“अंग्रेजियत के ग़ुलाम”
✍🏻……आज भले ही हम आज़ाद हो गये है,लेकिन मन से अभी भी अंग्रेजियत के ग़ुलाम है।हर वो व्यक्ति जो सरकार में छोटे से छोटे पद पर आसीन क्यों न हो अपने आपको किसी अफ़सर से कम नहीं समझता।पहले हम अंग्रेजों के ग़ुलाम थे और आज हम अंग्रेजों द्वारा तैयार किए गये अपने ही लोगों के ग़ुलाम है।अंग्रेजियत का प्रभाव भारतीय संस्कृति की गरिमा,गौरव और गहनता के धराशायी होने के दुष्परिणाम को स्पष्ट कर रहा है।मैकाले ने भारत में अंग्रेजी शासन को बनाए रखने की जो सांस्कृतिक योजना बनाई थी,वो आज पूर्णतया फलीभूत होती प्रतीत हो रही है।उसने सोचा कि भारत जैसे देश में अंग्रेज के रूप में लंबे समय तक अपने मन मुताबिक राज चलाना संभव नहीं होगा,लिहाजा भारत के लोगों को ही अंग्रेज बनाया जाए।उनकी शक्ल-सूरत भारतीय हो, लेकिन उनके सोचने-समझने का तौर-तरीका अंग्रेजों की तरह हो।इसके लिए उसने शिक्षा का एक ढांचा तैयार किया।स्कूल, कॉलेजों को अंग्रेज तैयार करने की जगह बनाई और अंग्रेजों के मनमाफिक जीने के लिए सरकारी दफ्तरों में कुर्सी टेबल दिया।आज हम मन,कर्म,वचन से पूर्णतया स्वच्छंद तो हो गये है,लेकिन मन से अंग्रेजियत से दूर नहीं हो पा रहे है।
✍🏻….डॉ.अजिता शर्मा
उदयपुर
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