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मंत्री-रसूखदारों के रिश्तेदार, बिना मेरिट कैसे बन जाते हैं IAS:राजस्थान में इसके कई उदाहरण, अब हाईकोर्ट में अटका मामला

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मंत्री-​​​​​​​रसूखदारों के रिश्तेदार, बिना मेरिट कैसे बन जाते हैं IAS:राजस्थान में इसके कई उदाहरण, अब हाईकोर्ट में अटका मामला

परिवारवाद और भाई भतीजावाद सिर्फ बॉलीवुड और राजनीति तक ही सीमित नहीं है। राजस्थान की ब्यूरोक्रेसी में भी स्मार्ट तरीके से इसकी जड़ें फैलाई जा रही हैं।

बॉलीवुड में इसे नेपोटिज्म, राजनीति में परिवारवाद कहा जाता है। ब्यूरोक्रेसी में इसे कहते हैं आउट स्टैंडिंग ऑफिसर्स। इसी शब्द को हथियार बनाकर मंत्री और दूसरे रसूखदार अपने नॉन आरएएस करीबियों को IAS में प्रमोशन दे देते हैं।

राजस्थान में ये मुद्दा फिलहाल हाईकोर्ट के ऑर्डर के बाद चर्चा में है, जिसमें नॉन आरएएस को IAS में प्रमोशन देने की प्रक्रिया पर अंतरिम रोक लगा दी है। यह रोक कोर्ट ने राजस्थान प्रशासनिक सेवा परिषद की याचिका पर सुनवाई करते हुए लगाई है।

याचिका लगाने वाली संस्था का कहना है कि सरकार केवल विशेष परिस्थितियों में ही ऐसे अधिकारियों की सिफारिश यूपीएससी को भेज सकती है। वहीं, जिस नॉन आरएएस ऑफिसर की सिफारिश भेज रही है, वह भी असाधारण अधिकारी (Extraordinary Officer) होना चाहिए।

इस पूरे मामले की पड़ताल की। राजस्थान में पिछले कई साल से जिन अन्य सेवाओं के अधिकारियों को IAS बनाया, क्या उनमें कोई विशेष प्रतिभा थी? या फिर परिवार में से किसी की ऊंची पहुंच का फायदा मिला। वो वजह क्या है, जिससे ये आरएएस ऑफिसर्स नहीं होते हुए भी IAS बन रहे हैं।

पढ़िए, स्पेशल रिपोर्ट में…

सबसे पहले चर्चा उन अफसरों की, जिनके परिवार में या तो कोई मंत्री-विधायक है या कोई सरकार में करीबी…।

केस-1, आईएएस डॉ. घनश्याम बैरवा
डॉ. घनश्याम बैरवा साल 2021 में चिकित्सा सेवा से प्रमोट होकर आईएएस बने। इस समय यह श्रम विभाग में आयुक्त के पद पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। जब इन्हें आईएएस बनाया गया तो विश्व कोरोना की दूसरी लहर से जूझ रहा था। ऐसे में मान सकते हैं कि प्रदेश में उस समय विशेष परिस्थिति थी, लेकिन सरकार ने उस समय इनके नाम की सिफारिश यूपीएससी को कौनसी असाधारण प्रतिभा के चलते भेजी, यह कहा नहीं जा सकता।

डॉ. घनश्याम बैरवा सरकार में कैबिनेट मंत्री ममता भूपेश के पति हैं।

अगर ऐसी विशेषज्ञता होती तो इन्हें आईएएस बनाते ही मेडिकल विभाग में पोस्टिंग मिलती। क्योंकि वह पहले बतौर सरकारी डॉक्टर सेवाएं दे रहे थे, लेकिन आईएएस बनने के साथ ही इन्हें पंचायती राज संस्थान में निदेशक के पद पर पोस्टिंग दी गई।

केस-2 आईएएस हेमपुष्पा शर्मा
हेमपुष्पा शर्मा मूलत: अकाउंट्स सर्विस (लेखाधिकारी) से हैं। इन्हें भी साल 2021 में प्रमोट करके आईएएस बनाया गया। इनके समय भी प्रदेश में कोरोना की दूसरी लहर के अलावा कोई विशेष परिस्थितियां नहीं थी। अकाउंट्स सर्विस से हैं, लेकिन इनके नाम की सिफारिश यूपीएससी को भेजी गई। हेमपुष्पा सीएम के सलाहकार और पूर्व आईएएस गोविंद शर्मा की बहन हैं।

वहीं, लेखा सेवा के अधिकारी शरद मेहरा भी प्रमोट होकर साल 2021 में आईएएस बने। जब पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल राजस्थान की राज्यपाल थीं। तब वह उनके OSD थे।

केस-3 आईएएस राजेन्द्र भट्ट
आईएएस राजेन्द्र भट्ट को साल 2016 में सहकारिता सेवा से आईएएस में पदोन्नति मिली थी। साल 2016 में प्रदेश में विशेष परिस्थितियों के नाम पर कोरोना भी नहीं था। उस समय प्रदेश में भाजपा की सरकार थी। राजेन्द्र भट्ट जयपुर के मोती डूंगरी मंदिर के महंत कैलाश शर्मा के भाई के दामाद हैं। वहीं, इस बात से कोई इनकार कर नहीं सकता है कि महंत कैलाश शर्मा के संपर्क राजनीति में ऊपर तक हैं।

IAS राजेन्द्र भट्ट

यूपीएससी के सभी नियमों का पालन, लेकिन अप्रोच का भी योगदान

यूं तो IAS प्रमोशन के लिए चयन करने की प्रक्रिया में सारे नियम फॉलो किए जाते हैं, लेकिन ब्यूरोक्रेसी के सूत्रों की मानें तो नॉन RAS से IAS में प्रमोट वही होता है, जिनकी राजनीतिक अप्रोच अच्छी है। सैकड़ों RAS अधिकारियों को पछाड़कर अन्य सेवाओं के अफसरों के फाइनल सिलेक्शन अप्रोच भी एक मुख्य कारण होता है।

साल 2014 से 2022 तक नॉन आरएएस से आईएएस बनने वाले अधिकारी

साल 2014

  • सुधीर कुमार शर्मा- मूल विभाग- लेखा सेवा
  • नरेश कुमार ठकराल- मूल विभाग- वाणिज्यिक सेवा

साल 2016

राजेन्द्र भट्ट- मूल विभाग- सहकारिता सेवा

साल 2017

  • महावीर प्रसाद- मूल विभाग- विधि रचना सेवा
  • जाकिर हुसैन- मूल विभाग- लेखा सेवा (फिलहाल रिटायर्ड)

साल 2021

  • डॉ. घनश्याम बैरवा- मूल विभाग- चिकित्सा सेवा
  • सीताराम जाट- मूल विभाग- कृषि सेवा
  • हेम पुष्पा शर्मा- मूल विभाग- लेखा सेवा
  • शरद मेहरा- मूल विभाग- लेखा सेवा

साल 2022

  • ओपी बैरवा मूल विभाग- सांख्यिकी सेवा
  • महेन्द्र खड़गावत मूल विभाग- अभिलेखागार

आखिर यह लड़ाई है क्या, मामला कोर्ट में क्यों है?

दरअसल, देश में तीन तरीके से आईएएस ऑफिसर्स बनते हैं। पहले तरीके में यूपीएससी के जरिए सीधे आईएएस में चयन होता है, जिसका कोटा 66.67 प्रतिशत है।

दूसरा स्टेट सिविल सर्विसेज के अधिकारियों का 33.33 प्रतिशत प्रमोशन का कोटा है। राजस्थान में RAS अधिकारियों को IAS में पदोन्नति दी जाती है।

तीसरा तरीका अगर विशेष परिस्थितियां हों, तब स्टेट की अन्य सेवाओं से आउट स्टैंडिंग ऑफिसर का चयन आईएएस में पदोन्नति के लिए किया जा सकता है, लेकिन इसका कोटा 33.33 प्रतिशत में से अधिकतम 15 प्रतिशत ही हो सकता हैं।

प्रदेश में आईएएस अधिकारियों का काडर 313 पदों का है। ऐसे में 33.33 प्रतिशत के हिसाब से इसमें से 98 पद ही प्रमोशन से भरे जा सकते हैं। UPSC के नियमानुसार इन पदों पर केवल आरएएस अधिकारियों को ही प्रमोट किया जा सकता है। विशेष परिस्थितियों में 14 पदों पर नॉन आरएएस अधिकारियों को प्रमोशन दिया जा सकता है।

राजस्थान प्रशासनिक सेवा परिषद के महासचिव डॉ. प्रवीण कुमार का कहना है कि सरकार इन 14 पदों को नॉन आरएएस अधिकारियों का कोटा मान बैठी है। जैसे ही इन 14 पदों से किसी आईएएस के रिटायर्ड होने अथवा मृत्यु होने पर वैकेंसी होती है। सरकार उसे नॉन आरएएस अधिकारी से ही भर रही है। यह पूरी तरह से नियमों के खिलाफ है, जिसे हमने हाई कोर्ट में चुनौती दी है।

एक RAS को IAS प्रमोट होने में लगते हैं 27 से 28 साल

आरएएस ऑफिसर व आरएएस एसोसिएशन के महासचिव डॉ. प्रवीण कुमार का कहना है कि राजस्थान में IAS का कैडर वैसे ही कम है। क्षेत्रफल व जनसंख्या के हिसाब से राजस्थान के समकक्ष मध्य प्रदेश में आईएएस का कैडर करीब 450 के आसपास है जबकि राजस्थान में यह कैडर 313 का है।

ऐसे में यहां आरएएस ऑफिसर को IAS में प्रमोशन पाने में औसतन 27 से 28 साल लग जाते हैं। वहीं, अन्य राज्यों में 17 से 18 साल में सिविल सर्विस का अधिकारी आईएएस बन जाता है। उसमें से राज्य सरकार ने 14 पद नॉन आरएएस के अधिकारियों के लिए रिजर्व कर लिए हैं, जबकि यह नॉन आरएएस अधिकारियों का हक नहीं है। विशेष परिस्थितियां नहीं होने पर इन सारे पदों को आरएएस अधिकारियों से ही भरा जाना चाहिए।

राजस्थान केडर में फिलहाल 313 आईएएस मंजूर हैं, इनमें से नियमानुसार 14 लोगों को ही विशेष परिस्थितियों में अन्य सेवाओं से प्रमोशन दिया जा सकता है।

राजस्थान केडर में फिलहाल 313 आईएएस मंजूर हैं, इनमें से नियमानुसार 14 लोगों को ही विशेष परिस्थितियों में अन्य सेवाओं से प्रमोशन दिया जा सकता है।

हाई कोर्ट ने पूरी प्रक्रिया पर लगा रखी है अंतरिम रोक
राजस्थान प्रशासनिक सेवा परिषद की याचिका पर राजस्थान हाई कोर्ट ने इस साल हो रही नॉन आरएएस से आईएएस पदोन्नति प्रक्रिया पर रोक लगाकर सरकार से पूछा है कि आपने 14 पदों को नॉन आरएएस अधिकारियों के लिए रिजर्व कोटा कैसे मान लिया। वहीं, सरकार को बुधवार को होने वाली सुनवाई में यह भी बताना है कि राजस्थान में ऐसी कौनसी विशेष परिस्थितियां उत्पन्न हो गई हैं, जिसकी वजह से सरकार 4 पदों पर नॉन आरएएस अधिकारियों को प्रमोट करना चाहती है।

परिषद की ओर से हाई कोर्ट में पैरवी करने वाले अधिवक्ता तनवीर अहमद ने बताया कि द इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस (रिक्रूटमेंट) रूल्स 1954 के तहत राज्य सरकार को यह पावर है कि वह नॉन सिविल सर्विसेज के अधिकारियों को आईएएस में पदोन्नत करने की सिफारिश यूपीएससी को भेज सकती है।

लेकिन इसके लिए जरूरी है कि राज्य में विशेष परिस्थितियां उत्पन्न हो गई हों। वहीं, जिस अधिकारी का इस पद के लिए चयन किया जा रहा है, उस में कोई विशेष योग्यता हो। जो मौजूदा सिविल सर्विसेज के किसी भी अधिकारी में नहीं हो। केवल उसी सूरत में नॉन सिविल सर्विसेज के अधिकारी को आईएएस में पदोन्नत किया जा सकता है।

कोर्ट ने पूछा सरकार ने रिजर्व कोटा कैसे मान लिया?
अधिवक्ता तनवीर अहमद ने बताया कि इस बार भी राज्य सरकार ने 17 फरवरी 2023 को सभी विभागों को पत्र लिखकर उनके यहां से 5 पात्र व्यक्तियों के नाम भेजने को कहा था। इस पर हमने आपत्ति जताई थी, लेकिन मई में सुनवाई के दौरान सरकार ने जवाब के लिए समय मांग लिया।

इस बीच 13 जून को इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए सरकार ने सभी विभागों से आए नामों की स्क्रीनिंग के लिए मीटिंग कर ली। हमने कोर्ट से कहा है कि एक तरफ तो सरकार कोर्ट में जवाब देने के लिए समय मांग रही है। कोर्ट की छुट्टियों के दौरान प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में लगी है। इस पर कोर्ट ने पूरी प्रक्रिया पर रोक लगा दी।

क्या हैं प्रमोशन की विशेष परिस्थितियां और आउटस्टैंडिंग ऑफिसर होने की शर्तें?

अधिवक्ता तनवीर अहमद ने कहा कि द इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस (रिक्रूटमेंट) रुल्स 1954 के तहत नॉन सिविल सर्विस के अधिकारियों को तभी आईएएस में पदोन्नत करने की सिफारिश की जा सकती है। जब स्टेट में विशेष परिस्थितियां उत्पन्न हों। जैसे- विशेष परिस्थितियों में अगर स्टेट के पास आईएएस अधिकारियों की कमी हो और उसे भरने के लिए पर्याप्त आरएएस उपलब्ध ना हो। ऐसी स्थिति में नॉन सिविल सर्विसेज के अधिकारियों को प्रमोट किया जा सकता है।

इसके अलावा अगर प्रदेश में कोई महामारी आ गई हो। कोई डॉक्टर, जिसकी एक्सपर्टीज हो। जिसे वह अपने पद पर रहकर अच्छे से नहीं कर पा रहा हों। लेकिन आईएएस बनकर वह स्टेट हित में काम कर सकता हो। जैसे एग्रीकल्चर, साइबर सेक्टर, डिजिटलाइजेशन में सरकार को कुछ नया करना है और सरकार के पास इन कामों के लिए कोई एक्सपर्ट आईएएस नहीं है।

ऐसी स्थिति में सरकार नॉन सिविल सर्विस के उन सेक्टर के अधिकारियों को आईएएस में पदोन्नत करने की सिफारिश कर सकती है, लेकिन सरकार को विशेष परिस्थितियां साबित करनी होंगी।

इस बार सरकार ने भेजे 20 नाम
सूत्रों के अनुसार इस साल भी सरकार ने 4 पदों पर पदोन्नति के लिए 20 नॉन आरएएस अधिकारियों के नामों की सिफारिश यूपीएससी को भेजी है। क्योंकि यूपीएससी को पदों के मुकाबले 5 गुना नाम भेजने होते हैं। इन नामों को पूरी तरह से गुप्त रखा गया है।

यूपीएससी में इंटरव्यू के दौरान राज्य के मुख्य सचिव व डीओपी सचिव भी मौजूद रहते हैं। अब इनमें से 4 फाइनल नाम कौन होंगे? यह प्रक्रिया पूरी भी होगी या नहीं? सबकुछ हाई कोर्ट के फैसले पर टिका है।

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