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धर्मशास्त्र के अनुसार 24 एकादशियों का शुभ फल देती है यह एकादशी

निर्जला एकादशी व्रत पौराणिक युगीन ऋषि-मुनियों द्वारा पंचतत्व के एक प्रमुख तत्व जल की महत्ता को निर्धारित करता है। ज्योतिषाचार्य मोहित बिस्सा के अनुसार जप, तप, योग, साधना, हवन, यज्ञ, व्रत, उपवास सभी अंतःकरण को पवित्र करने के साधन माने गए हैं, जिससे काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर और राग-द्वेष से निवृत्ति पाई जा सके।

06 जून को निर्जला एकादशी है। इस दिन प्रातःकाल से लेकर दूसरे दिन की प्रातःकाल तक उपवास करने की अनुशंसा की गई है। दूसरे दिन जल कलश का विधिवत पूजन किया जाता है। तत्पश्चात कलश को दान में देने का विधान है। इसके बाद ही व्रती को जलपान, स्वल्पाहार, फलाहार या भोजन करने की अनुमति प्रदान की गई है। व्रत के दौरान ॐ नमो नारायण’ या विष्णु भगवान का द्वादश अक्षरों का मंत्र ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ का सतत एवं निर्बाध जप करना चाहिए। भगवान की कृपा से व्रती सभी कर्मबंधनों से मुक्त हो जाता है और विष्णुधाम को जाता है, ऐसी धार्मिक मान्यता है।

एकादशी व्रत के धार्मिक व वैज्ञानिक फायदे

निर्जला एकादशी का महत्व.. प्रत्येक एकादशी को भगवान विष्णु की पूजा अराधना की जाती हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार निर्जला एकादशी बहुत ही विशेष है

जल संरक्षण एवं जल के महत्व को जानने की प्रयोगशला निर्जला एकादशी होती हैं। यदि निर्जला एकादशी को पूरे विधि-विधान से किया जाए तो मनुष्य को धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती हैं। इस एकादशी पर गौ माता का दान देना, अत्र, छाता, जूते-चप्पल, आसन, वस्त्र, कमण्डलु तथा मिटटी के कलश में पानी भरकर दान देना बहुत ही शुभ होता हैं तथा इन सभी वस्तुओं को दान देने से पुण्य फल की प्राप्ति होती हैं। निर्जला एकादशी का धार्मिक महत्व तो है ही इसके साथ- साथ इसका वैज्ञानिक महत्व भी हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार इस दिन निर्जला उपवास करने से
शरीर में नई ऊर्जा का प्रसार होता तथा मनुष्य अपने शरीर पर नियंत्रण बना में सक्षम होता हैं। ऐसा माना जाता हैं कि किसी व्यक्ति से गलती से एकादशी का भंग हो गया हो तो व्रत के भंग होने का भी निर्जला एकादशी का उपवास रखने हो जाता है।

विज्ञान के नजरिए से सर्वश्रेष्ठ है निर्जला एकादशी

हिन्दू वर्ष के बारह महीनों में हर माह के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में एक-एक एकादशी तिथि आती है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की आराधना को समर्पित है। धार्मिक मान्यता है कि यह वत सभी दोषों और विकारों से छुटकारा देने वाला माना गया है। इस तरह यह इंसान के लिए आत्मरक्षक ही है। यह खासतौर पर वैष्णव व्रत है, किंतु विष्णु उपासक हर धर्मावलंबी इस व्रत को करता है। दरअसल, एकादशी व्रत मात्र धार्मिक नजरिए से ही नहीं बल्कि व्यावहारिक तौर पर भी मानसिक एवं शारीरिक पवित्रता के लिए भी अहम है। इसके कई फायदे हैं विज्ञान तो इसे बीमारियों के खिलाफ कारगर हथियार भी मान रहा है।

वैज्ञानिकों द्वारा की गई रिसर्च

जर्मनी के दो प्रतिष्ठित संस्थानों DZNE और हेल्महोल्ज सेंटर के साझा शोध में उपवास संबंधी कई जानकारियां सामने आयी हैं। वैज्ञानिकों ने चूहों के दो ग्रुप बनाये। एक को उपवास कराया और दूसरे को नहीं। भोजन के बीच में लंबा अंतराल रखना, यानि एक दिन उपवास रखते हुए सिर्फ पानी पीना। जिन चूहों को ऐसा कराया गया वे पांच फीसदी ज्यादा जिए।

वैज्ञानिक भी इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि मनुष्य शरीर में यदि जल की कमी आ जाए तो जीवन खतरे में पड़ जाता है। वर्तमान युग में जब जल की कमी की गंभीर चुनौतियां सारा संसार स्वीकार कर रहा है, जल को एक पेय के स्थान पर तत्व के रूप में पहचानना दार्शनिक धरातल पर जरूरी है। निर्जला व्रत में वती जल के कृत्रिम अभाव के बीच समय बिताता है। जल उपलब्ध होते हुए भी उसे ग्रहण न करने का संकल्प लेने और समयावधि के पश्चात जल ग्रहण करने से जल तत्व के बारे में व पंचभूतों के बारे में मनन प्रारंभ होता है। व्रत करने वाला जल तत्व की महत्ता समझने लगता है।

नई पीढ़ी के लिए यह समझना जरूरी है कि अगर कोई इस व्रत को धर्म या ईश भक्ति की नजरिए से न करें, किंतु निरोग रहने में भी यह व्रत महत्वपूर्ण है। यह मन को संयम रखने के भाव सिखाता है। शरीर को नई ऊर्जा प्रदान करता है। इस व्रत से जुड़े वैज्ञानिक पहलू पर गौर करें तो चूंकि चन्द्रमा की कलाओं के घटने और बढ़ने का प्रभाव सभी प्राणियों और वनस्पतियों पर पड़ता है। हिन्दू धर्म पंचांग तिथियों पर आधारित होता है। हर तिथि पर चन्द्रमा की स्थिति सदा एक सी रहती है। इसलिए उसका असर भी शरीर पर वैसा ही पड़ता है। इसलिए सेहत के नजरिए से ऐसा माना जाता है कि चतुर्थी तिथि से एकादशी के बीच पैदा रोग गंभीर नहीं हो पाते। इस काल में पहले के रोग भी ठीक हो जाते हैं। हर मास में दो एकादशी होती है। इस तरह महीने में आने वाली 2 एकादशी तिथियों के दो दिन आहार संयम रखा जाए तो यह हमारी पाचन क्रिया को मजबूत बनाकर शरीर को सेहतमंद व मन को प्रसन्न रखता है।

उपवास एक औषधि है उपवास से जीवन लंबा हो सकता है। डायबिटीज और कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा भी कम हो सकता है।
निर्जला या भीम एकादशी [ ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी ]

निर्जला और भीम एकदाशी की कथा –
पाण्डवों में भीमसेन शारीरिक शक्ति में सबसे बढ़-चढ़कर थे, उनके उदर में वृक नाम की अग्नि थी इसीलिये उन्हें वृकोदर भी कहा जाता है। वे जन्मजात
शक्तिशाली तो थे ही, नागलोक में जाकर वहाँ के दस कुण्डों का रस पी लेने से उनमें दस हजार हाथियों के समान शक्ति हो गयी थी। इस रसपान के प्रभाव से उनकी भोजन पचाने की क्षमता और भूख भी बढ़ गयी थी। सभी पाण्डव तथा द्रौपदी एकादशियों का व्रत करते थे, परंतु भीम के लिये एकादशीव्रत दुष्कर थे। अतः व्यासजी ने उनसे ज्येष्ठमास के शुक्लपक्ष की एकादशी का व्रत निर्जल रहते हुए करने को कहा तथा बताया कि इसके प्रभाव से तुम्हें वर्षभर की एकादशियों के बराबर फल प्राप्त होगा। व्यासजी के आदेशानुसार भीमसेन ने इस एकादशी का व्रत किया। इसलिये यह एकादशी ‘भीमसेनी एकादशी’ के नाम से भी जानी जाती है।

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