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7 साल की आयशा ने रखा पहला रोजा, परिवार और समाज ने दी मुबारकबाद

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बीकानेर। रमजान के पाक महीने की शुरुआत के साथ ही पूरे देशभर में इबादत और रोजों की रौनक देखने को मिल रही है। इसी कड़ी में बीकानेर की 7 वर्षीय आयशा ने पहली बार रोजा रखकर अपने परिवार और समाज का दिल जीत लिया। आयशा, जो कि टैगोर मेमोरियल स्कूल की कक्षा 1 की छात्रा है, ने अपने बचपन में ही इस पाक इबादत को अपनाने का फैसला किया, जिससे परिवार में खुशी का माहौल बन गया।

सुबह सेहरी से लेकर इफ्तार तक निभाया रोजे का हर नियम

आयशा के पिता अब्दुल रहमान और माता जरीना बानो के अनुसार, आयशा काफी समय से रोजे रखने की इच्छा जता रही थी। इस बार रमजान की शुरुआत के साथ ही उसने पहला रोजा रखने की जिद की। सुबह सहरी के समय परिवार के साथ उठकर उसने रोजे की नियत की और पूरे दिन बिना पानी और खाने के अपना पहला रोजा पूरा किया।

आयशा की मां जरीना बानो ने बताया कि शुरू में उन्हें लगा कि इतनी छोटी बच्ची के लिए पूरा दिन बिना खाए-पिए रहना मुश्किल होगा, लेकिन आयशा ने पूरे धैर्य और समर्पण के साथ अपना रोजा निभाया। दिनभर वह कुरआन की तिलावत करती रही और इफ्तार के समय पूरे उत्साह के साथ रोजा खोला।

परिवार और समाज ने दी शुभकामनाएं

आयशा की इस छोटी उम्र में रोजा रखने की खबर सुनकर परिवार और आसपास के लोगों ने उसकी हिम्मत की सराहना की। आयशा के दादा-दादी और अन्य परिजनों ने उसे ढेर सारी दुआएं दीं। पड़ोसियों और रिश्तेदारों ने भी इस मौके पर उसे बधाइयां दीं और कहा कि इतनी छोटी उम्र में इस तरह का संकल्प लेना वाकई प्रेरणादायक है।

स्कूल में भी चर्चा का विषय बनी आयशा

टैगोर मेमोरियल स्कूल में आयशा के इस फैसले की खूब चर्चा हो रही है। स्कूल के शिक्षकों ने भी उसकी हिम्मत को सराहा और कहा कि यह अनुशासन और आध्यात्मिकता का एक बेहतरीन उदाहरण है।

रमजान का पाक महीना और बच्चों की भागीदारी

रमजान सिर्फ एक इबादत ही नहीं, बल्कि यह आत्म-संयम, धैर्य और समाज के प्रति जागरूकता का भी संदेश देता है। आयशा जैसी नन्हीं बच्ची का रोजा रखना यह दर्शाता है कि इस्लाम की परंपराएं और संस्कार बचपन से ही बच्चों में रच-बस जाते हैं।

भविष्य में भी जारी रहेगा यह सिलसिला

आयशा के माता-पिता का कहना है कि अगर वह खुद से आगे भी रोजे रखना चाहेगी, तो वे उसका समर्थन करेंगे। उन्होंने कहा, “हम चाहते हैं कि आयशा अपनी पढ़ाई और अन्य गतिविधियों के साथ-साथ धार्मिक मूल्यों को भी अपनाए और इन्हें संतुलित रखे।”

आयशा की इस पहल से समाज में एक सकारात्मक संदेश गया है और उसकी लगन ने न सिर्फ उसके परिवार बल्कि पूरे मोहल्ले को गौरवान्वित कर दिया है।

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