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महिला दिवस: सम्मान के शब्दों में बदलाव की जरूरत

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महिला दिवस: सम्मान के शब्दों में बदलाव की जरूरत

  • MONIKA TANWAR

आज 8 मार्च, अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस, एक ऐसा दिन जिसे दुनिया भर में महिलाओं के अधिकारों, उनकी उपलब्धियों और संघर्षों के सम्मान के रूप में मनाया जाता है। हर साल इस दिन पर बड़े-बड़े मंचों से महिला सशक्तिकरण, समानता और गरिमा की बात की जाती है। लेकिन यह एक कटु सत्य है कि हमारे समाज में महिलाओं के सम्मान की बातें केवल मंचों तक ही सीमित रह जाती हैं, जबकि वास्तविक जीवन में नारी को सबसे अधिक अपशब्दों और अपमानजनक भाषा का सामना करना पड़ता है।

स्त्री-विरोधी भाषा: समाज का दर्पण

हमारे समाज में भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं होती, यह हमारे विचारों और मानसिकता का प्रतिबिंब होती है। जिस समाज में भाषा के भीतर ही स्त्री के लिए अपमानजनक शब्दों की भरमार हो, वहां महिला सशक्तिकरण की बात बेमानी लगती है। दुखद यह है कि गालियों में मां, बहन, बेटी और पत्नी जैसे पवित्र रिश्तों को सबसे ज्यादा निशाना बनाया जाता है। यह न केवल महिलाओं का अपमान है, बल्कि उन रिश्तों का भी अपमान है जो हमारी संस्कृति की नींव हैं।

संस्कार और समाज: कहां चूक हो रही है?

बचपन में हमें सिखाया जाता था कि गाली देना गलत है। अगर गलती से भी कोई गलत शब्द मुंह से निकल जाए तो माता-पिता और शिक्षक तुरंत सुधार करते थे। लेकिन डिजिटल युग में यह संवेदनशीलता धीरे-धीरे कम होती जा रही है। सोशल मीडिया, स्ट्रीट स्लैंग और पॉप कल्चर ने अपमानजनक भाषा को एक सामान्य व्यवहार बना दिया है।

आज के दौर में इंटरनेट के इनफ्लुएंसर और कंटेंट क्रिएटर्स सिर्फ लाइक्स और व्यूज के लिए भाषा की मर्यादा लांघ रहे हैं। फिल्मों, वेब सीरीज और स्टैंड-अप कॉमेडी में अपशब्दों को “कूल” दिखाने की होड़ सी लगी हुई है। इसका असर समाज पर पड़ता है, और फिर वही शब्द सड़क, कार्यालय, सार्वजनिक मंचों और यहां तक कि घरों तक में इस्तेमाल किए जाते हैं।

स्त्री का सम्मान: सिर्फ एक दिन नहीं, हर दिन

महिला दिवस पर अक्सर बड़े-बड़े आयोजन होते हैं, पुरुषों द्वारा महिलाओं को फूल भेंट किए जाते हैं, सोशल मीडिया पर लंबी-चौड़ी पोस्ट डाली जाती हैं। लेकिन यह सम्मान वास्तविक तब होगा जब नारी के प्रति विचार और भाषा में भी परिवर्तन आए। एक दिन की शुभकामनाओं से अधिक जरूरी है कि हम महिलाओं को हर दिन सम्मान दें, न केवल अपने व्यवहार में बल्कि अपनी भाषा में भी।

रोटी बनाने से रोटी कमाने तक: संघर्ष और सशक्तिकरण

मैंने खुद अपने जीवन में यह संघर्ष देखा है – रोटी बनाने से लेकर रोटी कमाने तक का सफर तय करना आसान नहीं था। इस यात्रा में समाज की सोच, परंपराओं और मानसिकता की कई बाधाओं का सामना करना पड़ा। लेकिन मैं चाहती हूं कि हर महिला इस सफर को तय कर सके, न केवल घर की चारदीवारी के भीतर बल्कि बाहर भी अपने लिए एक पहचान बना सके।

महिलाओं को सिर्फ घर की जिम्मेदारियों तक सीमित नहीं रहना चाहिए। उन्हें आर्थिक, सामाजिक और बौद्धिक रूप से आत्मनिर्भर बनने का अवसर मिलना चाहिए। इसके लिए शिक्षा और कौशल विकास पर जोर देना आवश्यक है। हर महिला को न केवल रोटी बनाने, बल्कि उसे कमाने और अपने पैरों पर खड़े होने की कला आनी चाहिए।

विकसित समाज का पैमाना: नारी का सम्मान

किसी भी समाज की उन्नति का सबसे बड़ा पैमाना यह होता है कि वहां महिलाओं को कितना सम्मान दिया जाता है। जो समाज महिलाओं के सम्मान और सुरक्षा को प्राथमिकता देता है, वही वास्तव में प्रगति कर सकता है।

आधी आबादी की खुशहाली और विकास की चिंता पूरी आबादी को करनी होगी, तभी एक उन्नत और सशक्त समाज का निर्माण हो सकता है। महिला दिवस केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि एक चेतना है जो हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि हम अपने समाज को किस दिशा में ले जा रहे हैं।

नारी सम्मान का संकल्प लें

इस महिला दिवस पर हम सबको एक संकल्प लेना चाहिए कि हम अपनी भाषा में शुद्धता और मर्यादा बनाए रखेंगे। किसी भी परिस्थिति में स्त्री जाति को अपशब्द नहीं कहेंगे, न ही ऐसे शब्दों को प्रचलित होने देंगे। सम्मान सिर्फ शब्दों में नहीं, बल्कि विचारों और व्यवहार में भी झलकना चाहिए।

नारी शक्ति का सम्मान करें, न केवल एक दिन बल्कि हर दिन। क्योंकि बिना नारी के इस समाज का अस्तित्व ही अधूरा है।

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