टूटा दिल
आओ मेरे दोस्तो, एक नगमा सुनाता हूं।
टूटे दिल का, मोहब्बते आलम बताता हुं।
गुजरता था रोज राहो से उसकी, उसकी एक झलक पाने को।
लुटा दिया था दिल का चैने अपना, उसकी आंखों में डूब जाने को।
वो संग दिल भी कुछ कम ना थी, हमे तडपाने को।
देख रोज मुस्कुरा देती थी, हमारा दिल बहलाने को।
कभी वो बालो को संवारती, कभी झरोखे से निहारा करती थी।
मोहब्बत उसे भी है शायद,
इशारो में बताया करती थी।
हिम्मत बांधे, गुलाब थामे, दर पर उसके जा पहुंचे।
धडकते दिल को हाथो से थाम, दरवाजे की घंटा बजा बैठे।
खुला था दरवाजा, एक नन्ही जान खड़ी थी मेरे सामने।
परी सी एक गुडिया मुस्कान लिए देख रही थी प्यार से।
देख मुझे वो गुडिया बोली, माँ कोई मामा आए है।
साथ में अपने फूलो का गुलदस्ता भी लाए है।
दिल टूट चकनाचूर हुआ, सामने उसके आकर के ।
बेटी की मां निकली वो, भागे हम मुंह छुपाकर के ।
कई दिनो तक रोता रहा और दिल को ये समझाया।
पराई नार और पराये धन ने हमेशा सब को लूटवाया।
मंजूषा की कलम से ….
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