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रिलेशनशिप- 65 साल के बूढ़े ने बनाई सबसे फेमस कंपनी:सीखने की कोई उम्र नहीं, कभी भी हो सकती शुुरुआत, मोटिवेशन के 8 टिप्स

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रिलेशनशिप- 65 साल के बूढ़े ने बनाई सबसे फेमस कंपनी:सीखने की कोई उम्र नहीं, कभी भी हो सकती शुुरुआत, मोटिवेशन के 8 टिप्स

1960 के दशक की बात है। अमेरिका में 65 साल का एक बुजुर्ग आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहा था। इस उम्र में उसे कोई काम भी नहीं मिल पा रहा था। मुश्किल स्थिति में उन्होंने अपने हुनर को आजमाने का फैसला किया और एक खास तरीके से चिकेन फ्राई बनाने लगे। देखते-ही-देखते उनकी चिकेन डिश दुनिया भर में मशहूर हो गई।

वह बुजुर्ग शख्स कोई और नहीं बल्कि जाने-माने रेस्टोरेंट चेन KFC के फाउंडर हारलैंड सैंडर्स थे। आज दुनिया भर में KFC के 22 हजार से ज्यादा स्टोर्स हैं। KFC के लोगो पर दिखने वाली मशहूर फोटो भी इन्हीं की है।

हारलैंड सैंडर्स और KFC की कहानी से यह सीख मिलती है कि नई चीजें सीखने और करने का जज्बा हो तो सफलता किसी भी उम्र में कदम चूम सकती है। इसलिए आज रिलेशनशिप कॉलम में जानेंगे कि किस तरह बढ़ती उम्र में खुद को नई चीजें सीखने के लिए तैयार किया जा सकता है।

बढ़ती उम्र में नई चीजें सीखना इतना जरूरी क्यों है

कुछ भी सीखने और नया करने की कोई उम्र नहीं होती। खासतौर से ऐसे वक्त में जब दुनिया रोज बदल रही है। आज की माॉर्डन एजुकेशन 10 साल बाद मॉर्डन नहीं रह जाएगी। आज और कल की तकनीक में भी जमीन-आसमान का फर्क होगा। समय के साथ पढ़ने, दफ्तर में काम करने और जीवन जीने का तरीका तेजी से बदलता जाएगा।

ऐसे में अगर खुद को नई जानकारी के साथ अपडेट नहीं करेंगे तो करियर की रेस से बाहर हो सकते हैं। खुद से 5 या 10 साल छोटे लोगों के बीच खड़े होने पर भी जेनरेशन गैप महसूस हो सकता है।

लेकिन अगर उम्र के साथ अपने नॉलेज को भी अपडेट करते रहें तो दुनिया के साथ कदमताल करने में आसानी होगी। किसी भी उम्र में यह महसूस नहीं होगा कि ‘हमारा जमाना तो बीत गया।’

सीखने के लिए बचपन नहीं, बच्चों वाली सोच जरूरी

यह आम धारणा है कि बच्चे किसी भी चीज को जल्दी सीख जाते हैं और उम्र बढ़ने के साथ नई चीजें सीखना और उन्हें याद रखना मुश्किल होता चला जाता है।

यह बात तो सही है कि बच्चों का दिमाग नई चीजें सीखने के लिए ज्यादा मुफीद होता है, लेकिन यह धारणा पूरी सच्चाई बयां नहीं करती।

अमेरिका की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान की एसोसिएट प्रोफेसर रेचेल वू सीखने के लिए बचपन से ज्यादा जरूरी बच्चों की तरह सोचने को बताती हैं।

रेचेल वू के मुताबिक बच्चे नई चीजें सीखते हुए यह नहीं सोचते कि यह उनके लिए जरूरी है या नहीं। वे बस सीखते जाते हैं। जबकि बड़ों के मन में पहला सवाल यही उठता है कि इसे सीखने से तुरंत कोई फायदा मिलेगा या नहीं। करियर में आगे बढ़ेंगे या नहीं। लेकिन ऐसी सोच सीखने के रास्ते में रुकावट बनती है।

बढ़ती उम्र में टीचर ढूंढना मुश्किल, लें तकनीक का सहारा

अधिक उम्र में नई चीजें सीखने में एक बड़ी समस्या सही जगह और मेंटॉर मिलने की भी होती है। अपने रोजमर्रा के काम के साथ औपचारिक ढंग से पढ़ाई शुरू कर पाना संभव नहीं हो पाता। ऐसी स्थिति में तकनीक का सहारा लिया जा सकता है।

  • ऑनलाइन कोर्स और ट्यूटोरियल- इंटरनेट पर अलग-अलग तरह के ऑनलाइन कोर्स और ट्यूटोरियल मौजूद हैं, जो अलग-अलग विषय की जानकारी दे सकते हैं।
  • ई-बुक्स और दूसरे डिजिटल संसाधन- ई-बुक्स और दूसरे डिजिटल संसाधन पढ़ने और सीखने के लिए सुविधाजनक और सुलभ होते हैं।
  • वीडियो कंटेंट- वीडियो कंटेंट जैसेकि यूट्यूब वीडियोज और ऑनलाइन लेक्चर विजुअल और ऑडियो दोनों तरीकों से सीखने में मदद करते हैं।
  • मोबाइल ऐप्स- डूइंग, कोर्सेरा और यूडेमी जैसे मोबाइल ऐप्स सीखने के लिए एक उपयोगी और सुविधाजनक तरीका प्रदान करते हैं।
  • वर्चुअल क्लासरूम- वर्चुअल क्लासरूम और ऑनलाइन शिक्षण प्लेटफॉर्म व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों तरीकों से सीखने के अवसर प्रदान करते हैं।
  • एक्सेसिबिलिटी फीचर- कई डिजिटल डिवाइसेज और सॉफ्टवेयर एक्सेसिबिलिटी फीचर प्रदान करते हैं। जैसेकि टेक्सट-टू-स्पीच, जूम और हाई कॉन्ट्रास्ट मोड, जो लोगों को सीखने में मदद करते हैं।

जिम्मेदारियों के बीच पैसिव लर्निंग से सीखना होगा आसान

कई बार ऐसा भी होता है, जब लोग सीखने की चाहत तो रखते हैं, लेकिन समय की कमी के चलते वे ऐसा नहीं कर पाते। स्कूल या कॉलेज जाने वाले स्टूडेंट्स को देखकर उनके मन में ऐसी धारणा बनती है कि पढ़ना तो मुश्किल और फुल टाइम काम है।

ऐसी स्थिति में पैसिव लर्निंग मददगार साबित हो सकती है। दरअसल, पैसिव लर्निंग में हम अपने आसपास के माहौल और वातावरण से लगातार बिना एक्टिव प्रयास किए हुए लगातार कुछ सीख रहे होते हैं। जैसे वीडियो देखना या कुछ और करते हुए सीखने की कोशिश।

जबकि एक्टिव लर्निंग में सीखने के लिए अपनी ओर से ज्यादा कोशिश करनी पड़ती है। जैसे किताब पढ़ना, एक्सपेरिमेंट करना, सीखने के लिए अलग से मेहनत और कोशिश करना।

लर्निंग प्रॉसेस को बोझ न बनाएं, छोटे-छोटे गोल्स बेहतर

औपचारिक शिक्षा की उम्र बीतने के बाद नए सिरे से पढ़ाई शुरू कर पाना थोड़ा मुश्किल तो होता ही है। लेकिन जब पहली बार में ही कठिन लक्ष्य निर्धारित कर लिया जाए तो संकल्प के टूटने की आशंका बढ़ जाती है।

इसलिए अधिक उम्र में अगर कुछ सीखने की सोच रहे हों तो बेहतर है कि शुरुआत आसन चीजों से करें। शुरुआत में कम ही सीखें, लेकिन निरंतरता बनाए रखें। भले 5 पन्ने पढ़ें, लेकिन किताबें जरूर खोलें। किताब पढ़ने का मन न हो तो वीडियो देखें या पॉडकास्ट सुनें।

अगर लर्निंग प्रॉसेस में निरंतरता बरकरार रखी जाए तो शुरुआत में छोटे-छोटे गोल्स हासिल होते हैं। जिसकी वजह से ज्यादा मेहनत करने और बड़े लक्ष्य को हासिल करने की प्रेरणा मिलती है। लक्ष्य की ओर धीरे-धीरे सधे कदमों से बढ़ें तो लक्ष्य मुश्किल नजर नहीं आता।

सीखने की कोई उम्र नहीं होती। यह एक जीवन भर की प्रक्रिया है, जो हमें नए अनुभव, ज्ञान और कौशल प्रदान करती है। चाहे आप 20 साल के हों या 60 साल के, सीखने के लिए कोई उम्र नहीं होती। जीवन में सीखना एक आवश्यक हिस्सा है। यह हमें नई चुनौतियों का सामना करने में मदद करता है, हमारी रुचियों को विकसित करने में मदद करता है और हमें बेहतर व्यक्ति बनाता है। इसलिए आज से ही सीखना शुरू करें और अपने जीवन को समृद्ध बनाएं।

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