मातृ भाषा में हस्ताक्षर कर सभी ने दैनिक जीवन में अपनाने का लिया संकल्प
मातृभाषा हमारी सांस्कृतिक धरोहर : कुलपति, प्रो. अंबरीश शरण विद्यार्थी
बीकानेर। बीकानेर तकनीकी विश्वविद्यालय में दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा महोत्सव समारोह पूर्वक मनाया गया। बीटीयू जनसंपर्क अधिकारी विक्रम राठौड़ ने बताया की इस अवसर पर मातृभाषा एवं मातृभूमि विषय पर प्रतियोगिता व संगोष्ठी का भी आयोजन हुआ व सभी नें मातृभाषा के उपयोग का संकल्प लिया व हस्ताक्षर किए। समापन समारोह की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. अंबरीश शरण विद्यार्थी ने कहा कि इस दिवस को मनाने का उद्देश्य है कि विश्व में भाषाई एवं सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता को बढ़ावा मिले। मातृभाषा वह भाषा है जो हम जन्म के साथ सीखते हैं। जन्म के बाद प्रथम जो भाषा का प्रयोग करते है वही हमारी मातृभाषा है। जन्म से जो हम संस्कार एवं व्यवहार पाते है वे हम इसी के द्वारा पाते है। इसी भाषा से हम अपनी संस्कति के साथ जुड़कर उसकी धरोहर को आगे बढ़ाते है। जहां हम पैदा होते हैं, वहां बोली जाने वाली भाषा खुद ही सीख जाते हैं। आसान भाषा में समझें तो जो भाषा हम जन्म के बाद सबसे पहले सीखते हैं, उसे ही अपनी मातृभाषा मानते हैं। भारत एक विविधताओं का देश है और यही इसकी सबसे बड़ी पहचान है। यहां अनेक भाषाएं और बोलियां बोली, लिखी और पढ़ी जाती हैं। उन्होने बताया कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के प्रावधानों के अनुरूप, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) ई कुंभ ने शुरू में 09 भाषाओं जैसे हिंदी,तमिल, गुजराती, कन्नड़, मराठी, बंगाली,तेलुगु, में तकनीकी पुस्तक लेखन योजना शुरू की है। इसके बाद इसमें 03 और भाषाओं असमिया, मलयालम और उर्दू को जोड़ा गया है। प्रथम वर्ष की इंजीनियरिंग पुस्तक लेखन की यात्रा 20 पाठ्यक्रमों की पहचान के साथ शुरू हुई, 11 डिप्लोमा स्तर पर और 9 डिग्री स्तर पर। तत्पश्चात्, अंग्रेजी भाषा में मौलिक पुस्तक लिखने के लिए विभिन्न संस्थाओं के लेखकों की पहचान की गई। बीटीयू के सभी के सभी संबद्ध 42 कॉलेजों में भी अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया गया। संबद्ध इंजीनियरींग कॉलेज आर्यभट्ट कॉलेज ऑफ मैनेजमेंट में अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया गया। जिसमे छात्र छात्राओं को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के विषय में उसकी महत्ता सहित भाषाओं के संरक्षण के लिए वैश्विक प्रयास और भारत द्वारा की गई पहलों पर जानकारी दी गई।
इस अवसर पर डीन डॉ धर्मेंद्र यादव ने मातृभाषा का महत्व पर व्याख्यान देते हुए कहा की दुनिया भर में भाषा एक ऐसा साधन है, जो लोगों को एक दूसरे से जोड़ता है और उनकी संस्कृति को प्रदर्शित करता है। भारत में ही 122 ऐसी भाषाएं हैं, जिनको बोलने वालों की संख्या 10 हजार से ज्यादा है। वहीं 29 भाषाएं ऐसी हैं, जिन्हें 10 लाख लोग बोलते हैं। भाषाओं में हिंदी, अंग्रेजी, बांग्ला, पंजाबी, अरबी, जापानी, रूसी, पुर्तगाली, मंदारिन और स्पैनिश बोली जाती हैं। विश्व में भाषाई व सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा देने के लिए और कई मातृभाषाओं के प्रति जागरुकता लाने के उद्देश्य से प्रति साल अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता हैं। मानव जीवन में भाषा की एक अहम भूमिका है। भाषा के माध्यम से एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के विचारों का आदान-प्रदान करता है।दुनिया भर में कईयों देशों, राज्यों, कस्बों व इलाकों में भिन्न-भिन्न भाषाएं बोली जाती हैं। कहीं पर किसी की धार्मिक भाषा शैली अलग है, लेकिन बावजूद इसके हर भाषाएं लोगों से संवाद स्थापित करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण जरिया है। भाषा वह डोर है, जो सबको एक दूसरे से बांधे हुए हैं।इस अवसर पर डा. हेम आहूजा, डा. अलका स्वामी और देवेंद्र तिवारी ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
कार्यक्रम के संचालक डॉ अनु शर्मा और डॉ गायत्री शर्मा ने यूसीईटी में इस से जुड़ी प्रतियोगिताएं करवाई और सभी आगंतुकों का धन्यवाद दिया। इस अवसर पर सभी शैक्षणीक और अशैक्षणिक, विद्यार्थियो ने मातृ भाषा में हस्ताक्षर करके इसे दैनिक जीवन में अपनाने का संकल्प लिया।


















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