BY DR MUDITA POPLI
केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने नए आईटी नियमों की घोषणा की है जिसके तहत केंद्र सरकार के इलेक्ट्रॉनिक और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने नया फ़ैक्ट चेक निकाय बनाने की घोषणा की है। सरकार जहां इसे फ़ेक न्यूज़ रोकने की दिशा में अहम क़दम बता रही है वहीं विपक्ष इसमें सेंसरशिप की आहट सुन रहा है।
हाल ही में केंद्रीय आईटी मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने एक बयान जारी कर कहा कि सरकार का फ़ैक्ट चेक निकाय गूगल, फ़ेसबुक और ट्विटर जैसी इंटरनेट कंपनियों को फ़र्ज़ी ख़बरों के बारे में जानकारी देगा। इसके साथ ही केंद्र सरकार ने आईटी रूल्स 2021 में संशोधन को मंज़ूरी दे दी है परंतु इन नए सूचना प्रौद्योगिकी नियमों को लेकर विवाद गहराता जा रहा है।
नवीन नियमों के तहत प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो यानि पीआईबी या केंद्र सरकार द्वारा गठित फ़ैक्ट चेक निकाय के पास किसी जानकारी को फ़र्ज़ी घोषित करने का अधिकार होगा। साथ ही नवीन नियमावली में फ़ेसबुक, ट्विटर या गूगल जैसी इंटरनेट कंपनियों जिन्हें भारत में इंटरमीडियरी कंपनी का दर्जा हासिल है उन्हे उस कंटेंट को हटाना होगा जिसे सरकार के फ़ैक्ट चेक संस्थान द्वारा फर्जी घोषित कर दिया जाएगा।
यानी किसी भी कंटेंट को केंद्र सरकार के फ़ैक्ट चेक निकाय के फ़र्ज़ी घोषित करने के बाद इंटरनेट कंपनियां उसे इंटरनेट से हटाने के लिए बाध्य होंगी। यदि इंटरनेट कंपनियां ऐसा नहीं करती हैं तो अब उन पर क़ानूनी कार्रवाई की जा सकेगी जबकि अब तक आईटी एक्ट की धारा 79 के तहत सोशल मीडिया कंपनियों को इस तरह के कंटेंट पर क़ानूनी कार्रवाई को लेकर सुरक्षा हासिल थी।
इस विषय पर केंद्र सरकार का तर्क है कि ये क़दम फ़ेक न्यूज़ से निबटने के लिए उठाया जा रहा है, जबकि विपक्ष इसे सीधे सीधे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर चोट बता रहा है।
फ़ेक न्यूज़ रोकने के इस सरकारी क़दम से सेंसरशिप की आशंकाएँ उपज रही हैं।
भारत में प्रेस स्वतंत्रता के लिए काम करने वाले संगठन एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया ने भी केंद्र सरकार के इस क़दम की आलोचना की है।
इस संस्थान ने एक बयान जारी कर कहा है कि भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिक और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने 6 अप्रैल को इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (इंटरमीडियरी गाइडलाइंस एंड डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड) अमेंडमेंट रूल्स, 2023 (सूचना प्रौद्योगिकी संशोधित नियम, 2023) को अधिसूचित किया है. इसे लेकर एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया परेशान और चिंतित है।
इस संदर्भ में एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया का तर्क है कि नए नियमों का प्रेस की स्वतंत्रता पर नकारात्मक असर होगा। गिल्ड ने चिंता ज़ाहिर की है कि केंद्र सरकार द्वारा गठित फ़ैक्ट चेक निकाय के पास केंद्र सरकार के किसी भी काम से जुड़ी किसी भी तरह की जानकारी को फ़र्ज़ी घोषित करने की असीमित शक्ति होगी जो कहीं ना कहीं इमरजेंसी की स्थितियों को वापस ला सकती है।
इस बारे में एडिटर्स गिल्ड ने बयान जारी कर कहा है कि एक तरह से केंद्र सरकार ने अपने काम के बारे में क्या सही है और क्या फ़र्ज़ी, ये तय करने का अपने आप को ही पूर्ण अधिकार दे दिया है.
केंद्र सरकार ने अभी सिर्फ़ गजट अधिसूचना के ज़रिए ही फैक्ट चेक निकाय के गठन के बारे में जानकारी दी है अभी ये नही बताया गया है कि इसका क्या स्वरूप होगा, ये किस तरह काम करेगा इस बारे में विस्तृत जानकारी अभी नहीं दी गई है।
एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया ने ये सवाल भी उठाया है कि इस निकाय पर न्यायिक निरीक्षण, अपील के अधिकार, या प्रेस स्वतंत्रता के मामले में सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के पालन को लेकर कोई व्यवस्था नहीं की गई है. ये सभी प्राकृतिक न्याय की अवधारणा के ख़िलाफ़ है और एक तरह से प्रेस पर सेंसरशिप है.
उधर कई मीडिया संगठनों ने भी आरोप लगाए हैं कि सरकार ने नियमों में इस बदलाव के लिए उनसे कोई सलाह मशविरा नहीं किया गया है।
इसपर सरकार का कहना है कि इन बदलावों का मक़सद केवल इंटरनेट से फ़ेक न्यूज़ कम करना है। सरकार ने सेंसरशिप को लेकर चिंताओं को भी पूरी तरह ख़ारिज कर दिया है।
इस पूरे मसले पर केंद्रीय राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा है “सरकार ने इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के ज़रिए एक निकाय को अधिसूचित करने का निर्णय लिया है और ये संस्थान एक फ़ैक्ट चेकर की तरह काम करेगा और सिर्फ़ उन जानकारियों का फ़ैक्ट चेक किया जाएगा जो सरकार से संबंधित होंगी। “
उन्होंने इस बारे में कहा है कि “अभी हमें ये तय करना है कि ये एक नया संस्थान होगा जिसके साथ भरोसा और विश्वसनीयता जुड़ी होगी या फिर हम किसी ऐसे पुराने संस्थान को लेंगे और फिर उसे फ़ैक्ट चेक मिशन के लिए भरोसा और विश्वसनीयता पैदा करने के काम में लगाएंगे। उनका साफ कहना है कि यह बदलाव केवल सोशल मीडिया पर फेक न्यूज़ को रोकने के लिए किए जा रहे हैं परंतु विश्लेषक सरकार की इस मंशा पर सवाल उठाने में लगे हैं। कई वरिष्ठ पत्रकारों ने इस संदर्भ में अपनी राय दी है जिसमें वरिष्ठ पत्रकार जयशंकर गुप्त कहते हैं कि इंटरनेट और सोशल मीडिया पर ख़बरों का प्रसार बढ़ा है और ये तथ्य है कि इंटरनेट और सोशल मीडिया पर ख़बर प्रकाशित करने वाली वेबसाइटों का ना कहीं पंजीयन होता है और ना ही कोई ज़िम्मेदारी तय है ऐसे में इनकी ज़िम्मेदारी तय होने की ज़रूरत तो महसूस की जा रही है लेकिन ये काम सरकार का कोई निकाय नहीं कर सकता क्योंकि सरकार अपने आप में एक पक्ष है। उनका मानना है कि इस दिशा में एक रास्ता ये हो सकता था कि किसी स्वायत्त संस्थान का गठन किया जा सकता है जो किसी सरकार या किसी और के दबाव में काम ना करे। इससे पहले पीआईबी फैक्ट चेक कर रही है परंतु अब एक नया निकाय बनाया जा रहा है यानी कहीं ना कहीं ऐसा प्रतीत होता है कि यदि सरकार के विरुद्ध कोई भी बात होगी तो उसे anti-national या फिर फर्जी घोषित कर दिया जाएगा और यह सीधा-सीधा अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन होगा। उन्होंने माना है कि डिजिटल मीडिया और सोशल मीडिया के नाम पर जो अनर्गल कंटेंट बिना ज़िम्मेदारी के प्रकाशित किया जा रहा है, उसकी रोकथाम के लिए ज़रूर क़दम उठाए जाएं लेकिन उसके नाम पर प्रेस की स्वतंत्रता से समझौता करना उचित नहीं है।
यह सही भी है कि सरकार अगर वाक़ई फ़ेक न्यूज़ को रोकना चाहती है तो एक ऐसे स्वायत्त संस्थान का गठन करे जो किसी भी तरह के दबाव से मुक्त हो।ये तय करना बड़ा मुश्किल हो जाता है कि क्या फ़ेक है और क्या सही है? अब सरकार अपने ख़िलाफ़ कही गई बातों को फ़ेक कहकर उस पर कार्रवाई कर सकती है। अगर केंद्र सरकार इस प्रकार का एक निकाय लेकर आती है तो वह अपनी आलोचना करने वाले को किसी विषय दंडित करने का अधिकार रख सकेगी, जिसे किसी भी तरह से लोकतांत्रिक नहीं कहा जा सकता।
एक आशंका ये भी ज़ाहिर की जा रही है कि अगर सरकार ने अपनी आलोचनात्मक ख़बरों को फ़ेक न्यूज़ कह दिया तो सरकार पर सवाल उठाने वाली पत्रकारिता के लिए कितनी जगह रहेगी। उधर डिजिटल प्रकाशकों के संगठन डिजीपब ने भी इसे लेकर चिंताएं ज़ाहिर की हैं और माना है कि इसे स्वतंत्र प्रेस की आवाज़ को दबाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। उन्होंने भी चाहा है कि सरकार ऐसे निकाय के निर्माण से पूर्व मीडिया से जुड़े लोगों से सलाह करें। उन्होंने बदलाव को प्रस्तावित करने से पूर्व तथा अधिसूचना जारी करने से पहले ऐसी एक बैठक की मांग की थी परंतु केंद्र सरकार द्वारा इसे अनसुना कर दिया गया। ऐसे में साफ दिखाई देता है कि सरकार एक पक्ष है और ऐसे कई उदाहरण हैं कि जब सरकार अपने हितों के लिए इस प्रकार के निकायों का उपयोग करती रही है और जब यह फैक्ट चेक निकाय केंद्र सरकार के अधीन होगा और उसे स्वयं इसकी रिपोर्टों पर निर्णय लेने का अधिकार होगा तो निश्चित रूप से इसकी रिपोर्टिंग केंद्र सरकार के पक्ष में ही रहेगी।
उनके अनुसार “सरकार एक पक्ष है और ऐसे कई उदाहरण हैं जब सरकार सलेक्टिव रही है। यहां हितों का टकराव भी होगा क्योंकि ये फ़ैक्ट चेक निकाय केंद्र सरकार के अधीन होगा और उन रिपोर्टों पर निर्णय लेगा जो केंद्र सरकार के ही बारे में होंगी।किसी भी संवेदनशील लोकतंत्र में सरकार के पास ये तय करने का अधिकार नहीं हो सकता कि क्या सच है और क्या झूठ।”
कांग्रेस के मीडिया प्रभारी जयराम रमेश ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि, “भारत में फ़ेक न्यूज़ की सबसे बड़ी उत्पादक मौजूदा सत्ताधारी पार्टी और उसकी राजनीतिक विचारधारा से जुड़े लोग हैं। ऐसे में विपक्ष का मानना है कि सरकार का यह कदम प्रेस पर सेंसरशिप लगाने जैसा है।
प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो की फ़ैक्ट चीम भी ख़बरों का फ़ैक्ट चेक करती है। उल्लेखनीय है कि पीआईबी फ़ैक्ट चेक पर भी कई बार सवाल उठे हैं ऐसे में एक बड़ा सवाल ये है कि जो निकाय बनाया जा रहा है क्या उसके पास ख़बरों का फ़ैक्ट चेक करने के लिए संसाधन और प्रशिक्षण होगा?
विपक्षी राजनीतिक दलों ने ये भी कहा है कि सरकार का ये क़दम प्रेस पर सेंसरशिप लगाने जैसा है।लोकसभा सांसद और पूर्व सूचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने कहा है कि सरकार का ये फ़ैसला उसकी असुरक्षा की भावना को दर्शाता है। उन्होंने इस सेंसरशिप को अजीब बताते हुए कहा कि इसमें अपील की कोई गुंजाइश नहीं रहेगी तथा सरकार ही स्वयं अंतिम फैसला ले लेगी।
इस पूरे मसले से एक बार फिर सरकार के इस निर्णय ने न केवल मीडिया कर्मियों अपितु विपक्ष में खलबली पैदा कर दी है कि कहीं फिर से भारत आपातकाल की उन परिस्थितियों की ओर गमन ना कर जाए जिनके दाग अब तक धोना संभव नहीं हो पाया है।

Add Comment