सेहतनामा- स्ट्रेस में फास्टफूड खाने का मन क्यों करता है:क्या सच में टेस्टी खाने से कम होता तनाव, क्या है स्ट्रेस ईटिंग, कैसे बचें
क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि आप बहुत परेशान हैं और यह बात अपने दोस्त के साथ शेयर करते हैं। दोस्त कहता है कि चलो तुम्हें कुछ अच्छा सा खाना खिलाकर लाते हैं, उसके बाद सब अच्छा महसूस होगा। यहां अच्छे का मतलब हेल्दी नहीं, स्वादिष्ट खाने से है।
ऐसा हुआ भी होगा कि स्वादिष्ट खाने के पहले कौर के साथ ही स्ट्रेस का बोझ कुछ हल्का सा लगा होगा। इसके पीछे बहुत सिंपल साइंस है। जब हम कुछ खाते हैं तो हमारी पांचों इंद्रियां एक साथ सक्रिय होती हैं और हमारा पूरा ध्यान खाने पर होता है। सबसे पहले हम खाने को देखते हैं। फिर उसकी महक, स्वाद, उसकी बनावट और यहां तक कि उसे खाने के दौरान निकली आवाज सबकुछ को महसूस करते हैं।
स्वादिष्ट भोजन एक मेडिटेशन की तरह है। लेकिन यहां हम एक गलती कर देते हैं। इस दौरान खुद से यह सवाल करना भूल जाते हैं कि यह स्वादिष्ट खाना कितना हेल्दी है? इसका नतीजा यह होता है कि खाने के आखिरी कौर के बाद ही स्ट्रेस फिर लौट आता है। इस बार तो और भी बड़े रूप में लौटता है। इसे ही स्ट्रेस ईटिंग कहते हैं।
जो लोग हेल्थ को लेकर खूब सचेत हैं, ध्यान भी देते हैं, स्ट्रेस होने पर उनकी भी गाड़ी कभी-कभी ट्रैक से उतर जाती है। फर्ज करिए कि किसी दिन आपको अचानक पिज्जा, फ्राइज, चॉकलेट, आइसक्रीम या मिठाई खाने की बहुत जोरों से इच्छा होती है। ये वो सारी चीजें हैं, जिन्हें किसी सामान्य दिन में आप हाथ भी नहीं लगाएंगे। लेकिन उस एक क्षण में आप खुद को रोक नहीं पाते।
अगर आप गौर करेंगे तो पाएंगे कि ये सब खाने की इच्छा इसलिए हो रही है क्योंकि आप किसी बात को लेकर स्ट्रेस्ड हैं। आपका स्ट्रेस हॉर्मोन कोर्टिसोल बढ़ा हुआ है और इसी कारण आपको अगड़-बगड़ चीजें खाने की इच्छा हो रही है। यही स्ट्रेस ईटिंग है।
आज ‘सेहतनामा’ में बात करेंगे स्ट्रेस ईटिंग की। साथ ही जानेंगे कि-
- स्ट्रेस और फास्टफूड का क्या कनेक्शन है?
- स्ट्रेस ईटिंग से कैसे बचा जाए?
स्ट्रेस और फास्टफूड का क्या कनेक्शन है
स्ट्रेस और फास्टफूड का आपस में सीधा कनेक्शन है। अगर तनाव बढ़ता है तो हमें फास्टफूड खाने की क्रेविंग होती है। उसे ही खाने की क्रेविंग इसलिए होती है क्योंकि उसमें बहुत सारा सॉल्ट, शुगर और फैट होता है, जो तुरंत बहुत ज्यादा मात्रा में हैप्पी हॉर्मोन डोपामाइन रिलीज करता है। खुशी की तलाश हमें फास्टफूड तक ले जाती है।
लेकिन फास्टफूड की कहानी यहीं खत्म नहीं होती। उससे तात्कालिक स्ट्रेस तो दूर होता है, लेकिन लांग टर्म में ये फूड स्ट्रेस को बढ़ाने का काम करता है। ऐसा क्यों होता है, नीचे ग्राफिक में देखिए–
स्ट्रेस ईटिंग को कैसे कम कर सकते हैं
स्ट्रेस ईटिंग को कम करना या इससे बचना उतना आसान नहीं है, जितना यह सोचने में लगता है। इसलिए बेहतर है कि इस प्रक्रिया को कुछ स्टेप्स में बांट लिया जाए ताकि इससे निपटने में आसानी हो। इसे ग्राफिक में देखिए।
अब ग्राफिक में दिए कुछ पॉइंट्स विस्तार से समझते हैं।
अवेयरनेस जरूरी है
अगर हमें स्ट्रेस ईटिंग से बचना है तो सबसे पहले अवेयरनेस जरूरी है। हमें यह समझना होगा कि कब और कौन सी परिस्थितियां हमारी स्ट्रेस ईटिंग को ट्रिगर करती हैं। कई बार हमें कुछ लोगों से मिलने के बाद अचानक स्ट्रेस फील हो सकता है। इसके पीछे उनका बिहेवियर या उनसे जुड़ा कोई ट्रॉमा हो सकता है। कई बार किसी जगह को देखकर कोई बुरी याद लौट सकती है। इन सभी चीजों और लोगों को अवॉइड करें। इससे नकारात्मक भावनाएं दूर रहेंगी और फास्टफूड भी।
अपने क्रेविंग पैटर्न को समझें
हम सभी के क्रेविंग पैटर्न अलग-अलग हो सकते हैं। हमें यह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि हम ठीक उस समय कैसा महसूस कर रहे होते हैं, जब फास्टफूड या आइस्क्रीम खाने निकल पड़ते हैं।
इसका फायदा यह होगा कि जब आप अगली बार ठीक ऐसा ही महसूस करेंगे तो खुद से सवाल कर पाने की स्थिति में होंगे कि क्या वाकई आपको भूख लगी है। क्या वाकई वह चीज खाने की जरूरत है, जिसके लिए परेशान घूम रहे हैं।
हालांकि कई बार हमें भूख लगी भी होती है। अगर उस समय कुछ हेल्दी खा लिया जाए तो भी यह क्रेविंग खत्म हो सकती है।
मील्स को हमेशा एडवांस में प्लान करें
कल सुबह आप क्या ब्रेकफास्ट करने वाले हैं, दोपहर में लंच में क्या लेकर जाने वाले हैं और रात का डिनर क्या होना है, ये सब एडवांस में प्लान होना चाहिए। भूख लगने पर फ्रिज के सामने खड़े होकर मत सोचिए कि अब क्या बनाया, क्या खाया जाए।
जब हमें पहले से ही यह मालूम होता है कि हम क्या खाने जा रहे हैं तो मन खुद को उसके लिए तैयार कर लेता है और इधर-उधर नहीं भटकता है।
अपने किचन से हटा दें अनहेल्दी स्नैक्स
ज्यादातर लोग अपने किचेन, ऑफिस डेस्क और कार में इमरजेंसी के लिए कुछ स्नैक्स रखते हैं। ज्यादातर पैकेज्ड स्नैक्स अनहेल्दी होते हैं। इनसे ढेर सारी कैलोरीज तो मिल जाती हैं, लेकिन सेहत और मन पर बुरा असर पड़ता है। जब हम स्ट्रेस में होते हैं तो हमारा मन इनकी ओर भागने लगता है। इसलिए बेहतर है कि अपने घर में पैकेज्ड फूड, स्नैक्स वगैरह रखें ही नहीं।
‘No Fast Food’ की चिट बड़े काम की
विज्ञापन की दुनिया में ‘रीकॉलिंग’ बड़े काम का शब्द है। जब किसी प्रोडक्ट या ब्रांड की मांग को बाजार में बरकरार रखना होता है तो कई बार विज्ञापन सिर्फ रीकॉलिंग के लिए चलाए जाते हैं। इसमें कोई नयापन नहीं होता है, कोई नया मैसेज नहीं होता है। यह विज्ञापन अपने उपभोक्ताओं को याद दिला रहा होता है कि हम भी बाजार में मौजूद हैं।
ठीक उसी तरह हम भी रीकॉलिंग के लिए अपनी स्टडी डेस्क, फ्रिज, दरवाजे और घर में कई जगह ‘No Fast Food’ लिखी पर्चियां चिपका सकते हैं। ये हमें बार-बार याद दिलाती रहेंगी कि फास्टफूड नहीं खाना है।
स्ट्रेस होने पर काम से ब्रेक लें
अगर आपको महसूस हो रहा है कि स्ट्रेस लेवल बहुत बढ़ गया है या फिर फास्टफूड खाने की तीव्र इच्छा हो रही है तो आपको काम से तुरंत ब्रेक लेना चाहिए। शांति से बैठकर गहरी सांस लेनी चाहिए। अगर समय मिल सके तो एक छोटी सी नैप काफी कारगर साबित हो सकती है।
फास्टफूड के अलावा और क्या स्ट्रेस को दूर कर सकता है
अगर स्ट्रेस होने पर फास्टफूड की बहुत क्रेविंग हो रही है तो कुछ देर के लिए वॉक पर जा सकते हैं। कुछ देर स्थिर बैठकर डीप ब्रीदिंग कर सकते हैं। अगर इसके लिए समय निकालना संभव नहीं हो रहा है तो एक गिलास पानी पी सकते हैं। अपना ध्यान भटकाने के लिए किसी अच्छे दोस्त या रिलेटिव को कॉल कर सकते हैं। किसी और काम में मन लगाने की कोशिश कर सकते हैं।
माइंडफुलनेस भी है मददगार
तनाव की स्थिति से बाहर निकलने के लिए माइंडफुलनेस काफी अच्छा उपाय है। इसके लिए मेडिटेशन या पजल सॉल्विंग कर सकते हैं। हालांकि कई बार मेडिटेशन इतना आसान नहीं होता है। ऐसे में पेंटिंग, बुनाई, कढ़ाई, सिलाई जैसा कोई रचनात्मक काम कर सकते हैं। इससे स्ट्रेस कम करने में बहुत मदद मिलती है।
जरूरत पड़ने पर प्रोफेशनल की मदद लें
अगर स्वयं स्ट्रेस ईटिंग से बाहर निकलना संभव नहीं हो पा रहा है तो किसी प्रोफेशनल की मदद ले सकते हैं। वह आपकी मौजूदा स्थिति का अंदाजा लगाकर, जरूरत के हिसाब से बदलाव सुझाएंगे और आपको इस एंडलेस साइकल से बाहर निकलने में मदद मिलेगी।
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