सेल टैक्स ऑफिसर ने बदली CA स्टूडेंट की जिंदगी:जोधपुर में ब्रांड बना वेजिटेबल सप्लाई का बिजनेस; ऑर्गेनिक खेती से लाखों की कमाई
मेरी लाडली छोटी बहन ने 2017 गलती से कीटनाशक दवा पी ली थी…6 दिन तक वो आईसीयू में रही…मुश्किल से जान बची…इसके बाद मैंने 2019 में मां को खो दिया..उन्हें ब्लड कैंसर था।
डॉक्टर ने कहा कि केमिकल वाला भोजन करने से यह कैंसर होता है…इन दो घटनाओं ने मेरी सोच बदल दी…
अब मैं ऑर्गेनिक वैजिटेबल का ही प्रोडक्शन करता हूं और 50 किसानों के साथ मिलकर जोधपुर के लोगों को ऑर्गेनिक फूड चेन से जोड़ रहा हूं।
यह कहना है जोधपुर के 32 साल के किसान वेदप्रकाश सोलंकी का। CPT और IPCC क्लीयर कर CA के फाइनल एग्जाम तक पहुंचने वाले वेदप्रकाश फर्स्ट डिविजन ग्रेजुएट रहे हैं। JNVU में पढ़ाई की। चार्टर्ड अकाउंटेंट बनना चाहते थे, लेकिन खेती-किसानी पुश्तैनी काम था, उसी से जुड़ गए और ऑर्गेनिक फार्मिंग को अपने इलाके में आंदोलन बना दिया।
म्हारे देस की खेती में आज बात कॉमर्स व इकोनॉमिक्स के बेहतर स्टूडेंट रहे किसान वेद प्रकाश सांखला की…

अब जोधपुर के सरदारपुरा में वेदप्रकाश का राम ऑर्गेनिक के नाम से वेजिटेबल स्टोर है, जहां 3 हजार से ज्यादा लोग रेगुलर उनसे ऑर्गेनिक सब्जियां लेते हैं।
12 बीघा के खेत, संयुक्त परिवार का सहारा
जोधपुर शहर से 30 किलोमीटर दूर वेदप्रकाश का गांव है तिंवरी कस्बे का बिंजवाड़िया। शहरी भाग-दौड़ से दूर गांव में उनके पिता हरदेव राम सांखला 12 बीघा के खेतों में खेती-बाड़ी करते हैं। 4 बेटों में से 2 खेती से जुड़े हैं। एक प्राइवेट काम करता है और सबसे छोटा पढ़ाई कर रहा है। बेटे, 3 बहुएं और बच्चे मिलाकर 20 लोगों का परिवार है। सभी एक ही घर में रहते हैं। आम किसानों की तरह यह परिवार भी फसल उपजाकर, सब्जी की बाड़ी लगाकर गुजारा कर रहा था कि 2017 में जुलाई की गर्मी में एक घटना घटी।

वेदप्रकाश 12 बीघा के अपने खेत में पिता और बड़े भाई के साथ ऑर्गेनिक खेती कर रहे हैं। इसके अलावा 50 किसान अलग-अलग तरह के फल-सब्जियां व मसाले पैदा रहे हैं। यह सब वेदप्रकाश के जोधपुर स्थित अपने स्टोर पर पहुंचाते हैं। ये सब्जियां पूरी तरह ऑर्गेनिक हैं।
जब खुशी का माहौल गमगीन हो गया
वेदप्रकाश ने बताया कि चाचा की बिटिया की शादी थी, खुशी का माहौल था। शादी में लाडली छोटी बहन ससुराल से आई हुई थी। बारिश का सीजन था, बीज बोने का वक्त था इसलिए घर में कीटनाशक दवा भी रखी थी। छोटी बहन ने गलती से कीटनाशक दवा पी ली। खुशी का माहौल चिंता और दुख में बदल गया। बहन को महात्मा गांधी अस्पताल ले गए। वह दो दिन तक आईसीयू में रही। दो महीने तक उसका इलाज चला तब तक हमारी जान हलक में अटकी रही। तब पहली बार विचार आया कि हम खेतों में यह खतरनाक केमिकल और दवा क्यों छिड़कते हैं? सिर्फ प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए लोगों को सब्जियों में जहर खिला रहे हैं।
वेदप्रकाश इलाके के किसानों को बाजार से 20 फीसदी ज्यादा मुनाफा दे रहे हैं। एक एक कर 50 किसान ऑर्गेनिक खेती करने लगे हैं। अब 3 हजार से ज्यादा परिवार ऑर्गेनिक सब्जियों का इस्तेमाल करने लगे हैं।
कीटनाशक दवा और केमिकल से कर ली तौबा
वेदप्रकाश ने ठान लिया कि वह अपने खेतों में कीटनाशक दवा और केमिकल का इस्तेमाल नहीं करेगा। उसने अपने पिता हरदेव और बड़े भाई पारस राम को कन्वेंस किया। वे नहीं माने। काफी जद्दोजहद के बाद पिता तैयार हुए और उसे खेत में जैविक खेती करने के लिए फ्री हैंड कर दिया। 2017 में दीवाली के बाद नवंबर में सब्जी बुआई का समय आया तो उसने खेत में जैविक खाद का इस्तेमाल कर मूली, गाजर, मेथी और पालक की बुवाई की। दिसंबर 2017 से जनवरी 2018 के बीच फसल तैयार हो गई।

सीए फाइनल तक पढ़ाई करने वाले वेदप्रकाश का टर्नओवर 60 लाख रुपए से ज्यादा है। यह इसलिए क्योंकि ऑर्गेनिक सब्जियां बेचने के लिए वे फुटपाथ पर बैठने से भी गुरेज नहीं करते। जोधपुर के पॉश इलाके सरदारपुरा में उनका ऑर्गेनिक वैजिटेबल स्टोर है।
लोगों को ऑर्गेनिक का महत्व समझाया
वेदप्रकाश ने बताया कि सबसे बड़ी चुनौती ऑर्गेनिक वैजिटेबल को बेचने में सामने आई। ऑर्गेनिक सब्जियों में फिनिशिंग नहीं होती। ये चमकदार और समान आकार की नहीं होतीं। ऐसे में लोगों की इनकी गुणवत्ता के बारे में समझाना मुश्किल होता है। हेल्थ की इंपोर्टेंस समझने वाले लोग ही इसका महत्व समझ सकते हैं। उन लोगों तक पहुंच बनाना चुनौती थी।
ऐसे में वेदप्रकाश शाम को सब्जियों के बंडल तैयार करते और सुबह 6 बजे बाइक से जोधपुर के लिए रवाना हो जाते हैं। सुबह 7 बजे वे जोधपुर पहुंचते और जोधपुर के अशोक उद्यान और नेहरू उद्यान के बाहर सब्जियां लेकर बैठ जाते हैं। सप्ताह के 3 दिन अशोक उद्यान और 3 दिन नेहरू उद्यान के बाहर एक निश्चित जगह वेदप्रकाश बैठने लगे। उन्होंने बाइक पर ही लिखवा लिया था, ऑर्गेनिक सब्जियां।
CA फाइनल तक पढ़ाई की, सब्जी बेचने की ठानी
वेदप्रकाश ने बताया- मैं 1989 में पैदा हुआ। उस दौर में बैल से खेत जोते जाते थे। बारिश पर खेती निर्भर करती थी। 10वीं तक गांव से 4 किलोमीटर दूर स्कूल में पढ़ाई की। पैदल स्कूल जाता था। 2006 में दसवीं पास की तो रातानाड़ा में 11वीं में कॉमर्स सब्जेक्ट लिया। 2008 में 12वीं पास कर जोधपुर के विश्वविद्यालय JNVU में बीकॉम स्टूडेंट के तौर पर एडमिशन लिया।
सोचा था सीए बनूंगा। इसके लिए जोधपुर रहकर कोचिंग की। रोजाना 30 किलोमीटर बाइक पर जाता था। एंट्रेंस एग्जाम CPT और IPCC एग्जाम पास किए, 2016 में CA फाइनल एग्जाम दिया, लेकिन क्लीयर नहीं हुआ। तब तय किया कि मैं सब्जी बेचूंगा। पिता ने कहा- इतनी पढ़ाई करके सब्जी बेचेगा? अच्छा लगेगा? लोग क्या कहेंगे? मैंने तय कर लिया था। पिता भी मान गए। अब देखिये, सालाना 60 लाख का टर्नओवर है। पिता संतुष्ट हैं कि मैंने सही फैसला लिया था।

वेदप्रकाश के पिता और बड़े भाई भी उनका भरपूर साथ देते हैं। पूरा परिवार खेती बाड़ी से जुड़ा है। सेहत के लिए ये सब्जियां सही हैं।
मॉर्निंग वॉक करने वाले हुए अट्रैक्ट
रोजाना ऑर्गेनिक सब्जी लेकर गांव से जोधपुर जाने की लगन रंग लाई। मॉर्निंग वॉक पर आने वाले अच्छे प्रोफेशनल्स, उच्च शिक्षित और पेशेवर लोग उनकी सब्जियां खरीदने लगे। इसके बाद एक दिन अशोक उद्यान के बाहर काजरी संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. अरुण शर्मा पास आए। कहा कि लोग ऑर्गेनिक भोजन का महत्व समझ रहे हैं। ऐसे में जरूरी है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को ऑर्गेनिक खेती और ऑर्गेनिक भोजन से जोड़ा जाए।
डॉ. अरुण शर्मा ने वेदप्रकाश को उन किसानों की लिस्ट दी, जो ऑर्गेनिक खेती कर रहे थे। खरीदार नहीं मिलने के कारण वे किसान अपनी सब्जियां मंडी में ही बेच रहे थे। वेदप्रकाश ने ऑर्गेनिक खेती करने वाले किसानों ने कॉन्टेक्ट किया तो शुरू में 7 किसानों से वेदप्रकाश ने ऑर्गेनिक फल सब्जियां खरीदनी शुरू की। अब 50 किसान उनसे जुड़े हैं। ये सभी ऑर्गेनिक खेती कर रहे हैं।
मां की ब्लड कैंसर से मौत ने वेदप्रकाश को झकझोर दिया। उन्होंने तय किया कि वे लोगों को केमिकल के बुरे प्रभाव से बचाएंगे।
50 किसानों को जोड़ा, बाजार से ज्यादा मुनाफा दिया
वेदप्रकाश ने किसानों से डील की। उन्हें ऑर्गेनिक सब्जियों का बाजार भाव से 20 प्रतिशत तक अधिक दाम दिया। इस तरह एक-एक किसान से वेदप्रकाश मिले और माल खरीदने की डील कर ली। सारा माल करीब 250 किलो तक बैठने लगा। वह शाम को सब्जियां जुटाता और पैकेट तैयार करता। फिर बाइक से उन्हें गांव से जोधपुर लेकर जाता। बाइक पर अधिक सब्जी न ढो पाने के कारण वेदप्रकाश ने जोधपुर से गांव तक 3-3 चक्कर लगाए। लोग उसे जानने लगे। उसकी सब्जियों का इंतजार करने लगे।

बाइक से 250 किलो सब्जियां गांव से जोधपुर तक वेदप्रकाश 30 किलोमीटर का सफर करते थे। वे एक दिन में 3 चक्कर किया करते थे। मेहनत का फल मिला। अब सब्जियां लेकर 4 गाड़ियां रोजाना जोधपुर का चक्कर लगाती हैं।
मां की ब्लड कैंसर से मौत हुई तो ऑर्गेनिक को बनाया मिशन
वेदप्रकाश जी-तोड़ मेहनत कर रहे थे कि जून 2019 में एक दिन अचानक मां गहरी देवी की तबीयत बिगड़ गई। उन्हें महात्मा गांधी अस्पताल ले जाया गया। जहां जांच कराने के बाद डॉक्टर ने उन्हें ब्लड कैंसर बताया। अगस्त 2019 में मां का निधन हो गया। डॉक्टर मनोज लाखोटिया ने बताया कि ब्लड कैंसर की बड़ी वजह शरीर में लगातार केमिकल युक्त आहार का जाना और दवाओं वाली सब्जियों का इस्तेमाल करना है। वेदप्रकाश को इससे सदमा लगा। उन्होंने तय किया कि वे ऑर्गेनिक खेती को खुद तक सीमित नहीं रखेंगे, बल्कि लोगों को इसके लिए जागरूक भी करेंगे।
वेदप्रकाश के दिल-दिमाग में यह बात बैठ गई कि ऑर्गेनिक खेती को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाना है और लोगों को ऑर्गेनिक फूड से जोड़ना है। दिसंबर 2019 में उन्होंने एक रिश्तेदार से 30 हजार रुपए में सेकेंड हैंड मारुति 800 कार खरीदी। रोजाना शाम 7 बजे तक वे किसानों से सब्जियों का कलेक्शन करते। फिर सुबह 6 बजे सब्जियां लेकर कार से जोधपुर के लिए निकल जाते। वे ग्राहकों को ऑर्गेनिक फल सब्जियों के फायदे गिनाते।

वेदप्रकाश की पत्नी देविका। उन्हें खेत में काम करने से गुरेज नहीं। उन्हें यकीन था कि पति जो भी कर रहे हैं, वही बेहतर है। देविका के 3 बच्चे हैं। खेती-बाड़ी में उनका बराबर का सहयोग है।
लॉकडाउन में बिजनेस को अपडेट किया
मार्च 2020 में लॉकडाउन लगा तो सब्जियों की सप्लाई भी रुक गई। इस दौरान वेदप्रकाश के एक ग्राहक सेल टैक्स ऑफिसर ने फोन कर कहा कि ऑर्गेनिक सब्जियों की सप्लाई रुकनी नहीं चाहिए। ऑर्गेनिक सब्जियां समय की डिमांड हैं। मैं आपको परमिशन देता हूं। आप कार पर ट्रैवलिंग पास चिपका कर सब्जियां सप्लाई कर सकते हैं। इसके बाद वेदप्रकाश को पास मिल गया। लॉकडाउन में उन्होंने ग्राहकों का वॉट्सऐप ग्रुप क्रिएट किया। ग्राहक वॉट्सऐप पर सब्जी की डिमांड करने लगे। वेदप्रकाश घर में सब्जियों के पैकेट तैयार करते, एड्रेस की स्लिप लगाते और होम डिलीवरी करते। यह मुहिम लगातार बढ़ती गई।
पॉश इलाके में शुरू किया ऑर्गेनिक स्टोर
5 दिसंबर 2020 को वेदप्रकाश ने जोधपुर के सरदारपुरा इलाके में राम ऑर्गेनिक के नाम से वैजिटेबल स्टोर की शुरुआत की। स्टोर को 2 साल होने को है। ऑर्गेनिक वैजिटेबल के क्षेत्र में वेदप्रकाश अब पहचान बना चुके हैं। गर्मियों में वे हर महीने 6 लाख रुपए तक की सेल करते हैं। सर्दियों में यह सेल 10 लाख रुपए तक पहुंच जाती है। उनके स्टोर में सिर्फ सीजनल सब्जियां ही मिलती हैं। वेदप्रकाश कहते हैं कि बेमौसम की सब्जियां शरीर के लिए नुकसानदेह होती हैं।

इलाके के किसानों से ऑर्गेनिक शकरकंद को स्टोर लेकर जाते वेदप्रकाश।
वेदप्रकाश ने ऑर्गेनिक सब्जियां बेचकर पहली बार 500 रुपए कमाए थे। अब ऑर्गेनिक फल सब्जियों का टर्नओवर 60 लाख रुपए प्रति वर्ष से ज्यादा है। उनका टारगेट इसे 1 करोड़ तक पहुंचाना है। इसमें उनका निजी फायदा कम है। क्योंकि यह फायदा उनसे जुड़े 50 किसानों में साझा हो रहा है। वेदप्रकाश कहते हैं कि यह बढ़ता आंकड़ा दिखाता है कि लोग ऑर्गेनिक फल सब्जियों को लेकर जागरूक हो रहे हैं। वे रेगुलर इनका इस्तेमाल करने लगे हैं। देशभर में ऑर्गेनिक फूड का प्रचलन होना चाहिए, यह हेल्थ के लिए बहुत जरूरी है।
कोरोना काल में वेदप्रकाश ने लोगों के घरों तक सब्जी पहुंचाई। इसके लिए उन्होंने ग्राहकों को वॉट्सऐप ग्रुप में जोड़ना शुरू किया। वॉट्सऐप पर ही ग्राहक डिमांड लिस्ट भेजते थे और वेदप्रकाश उस लिस्ट के हिसाब से सब्जियों के पैकेट तैयार कर होम डिलीवरी करते थे।
2021 में बेचे 20 लाख रुपए के पपीते
वेदप्रकाश को अब माउथ पब्लिसिटी का फायदा मिल रहा है। पिछले साल 2021 में वेदप्रकाश ने जोधपुर में 20 लाख रुपए के ऑर्गेनिक पपीते बेचे। ग्राहकों ने कहा कि उन्होंने कभी भी इतने शानदार और टेस्टी पपीते नहीं खाए। वेदप्रकाश ने कहा कि फ्रूट्स को जल्दी पकाने के लिए दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे में फल दिखते अच्छे हैं, लेकिन उनमें टेस्ट नहीं होता। ये फल शरीर के लिए भी नुकसानदेह होते हैं। ऑर्गेनिक फल-सब्जियां दिखने में भले चमकदार न हों, लेकिन उनकी गुणवत्ता नैचुरल होती है।

गांव में बाजरे के खेत में वेदप्रकाश। फिलहाल बाजरे की कटाई का वक्त चल रहा है। यह बाजरा भी ऑर्गेनिक है। इसमें दवाओं का प्रयोग नहीं किया गया है।
जोधपुर में पहला ऑर्गेनिक फ्रूट वैजिटेबल सप्लाई चेन
वेदप्रकाश की 4 गाड़ियां ऑर्गेनिक फ्रूट वैजिटेबल सप्लाई में लगी हुई हैं। इनमें अलग-अलग एरिया वाइज 8 लोगों का स्टाफ है। रोजाना सुबह 7 बजे से दोपहर 12 बजे तक सप्लाई का काम होता है। जोधपुर का यह पहला ऐसा ऑर्गेनिक फूड सप्लाई चेन है, जो कस्टमर को घर तक डिलीवरी देता है। किसान से सब्जी खरीदकर कस्टमर के घर तक पहुंचाने का कोई चार्ज नहीं लिया जाता। लिहाजा इन सब्जियों के दाम आम आदमी की पहुंच में हैं और साधारण सब्जियों के लगभग ही हैं।
कमाई की परवाह नहीं, सिर्फ शुद्धता पर फोकस
वेदप्रकाश कहते हैं कि ऑर्गेनिक सब्जियां का प्रयोग करने वाले कहते हैं कि उन्हें सब्जियों का ऑरिजनल स्वाद ऑर्गेनिक सब्जियों में ही आता है। इनसे बेतहाशा कमाई नहीं हो सकती, क्योंकि ये सब्जियां खेत में बिना केमिकल, बिना दवा छिड़काव के पैदा होती हैं, खेत में जैविक खाद का ही इस्तेमाल होता है, ऐसे में प्रोडक्शन कम रहता है।
मिनी ट्रैक्टर पर बैठे वेदप्रकाश। पढ़े लिखे होने के कारण उन्होंने हमेशा तकनीक का सहारा लिया और सफल हुए। लॉकडाउन के दौरान वॉट्सऐप पर ग्रुप बनाकर उन्होंने कस्टमर जोड़े।
वेदप्रकाश के घर में अब नमक और मिर्च मसाले भी ऑर्गेनिक ही इस्तेमाल होते हैं। उनके स्टोर में भी ये मसाले मिलते हैं, जिन्हें बड़े पैमाने पर लोग खरीदने लगे हैं। लोगों की रसोई अब ऑर्गेनिक मसालों और सब्जियों से सजी है। आज की तारीख में हेल्थ सबसे बड़ी मांग है और ये मांग वेदप्रकाश पूरी कर रहे हैं।
वेदप्रकाश का कहना है- खेत ने चार भाइयों के पूरे परिवार को जोड़ रखा है। पत्नी देविका खेतों में हाथ बंटाकर खुश हैं। बेटी और दो बेटों को शुद्ध आहार मिल रहा है। चार गायें हैं। गायों को भी ऑर्गेनिक चारा ही मिल रहा है। ऑर्गेनिक खेती न मवेशियों के लिए नुकसानदेह है, न इंसानों के लिए और न धरती मां के लिए। कुल मिलाकर इसे समाजसेवा कह सकते हैं और मेरे ख्याल से अपने परिवार और लोगों की सेहत बनाए रखना फायदे का ही सौदा है।
वेदप्रकाश के स्टोर में मिलने वाली ऑर्गेनिक सब्जियों के दाम आम सब्जियों के दाम से ज्यादा नहीं हैं। उसी भाव में लोगों को हेल्दी ऑर्गेनिक वैजिटेबल मिल रही हैं।

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