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क्या नाम बदलने से बदल जायेगी पहचान: मुगल गार्डन से अमृत उद्यान और बहुत सी जगहों के नाम बदलने के पीछे सरकार की मंशा

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Report By Dr Mudita Popli


शेक्सपियर ने कहा था कि “नाम में क्या रखा है” परंतु नाम व्यक्ति की पहचान है ,वह पहचान जो उसे समाज में स्थान दिलाती है, उसके व्यक्तित्व का एक आईना लोगों को दिखाती है। भारतीय दर्शन में नाम को हमेशा महत्व दिया गया है। शायद यही कारण है कि बच्चे के जन्म के समय रखा गया नाम उसके माता-पिता के उसके लिए देखे गए सपनों का द्योतक है। हिंदुस्तान एक ऐसा देश है, जहां बच्चा जन्म से पहले ही संस्कार लेकर आता है ऐसा माना गया है, शायद इसीलिए भारत में गर्भाधान भी एक संस्कार है।
हिंदुस्तान में काफी समय से बहुत सी जगहों, जिलों और दर्शनीय स्थलों के नामों में परिवर्तन को लेकर बहस अनवरत जारी है। हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा मुगल गार्डन का नाम परिवर्तित कर अमृत उद्यान तथा राजपथ का नाम कर्तव्य पथ किया गया, जिसने इस बहस को एक बार फिर से जिंदा कर दिया है। भारत में नाम बदलने का इतिहास आज का नहीं है।आज से पूर्व भी स्वतंत्र भारत में साल 1950 में सबसे पहले पूर्वी पंजाब का नाम पंजाब रखा गया। 1956 में हैदराबाद से आंध्रप्रदेश, 1959 में मध्य भारत से मध्यप्रदेश नामकरण हुआ। सिलसिला यहीं नहीं खत्म हुआ। 1969 में मद्रास से तमिलनाडु, 1973 में मैसूर से कर्नाटक, इसके बाद पुडुचेरी, उत्तरांचल से उत्तराखंड, 2011 में उड़ीसा से ओडिशा नाम किया गया। ये गिनती आगे भी जारी रही। मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, शिमला, कानपुर, जबलपुर लगभग 15 शहरों के नाम बदले गए। सिर्फ इतना ही नहीं, जुलाई 2016 में मद्रास, बंबई और कलकत्ता उच्च न्यायालय का नाम भी बदल गया।
यूपीए सरकार के समय में कनाट प्लेस और कनाट सर्किल का नाम बदलकर राजीव चौक और इंदिरा चौक किया गया था।
बाद में अगस्त 2015 में औरंगजेब रोड का नाम बदलकर पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर रखा गया। बीजेपी सांसद महेश गिरि ने नाम बदलने पर प्रस्ताव में कहा था, ‘अतीत में की गई गलतियों को ठीक करने का मौका है।’ ये शायद सही भी है क्योंकि ये नाम हमने नहीं दिए ये विदेशियों द्वारा प्रदत्त है।
इसी क्रम में 2017 में भारतीय रेलवे ने क्षेत्र विशेष के मशहूर साहित्यकारों की चर्चित कृतियों के नाम पर ट्रेनों के नाम रखने की घोषणा की थी। इसके आधार पर महाश्वेता देवी के एक उपन्यास अग्निगर्भा के नाम पर पश्चिम बंगाल जाने वाली ट्रेन का नाम रखने का निर्णय लिया गया था। मुंबई से उत्तर प्रदेश के बीच चलनेवाली गोदान एक्सप्रेस का नाम प्रेमचंद की प्रसिद्ध कृति गोदान पर है। उत्तर प्रदेश में आजमगढ़ से दिल्ली के बीच चलनेवाली कैफियत एक्सप्रेस का नाम मशहूर उर्दू शायर कैफी आजमी के नाम पर रखा गया था। इसी प्रकार मई 2017 में कोंकण रीजन के दादर-सावंतवाड़ी एक्सप्रेस का नाम मराठी के मशहूर कवि कृष्णाजी केशव दामले की कविता ‘तुतारी’ के नाम पर ‘तुतारी एक्सप्रेस’ रखा गया। यानी नाम बदलने का इतिहास न केवल काफी पुराना है बल्कि आज भी बदस्तूर जारी है।
पर इन सब में गौर करने लायक बात यह है कि हमेशा नाम बदलने को राजनीति से ही क्यों जोड़ा जाए? क्यों नहीं भारत के इतिहास, संस्कृति और धरोहरों को देखते हुए इन नामों को सकारात्मकता के साथ स्वीकार किया जाए। यदि आप कभी राजनीतिक दलों के कार्यों का अध्ययन करेंगे तो उसमें आपको स्पष्ट रूप से यह पढ़ने को मिलेगा कि जो दल बहुमत हासिल करता है उसे देश के राज को अपने आधार पर चलाने का दायित्व यहां की जनता देती है तो जो दायित्व जनता ने सौंपा है अगर उसका उपयोग किया जा रहा है तो उस पर बहस क्यों? कई बार यह प्रश्न उठाए जाते हैं कि नाम क्यों बदले जाएं? यहां यह बात गौर करने लायक है कि यह नाम इनका मूल नाम था ही नहीं विदेशी आक्रांताओं और हमे गुलाम बनाने वाले विदेशी शासकों ने यह नाम हमें प्रदान किए थे। तो यदि स्वतंत्र भारत में जनता के चुन के आए प्रतिनिधियों के निर्णय के आधार पर नवीन नाम प्रदान किए जाते हैं तो इस पर बहस क्यों?
कुछ लोग मुनव्वर राणा की इन पंक्तियों का उदाहरण देते हैं कि
“दूध की नहर मुझसे नहीं निकलने वाली
नाम चाहे मेरा फरहाद भी रखा जाए”
यह बात शायद सच है कि केवल नाम बदलने से विकास नहीं होगा। लेकिन क्या पुराने नाम से विकास हो रहा है या क्या नाम में ही विकास है? यदि हम अपने देश के कुछ ऐसे लोगों के नाम पर जगहों या स्थानों का नामकरण करते हैं जिन्होंने देश को कुछ दिया है तो इस पर बहस क्यों? राजनीति, राजनीति की जगह पर की जाए तो अच्छा है केवल विरोध के लिए राजनीति करना उचित नहीं।
मुगल भारत के लिए एक आक्रांता रहे हैं मुगल काल में हम सदैव पढ़ते रहे हैं कि भारत हर दृष्टि से पिछड़ा फिर चाहे वह शिक्षा का क्षेत्र हो या नारी उत्थान का इस पूरे मामले में एक बात हमें समझनी होगी कि मुगल और मुसलमान एक नहीं है ।मुग़ल एक वंश है और मुस्लिम एक धर्म। इसलिए नामों को बदलने पर एतराज करने की जगह यदि हम नरेंद्र मोदी के विजन 2047 को आत्मसात करते हुए भारत को एक विश्व शक्ति के रूप में प्रतिस्थापित करने के विषय में सोचें, धर्म की परिधि से बाहर निकले और भारत की सांस्कृतिक विरासतों पर गर्व करना सीखें तो इन नामों को सुनकर हममें उत्साह का संचार अवश्य ही होगा।

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