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सिरिधान्य (मिलेट्स), बदलते मौसम में सेहत का खजाना

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आलेख: रुचिता तुषार नीमा


आइए आज बात करते है एक विशेष प्रकार के अनाज की, जो विशेष गुणवत्ता से भरपूर है। अनाज अनेक प्रकार के होते हैं, जैसे गेंहू, चावल, बाजरा, मक्का आदि। लेकिन विज्ञान की भाषा में अनाज को गुणवत्ता के अनुसार तीन श्रेणी में विभाजित किया गया है, पॉजिटिव, नेगेटिव और न्यूट्रल।

  • नेगेटिव अनाज जैसे नाम से ही स्पष्ट है, इनके सेवन से शरीर में तुलनात्मक नकारात्मक परिणाम होते हैं,जैसे – गेहूं ,चावल।
  • न्यूट्रल अनाज: ये मोटा अनाज कहलाता है।जैसे मक्का, बाजरा, ज्वार, रागी आदि। ये अनाज तुलनात्मक दृष्टि से स्वास्थ्य के लिए बेहतर होते हैं लेकिन इनके सेवन से शरीर में न कोई बीमारी होती है और न ही कोई बीमारी हो तो वह ठीक होती है। ये अनाज ग्लूटेन मुक्त होते हैं।

और फिर आते हैं,

  • पॉजिटिव अनाज- पॉजिटिव ग्रेन्स के अंतर्गत छोटे अनाज आते हैं। इन्हें सिरिधान्य भी कहा जाता है।
    जैसे – कंगनी ,सामा ,सनवा ,कोदो और छोटी कंगनी
    सिरिधान्य मिलेट में प्रचुर मात्रा में फाइबर, प्रोटीन, मिनरल्स, कैल्शियम, फॉस्फोरस, पोटेशियम, आयरन, मैग्नीशियम, जिंक, मैंगनीज और विटामिन जैसे राइबोफ्लेविन, थियामिन और नियासिन और आवश्यक अमीनो और फैटी एसिड के साथ-साथ विटामिन ई की अच्छी मात्रा होती है। जो कि एक संतुलित स्वास्थ के लिए काफी अच्छा होता है।

कंगनी मिलेट – Kangni ( Foxtail / Italian Millet)
सांवा मिलेट – (Barnyard Millet)
कुटकी मिलेट – kutakee (Little Millet)
कोदो मिलेट – Kodo (Kodo Millet)
मुरात मिलेट – (Browntop Millet)

हम बात करते हैं सिरिधान्य अनाज की, जिसे मिलेट भी कहा जाता है।सिरिधान्य जिसे आमतौर पर मिलेट (या शुक्ष्म अनाज, पॉजिटिव मिलेट) भी कहा जाता है। वे छोटे अनाज हैं जो बहुत कम पानी के साथ भी कीटनाशकों, उर्वरकों की मदद के बिना बढ़ते हैं और इनका नियम पूर्वक सेवन अनेक बीमारियों को दूर करने में सहायक है।
सिरिधान्य की पोषक वैल्यू को चार्ट के द्वारा समझाया गया है::
अगर हम सिरिधान्य का नियम पूर्वक सेवन करते हैं तो ये हमारे शरीर से अनेक रोगों को दूर कर इम्यूनिटी को मजबूत करते हैं। उदाहरण के लिए एक प्रोटोकॉल यहा दर्शाया है—
प्रोटोकॉल में दिए अनुसार इन 5 मिलेट को खाना बताया गया है। एक उदाहरण लेते हैं – यदि आपका प्रोटोकॉल बताता है –
कोडो – 2
फॉक्सटेल – 2
बारनयार्ड – 1
ब्राउनटॉप – 1
लिटिल – 1
इसका मतलब है, आप कोडो के साथ शुरू करते हैं और दो दिन (1-ला और 2-रा दिन) कोडो खाना हैं, और फिर तीसरे दिन से आप फॉक्सटेल शुरू करते हैं और दो दिन (3-रा और 4-था दिन) फॉक्सलेट खाते हैं और पांचवें दिन खाते हैं (एक दिन के लिए) बारनयार्ड और फिर 6-ठे दिन आप ब्राउनटॉप खाते हैं, और अंत में 8 वें दिन आप लिटिल खाते हैं।
एक बार जब यह चक्र पूरा हो जाता है तो आप कोडो वापस शुरू करते हैं और फिर ऐसे जारी रखते हैं।

इस प्रकार अलग अलग रोगों में डाक्टर से परामर्श कर अलग अलग प्रोटोकॉल दिए जाते हैं जो शरीर को रोग मुक्त होने में सहायता करते हैं।
सिरिधान्य को खाने के लिए भी कुछ विशेष नियम होते हैं ,जैसे
पकाने से पहले सिरिधान्य को कम से कम 6-8 घंटे के लिए भिगोएँ,भिगोने से पहले एक बार धोएं।
यदि आप चाहें तो आप भिगोने के लिए उपयोग हुआ पानी इस्तेमाल कर सकते हैं
केवल अन-पॉलिश्ड या बुच्ची तरीके से साफ की गयी सिरिधान्य ही उपयोग करें – यदि आपको पुरानी समस्या या गंभीर स्वास्थ्य समस्या है तो यह और भी महत्वपूर्ण है।
इस पर महत्वपूर्ण शोध डॉक्टर खादर वल्ली के द्वारा किया गया है।जिन्होंने अलग अलग रोगों में इसका अलग अलग प्रयोग बताया है।डॉ. खादर 6-8 सप्ताह के लिए अम्बालि (खमीर वाला दलिया, फर्मेन्टेड दलिया) का सेवन करने का सुझाव देते हैं। यह आंत माइक्रोबायोटा को बनाए रखने और संतुलित करने में मदद करता है।
यद्यपि आप सिरिधान्य के साथ कोई भी व्यंजन बना सकते हैं, लेकिन डॉ. खादर वल्ली ने सुझाव दिया है कि सिरिधान्य का सेवन गंजी (दलिया) के रूप में या अंबाली के रूप में कम से कम 10-15 दिनों में एक बार करें।
सिरिधान्य एक ऐसा अनाज है जो हम सभी के स्वस्थ जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह अनेक रोगों जैसे मधुमेह, हृदय रोग, मोटापा, और कैंसर तक से लड़ने में समर्थ है। इसके उचित सेवन से आप अपने जीवन को स्वस्थ और निरोगी बना सकते हैं।

आर्थिक दृष्टिकोण से ——

आर्थिक दृष्टि से भी सिरिधान्य किसानों के लिए अनेक मायनों में सहयोगी है, जिसे इस चार्ट की मदद से समझ सकते हैं
सिरिधान्य की फसल के लिए कोई विशेष उर्वरक या खाद , पानी की अधिक आवश्यकता नहीं होती। आप इन्हें कहीं भी बीज बोकर आसानी से उगा सकते हैं। सभी अनाजों में सिरिधान्य को सबसे कम पानी की आवश्यकता होती है, तथा इसमें भूख को तृप्त करने की भी विशेष योग्यता होती है।

—पर्यावरण परिवर्तनों को सहनेवाली फसलें —–
पर्यावरण से संबंधित जिन चुनौतियों का सामना विश्व कर रहा है उनका समाधान सीरीधान्य हैं। वातावरण के बदलाव के कारण प्रमुख रूप से तीन चुनौतियाँ सामने आती हैं—

1)पोषकतत्वों की कमी
2) 2-5-ग्री सेंटीग्रेड तापमान की वृद्धि पानी,
3)पानी की खपत में वृद्धि
इन चुनीतियों का सामना करने को क्षमता सिरिधान्यों या तृणधान्य में है। वर्षा अभाव की स्थितियों में भी सिरीधान्यों की खेती की जा सकती है। आः ये बढ़ती तापमान को भी सहन कर सकते हैं। सिंचाई का अभाव जिन क्षेत्रों में है. 200-500 मि.मी. वर्मा जहाँ होती है या फिर जहाँ वर्षा कम होती है वहाँ भी तृणधान्यों की खेती की जा सकती है। कहने का अर्थ है कि सभी परिस्थिति तृणधान्यों की खेती के अनुरूप होती है। इनमें अधिक से अधिक पोषक तत्व होते हैं।
कुल मिलाकर ये छोटे छोटे दाने हमारे जीवन के लिए अत्यंत उपयोगी है। इन्हें हमे अपने दैनिक जीवन में शामिल कर पर्यावरण को और स्वयं को स्वस्थ और निरोगी रखना चाहिए।
इस अनाज के बारे में अत्यंत महत्वपूर्ण शोध डा खादर वल्ली ने किया है जिसकी विस्तृत जानकारी उनकी किताब सिरिधान्य में उपलब्ध है।

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