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बुद्ध पूर्णिमा विशेष आलेख

डॉ. मनीषा शर्मा
लिपि विशेषज्ञ (प्राचीन नागरी
संपादन: शिक्षा कौस्तुभ शोध पत्रिका
प्राचार्य- राज. शिक्षक प्रशिक्षण विद्यापीठ जयपुर


  • बौद्धधर्मके प्रवर्तक महाराज शुद्धोदनके यशस्वी पुत्र गौतम बुद्धके रूपमें ही श्रीभगवान् अवतरित हुए थे, ऐसी प्रसिद्धि विश्रुत है, परंतु पुराणवर्णित भगवान् बुद्धदेवका प्राकट्य गयाके समीप कीकट देशमें हुआ था। उनके पुण्यात्मा पिताका नाम ‘अजन’ बताया गया है। यह प्रसंग पुराणवर्णित बुद्धावतारका ही है। उनके सम्मुख देवता

दैत्योंकी शक्ति बढ़ गयी थी। टिक नहीं सके, दैत्योंके भयसे प्राण लेकर भागे। दैत्योंने देवधाम स्वर्गपर अधिकार कर लिया। वे स्वच्छन्द होकर देवताओंके वैभवका उपभोग करने लगे; किंतु उन्हें प्रायः चिन्ता बनी रहती थी कि पता नहीं, कब देवगण समर्थगवान् बुद्ध

होकर पुनः स्वर्ग छीन लें। सुस्थिर साम्राज्यकी कामनासे दैत्योंने सुराधिप इन्द्रका पता लगाया और उनसे पूछा- ‘हमारा अखण्ड साम्राज्य स्थिर रहे, इसका उपाय बताइये।’

देवाधिप इन्द्रने शुद्ध भावसे उत्तर दिया- ‘सुस्थिर शासनके लिये यज्ञ एवं वेदविहित आचरण आवश्यक है।’

दैत्योंने वैदिक आचरण एवं महायज्ञका अनुष्ठान प्रारम्भ किया। फलतः उनकी शक्ति उत्तरोत्तर बढ़ने लगी। स्वभावसे ही उद्दण्ड और निरंकुश दैत्योंका उपद्रव बढ़ा। जगत्में आसुरभावका प्रसार होने लगा।

असहाय और निरुपाय दुःखी देवगण जगत्पति श्रीविष्णुके पास गये। उनसे करुण प्रार्थना की। श्रीभगवान्ने२४२

  • निर्गुन ब्रह्म सर

उन्हें आश्वासन दिया।

श्रीभगवान्ने बुद्धका रूप धारण किया। उनके हाथमें मार्जनी थी और वे मार्गको बुहारते हुए उसपर चरण रखते थे।

इस प्रकार भगवान् बुद्ध दैत्योंके समीप पहुँचे और उन्हें उपदेश दिया- ‘यज्ञ करना पाप है। यज्ञसे जीवहिंसा होती है। यज्ञकी प्रज्वलित अग्रिमें ही कितने जीव भस्म हो जाते हैं। देखो, मैं जीवहिंसासे बचनेके लिये कितना प्रयत्नशील रहता हूँ। पहले झाडू लगाकर पथ स्वच्छ करता हूँ, तब उसपर पैर रखता हूँ।’सगुन बपु धारी

[ अवतार-

संन्यासी बुद्धदेवके उपदेशसे दैत्यगण प्रभावित हुए। उन्होंने यज्ञ एवं वैदिक आचरणका परित्याग कर दिया। परिणामतः कुछ ही दिनोंमें उनकी शक्ति क्षीण हो गयी।

फिर क्या था, देवताओंने उन दुर्बल एवं प्रतिरोधहीन

दैत्योंपर आक्रमण कर दिया। असमर्थ दैत्य पराजित हुए

और प्राणरक्षार्थ यत्र-तत्र भाग खड़े हुए। देवताओंका

स्वर्गपर पुनः अधिकार हो गया।

इस प्रकार संन्यासीके वेषमें भगवान् बुद्धने त्रैलोक्यका मङ्गल किया।

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