चंद्रयान-3 के पास साउथ-पोल पर सबसे पहले उतरने का मौका:23 अगस्त को लैंडिंग, पिछले मिशन के ऑर्बिटर ने कहा- वेलकम
चंद्रयान-3 के लैंडर पर लगे कैमरे ने चंद्रमा के फार साइड की तस्वीरें खींची हैं। इन्हें इसरो ने शेयर किया है।
रूस का लूना-25 स्पेसक्राफ्ट क्रैश हो गया है। अब अगर भारत का चंद्रयान-3 मिशन सक्सेसफुल होता है तो वो चंद्रमा के साउथ पोल पर उतरने वाला पहला देश बन जाएगा। चंद्रयान-3 को 23 अगस्त को शाम 6:04 बजे 25 Km की ऊंचाई से लैंड कराने की कोशिश की जाएगी।
चंद्रयान-3 का दूसरा और फाइनल डीबूस्टिंग ऑपरेशन रविवार रात 1 बजकर 50 मिनट पर पूरा हुआ था। इस ऑपरेशन के बाद लैंडर की चंद्रमा से न्यूनतम दूरी 25 किमी और अधिकतम दूरी 134 किलोमीटर रह गई है। डीबूस्टिंग में स्पेसक्राफ्ट की स्पीड को धीमा किया जाता है।
चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर और चंद्रयान-3 के लैंडर के बीच संपर्क स्थापित
इसरो यानी इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन ने सोमवार को बताया कि उसने चंद्रयान-2 मिशन के ऑर्बिटर और चंद्रयान-3 के लैंडर के बीच संपर्क स्थापित कर दिया है। टु-वे कम्युनिकेशन के स्थापित होने के बाद ऑर्बिटर ने लैंडर से कहा- ‘स्वागत है दोस्त!’
चंद्रमा के फार साइड की तस्वीरें इसरो ने शेयर की
इसरो ने चंद्रमा की फार साइड यानी ऐसा इलाका जो पृथ्वी से कभी नहीं दिखता, उसकी तस्वीरें शेयर की हैं। इसे चंद्रयान-3 में लगे लैंडर हैजार्ड डिटेक्शन एंड एवॉयडेंस कैमरे (LHDAC) से 19 अगस्त 2023 को खींचा गया है। यह कैमरा लैंडर को सेफ लैंडिंग एरिया लोकेट करने में मदद करेगा। यानी ऐसा इलाका जहां बड़े पत्थर और गड्ढे न हो।
चांद पर अशोक स्तंभ की छाप छोड़ेगा प्रज्ञान रोवर
चंद्रयान-1 और चंद्रयान-2 मिशन के प्रोजेक्ट डायरेक्टर रहे एम. अन्नादुरई के मुताबिक 23 अगस्त की शाम को चंद्रयान-3 के लैंडर को 25 किमी की ऊंचाई से चांद की सतह तक पहुंचने में 15 से 20 मिनट लगेंगे। यही समय सबसे क्रिटिकल होने वाला है।
इसके बाद विक्रम लैंडर से रैंप के जरिए छह पहियों वाला प्रज्ञान रोवर बाहर आएगा और इसरो से कमांड मिलते ही चांद की सतह पर चलेगा। इस दौरान इसके पहिए चांद की मिट्टी पर भारत के राष्ट्रीय चिह्न अशोक स्तंभ और इसरो के लोगो की छाप छोड़ेंगे।
सब कुछ फेल हो जाए तब भी विक्रम लैंड करेगा
इसरो चेयरमैन एस सोमनाथ ने 9 अगस्त को विक्रम की लैंडिंग को लेकर कहा था- ‘अगर सब कुछ फेल हो जाता है, अगर सभी सेंसर फेल हो जाते हैं, कुछ भी काम नहीं करता है, फिर भी यह (विक्रम) लैंडिंग करेगा बशर्ते एल्गोरिदम ठीक से काम करें। हमने यह भी सुनिश्चित किया है कि अगर इस बार विक्रम के दो इंजन काम नहीं करेंगे, तब भी यह लैंडिंग में सक्षम होगा।’
रूस का लूना-25 मिशन फेल क्यों हुआ?
- रूस की स्पेस एजेंसी रॉस्कॉस्मॉस ने रविवार यानी 20 अगस्त को बताया कि शनिवार शाम 05:27 बजे उसका स्पेसक्राफ्ट से संपर्क टूट गया था।
- लूना-25 को प्री-लैंडिंग कक्षा 18 Km x 100 Km में प्रवेश कराने के लिए भारतीय समयानुसार शनिवार दोपहर 04:30 बजे कमांड दिया गया था।
- रॉस्कॉस्मॉस ने बताया कि इस दौरान इमरजेंसी कंडीशन बन गई, क्योंकि स्पेसक्राफ्ट एक्चुअल पैरामीटर के अनुसार थ्रस्टर फायर नहीं कर पाया।
- शुरुआती एनालिसिस के नतीजों से पता चलता है कि कैलकुलेशन से जो पैरामीटर सेट किए गए थे, उन पैरामीटरों से स्पेसक्राफ्ट डेविएट हो गया।
- कैलकुलेटेड वैल्यू जितनी चाहिए थी ये उससे ज्यादा थी। इससे थ्रस्टर ज्यादा देर फायर हुए और स्पेसक्राफ्ट ऑफ-डिजाइन ऑर्बिट में चला गया।
- ऑफ-डिजाइन कक्षा में जाने के कारण लूना-25 चांद पर क्रैश हो गया। स्पेशली फॉर्म्ड इंटरडिपार्टमेंटल कमीशन अब इस क्रैश की जांच करेगा।
11 अगस्त को लॉन्च किया गया था लूना-25
लूना-25 को 11 अगस्त को सोयूज 2.1बी रॉकेट के जरिए वोस्तोनी कॉस्मोड्रोम से लॉन्च किया गया था। लूना-25 को उसी दिन अर्थ की ऑर्बिट से चांद की तरफ भेज दिया गया था। स्पेसक्राफ्ट 16 अगस्त को दोपहर 2:27 बजे चांद की 100 किलोमीटर की ऑर्बिट में पहुंच गया था। लूना को 21 अगस्त को चंद्रमा के साउथ पोल पर लैंड होना था।
47 साल बाद रूस ने चांद पर भेजा था कोई मिशन
रूस ने 47 साल बाद चांद पर अपना मिशन भेजा था। इससे पहले उसने 1976 में लूना-24 मिशन भेजा था। लूना-24 चांद की करीब 170 ग्राम धूल लेकर सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस पहुंचा था। अभी तक जितने भी मून मिशन हुए हैं, वो चांद के इक्वेटर पर पहुंचे हैं, यह पहली बार था कि कोई मिशन चांद के साउथ पोल पर लैंड करने वाला था।
चंद्रयान-3 से पहले लैंड होने वाला था लूना
भारत की स्पेस एजेंसी इसरो ने चंद्रयान-3 मिशन को 14 जुलाई 2023 को लॉन्च किया था। फ्यूल का कम इस्तेमाल हो और कम खर्च में यान चंद्रमा पर पहुंच जाए इसलिए उसने पृथ्वी की ग्रैविटी का इस्तेमाल किया है। इस प्रोसेस में फ्यूल तो बच जाता है, लेकिन समय ज्यादा लगता है। इसलिए चंद्रयान को चांद पर पहुंचने में ज्यादा टाइम लग रहा है।
लूना-25 चंद्रमा के बोगुस्लावस्की क्रेटर के पास लैंड करने वाला था जबकि चंद्रयान मैंजिनस U क्रेटर के पास लैंड करेगा। इसके कोऑर्डिनेट 69.36˚S और 32.34˚E हैं। इन दोनों क्रेटर्स के बीच की दूरी 100 Km से ज्यादा है। अब अगर चंद्रयान-3 मिशन सक्सेसफुल होता है तो भारत चंद्रमा के साउथ पोल पर उतरने वाला पहला देश बन जाएगा।
लूना-25 को 11 अगस्त को सोयूज 2.1बी रॉकेट के जरिए वोस्तोनी कॉस्मोड्रोम से लॉन्च किया गया था।
लूना-25 मिशन का मकसद क्या था
- चांद की मिट्टी के नमूने लेकर बर्फ की उपस्थिति का पता लगाना
- अपनी लेटेस्ट सॉफ्ट-लैंडिंग और दूसरी स्पेस टेक्नोलॉजी की टेस्टिंग
- साउथ पोल पर मिट्टी की फिजिकल-मैकेनिकल प्रॉपर्टी का अध्ययन
- सोलर विंड के असर को देखने के लिए प्लाज्मा-धूल का अध्ययन
- डीप स्पेस और दूर के ग्रहों की खोज के लिए एक लॉन्चिंग पैड
चांद पर अपना बेस बनाना चाहता है रूस
रूस का लूना-25 मिशन चांद पर उसके फुली ऑटोमेटेड बेस बनाने के प्रोग्राम का हिस्सा था। रॉस्कॉस्मोस के हेड यूरी बोरिसोव ने बताया कि 2027, 2028 और 2030 में लूना के तीन और मिशन लॉन्च किए जाएंगे। इसके बाद हम चीन के साथ अगले फेज में एंटर करेंगे। इस फेज में हम चांद पर मैन्ड मिशन भेजेंगे और लूनर बेस भी बनाएंगे।
पिछले सात दशकों में 111 चंद्र मिशनों में से 62 सफल
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के चंद्रमा मिशनों पर डेटाबेस के अनुसार, पिछले सात दशकों में 111 चंद्र मिशनों में से 62 सफल रहे, 41 विफल रहे और आठ को आंशिक सफलता मिली। अब फेलियर वाली लिस्ट में लूना-25 का भी नाम जुड़ गया है।
- चंद्रमा पर पहला मिशन ‘पायनियर 0’ 17 अगस्त 1958 को अमेरिका ने लॉन्च किया था। यह मिशन असफल रहा था।
- उसी साल यानी 1958 में ही USSR और अमेरिका ने छह और मून मिशन लॉन्च किए थे, लेकिन सभी विफल रहे।
- 2 जनवरी 1959 को USSR के लूना 1 को आंशिक सफलता मिली। यह इतिहास का पहला ‘मून फ्लाईबाई’ मिशन था।
- जुलाई 1964 में अमेरिका की ओर से लॉन्च किया गया रेंजर 7 चंद्रमा की नजदीक से तस्वीरें लेने वाला पहला मिशन था।
- पहली चंद्र सॉफ्ट लैंडिंग और चंद्र सतह से पहली तस्वीरें लूना 9 से आईं, जिसे जनवरी 1966 में USSR ने लॉन्च किया था।
- करीब पांच महीने बाद, मई 1966 में, अमेरिका ने सर्वेयर-1 नाम से लूना 9 के समान मिशन सफलतापूर्वक लॉन्च किया था।
- जुलाई 1969 में अपोलो 11 मिशन वह ऐतिहासिक अभियान था जिसके माध्यम से मानव ने पहली बार चंद्रमा की सतह पर कदम रखा।
- अपोलो 11 मिशन का नेतृत्व नील एमस्ट्रांग ने किया था। माइकल कोलिन्स और बज़ एल्ड्रिन भी एमस्ट्रांग के साथ चांद पर गए थे।
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