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ड्रोन की दुनिया का बादशाह कैसे बना चीन? सऊदी से म्यांमार और इराक से इथियोपिया तक कर रहे इस्तेमाल

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ड्रोन की दुनिया का बादशाह कैसे बना चीन? सऊदी से म्यांमार और इराक से इथियोपिया तक कर रहे इस्तेमाल

चीन ने तुर्की और अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए वैश्विक ड्रोन मार्केट पर कब्जा जमा लिया है। पिछले एक दशक में चीन से सबसे ज्यादा देशों को सबसे ज्यादा यूनिट आर्म्ड ड्रोन निर्यात किए हैं। इन चीनी ड्रोन्स की मदद से खरीदार देशों ने अपनी सैन्य आकांक्षाओं को पूरा किया है।

CH5 drone
चीन का सीएच-5 ड्रोन

हाइलाइट्स

  • वैश्विक ड्रोन बाजार पर चीन ने जमाया कब्जा
  • चीन ने अमेरिका और तुर्की को पीछे छोड़ा
  • अमेरिकी ड्रोन की कॉपी हैं चीनी हथियारबंद ड्रोन

बीजिंग: सऊदी अरब से म्यांमार और इराक से इथियोपिया तक, दुनियाभर में अधिक से अधिक देशों की सेनाएं चीनी कॉम्बेट ड्रोन का इस्तेमाल कर रही हैं। कई देशों की सेनाओं ने तो चीनी ड्रोन की मदद से कई मिलिट्री ऑपरेशनों को भी अंजाम दिया है। यमन में सऊदी के नेतृत्व वाले गठबंधन ने पिछले आठ साल में 8000 से दिक यमनी नागरिकों को मारने के लिए चीनी ड्रोन्स का इस्तेमाल किया है। इराकी सेना का दावा है कि उसने चीनी ड्रोन की मदद से आईएसआईएस के खिलाफ 100 फीसदी सफलता की दर से 260 से अधिक हवाई हमले किए हैं। चीनी ड्रोन से लैस म्यांमार की सेना ने भी दो साल पहले सत्ता हथियाने के विरोध में नागरिकों और जातीय समूहों पर सैकड़ों हवाई हमले किए। वहीं, इथियोपिया में प्रधानमंत्री अबी अहमद ने 2021 में एक विद्रोह कोचीनी ड्रोन की मदद से खत्म किया था।

इन देशों ने खरीदे हैं चीनी ड्रोन

चीन के लड़ाकू ड्रोन के दूसरे खरीदारों में मोरक्को, मिस्र, अल्जीरिया, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), पाकिस्तान और सर्बिया शामिल हैं। इनके खरीदे गए ड्रोन खुफिया जानकारी इकट्ठा करने के साथ-साथ हवा से सतह पर मिसाइल भी दाग सकते हैं। वैश्विक हथियारों के खरीद-फरोख्त पर नजर रखने वाले स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के डेटा से पता चलता है कि चीन ने पिछले एक दशक में 17 देशों को लगभग 282 लड़ाकू ड्रोन बेचे हैं। ऐसे में चीन कॉम्बेट ड्रोन का दुनिया का प्रमुख निर्यातक बन गया है।

चीन ने अमेरिका से कहीं ज्यादा ड्रोन बेचे

SIPRI के आंकड़ों के अनुसार, तुलनात्मक रूप से अमेरिका के पास दुनिया में सबसे उन्नत यूएवी हैं। इसके बावजूद उसने पिछले एक दशक में केवल 12 लड़ाकू ड्रोन ही बेचे हैं। इन 12 ड्रोन को खरीदने वाले भी ब्रिटेन और फ्रांस हैं। हालांकि, अमेरिका अब भी बिना हथियारों वाले निगरानी रखने वाले ड्र्रोन के निर्यात में सबसे आगे है। अमेरिका के पास ड्रोन का विस्तृत रेंज है। अमेरिकी ड्रोन तकनीक के मामले में भी सबसे ज्यादा उन्नत और महंगे हैं। अमेरिका की हथियार बेचने की नीति भी काफी जटिल है। ऐसे में दुनियाभर के छोटे-मोटे देश दूसरे विकल्प के रूप में चीन के सस्ते ड्रोन खरीद रहे हैं।

ड्रोन मॉर्केट पर कैसे हुआ चीन का कब्जा

पिछले एक दशक में कॉम्बेट ड्रोन के वैश्विक बाजार पर चीन का वर्चस्व वहां की सरकार के फाइनेंसिंग और कूटनीतिक प्रयास के कारण हुआ है। चीन अपनी सेना को विश्व स्तरीय मानकों के अनुसार ढालने की कोशिश कर रहा है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ड्रोन को युद्ध के माहौल को बदलने में सक्षम बताया है। यही कारण है कि पिछले साल कम्युनिस्ट पार्टी की कांग्रेस के दौरान जिनपिंग प्रशासन ने मानवरहित, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की क्षमताओं को बढ़ाने का वादा किया है। सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज (CSIS) के सीनियर फेलो जॉन शॉस ने कहा कि ड्रोन चीन की सूचनात्मक युद्ध अवधारणा (इंफॉर्मेस्टिक वॉरफेयर कॉन्सेप्ट) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह की उन्नत क्षमताएं चीन को अपनी सीमाओं से बहुत कम बुनियादी ढांचे या राजनीतिक जोखिम के साथ मिशन संचालित करने की क्षमता देती हैं।

ताइवान पर ड्रोन हमला कर सकता है चीन

चीनी मिलिट्री एविएशन एक्सपर्ट फू कियानशाओ ने सितंबर में कम्युनिस्ट पार्टी के स्वामित्व वाले ग्लोबल टाइम्स को बताया था कि चीन ड्रोन की मदद से ताइवान जलडमरूमध्य में संघर्ष की स्थिति में खुद को हावी रख सकता है। उनके इस बयान ने पश्चिमी मिलिट्री एक्सपर्ट्स की आशंकाओं की पुष्टि की जो पहले से ही दावा कर रहे थे कि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) किसी भी युद्ध की शुरुआत में बड़ी संख्या में ड्रोन का इस्तेमाल कर सकती है ताकि इलाके की हवाई सुरक्षा को खत्म किया जा सके।

अमेरिकी ड्रोन की कॉपी हैं चीनी ड्रोन

ग्लोबल डिफेंस पर नजर रखने वाली जेन्स मीडिया आउटलेट के एविएशन एक्सपर्ट अखिल कदीदल ने कहा कि चीनी ड्रोन सूचनाएं इकट्ठा करने, हमला करने और इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर में आगे हैं। उन्होंने कहा कि चीन का सबसे ज्यादा बिकने वाला ड्रोन, काइहोंग-4, अमेरिका निर्मित एमक्यू-9 रीपर की कॉपी है, जबकि बेहद लोकप्रिय विंग लूंग-2 अमेरिका निर्मित एमक्यू-1 प्रीडेटर के जैसे है। कदीदल ने कहा कि चीन के कई यूएवी प्रोग्राम पश्चिमी देशों की तुलना में खरीदारों को कई दूसरी फैसिलिटी भी उपलब्ध करवाते हैं। द विंग लूंग-2 और द विंग लूंग-3 इसी के उदाहरण हैं। ये दोनों यूएवी न केवल अमेरिकी ड्रोन की तुलना में तेज हैं, बल्कि अधिक हथियारों के साथ उड़ान भी भर सकते हैं।हैं।

अमेरिका के मुकाबले सस्ते होते हैं चीनी ड्रोन
अमेरिका में मौजूद थिंक टैंक CSIS के अनुसार, डिजाइन और क्षमताओं में अमेरिका निर्मित ड्रोन के समान होने के बावजूद चीनी कॉम्बेट ड्रोन काफी सस्ते हैं। यही कारण है कि चीनी ड्रोन के प्रति वैश्विक खरीदार जल्दी आकर्षित हो जाते हैं। उदाहरण के लिए, CH-4 और विंग लूंग 2 की लागत 1 मिलियन डॉलर और 2 मिलियन डॉलर के बीच होने का अनुमान है, जबकि अमेरिका के एमक्यू-9 रीपर की लागत 16 मिलियन डॉलर और प्रिडेटर की लागत 4 मिलियन डॉलर है। सस्ती कीमत का मतलब है कि इच्छुक सरकारें भी बड़ी मात्रा में चीनी ड्रोन खरीद सकती हैं।

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