कल नुमाइश में फिर गीत मेरे बिके, पर दाम लगाने वाला शायद कीमत समझ नहीं पाया: आखिर क्यों बहस का विषय बन गया “मंथन”
Dr Mudita Popli
मैं तुझसे दूर कैसा हूं तू मुझसे दूर कैसी है,
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है।“
यहां बीकानेर की जनता के दिल ने जो महसूस किया वो शायद केवल बीकानेर का मीडिया ही समझ सकता है। मीडिया आवाज होता है सच की, मीडिया आवाज होता है हर एक उस मन की जो अपने जज्बात जाहिर नही कर पाता। बीकानेर में कुमार विश्वास के कार्यक्रम को लेकर, उसमें रखी गई टिकटो के दामों को लेकर जो बीकानेर की जनता ने महसूस किया, उसे शायद दो बड़े कहने को समाज के कल्याण के लिए निकले सामाजिक सेवा संस्थान समझ नहीं पाए।
ऐसा नहीं है कि बीकानेर में इससे पूर्व कोई कार्यक्रम नहीं हुए हैं, या टिकटें नहीं बेची गई है, बावजूद इसके इस बार जो व्यवहार इन सामाजिक संस्थाओं द्वारा इख्तियार किया गया वह सोचने योग्य है। जो संस्थान स्वयं को समाज के कल्याण के लिए कार्य करने वाला बताते हैं यदि वे केवल उच्च वर्ग की आकांक्षाओं को शांत करने का माध्यम बन जाए तो ऐसे पैसे की क्या महत्ता? झुग्गी झोपड़ियों में कार्य करने का दंभ भरने वाले यह सामाजिक संस्थान क्या केवल पैसा उगाही का धंधा बनकर रह गए हैं? ऐसा तो नहीं कि बीकानेर में कभी कोई हस्ती आई नहीं, ऐसा भी नहीं की उन हस्तियों के कार्यक्रम को लेकर मीडिया ने कभी कोई आपत्ति दर्ज की हो। सोशल मीडिया साइट्स पर कई पत्रकारों के दिए वक्तव्य पर कई लोगों ने जो इन सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हैं कमेंट कर दिया कि शायद मीडिया को टिकट नहीं दी गई इसलिए ऐसे बयान दिए जा रहे हैं। वह क्यों भूल जाते हैं कि उस कार्यक्रम की एक-एक पल की जानकारी आप तक पहुंचने वाला मीडिया ही है, बीकानेर की हर घटना को अपनी आंखों से देखकर आपकी आंखों के सामने लाने वाला मीडिया यदि कुछ कह रहा है तो उसके पीछे के कारणों का अन्वेषण भी किया जाना चाहिए।
उस वक्त को याद करती हूं जब बीकानेर में दलेर मेहंदी का एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था टिकट उसमें भी था, पर ऐसा नहीं था कि दलेर मेहंदी को मीडिया से रूबरू नही करवाया गया और ऐसे प्रयास किए गए कि वह केवल उद्योगपति जगत से ही रूबरू हो सके। दलेर मेहंदी की उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में रात को 1:00 भी मीडिया पहुंचा और बहुत शौक से दलेर मेहंदी के जीवन के एक-एक पल को जनता के सामने उकेरा। केवल पैसा उगाही के लिए कार्यक्रम करवाना यह सामाजिक संस्थाओं का कृत्य तो नहीं, चैरिटी के नाम पर जिस प्रकार एक भौंडा प्रदर्शन किया गया उस पर अगर मीडिया को आपत्ति है तो उस आपत्ति को समझा जाना चाहिए। बीकानेर ने सदा अतिथि देवो भव की परंपरा को निभाया है, मीडिया के किसी व्यक्ति ने ना तो कुमार विश्वास के प्रति कोई दुराव रखा ना, किसी मीडिया कर्मी की ऐसी कोई सोच है।हां यह दुराव है उन सामाजिक संस्थाओं से जो जब एक प्याऊ भी बनवाते हैं तो उस मीडिया को सामने खड़ा करना चाहते हैं, और इतने बड़े कार्यक्रम की साक्षी में उन्होंने मीडिया को न केवल दरकिनार कर दिया अपितु उसकी अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रश्न चिन्ह लगाने लगे। और बात यहां सिर्फ मीडिया की भी नहीं है बात है यहां आमजन की है ।ऐसे कार्यक्रम हो आम जन उनसे जुड़ सके इस प्रकार के टिकट्स रखे जाएं ताकि साधारण व्यक्ति के लिए कुमार विश्वास का शो एक ख्वाब बनकर न रह जाए। मजा तो तब आता जब यह सामाजिक संस्थान इस शो को बड़े पैमाने पर ऐसे करवाते कि बीकानेर का जन-जन उससे जुड़ पाता। संस्कृति मंत्री अर्जुन राम जी मेघवाल ने जब यहां राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव का आयोजन करवाया और बड़े से बड़े कलाकार को बुलवाया तब चाहे वह हंसराज हंस हो या सलमान उन्हें देखने बीकानेर का युवा और हर वर्ग आसानी से पहुंच सका। पत्रकारिता का उद्देश्य सच को कहना है चाहे वह सच को सुनने के लिए आप उसे पर कितने भी इल्जाम लगाए पर सच चाहे कितनी परतों में रखा जाए सामने तो आता ही है…
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