3 दिन तक मोर्चरी में पड़ा रहा महिला का शव:पति और बच्चे चक्कर काटते रहे, शव मिला तो अंतिम संस्कार बना चुनौती
बीकानेर
साहब 16 अगस्त दिनभर खेत में कमर तोड़ काम किया था। इसलिए थका हुआ था, जल्दी खाना खाकर लगभग 10 बजे अपने बच्चों राजा (10), गोलू (6) और शिवानी (4) के साथ सो गया था। सुबह लगभग 6 बजे बच्चों ने बताया कि- पापा देखो मम्मी उठ नहीं रही है।
मैं चौंक गया और देखा कि कमरे में पास ही सो रही पत्नी बाहर बेसुध पड़ी है। उसके मुंह से झाग निकल रहा है। मैं तुरंत उसे हॉस्पिटल लेकर भागा। लेकिन, देर हो चुकी थी डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
दैनिक भास्कर को अपनी ये कहानी बताते हुए 32 साल के सजानन्द का गला रुंध गया। उसने कहा कि डॉक्टर ने कहा- मंजुला (30) ने जहर खा कर सुसाइड कर लिया।
ये कहानी है बेबसी और लाचारी की जहां बच्चों को अब मालूम ही नहीं है कि उनकी मां उस रोज सोकर क्यों नहीं उठी।
अपनी पत्नी के शव के इन्तजार में बैठा सजानन्द और उसके बच्चे जिन्हें अंतिम संस्कार के वक्त मालूम चला कि उनकी मां अब इस दुनिया में नहीं है।
3 दिन तक पत्नी के शव का इंतजार करता रहा
बीकानेर के पीबीएम अस्पताल में स्थित मॉर्च्युरी के आगे सजानन्द अपने बच्चों के साथ 3 दिन (16 अगस्त) से चक्कर काट रहा था। कभी मॉर्च्युरी के बाहर तो कभी आसपास की दुकानों पर बच्चों के साथ खड़ा रहता। आखिर, शनिवार को उसकी पत्नी का शव उसे मिल गया था।
दरअसल, उसकी पत्नी मंजुला ने रानी बाजार इंडस्ट्रियल एरिया में रात के अंधेरे में संदिग्ध परिस्थितियों में दम तोड़ दिया था। इसके बाद पुलिस चाहती थी कि मृतक महिला के पीहर से कोई बीकानेर आ जाए तो उनके बयान ले लिए जाएं।
पुलिस का कहना था कि अंतिम संस्कार के बाद किसी ने हत्या का अंदेशा जताया तो शव कहां से लाएंगे? इसी इंतजार में सजानंद की पत्नी का शव अस्पताल की मॉर्च्युरी में और वो खुद तीन बच्चों के साथ मॉर्च्युरी बाहर समय गुजारता रहा।
आखिरकार मृतका के पीहर वालों ने पुलिस को बोल दिया कि हमारे पास बीकानेर आने के लिए रुपए नहीं है, आप वहीं अंतिम संस्कार करवा दें। फिर समाज सेवी आदर्श शर्मा को बुलाया गया, शर्मा ने ही अपने स्तर पर अंतिम संस्कार की व्यवस्था करवाई। सजानन्द और उसके बच्चों ने मंजुला को अंतिम विदाई दी।
सजानन्द अपनी पत्नी और 3 बच्चों के साथ 15 दिन पहले ही बीकानेर आया था। ये हादसा होने के बाद अब वो फिर से अपने गांव बिहार लौट जाएगा।
जय नारायण व्यास कॉलोनी, थानाधिकारी लक्ष्मण सिंह ने बताया कि मृतका मंजुला के पीहर पक्ष को फोन किया था ताकि वहां से आ कर कोई शिकायत देना वाहे तो दे सकें।
लेकिन उन्होंने आने से मना कर दिया कि हम गरीब आदमी हैं आने का किराया ही नहीं है। फिर उसकी बहन को फोन किया उसने भी आने से मना कर दिया। इसलिए 3 दिन बाद शव उसके पति को पोस्टमार्टम करके सौंपा गया।
15 दिन पहले ही पंजाब से बीकानेर आया था
बीकानेर मजदूरी करने आया सजानन्द शनिवार शाम ही रेल से बिहार के लिए चला जाएगा। उसके पास 2 हजार रुपए हैं जो उस ठेकेदार ने दिए हैं, जिसने उसे अपने खेत पर मजदूरी के लिए उसे बुलाया था। सजानन्द 15 दिन पहले ही पंजाब से बीकानेर आया था।
पंजाब में वो किसी के खेत में मजदूरी कर रहा था, इसके बाद एक ठेकेदार ने उसे बीकानेर बुला लिया। यहां भी एक खेत में ही काम कर रहा था। घड़सीसर गांव में स्थित खेत में काम करने के बाद वहीं सो जाता था। 3 दिन पहले गुरुवार सुबह उसकी पत्नी मृत अवस्था में मिली थी।
मंजुला की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हुई थी। सुबह जब परिजनों ने उसे देखा तो वह बेसुध थी और मुंह से झाग निकल रहे थे।
बच्चे अनजान थे कि मां अब नहीं रही
इस हालात से बच्चे पूरी तरह अनजान हैं। मंजूला के तीन बच्चे हैं, जिसमें दो बेटे और एक बेटी है। बेटा राजा 10 साल का है तो दूसरा बेटा गोलू 6 साल का है। एक बेटी शिवानी महज 4 साल की है। ये तीनों पिछले 3 दिन से अपनी मां को नहीं देख पाए। शनिवार को जब देखा तो अंतिम संस्कार में ही देख पाए।
अंतिम संस्कार के भी रुपए नहीं थे
दरअसल, मंजूला के पीहर से कोई भी बीकानेर नहीं आ पाया क्योंकि बिहार से यहां आने के लिए रुपए लगाने पड़ते। गरीब परिवार होने के कारण वो कुछ भी खर्च करने में असमर्थ थे। पुलिस चाहती थी कि पीहर पक्ष की सहमति के बाद ही शव सजानन्द को दिया जाए।
आखिरकार घर वालों ने आने से मना किया तो पुलिस ने सजानन्द को शव सौंप दिया। अब अंतिम संस्कार करवाना भी चुनौती था क्योंकि उसका पैसा भी नहीं था। इस पर पुलिस ने पूर्व पार्षद और समाजसेवी आदर्श शर्मा को फोन किया। आदर्श ने ही मौके पर आकर महिला के शव को श्मशान घाट पहुंचाया और अंतिम संस्कार करवाया।
समाजसेवी ने की मदद
आदर्श ने ही अपने बच्चों के खिलौने लाकर सजानन्द के छोटे बच्चों को दिए। इसके बाद इनके लिए कपड़े और खाने का भी इंतजाम किया। आदर्श ने बताया कि जिस खेत में ये मजदूरी कर रहे थे, वहां के ठेकेदार ने दो हजार रुपए इन लोगों को दिए हैं। जिससे बिहार जाने के लिए टिकट की व्यवस्था हो गई। कुछ खाने पीने का सामान भी दिया है।
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