कानपुर के बिकरू कांड के 4 साल पूरे:4 शहीदों के आश्रितों को अब तक नहीं मिली नौकरी, विकास दुबे गैंग की करोड़ों की संपत्ति नहीं हुई सीज
कानपुर
ये शहीद पुलिस वालों की फाइल फोटो है।
कानपुर में 2 जुलाई को हुए बिकरू कांड में 8 पुलिसकर्मी शहीद हो गए। आज भी उस रात याद कर, खाकी वर्दी वाले सिहर उठते हैं। बिकरू कांड ने उत्तर प्रदेश ही नहीं पूरे देश को झकझोर दिया था। लेकिन, चार साल बाद भी बिकरू कांड के शहीदों को इंसाफ नहीं मिला। सबसे बड़ी बात कि शहीदों के आश्रितों को अब तक नौकरी नहीं मिली।
पुलिस की लचर पैरवी से बिकरू कांड से जुड़े मुकदमें छूट रहे हैं। फास्ट ट्रैक कोर्ट में मुकदमें की सुनवाई नहीं हो रही है। चार साल बाद भी पुलिस की जांच पूरी नहीं हो सकी।
विकास दुबे के साम्राज्य को ढहा दिया गया था।
8 पुलिस कर्मी हुए थे शहीद, 4 के आश्रित अब तक नौकरी को भटक रहे
चौबेपुर थाना क्षेत्र के बिकरू गांव में 2 जुलाई 2020 को दबिश देने गई पुलिस पर एनकाउंटर में मारे गए गैंगस्टर ने हमला कर दिया था। पुलिस के विकास दुबे के घर पर छापेमारी से पहले ही विकास दुबे के गैंग ने डिप्टी एसपी समेत 8 पुलिस कर्मियों को गोली से भून डाला था। इसमें तत्कालीन सीओ बिल्हौर देवेंद्र मिश्रा, शिवराजपुर एसओ महेश यादव, मंधना चौकी इंचार्ज अनूप कुमार सिंह, एसआई नेबू लाल, सिपाही जितेंद्र पाल, सुल्तान सिंह, राहुल कुमार, बबलू कुमार शहीद हो गए थे।
शहीद डिप्टी एसपी देवेंद्र मिश्रा की बेटी वैष्णवी मिश्रा को पुलिस विभाग में ओएसडी के पद पर नौकरी मिल गई है। शहीद बबलू कुमार के भाई उमेश को सिपाही के पद नौकरी मिली। शहीद अनूप की पत्नी नीतू और कॉन्स्टेबल राहुल की पत्नी दिव्या को नौकरी मिल गई।
ये पति शहीद सुल्तान सिंह की तस्वीर के साथ उर्मिला वर्मा हैं।
नौकरी के लिए आज तक भटक रहे शहीद के आश्रित: बिकरू कांड चार साल बाद भी एनकाउंटर में मारे गए कॉन्स्टेबल सुल्तान सिंह, जितेंद्र पाल, दरोगा महेश यादव और कॉन्स्टेबल नेबू लाल के आश्रितों को नौकरी की दरकार है। सरकार इनको दरोगा के पद पर नौकरी के लिए टेस्ट और फिजिकल पास करने की शर्त रख दी है। इसके चलते उन्हें नौकरी नहीं मिल पा रही है। उनका कहना है कि जब सभी परीक्षाएं पास ही करनी थी तो आश्रित कोटे से नौकरी मिलने का मतलब ही क्या है?
अब तक करोड़ों की संपत्तियां नहीं हो सकी सीज
बिकरू कांड के चार साल बाद भी पुलिस अब तक गैंगस्टर विकास दुबे और उसके गैंग की अवैध तरीके से कमाई गई करोड़ों अरबों की संपत्तियों को सीज नहीं कर सकी है। इसमें सबसे बड़ा उदाहरण कानपुर स्वरूप नगर स्थित भवन संख्या- 7/148 शर्मा नर्सिंग होम के सामने 1300 वर्ग गज की संपत्ति है। बिकरू कांड के तीन साल बाद मधु राजपूत नाम की महिला ने पुलिस कमिश्नर अखिल कुमार से शिकायत की थी।
महिला ने बताया था कि विकास दुबे ने उनके पिता शत्रुघन राजपूत से जबरन इस प्लॉट का एग्रीमेंट करा लिया था। इसके बाद से उनके पिता गायब हो गए और पूरा परिवार सड़क पर आ गया था। पुलिस कमिश्नर ने मामले की जांच डीसीपी सेंट्रल और फिर वहां से स्वरूप नगर एसीपी को जांच सौंपी गई थी। जांच में साफ हो गया था कि यह संपत्ति विकास दुबे के नाम है।
यह तस्वीर विकास दुबे के गांव बिकरू की है। आज भी उसके घर का मलबा बिखरा पड़ा है।
इसके बाद भी इसे सीज नहीं किया गया है। केवल इस संपत्ति की कीमत ही 100 करोड़ से ज्यादा बताई जा रही है। क्यों कि यह संपत्ति कानपुर के सबसे पॉश इलाके स्वरूप नगर में है। इसके अलावा विकास दुबे और उसके गैंग की कानपुर से लेकर यूपी के कई जिलों और कई राज्यों में फैली है, लेकिन उन्हें अब तक सीज नहीं किया गया है।
फास्ट ट्रैक कोर्ट का दावा हवा-हवाई निकला
बिकरू कांड जैसे जघन्य वारदात के बाद सीएम योगी आदित्यनाथ ने आदेश दिया था कि इस कांड का मुकदमा फास्ट ट्रैक कोर्ट में चलाया जाएगा। इससे कि आरोपियों को जल्द से जल्द कड़ी सजा दिलाई जा सके, लेकिन चार साल बीत जाने के बाद भी फास्ट ट्रैक कोर्ट में इस मुकदमें की सुनवाई नहीं हो सकी। इससे यह बात तो साफ हो गई है कि चार साल बाद भी केस में सिर्फ सुनवाई चल रही है। अन्य केसों की तरह बिकरू कांड के आरोपियों को कड़ी सजा दिलाने में सालों बीत जाएंगे।
बिकरू कांड सेल भंग, लचर पैरवी से छूट रहे मुकदमें
बिकरू कांड की चौथी बरसी पर पड़ताल की गई तो सबसे चौंकाने वाली बात जो सामने आई वह बिकरू कांड सेल ही भंग कर दी गई है। पुलिस लाइन में बनी बिकरू कांड सेल में महीनों से ताला पड़ा हुआ है। डीसीपी वेस्ट विजय ढुल समेत अन्य अफसरों से बिकरू कांड से संबंधित अपडेट जानकारी मांगी गई तो कोई भी अफसर इसे उपलब्ध नहीं करा सका। आखिर पुलिस ने मुकदमों की पैरवी करके किस स्टेज पर पहुंचा दिया है। अब तक पुलिस ने चार साल में क्या कार्रवाई की है।
लाल घेरे में जय बाजपेई है।
केस-1 : खजांची जयकांत बाजपेई दो मुकदमों में बरी
बिकरू कांड के मुख्य अभियुक्त विकास दुबे का खजांची जयकांत बाजपेई को पुलिस की लचर पैरवी के चलते दो मुकदमों में बरी कर दिया गया। पहला मुकदमा झूठा शपथ पत्र देकर लाइसेंस लेने का मामला था। बिकरू कांड के बाद बजरिया थाने में 19 सितंबर 2020 को तत्कालीन थाना प्रभारी राममूर्ति यादव ने इस संबंध में एफआईआर दर्ज कराई थी। आरोप था कि परिवार का अपराधिक इतिहास छिपाकर शस्त्र लाइसेंस हासिल किया था। इस मामले में कानपुर की विशेष मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की कोर्ट ने इस केस में साक्ष्यों के अभाव में बरी किया था।
केस-2 : बजरिया थाने में ही खजांची जयकांत के खिलाफ दरोगा अवनीश कुमार वर्मा ने एक आर्म्स एक्ट के तहत एक और रिपोर्ट दर्ज कराई थी। इसमें कहा गया था कि जयकांड के रडार पर आने के बाद उसके घर दबिश देकर असलहों की जांच की गई तो सामने आया कि दबिश के दौरान उसके घर से दबिश दी तो सामने आया कि उसके शस्त्र लाइसेंस पर 65 कारतूस आवंटित हैं, लेकिन उसके पास कारतूस एक भी नहीं थे। इस पर कारतूस के दुर्पयोग पर उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी।
यह विकास दुबे की पत्नी ऋचा दुबे है।
केस-3 : पुलिस पर हमला और शस्त्र अधिनियम में विपुल दोषमुक्त
बिकरू कांड में फरार चल रहे आरोपी विपुल दुबे को सजेती पुलिस ने 6 जनवरी 2021 को अरेस्ट किया था। उसके खिलाफ पुलिस पर हमला और शस्त्र अधिनियम की रिपोर्ट दर्ज की गई थी। आरोप था कि पुलिस के घेराबंदी करते ही पुलिस पर फायर झोंक दिया था। जांच के दौरान उसके पास तमंचा और कारतूस भी बरामद किया था। दोनों केस की विवेचना यानी जांच में खामियों के चलते दोनों ही केस में कोर्ट ने विपुल दुबे को बरी कर दिया था। इससे एक बात तो साफ हो गई थी कि खाकी से जुड़ा जघन्य कांड होने के बाद भी पुलिस इससे जुड़े केसों की संजीदगी से जांच नहीं कर रहा है।
केस-4 : जयकांड के भाइयों से गुंडा एक्ट खत्म
गैंगस्टर विकास दुबे के खजांची और उसके भाइयों पर नजीराबाद पुलिस ने गुंडा एक्ट की कार्रवाई की थी। लेकिन कानपुर में तैनात रहे आईपीएस आनंद प्रकाश तिवारी ने 2023 में एक जांच के बाद खजांची जयकांत बाजपेई के तीन भाइयों रजयकांत, शोभित और अजयकांत से गुंडा एक्ट खत्म कर दिया। इसके साथ ही थाने की टॉप-10 अपराधियों की सूची से भी इन सभी का नाम हटा दिया गया है।
विकास दुबे के घर का सीन, जब उसके यहां बुलडोजर चलवाया गया था।
केस-5 : मनु पांडेय के खिलाफ अब तक दाखिल नहीं हुई चार्जशीट
विकास दुबे के मामा प्रेम पांडेय की पुत्रवधू और शशिकांत की पत्नी मनु पांडेय को पुलिस ने बिकरू कांड में न तो आरोपित बनाया और न ही उसे गवाह बनाया। जबकि घटना को लेकर मनु पांडेय की कॉल रिकॉर्डिंग के ऑडियो वायरल हुए थे। तीन साल तक पुलिस मनु को लेकर मौन रही मगर अंदर ही अंदर विवेचना जारी रही। इस दौरान पुलिस ने मनु को एक मामले में सरकारी गवाह भी बना दिया था। इसके बाद एकाएक मनु के खिलाफ पुलिस ने कार्रवाई तेज कर दी।
उसके खिलाफ अचानक तीन साल बाद 17 जुलाई 2023 को माती गैंगस्टर कोर्ट से पुलिस ने गैर जमानती वारंट हासिल किया। 14 सितम्बर 2023 को पुलिस ने कोर्ट से धारा 82 (भगोड़ा घोषित) करने के आदेश प्राप्त किए। 14 मई 2024 को मनु के खिलाफ कोर्ट से धारा 83 (कुर्की) के आदेश भी प्राप्त कर लिए। अब पुलिस मनु की संपत्ति कुर्क करने की कार्रवाई करेगी। वहीं, दूसरी तरफ मनु पांडेय के खिलाफ चार्जशीट तैयार हो गई है। जांच के लिए विवेचक ने सीओ के पास सबमिट कर दी है। जल्द ही कोर्ट में चार्जशीट दाखिल होगी।
यह विकास दुबे की दो तस्वीरें हैं।
विकास दुबे की 64 मुकदमों की हिस्ट्रीशीट
विकास दुबे, जिसे विकास पंडित के नाम से भी जाना जाता है। उत्तर प्रदेश में कानपुर देहात में स्थित चौबेपुर के बिकरू गांव का रहने वाला था। वह गैंगस्टर से नेता बना था। उसके खिलाफ पहला आपराधिक मामला 1990 के दशक की शुरुआत में दर्ज किया गया था। 2020 तक उनके नाम पर 64 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज थे।
जुलाई 2020 तक, वह राज्य के एक मंत्री की हत्या से जुड़ा था। एक पुलिस स्टेशन के अंदर, और एक अन्य घटना में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या का मुख्य आरोपी था। विकास दुबे पर पुलिस ने 5 लाख का इनाम भी रखा था। अपने राजनीतिक संबंधों के कारण, विकास दुबे को अधिकांश हत्याओं के लिए बरी कर दिया गया था।
गांव में की गुंडई फिर खड़ा कर दिया गैंग
एनकाउंटर में मारा गया विकास दुबे ने अपनी युवावस्था में गांव से दबंगई और मारपीट का सिलसिला शुरू हुआ और फिर उसका रसूख इस कदर बढ़ता चला गया कि उसने अपना गैंग खड़ा कर लिया। वह कई आपराधिक गतिविधियों के लिए जिम्मेदार था, जिसमें हत्या और भूमि हथियाना शामिल था। उसके खिलाफ पहला मामला 1990 में हत्या के लिए दर्ज किया गया था। दुबे जल्द ही कानपुर में सबसे वांछित अपराधियों में से एक बन गया। वह राजनीतिज्ञ हरिकिशन श्रीवास्तव से जुड़ा, जो बहुजन समाज पार्टी (बसपा) में थे।
दुबे भी, 1995-96 में बसपा में शामिल हो गया और अपने बाहुबल से जिला स्तर पर चुनाव जीता। उसकी पत्नी ऋचा दुबे ने भी स्थानीय निकायों के चुनाव जीते हैं। वे समाजवादी पार्टी की सदस्य थी। दुबे 2001 में शिवली पुलिस स्टेशन में भाजपा नेता संतोष शुक्ला, जो उस समय राज्य मंत्री थे, की हत्या का प्राथमिक अभियुक्त था। दुबे को पहले गिरफ्तार किया गया, लेकिन बाद में कथित राजनीतिक दबाव के कारण बरी कर दिया गया। दुबे को विकास पंडित के नाम से जाना जाता है, जिसका नाम 1999 की फिल्म अर्जुन पंडित के शीर्षक चरित्र के नाम पर रखा गया था। उसे वैकल्पिक रूप से इस नाम से जाना जाता था या बस पंडित के रूप में जाना जाता था।
उज्जैन से विकास दुबे की गिरफ्तारी हुई थी।
10 जुलाई 2020- एनकाउंटर में मारा गया विकास दुबे
2 जुलाई 2020 को, दुबे और उनके लोगों को गिरफ्तार करने के प्रयास के दौरान, एक पुलिस अधीक्षक सहित आठ पुलिसकर्मी मारे गए थे। सात पुलिस कर्मी घायल हो गए थे। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से पता चला है कि डीएसपी की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। अन्य पुलिस के पास अलग-अलग हथियारों के घाव थे, जो एक सोची समझी साजिश के तहत हमले की जानकारी दे रहे थे।
बाद में पुलिस ने एके -47 राइफल और एक इंसास राइफल सहित अन्य हथियार बरामद किए। बिकरू कांड के बाद जांच में सामने आया कि विकास दुबे ने गैंग के 60 लोगों के साथ पुलिस टीम पर घात लगाकर हमला किया, जबकि पुलिस वालों की संख्या सिर्फ 30 थी।
कॉल रिकॉर्ड से पता चला कि दुबे कई पुलिस वालों के संपर्क में था, जिन्होंने उसे जानकारी लीक की थी। इसके बाद, कानपुर प्रशासन ने उसके घर को उसी बुलडोजर से ढहा दिया, जिसका इस्तेमाल दुबे और उनके लोगों ने हमले के दौरान किया था। तब दुबे और उसके साथियों को गिरफ्तार करने के लिए 25 पुलिस की टीमें बनाई गई थीं। दुबे को 9 जुलाई 2020 को मध्य प्रदेश के उज्जैन में पकड़ा गया। इसके बाद कानपुर के सचेंडी में उसकी गाड़ी पलटी और भागने के प्रयास में उसका एनकाउंटर कर दिया गया।
कानपुर-दिल्ली हाईवे पर विकास दुबे का एनकाउंटर किया गया।
विकास दुबे की लव स्टोरी- दोस्त की बहन से शादी की
गैंगस्टर ने कानपुर में 20 साल पहले दोस्त की बहन रिचा निगम के साथ भागकर की थी शादी। रिचा मध्य प्रदेश के शहडोल के बुढ़ार कस्बे की रहने वाली थी। इस शादी से रिचा के पिता और घरवाले खिलाफ थे। सास-ससुर ने जब विरोध किया तो विकास ने उनकी कनपटी पर पिस्टल तान दी थी।
विकास दुबे ने भागकर शादी की थी।
विकास के साले ज्ञानेंद्र ने पुलिस को बताया था कि वे और विकास 25 साल पहले अच्छे दोस्त थे। दो आपराधिक केस में उसका विकास के साथ नाम आने के बाद वह कानपुर से बाहर चला गया। करीब 24 साल पहले विकास ने उसकी बहन रिचा निगम से लवमैरिज की थी। इसके बाद उसका विकास और रिचा से कोई संबंध नहीं था। 10-15 साल से विकास से बात भी नहीं हुई थी। ज्ञानेंद्र का कहना है कि विकास ने उसके कानपुर स्थित मकान पर कब्जा कर लिया था। बड़ी मुश्किल से वह फिर से कब्जा कर पाया है।
पत्नी और बच्चे- विकास के परिवार में उसकी पत्नी और उसके दो बेटे हैं। उसकी शादी करीब 24 साल पहले ऋचा से हुई थी। ऋचा दुबे ने स्थानीय राजनीति में भी अपनी जगह बनाने की कोशिश की थी और स्थानीय चुनाव लड़े थे। विकास के दो बेटे आकाश और शानू हैं। दोनों लखनऊ में अपनी मां के साथ रहते हैं।
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