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7 दिन में पाकिस्तान को हरा सकता है भारत:बिना एक भी गोली चलाए पाकिस्तान को घुटनों पर ला सकते हैं हम

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अमेरिकी इंटेलिजेंस रिपोर्ट का मानना है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाला भारत पाकिस्तान के उकसावे पर सैन्य कार्रवाई कर सकता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद भी हाल ही में कह चुके हैं कि भारतीय सेना चाहे तो सिर्फ 7 दिन में पाकिस्तान को हरा सकती है।

लेकिन क्या वाकई में ये संभव है?

भारत और पाकिस्तान दोनों ही परमाणु हथियारों से लैस हैं। सैन्य शक्ति में दोनों ही ज्यादा मजबूत होने का दावा करते हैं।

फिर सवाल सिर्फ सैन्य शक्ति का ही नहीं है…आखिर पाकिस्तान को 7 दिन में हराने का मतलब क्या होगा?

क्या इसका मतलब इस्लामाबाद में तिरंगा फहराना होगा?

लेकिन इस हिसाब से देखें तो क्या बगदाद में अमेरिकी झंडा फहराए जाने के बाद इराक हार गया था? नहीं…, इसके बाद भी लंबे समय तक हजारों अमेरिकी फौजियों को इराकी मिलिशिया ग्रुप्स से झड़प में जान गंवानी पड़ी।

एक्सपर्ट्स का मानना है कि आज की दुनिया में जटिल ग्लोबल इकोनॉमिक और स्ट्रैटेजिक रिश्तों के चलते सीधे युद्ध में किसी एक देश का हारना उस तरह संभव नहीं है, जैसा द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जर्मनी या जापान के साथ हुआ था।

तो क्या NCC डे पर अपने संबोधन में जब PM नरेंद्र मोदी ने कहा कि 7 दिन में पाकिस्तान को हराया जा सकता है…तो वो झूठ बोल रहे थे?

नहीं…, वो झूठ नहीं बोल रहे थे। एक्सपर्ट्स का मानना है कि पाकिस्तान पर 7 दिन में जीत हासिल की जा सकती है…बस, जीत के मायने पहले तय करने पड़ेंगे। अगर भारत चाहे तो बिना एक भी गोली चलाए पाकिस्तान को हराया जा सकता है।

एक्सपर्ट्स का कहना है कि मॉडर्न वॉरफेयर के मायने आज बदल गए है। 4 सवालों में समझिए, भारत और पाकिस्तान के बीच एक आर्म्ड कॉन्फ्लिक्ट यानी सैन्य संघर्ष के पीछे का गणित…

पहला अहम सवाल…क्या 7 दिन में किसी युद्ध का नतीजा तय हो सकता है?

हां, संभव है…1971 की जंग भारत ने 13 दिन में जीती थी

16 दिसंबर, 1971 की ये तस्वीर पाकिस्तान की हार का प्रतीक बन चुकी है। तस्वीर में पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी सरेंडर के इंस्ट्रुमेंट पर दस्तखत करते दिख रहे हैं।

16 दिसंबर, 1971 की ये तस्वीर पाकिस्तान की हार का प्रतीक बन चुकी है। तस्वीर में पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी सरेंडर के इंस्ट्रुमेंट पर दस्तखत करते दिख रहे हैं।

भारत ने अपने इतिहास में दो पड़ोसियों के साथ ऐसे युद्ध लड़े हैं जो एकतरफा निर्णायक माने जाते हैं।

पहला युद्ध 1962 में चीन से हुआ था। ये लड़ाई रुक-रुक कर करीब एक महीने तक चली थी। अंत में चीन ने युद्ध विराम की पेशकश की थी जिसे भारत ने स्वीकार कर लिया था। इसे ही इंटरनेशनल कम्युनिटी में भारत की हार के तौर पर देखा जाता है।

ठीक इसी सिद्धांत पर 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध में भारत जीता था। युद्ध 3 दिसंबर, 1971 को शुरू हुआ और 16 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान ने सरेंडर कर दिया था।

लेकिन ढाका में सरेंडर के बावजूद पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तान से जंग जारी थी। उस वक्त प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान को युद्ध विराम की पेशकश की, जिसे पाकिस्तान ने स्वीकार कर लिया था।

दूसरा सवाल…कब माना जाए कि युद्ध में जीत हो गई?

सिर्फ सरेंडर करने से युद्ध खत्म हो जाए जरूरी नहीं

ये उस सरेंडर इंस्ट्रुमेंट का आखिरी पन्ना है जिस पर 8 मई, 1945 को जर्मनी की ओर से फील्ड मार्शल विल्हेल्म काइटेल ने हस्ताक्षर किए थे।

ये उस सरेंडर इंस्ट्रुमेंट का आखिरी पन्ना है जिस पर 8 मई, 1945 को जर्मनी की ओर से फील्ड मार्शल विल्हेल्म काइटेल ने हस्ताक्षर किए थे।

पुराने जमाने में दो राजाओं के बीच युद्ध का नतीजा तब निश्चित माना जाता था जब दोनों में से एक राजा की युद्ध में मौत हो जाए या वो सरेंडर कर दे।

द्वितीय विश्व युद्ध तक आते-आते राजा या राष्ट्राध्यक्ष के मरने या सरेंडर करने पर युद्ध पूरी तरह खत्म नहीं होते थे।

द्वितीय विश्व युद्ध में जर्मनी के तानाशाह अडॉल्फ हिटलर ने 30 अप्रैल, 1945 को आत्महत्या कर ली थी। मगर युद्ध बंद नहीं हुआ।

8 मई, 1945 को बर्लिन में जर्मन नेतृत्व ने सरेंडर कर दिया। मगर इसके बाद भी यूरोप के कई हिस्सों में युद्ध जारी था।

जापान ने 2 सितंबर, 1945 को आधिकारिक रूप से सरेंडर कर दिया था, लेकिन इसके बाद भी एशिया के अलग-अलग हिस्सों में जापानी सेना युद्ध कर रही थी।

ये तस्वीर 2 सितंबर, 1945 की है। अमेरिकी युद्धपोत यूएसएस मिसौरी पर जापान के विदेश मंत्री मामोरू शिगेमित्सु सरेंडर के इंस्ट्रुमेंट पर हस्ताक्षर कर रहे हैं।

ये तस्वीर 2 सितंबर, 1945 की है। अमेरिकी युद्धपोत यूएसएस मिसौरी पर जापान के विदेश मंत्री मामोरू शिगेमित्सु सरेंडर के इंस्ट्रुमेंट पर हस्ताक्षर कर रहे हैं।

25 अक्टूबर, 1945 में ताइवान में अंतत: जापानी सेना की अंतिम टुकड़ी ने सरेंडर किया था।

यहां तक कि वियतनाम, अफगानिस्तान और इराक में अमेरिका के साथ ऐसा ही हुआ। कहीं भी युद्ध का निर्णायक परिणाम नहीं आ पाया। अंतत: अमेरिका को सैनिक वापस बुलाने पड़े या अपनी मौजूदगी घटानी पड़ी।

जंग से पहले तय करो लक्ष्य…पहला मौका मिलते ही जीत डिक्लेयर करो

आधुनिक वॉरफेयर में जीत को डिफाइन करना काफी मुश्किल हो जाता है। सैन्य संघर्ष चाहे लंबा हो या कुछ घंटों का…दोनों पक्ष अपनी-अपनी जीत का दावा करते हैं।

भारत ने ऐसा हाल ही में गलवान घाटी में चीनी सेना के साथ हुई झड़प और पाकिस्तान के बालाकोट पर एयर स्ट्राइक के बाद देखा है।

गलवान घाटी में चीन और भारत के सैनिकों की झड़प हुई। दोनों ही देशों में मीडिया ने ये दावा किया कि दूसरे पक्ष को ज्यादा नुकसान हुआ है।

बालाकोट में एयर स्ट्राइक को भारत अपनी जीत मानता है, लेकिन इसके बाद अगले दिन की झड़प में जब भारतीय पायलट अभिनंदन पाकिस्तान में बंदी बना लिए गए तो पाकिस्तान ने इसे अपनी जीत बता दिया।

एक्सपर्ट्स के मुताबिक कारगिल की जंग में भारत सरकार की स्ट्रैटेजिक सूझ-बूझ बेहतर थी। इस जंग में पाकिस्तान ने LOC क्रॉस की। पाकिस्तानी सेना को वापस LOC के पार खदेड़ते ही भारत सरकार ने जीत डिक्लेयर कर दी।

कारगिल की जंग में भारत की जीत को सामरिक ही नहीं, रणनीतिक जीत भी माना जाता है।

कारगिल की जंग में भारत की जीत को सामरिक ही नहीं, रणनीतिक जीत भी माना जाता है।

यानी जंग या किसी भी आर्म्ड कॉन्फ्लिक्ट से पहले ये तय किया जाना जरूरी है कि इसका मकसद क्या है। जल्द से जल्द इस मकसद के पूरा होने की घोषणा कर जीत डिक्लेयर कर दी जाए।

तीसरा सवाल…क्या भारत, पाकिस्तान से सैन्य संघर्ष कर सकता है?

भारत के पास सैन्य ताकत ज्यादा ही नहीं, ज्यादा आधुनिक भी है

अब तक भारत और पाकिस्तान के बीच हर युद्ध या संघर्ष, पाकिस्तान के उकसावे का ही नतीजा रहा है।

अमेरिकी इंटेलिजेंस एजेंसियों की एनुअल थ्रेट असेसमेंट रिपोर्ट के मुताबिक अब ऐसे किसी उकसावे पर भारत के सैन्य कार्रवाई करने की संभावना ज्यादा है।

सैन्य ताकत के मामले में भारत पाकिस्तान से न सिर्फ संख्याबल में आगे है, बल्कि ज्यादा आधुनिक भी है।

भारत के पास न्यूक्लियर सबमरीन समेत कई आधुनिक हथियार

INS अरिहंत की वजह से भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल हुआ है जिनके पास न्यूक्लियर सबमरीन की ताकत है।

INS अरिहंत की वजह से भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल हुआ है जिनके पास न्यूक्लियर सबमरीन की ताकत है।

भारत ने 2016 में INS अरिहंत सबमरीन को कमीशन किया। 2018 से इस सबमरीन को ऑपरेशन में भी लगा दिया गया। यह सबमरीन न्यूक्लियर मिसाइल दागने में सक्षम है।

इसके अलावा युद्ध की स्थिति में इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर समेत कई मोर्चों पर भारत के पास पाकिस्तान से ज्यादा आधुनिक तकनीक है।

न्यूक्लियर हथियारों का इस्तेमाल कोई नहीं चाहेगा

भारत और पाकिस्तान दोनों ने ही आधिकारिक रूप से कभी खुलासा नहीं किया है कि न्यूक्लियर जखीरे में कुल कितने हथियार हैं।

भारत और पाकिस्तान दोनों ने ही आधिकारिक रूप से कभी खुलासा नहीं किया है कि न्यूक्लियर जखीरे में कुल कितने हथियार हैं।

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक पाकिस्तान के परमाणु जखीरे में 140 से 150 तक वॉरहेड हैं, जबकि भारत के पास 110-120 तक परमाणु वॉरहेड हैं।

न्यूक्लियर वॉरफेयर न तो पाकिस्तान चाहेगा और ना ही भारत। भारत पहले हमला न करने की नीति का पालन करता है। लेकिन पाकिस्तान पहले न्यूक्लियर हमला करे तो भी भारत अरिहंत सबमरीन के जरिये सेकेंड स्ट्राइक केपेबिलिटी रखता है।

यानी भारत परमाणु हमले का जवाब देने की क्षमता रखता है। लेकिन पाकिस्तान के पास अभी ये क्षमता नहीं है।

चौथा सवाल…क्या पाकिस्तान को हराने के लिए जंग जरूरी है?

पाकिस्तान आर्थिक मोर्चे पर सबसे कमजोर…एक झटका ही गिरा सकता है

कराची में सब्सिडी रेट पर मिल रहे आटे के लिए लोगों की ये भीड़ बता रही है कि पाकिस्तान में आर्थिक संकट की आंच आम जनता तक पहुंच चुकी है।

कराची में सब्सिडी रेट पर मिल रहे आटे के लिए लोगों की ये भीड़ बता रही है कि पाकिस्तान में आर्थिक संकट की आंच आम जनता तक पहुंच चुकी है।

पाकिस्तान पर विदेशी कर्ज अभी 11 हजार करोड़ डॉलर से भी ज्यादा है। लगातार राजनीतिक अस्थिरता के कारण पाकिस्तान की इकोनॉमी की हालत खराब है।

पूर्व सैन्य अधिकारी व नेशनल इंटेलीजेंस ग्रिड (NATGRID) के पहले CEO रघु रमन मानते हैं कि अगर पाकिस्तान से आर्थिक मोर्चे पर सख्ती बरती जाए तो बिना एक भी गोली चलाए उसे हराया जा सकता है।

एक मीडिया हाउस के लिए लिखे आर्टिकल में रघु रमन कहते हैं कि भारत का ग्लोबल इकोनॉमिक सिनैरियो में प्रभाव ज्यादा है।

रफाल बनाने वाली फ्रांसीसी कंपनी दैसो हो या फिर अमेरिकी कंपनी बोइंग…ये सभी भारत के बड़े ऑर्डर्स पर काफी हद तक निर्भर करते हैं।

अगर भारत अपने इस प्रभाव को पाकिस्तान के विरुद्ध इस्तेमाल करे तो वो उन बाजारों में हालात बदल सकता है जहां या तो पाकिस्तान अपने उत्पाद बेचता है या जहां से पाकिस्तान उत्पाद खरीदता है।

यही नहीं, भारतीय जनता उन कंपनियों का बहिष्कार कर सकती है जो भारत के साथ पाकिस्तान में भी बिजनेस करती हैं।

आर्थिक मोर्चे पर कमजोर पाकिस्तान में सेना भले ही भारत से कॉन्फ्लिक्ट चाहे, लेकिन जनता उसके खिलाफ ही रहेगी।

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