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मौत के मुंह में वीडियो कॉल पर मनाई 25वीं एनिवर्सरी:6 दिन बाद शहीद, बिना हथियार आखिरी सांस तक लड़ते रहे

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एक पति ने पत्नी से वादा किया था कि शादी की 25वीं सालगिरह साथ मनाएंगे…लेकिन वादा अधूरा रह गया

एक पिता ने बेटी से वादा किया था कि वो उसे डॉक्टर की डिग्री लेते देखेंगे…ये वादा भी अधूरा रह गया

…क्योंकि उस पति/पिता ने जब वर्दी पहनी तो एक प्रण और किया था…मेरे लिए सबसे पहले मेरी ड्यूटी होगी, खुद से पहले…परिवार से पहले।

इसी प्रण को पूरा करने के लिए बीएसएफ के हेड कॉन्स्टेबल शिशुपाल सिंह बगड़िया कांगो में यूनाइटेड नेशंस(यूएन) के मिशन में हिंसक भीड़ के सामने आखिरी सांस तक डटे रहे। वे और बाड़मेर के सांवलाराम विश्नोई यूएन के कैंप में तैनात थे।

26 जुलाई को हजारों की भीड़ ने कैंप पर हमला कर दिया। असला खत्म होने के बावजूद दोनों ने मोर्चा नहीं छोड़ा। शिशुपाल महिलाओं को एयरलिफ्ट कराने के लिए कैंप से बाहर निकल रहे थे, तभी भीड़ ने उन पर हमला कर दिया। हमले में शिशुपाल शहीद हो गए।

शहीद की पत्नी सरकारी स्कूल में टीचर है। हमले से एक दिन पहले उन्होंने अपने पति से फोन पर बात की थी।

शहीद की पत्नी सरकारी स्कूल में टीचर है। हमले से एक दिन पहले उन्होंने अपने पति से फोन पर बात की थी।

सीकर निवासी शिशुपाल की शहादत को एक सप्ताह हो चुका है, लेकिन आज भी परिवार को इंतजार है, आखिरी बार उन्हें देखने का। शिशुपाल की पत्नी कमला देवी, बेटी कविता और बेटा प्रशांत जयपुर के मानसरोवर में रहते हैं।

पत्नी का दर्द: साथ मनाने वाले थे शादी की 25वीं सालगिरह
शिशुपाल की पत्नी कमला देवी की आंखें नम थीं। किसी तरह खुद को संभालकर हमसे बातचीत शुरू की। बोलीं- ऐसे ही थे वो, ड्यूटी और देश के अलावा कुछ नहीं सूझता था। 3 मई को कांगो में ड्यूटी पर गए थे। इससे पहले वे छुट्‌टी पर घर आए थे।

तब उन्होंने मुझसे वादा किया था कि 20 जुलाई को शादी की 25वीं सालगिरह पर घर आउंगा। बच्चों के साथ सेलिब्रेट करेंगे…लेकिन वो ये वादा पूरा नहीं कर पाए। मेरे पति हमेशा देश की सेवा के लिए बॉर्डर पर रहे। ड्यूटी के लिए शहीद हो गए। अभी तो बच्चों की शादी करानी थी, कई सपने पूरे करने थे, लेकिन सब अधूरे रह गए।

शहीद शिशुपाल की बेटी कविता MBBS कर चुकी है। बेटा प्रशांत ग्रेजुएशन कर रहा है।

शहीद शिशुपाल की बेटी कविता MBBS कर चुकी है। बेटा प्रशांत ग्रेजुएशन कर रहा है।

वीडियो कॉल पर एनिवर्सरी विश की
शहीद शिशुपाल की पत्नी ने रोते हुए कहा- ‘ड्यूटी से ज्यादा वक्त नहीं मिलता था। फिर भी 2-4 मिनट निकालकर हर दिन वीडियो कॉल पर बात करते थे। एनिवर्सरी पर भी वीडियो कॉल पर ही विश किया था। हमने कहा था, जब ड्यूटी से वापस आएंगे तो सेलिब्रेट करेंगे। इतना कहकर वह बिलख पड़ीं। फिर बच्चों ने उन्हें संभाला।’

शहीद की पत्नी कमला देवी कहती हैं- ”उन्होंने फोन पर बताया था कि यहां आए दिन हमले हो रहे हैं। एक दिन पहले ही भीड़ ने राशन से भरे दो ट्रक जला दिए। राशन और हथियार भी खत्म हो रहे हैं। वो हमेशा ‘पहले आप’ के सिद्धांत पर चलते थे। हमले के समय भी वो सभी महिलाओं को सुरक्षित वहां से निकालने के लिए भीड़ से लड़ते रहे। उनकी शहादत पर गर्व है।”

आखिरी बार बात हुई, उसके बाद फोन नहीं लगा
कमला देवी ने बताया कि 25 तारीख को आखिरी बार उनसे बात हुई थी। उसके बाद उनका फोन नहीं लगा। उनके साथियों को भी फोन करके पूछा, लेकिन कुछ पता नहीं चला। रात को जेठ मदन सिंह को फोन किया। उन्होंने भी BSF के अधिकारियों से जानकारी ली। 26 की सुबह उनकी मौत की खबर मिली।

शिशुपाल दो महीने पहले ही यूएन के शांति मिशन पर कांगो गए थे।

शिशुपाल दो महीने पहले ही यूएन के शांति मिशन पर कांगो गए थे।

बेटी को डॉक्टर की डिग्री लेते हुए देखने चाहते थे
शिशुपाल की बेटी कविता (24) ने एमबीबीएस कम्पलीट कर लिया है। कविता ने बताया कि इस साल कॉलेज में दीक्षांत समारोह होने वाला था। पापा का सपना था कि वो मुझे डॉक्टर की डिग्री लेते हुए देखें। उन्होंने वादा किया था कि कॉलेज के दीक्षांत समारोह में हम साथ में कॉलेज जाएंगे और मुझे डिग्री लेते हुए देखेंगे। मेरा भाई प्रशांत (21) अभी ग्रेजुएशन कर रहा था। पापा ने उसे भी कहा था कि तुम पढ़ो ओर तुम्हें जो बनना है, उसके लिए मेहनत करना।

साथियों की जान बचाकर खुद शहीद हो गए
शहीद शिशुपाल के साले महिपाल ने बताया कि उनके जीजा हमेशा लोगों की सहायता के लिए आगे रहते थे। पता चला है कि, 26 जुलाई को हजारों की संख्या में भीड़ ने बुटेम्बो स्थित कैंप को घेर लिया था। कैंप में महिलाएं भी मौजूद थी।

इस दौरान शिशुपाल और बाड़मेर के सांवलाराम बिश्नोई ने साथियों के साथ मोर्चा संभाला और महिला साथियों को एयरलिफ्ट कर बाहर निकाला। शिशुपाल खुद बाहर नहीं निकले और साथियों को बचाने में लग गए। इस दौरान भीड़ ने हमला कर दिया और दोनों शहीद हो गए।

दुख की इस घड़ी में परिवार एक-दूसरे का सहारा बना हुआ है। मां को संभालते हुए बेटी कविता।

बचपन में 4 किमी दौड़कर जाते थे स्कूल
सीकर के लक्ष्मणगढ़ उपखण्ड के बगड़ियों का बास में रहने वाले शिशुपाल बगड़िया का जन्म 10 जून 1977 में हुआ था। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूल से की थी। स्कूल 4 किलोमीटर दूर था। स्कूल जल्दी पहुंचने के लिए वे कई बार दौड़ कर जाते थे। इसके बाद दौड़ने का शौक लग गया और वे एथलीट बन गए। उनके बड़े भाई मदन सिंह और मूल सिंह भी एथलीट थे।

10वीं के बाद शिशुपाल दिल्ली चले गए और बड़े भाई मदन सिंह के पास रहकर पढ़ाई की। उन्होंने कई मैराथन जीती थी। इसके बाद उनकी खेल कोटे से 19 अक्टूबर 1994 को बीएसएफ में नौकरी लग गई। वे बीएसएफ में हेड कांस्टेबल के पद पर तैनात थे।

परिवार 6 दिन से शव आने का इंतजार कर रहा था।

परिवार 6 दिन से शव आने का इंतजार कर रहा था।

देश की सेवा के लिए तीनों भाई बीएसएफ में गए
साले महिपाल धायल ने बताया कि शिशुपाल और उनके दो भाइयों का बचपन से सपना था कि वे देश की सेवा के लिए आर्मी में जाएंगे। उनके बड़े भाई मदन सिंह बीएसएफ में जैसलमेर स्थित 92 बटालियन में डिप्टी कमांडेंट हैं। वे भी एथलीट हैं।

मदन सिंह के बीएसएफ में जाने के बाद उनसे छोटे मूलसिंह बगड़िया राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) कोलकाता में हवलदार पद पर तैनात हुए। शिशुपाल 19 अक्टूबर 1994 को खेल कोटे से बीएसएफ में भर्ती हुए। शिशुपाल कांगो जाने से पहले शिलांग में तैनात थे। इससे पहले वे जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर, बीकानेर में ड्यूटी कर चुके हैं।

इनके अलावा शिशुपाल का चचेरा भाई रामनिवास बीएसएफ में एएसआई, जबकि श्रीपाल सीआरपीएफ में कॉन्स्टेबल है। शिशुपाल का भांजा श्रीराम गढ़वाल सिपाही के पद पर जम्मू में कार्यरत है। उनके परिवार और रिश्तेदार में करीब एक दर्जन लोग आर्मी में देश में की सेवा कर रहे हैं।

शहीद शिशुपाल का परिवार जयपुर के मानसरोवर में रहता है। उनकी पत्नी टीचर हैं।

शहीद शिशुपाल का परिवार जयपुर के मानसरोवर में रहता है। उनकी पत्नी टीचर हैं।

लापरवाही की सरकार जांच करवाए
शिशुपाल के साले महिपाल ने बताया कि उन्होंने फोन बताया कि उनका असला खत्म हो गया था। हजारों की भीड़ से लड़ने के लिए न तो इतने जवान थे और न ही असला। आए दिन भीड़ उनके कैंप पर हमला कर रही थी। हमले से एक दिन पहले भीड़ के हमला करने का वीडियो भी सामने आया था, जिसमें भी असला खत्म होने का जिक्र है। हम सरकार से गुहार लगाते हैं कि सरकार जांच करवाए कि इसमें किसकी लापरवाही रही।

उधर, शहीद के परिवार में सरकार को लेकर नाराजगी है। उनका कहना है कि हमारे इस बुरे समय में केंद्र और राज्य सरकार ने सुध तक नहीं ली। देश की सेवा करने वाले जवानों के परिवारों की सरकार सुध नहीं लेगी तो कौन लेगा।

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