहे तो सारा दल उनके साथ खड़ा रहा और फिर सीताराम केसरी के साथ हो लिया, लेकिन उसके बाद हुए 1998 के चुनावों में भी कांग्रेस सत्ता के क़रीब नहीं पहुंच पाई तो सीताराम केसरी को बड़ी बुरी तरीक़े से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.

कांग्रेस के साथ क़रीब से काम करनेवाले एक व्यक्ति का कहना है कि पार्टी की पिछले दो दिनों में जो जग हंसाई हुई है और हाल के दूसरे मामलों में जो हालात बनते रहे हैं उसके लिए वो राहुल गांधी को ज़िम्मेदार मानते हैं. उनके अनुसार राहुल एक समूह से घिरे हैं, उन्हीं के माध्यम से काम करते हैं, और अपने सांसदों तक को मिलने का समय नहीं देते.

इस व्यक्ति ने बताया, “पार्टी के पुराने वफ़ादार और सीनियर नेता एके एंटनी जब रिटायरमेंट लेकर केरल वापस जा रहे थे तो उन्हें भाई-बहन ने विदाई भोज तक देना मुनासिब न समझा, सोनिया गांधी तो ख़ैर इन दिनों स्वस्थ नहीं हैं.”

“टॉम वडक्कन जैसे लंबे समय के वफ़ादार कार्यकर्ता ने पार्टी इसलिए छोड़ी क्योंकि राहुल गांधी ने कई बार लोगों के सामने खुले तौर पर उनके साथ बुरा बर्ताव किया. वो अच्छे व्यक्ति हो सकते हैं लेकिन उन्हें नहीं मालूम कि लोगों से किस तरह मिला-जुला जाता है.”

हालांकि रशीद क़िदवई का कहना है कि ये सब कहानियां भी इसी वजह से बाहर आ रही हैं क्योंकि सत्ता अभी दूर है और आगे भी कोई साफ़ राह नहीं दिख रही.

कांग्रेस और भारतीय राजनीति पर कई किताबें लिख चुके रशीद क़िदवई कहते हैं, “राहुल गांधी या प्रियंका को लेकर जिस तरह की बातें कही जा रही हैं उनकी वैसी शख्सियत एक दिन में थोड़े ही तैयार हो गई होगी, वो वैसे ही थे, लेकिन अब वो बातें बाहर कही जा रही हैं.”

जयपुर प्रकरण को लेकर राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार त्रिभुवन का कहना है कि “शायद अशोक गहलोत को ठीक तरीक़े से भरोसे में नहीं लिया गया, और मेरे विचार से तो उन्हें पहले कांग्रेस अध्यक्ष बन जाने देना था फिर राजस्थान के मुख्यमंत्री के प्रश्न को सुलझाया जाना चाहिए था.”

राहुल गांधी

त्रिभुवन के हिसाब से पंजाब के बाद राजस्थान में भी वही स्थिति बनती दिख रही है.

रशीद क़िदवई इसका दूसरा पहलू बताते हुए कहते हैं कि जिस प्रदेश के मुख्यमंत्री ने पांच-पांच सदस्यों – मनमोहन सिंह, मुकुल वासनिक, प्रमोद तिवारी और अन्य को राज्य सभा तक पहुंचाने के रास्ते बनाए हों, उन्हें हैंडल करने में सतर्क रहा जाना चाहिए.

सुब्रमन्या कहते हैं कि कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा 1970 के दशक से ही कमज़ोर होने लगा था, जब इंमरजेंसी के आसपास से इंदिरा गांधी से वफ़ादारी विचारधारा और प्रभाव से ऊंचे पायदान पर रखकर देखी जाती थी, तभी से नाते-रिश्तेदारों को प्राथमिकता मिलने लगी और फिर चूँकि कांग्रेस सत्ता-शक्ति दिलवा सकती थी तो लोग उसके क़रीब आने लगे.

निचले स्तर पर – ग्राम, पंचायत, ब्लॉक, ज़िला स्तर पर जो कमज़ोरी तब घुसी वो धीरे-धीरे ऊपर को बढ़ने लगी और अब पूरा चक्र (फुल सर्किल) तैयार हो गया है. वो कहते हैं, “सोनिया गांधी बिल्कुल अस्वस्थ्य हैं, राहुल गांधी सत्ता दिलवाते नहीं दिखते, और उत्तर प्रदेश के चुनाव में प्रियंका गांधी के वोटरों में प्रभाव को तौला जा चुका है.”

सुब्रमन्या कहते हैं कि कांग्रेस का दरबार कल्चर धीरे-धीरे बीजेपी में भी दिखने लगा है, उसके साथ फर्क़ यही है कि उसका एक ऑडियोलॉजिकल माइंडर – आरएसएस – है, यानी एक ऐसी संस्था जो देख रही है कि पार्टी विचारधारा पर चल रही है या नहीं.

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare

About the author

THE INTERNAL NEWS

Add Comment

Click here to post a comment

error: Content is protected !!