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बच्चा पैदा करने के लिए रेपिस्ट को पैरोल पर स्टे:हाईकोर्ट ने 15 दिन पत्नी संग रहने की दी थी मंजूरी, सुप्रीम कोर्ट ने रोका

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बच्चा पैदा करने के लिए रेपिस्ट को पैरोल पर स्टे:हाईकोर्ट ने 15 दिन पत्नी संग रहने की दी थी मंजूरी, सुप्रीम कोर्ट ने रोका

खुद का बच्चा पैदा करने के लिए रेपिस्ट को मिली पैरोल को सुप्रीम कोर्ट ने स्टे लगा दिया है। राजस्थान हाईकोर्ट ने 14 अक्टूबर में दिए अपने एक फैसले में गैंगरेप के दोषी को 15 दिन अपनी पत्नी के साथ रहने की इजाजत दी थी।

उस समय यह फैसला काफी चर्चित रहा था। रेपिस्ट को पैरोल पर रिहा करने के खिलाफ राजस्थान सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची और हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी। इस पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है।

सुप्रीम में जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने स्टे ऑर्डर दिया। सरकार की तरफ से सीनियर एडवोकेट मनीष सिंघवी ने पैरवी की। एडवोकेट सिंघवी ने बताया कि सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में 10 नवंबर को अपील दायर की गई थी।

शुक्रवार को याचिका पर पहली सुनवाई हुई। इसमें हमारी तरफ से दलील दी गई कि ‘राइट टू पैरोल’ कोई मौलिक अधिकार नहीं है। राजस्थान में यह पहला फैसला है, जिसमें रेप के किसी दोषी को पैरोल मिली है। राजस्थान के पैरोल रूल्स में रेप या गैंगरेप के मामलों में पैरोल नहीं मिल सकती है। न ही ऐसे दोषियों को ओपन जेल में भेजा जा सकता है। इस पर सर्वोच्च अदालत की खंडपीठ ने पैरोल पर रोक लगाते हुए हाईकोर्ट के आदेश पर स्थगन लगा दिया है।

हाईकोर्ट ने सुनाया था यह फैसला
राहुल की शादी साल 2018 में बृजेश देवी से हुई थी। राहुल की पत्नी बृजेश देवी ने बच्चा पैदा करने के अपने मौलिक एवं संवैधानिक अधिकार का हवाला देते हुए अलवर के DJ कोर्ट में 13 जुलाई 2022 को इमरजेंट पैरोल(आपात पैरोल) याचिका लगाई।

फिर कुछ दिन के इंतजार के बाद 20 जुलाई, 2022 को हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट में लगाई याचिका में 30 दिन की पैरोल देने की मांग की गई, लेकिन हाईकोर्ट ने राहुल को 15 दिन के पैरोल पर छोड़ने का आदेश सुनाया।

ये याचिका राहुल की सजा के ठीक एक महीने बाद लगाई गई। याचिका में कहा गया कि पत्नी को प्रेग्नेंसी या दंपती को वंश बढ़ाने के लिए रोकना संविधान के आर्टिकल 14 और 21 की भावना के खिलाफ होगा। अलवर के DJ कोर्ट में याचिका लगाने के बाद 7 दिन तक सुनवाई का इंतजार किया, फिर इसके बाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की।

आगे पढ़िए…

-हाईकोर्ट में वो बहस, जिसके बाद बृजेश की पत्नी की याचिका पर पैरोल मंजूर हुई?

– सरकार की ओर से पैरोल अर्जी खारिज करने के लिए क्या कहा गया?

– अदालत ने सुनवाई को बाद किन-किन तर्कों को माना और फैसला दिया?

– राजस्थान में इस तरह के पहले मामले के अलावा क्या प्रेग्नेंसी के लिए किसी और केस में भी पैरोल दिया गया है?

विश्राम प्रजापति(पीड़ित के वकील)-​​​​ बृजेश देवी का पति दो साल से जेल में बंद है। उसकी शादी 2018 में हुई थी। वह शादी से खुश है और बच्चा चाहती है। वर्तमान में उसकी कोई संतान नहीं है। बृजेश देवी धार्मिक-सामाजिक और मानवीय परंपरा के चलते वंश वृद्धि करना चाहती है।

नरेंद्र गुर्ज(सरकारी वकील)– पैरोल अर्जी का विरोध करते हुए राजस्थान प्रेजेंस (रिलीज टु पैरोल) रूल्स-2021 को कोर्ट में पेश किया और कहा कि प्रेग्नेंसी के लिए रेप मामलों में पैरोल देने का कोई प्रावधान नहीं है। इस याचिका का कोई आधार ही नहीं है।

प्रजापति– राहुल के दोष में उसकी पत्नी बृजेश की कोई भूमिका नहीं है। बृजेश अपनी शादी को बचाए रखना चाहती है। बच्चे को जन्म देना उसके मौलिक और संवैधानिक अधिकारों में शामिल है।

गुर्जर– यदि कैदी को पैरोल दी गई, तो समाज में अच्छा मैसेज नहीं जाएगा। समाज पर विपरीत प्रभाव भी पड़ेगा। इस आधारहीन याचिका को खारिज करना चाहिए।

प्रजापति– याची बृजेश देवी के पास मां बनने के लिए और कोई दूसरा उचित विकल्प नहीं है। इसके कारण उसके पति को पैरोल पर जेल से रिहा करने की इजाजत दी जाए।

गुर्जर– दोषी POCSO एक्ट में बंद है, जो बहुत गंभीर नेचर का है। कोर्ट को इस संबंध में भी गौर करना चाहिए।

प्रजापति– वैदिक संस्कृति के तहत हिन्दू फिलॉसफी के 16 संस्कारों में गर्भधारण बहुत महत्वपूर्ण संस्कार है। हिंदू दर्शन के अनुसार गर्भाधान यानी गर्भ का धन। वेद और भजनों में भी संतान के लिए बार-बार प्रार्थना की जाती है।

गुर्जर– यदि दोषी को पैरोल पर बाहर छोड़ा गया, तो पीड़िता और आरोपी, दोनों के बीच विवाद और झगड़े तक होने की आशंका है। ऐसी आशंका अलवर कलेक्टर की रिपोर्ट में भी जताई गई है।

शारीरिक मानसिक जरूरतें प्रभावित, प्रेग्नेंसी के लिए पहली बार दी गई पैरोल का हवाला

राजस्थान में POCSO एक्ट में राहुल को पैरोल मिलने का पहला मामला था, लेकिन प्रेग्नेंसी की मांग को लेकर प्रदेश में किसी कैदी को पैरोल पर छोड़ने का ये दूसरा मामला था। राहुल को पैरोल दिलाने के लिए हाईकोर्ट की जोधपुर बेंच के 5 अप्रैल, 2022 के आदेश का हवाला दिया था, इसमें मर्डर के दोषी नन्दलाल को 15 दिन की पैरोल पर छोड़ा गया था।

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