90 साल के सोहनराज बोले- देवदूत घर का रास्ता भूले:अब संथारा लेना ही उचित; 17 दिन पहले त्याग दिया अन्न
4 जनवरी को संथारा लेने वाले पाली शहर के वीडी नगर निवासी सोहनराज चोपड़ा।
90 साल के अनाज व्यापारी सोहनराज चोपड़ा ने 22 साल पहले मां के निधन पर संथारा का संकल्प लिया था। 90वें जन्मदिन पर उन्होंने अपने संकल्प को निभाना शुरू किया। 4 जनवरी से सोहनराज ने अन्न त्याग दिया। 21 जनवरी को संथारा संकल्प का 17वां दिन है।
पाली के वीडी नगर में रहने वाले व्यापारी सोहनराज चोपड़ा पुत्र गणेशमल चोपड़ा संथारा संकल्प का पालन कर रहे हैं। 90 साल की उम्र तक उन्होंने स्वस्थ जीवन जिया और अभी भी स्वस्थ हैं। वे कहते हैं कि मां के निधन पर ही सोच लिया था कि अगर 90 साल तक जिया तो संथारा लेकर देह त्याग करूंगा। अब वे धर्म-ध्यान में लगे हैं।
उन्होंने कहा- इस संसारिक जीवन में जो काम करने चाहिए थे वे सारे पूरे हो गए हैं। लगता है कि देवदूत मेरे घर का रास्ता भूल गए हैं। इसलिए संथारा लेना ही उचित समझा।
पाली के वीडी नगर निवासी संथारा लेने वाले सोहनराज चोपड़ा के घर पर लगा 90 साल के होने पर लगाया गया हैप्पी बर्ड थे का पोस्टर।
मां के देहांत पर 22 साल पहले लिया था संकल्प
आचार्यश्री महाश्रमण के शिष्य मुनि सुमति कुमार से 4 जनवरी को तिविहार प्रत्याख्यान के साथ सोहनराज चोपड़ा ने संथारा ग्रहण कराया। सोहनराज की पत्नी मैथी देवी का 57 साल की उम्र में वर्ष 1992 में देहांत हो गया था।
तब से उन्होंने काम-काज अपने बेटों महावीर और पूनमचंद को संभला दिया और धर्म-ध्यान में लग गए। वर्ष 2002 में उनकी मां रूपी देवी का देहांत हो गया। तब उन्होंने कहा था- पत्नी और मां दोनों इस संसारिक जीवन को छोड़कर चले गए हैं। अगर मैं 90 साल से ज्यादा जीया तो संथारा ले लूंगा। अपनी इस इच्छा से उन्होंने अपने बेटों सहित अन्य परिवार के सदस्यों को इस संकल्प के बारे में बताया। परिवार ने उनके संकल्प का सम्मान किया।
पाली के वीडी नगर में सोहनराज चोपड़ा के घर के बाहर सजाया गया पंडाल।
24 घंटे घर में चल रहे धार्मिक कार्यक्रम
मुनि सुमति कुमार, मुनि देवार्य के नेतृत्व में सोहनराज चोपड़ा के घर 4 जनवरी से 24 घंटे धर्म, ध्यान चल रहा है। माला जप, सामयिक, ध्यान, जप की साधना के साथ कर्म निर्जरा का उपक्रम कर रहे हैं। मुनिश्री सुमति कुमार व सहवर्ती संत भी नियमित रूप से संथारा साधक सोहनराज को दर्शन देकर आगामी यात्रा को मोक्षगामी बनाने की दिशा में प्रेरणास्रोत के रूप में सहयोगी बने हुए हैं।
4 जनवरी को संथारा ग्रहण करने वाले 90 साल के सोहनराज चोपड़ा जैन साधु संतों के सान्निध्य में धर्म ध्यान करते हुए।
बेटों से बोले- मेरी मौत पर शोक मत मनाना
संथारा साधक सोहनराज चोपड़ा ने अपने बेटों और परिजनों को साफ शब्दों में कहा- मेरे देहांत के बाद रुढ़ीवादी परंपराराओं से दूर रहना। मेरे नाम का उल्लेख करते हुए कोई काम नहीं करना और किसी भी प्रकार के आडम्बर का प्रदर्शन मत करना।
उन्होंने अपनी शारीरिक अवस्था क्षीण हो जाने पर चौविहार संथारा का प्रत्याख्यान करवाने के साथ ही पार्थिव देह को जैन धर्म के अनुसार अधिक समय तक नहीं रोकने व शोक आदि नहीं रखने की हिदायत भी दी।
सोहनराज चोपड़ा के घर पर धर्म ध्यान में करती महिलाएं व अन्य सदस्य।
90 साल तक ऐसे स्वस्थ रहे चोपड़ा
सोहनराज के बेटे पूनमचंद ने बताया- अपने जीवन काल में उनके पिता सोहनराज ने संयमित जीवन जिया। सूरज ढलने के बाद भोजन ग्रहण नहीं करते थे। मिठाई ज्यादा नहीं खाते थे। रोजाना योग करते थे और वॉकिंग पर जाना भी उनकी जीवनचर्या का हिस्सा था। वे कहते हैं कि हमें जिंदा रहने के लिए भोजन करना होता है। पेट भर भोजन करने से शरीर का नुकसान ही होता है।
संथारा ग्रहण करने वाले सोहनराज चोपड़ा के दो बेटे और छह बेटियां हैं। महावीर चोपड़ा और पूनमचंद चोपड़ा व्यापार संभाल रहे हैं। पोते-पोतियों और दोहिता-दोहितों से भरा पूरा परिवार सोहनलाल के संकल्प में प्रार्थना कर साथ निभा रहा है।
सोहनराज मेहता के घर पर धर्म ध्यान में करती महिलाएं।
जैन संत बोले- जैन धर्म में संथारा एक साधना
जैन संत मुनि देवार्य ने बताया- जैन धर्म में संथारा एक साधना है। जब इंसान बूढ़ा हो जाता है तब वह कुछ बुद्धिमान लोगों से सलाह करके तय करता है कि अब उसके दुनिया से जाने का समय आ गया है। फिर संथारा ग्रहण कर लेता है। उसके बाद मृत्यु आने तक वह धर्म-ध्यान में जुटा रहता है और सिर्फ पानी पर जिंदा रहता है।
इसके साथ ही उन्होंने बताया कि जैन समाज के जितने भी तीर्थंकर हुए हैं, उन्होंने संथारा से देह त्याग किया। आचार्य भिक्षु ने भी संथारा लिया था। इसे मृत्यु महोत्सव माना जाता है। अपने जीवन को मोक्ष की ओर अग्रसर करना ही संथारा है।
सोहनलाल चोपड़ा पूरी तरह स्वस्थ हैं। संथारा ग्रहण किए 17 दिन हो गए हैं। वे सिर्फ जल ग्रहण कर रहे हैं।
क्या होता है संथारा
जैन धर्म में सबसे पुरानी प्रथा मानी जाती है संथारा प्रथा (संलेखना)। जैन समाज में इस तरह से देह त्यागने को बहुत पवित्र कार्य माना जाता है। इसमें जब व्यक्ति को लगता है कि उसकी मृत्यु निकट है तो वह खुद को एक कमरे में बंद कर खाना-पीना त्याग देता है। जैन शास्त्रों में इस तरह की मृत्यु को समाधिमरण, पंडितमरण अथवा संथारा भी कहा जाता है।
इसलिए ये प्रथा जैन समाज की सबसे पवित्र
जैन धर्म के अनुसार आखिरी समय में किसी के भी प्रति बुरी भावनाएं नहीं रखी जाएं। यदि किसी से कोई बुराई जीवन में रही भी हो, तो उसे माफ करके अच्छे विचारों और संस्कारों को मन में स्थान दिया जाता है। संथारा लेने वाला व्यक्ति भी हलके मन से खुश होकर अपनी अंतिम यात्रा को सफल कर सकेगा और समाज में भी बैर बुराई से होने वाले बुरे प्रभाव कम होंगे। इससे राष्ट्र के विकास में स्वस्थ वातावरण मिल सकेगा। इसलिए इसे इस धर्म में एक वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक विधि माना गया है।
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