पायलट-डोटासरा मांग रहे मंत्री वाले बंगले:विधानसभा अध्यक्ष बाेले- मंत्रियों को ही देंगे, 2 बंगले ऐसे, जिन्हें लेने से सब डर रहे

राजस्थान में सरकार बदलने के बाद अब मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी और मंत्रियों को नए बंगले आवंटित होने हैं।
रोचक ये है कि पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट और पूर्व शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा ने भी अपने लिए मंत्री स्तर के बंगले आवंटित करने की मांग कर दी है, जबकि दोनों अब विधायक हैं।
नियमानुसार उन्हें विधायकों के लिए तय फ्लैट्स ही मिल सकते हैं। पायलट-डोटासरा ने विधानसभा अध्यक्ष देवनानी से मंत्री स्तर के बंगले आवंटित करने की मांग की है।
कई बंगलों को लेने के लिए होड़ है तो 2 बंगले ऐसे भी हैं, जिन्हें लेने से सब डर रहे हैं।
पढ़िए पूरी रिपोर्ट…

पायलट-डोटासरा ने विधानसभा अध्यक्ष देवनानी से मंत्री स्तर के बंगले आवंटित करने की मांग की है।
डोटासरा-पायलट को खाली करने ही पड़ेंगे बंगले
सिविल लाइंस में दो बड़े बंगले हैं, जो सीएम आवास के बाद सबसे बड़े 10 बंगलों में शुमार हैं। इनमें से एक में सचिन पायलट और एक में गोविंद सिंह डोटासरा रहते हैं।
यह बंगले पायलट और डोटासरा को जनवरी-2018 में तब आवंटित हुए थे, जब दोनों राज्य केबिनेट में उप मुख्यमंत्री और मंत्री बने थे। यह बंगले सीनियर मंत्रियों के आवास के रूप में ईयरमार्क्ड (चिन्हित) होते हैं।
सचिन पायलट को जुलाई-2020 और डोटासरा को नवंबर-2021 में मंत्री पदों से हटा दिया गया था। इसके बाद राज्य सरकार ने इन बंगलों का पजेशन अपने पास से हटाकर विधानसभा पूल (विधानसभा अधिकार क्षेत्र) में डाल दिया था।
उन्हें आवंटित करने की शक्तियां विधानसभा अध्यक्ष के पास चली गई थीं। तब तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष सी. पी. जोशी ने डोटासरा और पायलट को सामान्य विधायक रहते हुए भी इन बंगलों को आवंटित कर दिया था।
यह शक्तियां अब भी विधानसभा अध्यक्ष के पास ही हैं। ऐसे में डोटासरा और पायलट ने देवनानी से मांग की है कि वे उन्हें यह बंगले आवंटित कर दें।
पायलट और डोटासरा की मांग पूरी नहीं होने वाली और उन्हें बंगले खाली करने ही होंगे, क्योंकि राज्य की नई सरकार के दो वरिष्ठ मंत्रियों ने भी इन बंगलों की मांग कर दी है।
विधानसभा अध्यक्ष देवनानी इन बंगलों को उन्हें या किन्हीं और मंत्रियों को ही आवंटित करेंगे न कि डोटासरा और पायलट को।
पायलट से भी किया गया था सवाल : जब पायलट ने अपनी सरकार के खिलाफ 11 अप्रैल 2023 को जयपुर में अनशन किया था, तब प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनसे पूछा गया था कि वे नैतिकता के नाते इस बंगले को खाली क्यों नहीं करते?
पायलट ने जवाब दिया था कि सरकार अपने विवेक से बंगले आवंटित करती है। सरकार जो भी आदेश देगी, उसका पालन किया जाएगा।

डोटासरा अभी उसी बंगले में हैं, जो जनवरी-2018 में मंत्री बनने पर आवंटित किया गया था। हालांकि नवंबर-2021 के बाद से ही वे मंत्री नहीं हैं।
पायलट-डोटासरा से पहले मंत्रियों का अधिकार : देवनानी
विधानसभा अध्यक्ष प्रो. वासुदेव देवनानी ने बताया कि विधानसभा के स्तर पर आवास आवंटन समिति बना दी गई है। इसका अध्यक्ष वरिष्ठ विधायक पुष्पेंद्र सिंह बाली को बनाया गया है। इसकी बैठक जल्द ही होनी है।
ये सही है कि गोविंद सिंह डोटासरा और सचिन पायलट ने बंगलों की मांग की है, लेकिन सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों का इस बारे में अधिकार पहले है।
उनकी भी अपेक्षा, आशा और आवश्यकता को देखना जरूरी है। जल्द ही मंत्रियों और विधायकों के लिए जो भी नियमानुसार तय हैं, वे बंगले या फ्लैट्स आवंटित कर दिए जाएंगे।
सबसे ज्यादा मांग खाचरियावास के बंगले की, अब यह मिलेगा देवनानी को
पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में 10 सबसे बड़े बंगलों में सबसे बड़ा बंगला पूर्व मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास को आवंटित था। यह बंगला सिविल लाइंस की मुख्य सड़क पर है।
हाल ही मंत्रिमंडल में शामिल होने वाले कई वरिष्ठ मंत्रियों की नजर इस बंगले पर थी। शिक्षा मंत्री दिलावर तो खाचरियावास से मिलने उनके बंगले पर भी गए और बंगले का निरीक्षण भी करके आए।
अब यह बंगला किसी मंत्री को नहीं बल्कि विधानसभा अध्यक्ष देवनानी को मिलना तय हो गया है। देवनानी जल्द ही परिवार सहित वहां शिफ्ट होंगे।

7 जनवरी को शिक्षा मंत्री दिलावर खाचरियावास से उनके बंगले पर मिलने गए थे। हालांकि अब ये बंगला विधानसभा अध्यक्ष देवनानी को अलॉट हो गया है।
ओटीएस स्थित अस्थाई आवास में रह रहे सीएम
वहीं मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा कुछ दिनों के लिए अपने निजी फ्लैट से स्थानांतरित होकर सहकार मार्ग स्थित स्टेट गेस्ट हाउस में रहे थे। पिछले 15 दिनों से वे ओटीएस (जेएलएन मार्ग) स्थित अस्थाई आवास में रह रहे हैं। सुरक्षा कारणों से वहां पहले से रह रहे दो आरएएस अफसरों के सरकारी आवास भी खाली करवा लिए गए थे।
गहलोत जाएंगे फिर से बंगला नंबर-58 में
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अभी तक मुख्यमंत्री आवास के रूप में ईयरमार्क्ड बंगले (नंबर-8 सिविल लाइंस) में ही रह रहे हैं। हालांकि जल्द ही वे बंगला नंबर 58 में जाएंगे।
गहलोत ने निवर्तमान मुख्यमंत्री (3 से 15 दिसंबर-2023) रहने के दौरान स्वयं को बतौर पूर्व मुख्यमंत्री बंगला नंबर-58 आवंटित कर लिया है। गहलोत वर्ष 2013 से 2018 के बीच विपक्ष में रहते हुए इसी बंगले में रहे थे। वे अब फिर से इसी बंगले में जाएंगे।
यह बंगला ठीक उस बंगले के सामने हैं जहां अभी वसुंधरा राजे रहती हैं। राजे और गहलोत सीएम और विपक्ष में रहते हुए पिछले 10 वर्षों से एक-दूसरे के आमने-सामने ही रह रहे हैं।

गहलोत ने निवर्तमान मुख्यमंत्री (3 से 15 दिसंबर-2023) रहने के दौरान स्वयं को बतौर पूर्व मुख्यमंत्री बंगला नंबर-58 आवंटित कर लिया है।
दो बंगलों के साथ कथित अपशकुन, फिलहाल कोई मंत्री लेने को इच्छुक नहीं
सिविल लाइंस में दो बंगले हैं, जिनके साथ कथित अपशकुन की चर्चाएं होती रही हैं। ऐसे में इस बार अभी तक किसी मंत्री ने उन बंगलों को स्वयं को आवंटित करने की अपील नहीं की है।
हालांकि वे बंगले सरकारी प्रॉपर्टी हैं, तो किसी न किसी मंत्री को तो आवंटित किए ही जाएंगे। इनमें से एक बंगले में रहते थे शिक्षा मंत्री बी. डी. कल्ला और दूसरे बंगले में रहते थे महेश जोशी। कल्ला चुनाव हार गए और जोशी को टिकट ही नहीं मिला।
कल्ला को उस वक्त ज्योतिषियों ने राय दी थी कि यह बंगला शुभ नहीं है। इसके बाद कल्ला वो बंगला खाली करके मालवीय नगर (जयपुर) स्थित निजी आवास पर चले गए थे। हालांकि चुनाव फिर भी नहीं जीत पाए। वो बंगला करीब 10 महीने से फिलहाल किसी को आवंटित नहीं किया गया।
कल्ला के ठीक पड़ोस में रहते थे जोशी, उनके बंगले से जुड़ी है अजीब कहानी
जिस बंगले में जलदाय मंत्री महेश जोशी रहते थे, वो उन्हें नवंबर-2021 में आवंटित हुआ था, जब वे जलदाय मंत्री बने थे।
उनसे पहले इस बंगले में सामाजिक न्याय मंत्री भंवरलाल मेघवाल रहा करते थे, जिनका मंत्री रहते हुए निधन हो गया था।
इससे पहले भी मेघवाल जब अपने पिछले कार्यकाल में (2008-2013) शिक्षा मंत्री थे, तब उनका मंत्री पद बीच कार्यकाल में (अक्टूबर-2011) छिन गया था।
जोशी ने हवन-पूजा आदि करवाने के बाद ही इस बंगले में प्रवेश किया था, लेकिन इस बंगले में आने के तीन महीने बाद ही उनके बेटे रोहित जोशी के खिलाफ रेप के एक मामले में एफआईआर दर्ज हो गई।
इसके बाद सितंबर-2022 में कांग्रेस के तत्कालीन पर्यवेक्षक अजय माकन को बैरंग लौटाने के मामले में उन्हें कांग्रेस हाईकमान से नोटिस मिला।
नोटिस का उन्होंने जवाब तो दे दिया, लेकिन कार्रवाई की तलवार उन पर लटकी रही और अंत में उन्हें कांग्रेस पार्टी ने चुनाव में टिकट ही नहीं दिया।

पूर्व जलदाय मंत्री महेश जोशी का बंगला। कल्ला के बंगले की तरह ही इसे लेकर भी कई तरह के अंधविश्वास से भरी बातें कही जा रही हैं।
वसुंधरा राजे को भी खाली करना पड़ सकता है बंगला नंबर-13
वसुंधरा राजे जब 2003 से 2008 के बीच पहली बार मुख्यमंत्री बनीं तो वे मुख्यमंत्री निवास (बंगला नंबर-08) में रहती थीं। 2008 में चुनाव हारने के बाद वे बंगला नंबर-13 में रहने लगीं।
उसके बाद वर्ष 2013 में राजस्थान में अब तक की सबसे बड़ी जीत (200 में से 163 विधायक) मिलने के बाद राजे ने बंगला नंबर-13 को अपने लिए इतना भाग्यशाली माना कि उन्होंने बतौर मुख्यमंत्री बंगला नंबर-08 नहीं लिया। जबकि राज्य के मुख्यमंत्री के लिए यही बंगला चिन्हित है। वे तभी से बंगला नंबर-13 में ही रह रही हैं।
दिसंबर-2018 में मुख्यमंत्री बनने के बाद गहलोत ने राजे से यह बंगला खाली नहीं करवाया। गहलोत सामान्य प्रशासन विभाग के मंत्री भी थे।
गहलोत ने जुलाई-2020 में सचिन पायलट की बगावत के बाद बंगला नंबर-13 भी विधानसभा पूल में डाल दिया। जहां से यह बंगला वसुंधरा राजे को ही आवंटित हुआ और वे अब तक उसी बंगले में रह रही हैं।
यह बंगला मुख्यमंत्री आवास सहित पांच सबसे बड़े सरकारी बंगलों में से एक है। अब उन्हें विधानसभा सचिवालय बतौर विधायक और बतौर पूर्व मुख्यमंत्री कोई भी दूसरा बंगला भी आवंटित कर सकता है और बंगला नंबर-13 भी।
सूत्रों का कहना है कि इस बार उन्हें यह बंगला खाली करना पड़ सकता है। सीएम के ईयरमार्क्ड (8 नंबर) के बाद सिविल लाइंस का सबसे भव्य बंगला है 13 नंबर।

वसुंधरा राजे करीब 15 साल से बंगला नंबर-13 में रह रही हैं। सूत्रों का कहना है कि इस बार उन्हें यह बंगला खाली करना पड़ सकता है।
पूर्व उप राष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत का बंगला उनके दत्तक पुत्र के नाम
राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री और देश के पूर्व उप राष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत को सिविल लाइंस में जो बंगला आवंटित था, वो बंगला अब तक उनके दत्तक पुत्र विक्रमादित्य सिंह को आवंटित है।
शेखावत की मृत्यु 2010 में ही हो गई थी और उनकी पत्नी सूरज कंवर की मृत्यु भी पांच साल पहले हो चुकी।
विक्रमादित्य न मंत्री हैं और न ही विधायक। यह बंगला भी मुख्यमंत्री निवास सहित राजधानी के पांच सबसे बड़े बंगलों में से एक है।
पूर्व उप राष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत को सिविल लाइंस में जो बंगला आवंटित था, वो अब तक उनके दत्तक पुत्र विक्रमादित्य सिंह को आवंटित है।
इस बंगले में पिछले 15 वर्षों से शेखावत के दामाद नरपत सिंह राजवी रह रहे हैं। राजवी अब न विधायक हैं और न मंत्री।

राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत को सिविल लाइंस में जो बंगला आवंटित था, वो अब तक उनके दत्तक पुत्र विक्रमादित्य सिंह को आवंटित है।
क्या कहते हैं एक्सपट्र्स
सरकारी बंगला एक स्टेट्स सिंबल है
वरिष्ठ पत्रकार भूपेन्द्र ओझा का कहना है कि सरकारी बंगला एक स्टेटस सिंबल है, जो नेताओं के दिमाग में छाया रहता है। उन्हें लगता है कि जितना बड़ा और भव्य बंगला होता है, उतना ही उनका प्रभाव और पद का असर लोगों पर पड़ता है।
बंगलों को आवंटित करने के नियम इतने लचर होते हैं कि प्रभावशाली लोगों को पता है कि वे बंगले को खाली नहीं भी करेंगे तो सरकार कोई न कोई रास्ता उनके लिए निकाल ही देगी।
ऐसे लोगों पर इतनी हेवी पैनल्टी लगाई जानी चाहिए कि वे पैनल्टी देने के बजाए सरकारी बंगले को खाली करना ज्यादा बेहतर समझें।
सभी बड़े बंगलों को तोड़कर बनाए जाने चाहिए फ्लैट्स
राजनीतिक टिप्पणीकार वेद माथुर का कहना है कि राजधानी जयपुर में सभी बड़े बंगलों को तोड़कर भव्य फ्लैट्स बना देने चाहिए जैसे विधायकों के लिए किया गया है।
एक-एक मंत्री को इतने बड़े भव्य बंगले नहीं दिए जाने चाहिए आखिर जनता की गाढ़ी कमाई से यह सब प्रबंध होता है। सरकारी सम्पत्ति का दुरुपयोग है यह।
कई लोग बड़े मंत्री जैसे पदों पर रहने के बाद सरकारी बंगलों को खुद की प्रॉपर्टी समझने लगते हैं। कोई वहां स्मारक बनाना चाहता है, कोई उसे किसी न किसी नियम या गली के नाम पर खुद का आवंटित करवा लेता है।
ऐसे कई ताकतवर लोगों से केन्द्र में पिछले 10 वर्षों में मोदी सरकार ने बंगले खाली करवाए हैं। राजस्थान में भी सरकार को इस बारे में सोचना चाहिए।
क्या है विधानसभा पूल?
राजस्थान सरकार में आवासन आवंटन संबंधी नियमों के तहत मुख्यमंत्री और मंत्रियों को बंगलों का आवंटन सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) करता है।
विधायकों को सरकारी आवास का आवंटन विधानसभा सचिवालय करता है। विधानसभा के अधिकार क्षेत्र (पूल) में जो सरकारी आवास होते हैं, उन्हें विधानसभा का पूल कहा जाता है।
इनके आवंटन के लिए विधानसभा में एक समिति गठित होती है, जो इनका आवंटन करती है। सरकार चाहे तो किसी आवास को विधानसभा पूल में दे सकती है। फिर उसका आवंटन विधानसभा सचिवालय के माध्यम से ही होता है।










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