
कथेतर साहित्य एक स्मृति प्रधान विधा है : प्रोफेसर चारण
विश्व कथेतर साहित्य आपदा की विधा है : प्रोफेसर सत्यनारायण
बांसवाड़ा । संसार में शासन करने वाली प्रत्येक सत्ता मनुष्य की वैचारिक दृष्टि पर अंकुश लगातार उनकी स्मृति को अलोप करना चाहती है । मगर एक रचनाकार उस सत्ता को चुनौती देकर सत्ता की हकीकत उजागर करने के साथ ही समाज की चेतना एवं स्मृति को बचाने का जतन करता है। वास्तव में देखा जाए तो समकालीन राजस्थानी कथेतर साहित्य स्मृति प्रधान सृजन है । यह विचार ख्यातनाम कवि-आलोचक प्रोफेसर (डाॅ.) अर्जुनदेव चारण ने साहित्य अकादेमी एवं वागड़ साहित्य एवं कला संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ‘ राजस्थानी कथेतर साहित्य’ विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद में रविवार को स्थानीय बीवीएमएस के सभागार में व्यक्त किए। इस अवसर पर उन्होंने कि जो कथा नीं है, जो कथा से इतर है वो कथेतर साहित्य है।
राष्ट्रीय राजस्थानी परिसंवाद के संयोजक हर्षवर्द्धन सिंह राव ने बताया कि इस अवसर पर मुख्य अतिथि प्रतिष्ठित कवि – कथाकार प्रोफेसर सत्यनारायण ने कहा कि विश्व कथेतर साहित्य आपदा की विधा है। समकालीन राजस्थानी कथेतर साहित्य भारतीय साहित्य से कमतर नहीं है । राजस्थानी रचनाकार कथेतर विधा को नये शिल्प एवं ईमानदारी से रच रहा जिससे वो आम पाठक को विशेष रूप से प्रभावित कर रही है। उन्होंने अपने उदबोधन में कहा कि समकालीन राजस्थानी युवा रचनाकार कथेतर विधा में बहुत सराहनीय सृजन कर रहे है। वागड़ साहित्य संस्थान के अध्यक्ष एवं समारोह के विशिष्ट अतिथि महिपालसिंह राव ने कहा कि राजस्थानी भासा-साहित्य का विपूल साहित्य भण्डार है जिस पर शोध की महत्ती दरकार है। संस्थान सचिव जयसिंह राव ने कहा वागड़ी लोक साहित्य का समृद्ध भंडार है जो हमारी अस्मिता से जुड़ा हुआ है । उदघाटन समारोह के आरम्भ में साहित्य अकादेमी के उप सचिव डाॅ.देवेन्द्र कुमार देवेश ने स्वागत उद्बोधन के साथ ही साहित्य अकादेमी द्वारा देश के ग्रामीण क्षेत्र एवं अचल विशेष में किए जाने वाले साहित्यिक कार्यक्रमों की विस्तार से जानकारी दी। सत्र का संचालन हरिश आचार्य ने किया।
साहित्यिक सत्र : प्रतिष्ठित विद्वान माधव नागदा एवं डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित की अध्यक्षता में आयोजित दो अलग-अलग साहित्यिक सत्रो में सूर्यकरण सोनी – राजस्थानी डायरी लेखन, चेतन्य मालव- राजस्थानी संस्मरण एवं रेखाचित्र, नेहा गुप्ता- राजस्थानी ललित निबंध तथा हिमेश उपाध्याय – राजस्थानी यात्रा वृत्तांत विषय पर अपना आलोचनात्मक आलेख प्रस्तुत किया। सत्र का संचालन युवा रचनाकार राम पांचाल एवं हेमंत पाठक ने किया।
समापन समारोह : प्रतिष्ठित कवि-कथाकार डाॅ. मंगत बादल ने अपने अध्यक्षीय उदबोधन में कहा कि भाषा सदैव परिवर्तनशील है मगर राजस्थानी रचनाकार को राजस्थान प्रदेश की सभी बोलियों को बोलने-समझने में कोई दिक्कत नहीं है । बोलियां हमारी ताकत है मगर राजनैतिक उदासीनता की वजह से राजस्थानी को देश की आजादी के सतहत्तर वर्ष बाद भी संवैधानिक मान्यता नहीं मिली । मुख्य अतिथि प्रतिष्ठित रचनाकार डाॅ.माधव हाडा ने कहा कि राजस्थानी साहित्य में गद्य विधा आदिकाल से चली आ रही है। तब उसका रूप अलग था और समकाल में अलग है क्योंकि साहित्य जगत में प्रत्येक रचनाकार अपनी रचना-रूप समय के अनुसार परिवर्तित करता रहता है। उन्होंने कहा कि यह खुशी की बात है कि समकालीन राजस्थानी कथेतर साहित्य भारतीय साहित्य के कमतर नहीं है। विशिष्ट अथिति वागड़ी रचनाकार कमल दोसी ने वागड़ी साहित्य की प्रमुख रचनाओं की जानकारी देकर उनकी उपयोगिता सिद्ध की । समारोह संयोजक प्रकाश पण्डया ने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया । सत्र संचालन गजमोहन तुफान ने किया।
समारोह के प्रारम्भ में मां सरस्वती के चित्र पर अतिथियों द्वारा माल्यार्पण कर दीप प्रज्ज्वलित किया गया। इस अवसर पर डाॅ.सुरेश कुमार सालवी उपेंद्र अणु , राम पांचाल भारतीय, डाॅ. किरण बादल, डाॅ. वीणा हाडा, प्रकाश पंड्या, हरीश आचार्य, नरेंद्र मदनावत, सूर्यकरण सोनी, धर्मिष्ठा पंड्या,दिनेश प्रजापति,भागवत कुंदन, कपिल जोशी,भरतचन्द्र शर्मा, डॉ.सरला पंड्या,डॉ. दीपिका राव,विशाल, हिमांशु, हेमंत पाठक, महेश माही, जगदीश मुरी, वीरेंद्र सिंह राव, जगन्नाथ तेली,आशीष गणावा, राधेश्याम, खुश पंचाल, डॉ. नरेश पटेल, उत्तम मेहता सहित अनेक प्रतिष्ठित रचनाकार, भाषा-साहित्य प्रेमी एवं शोध-छात्र मौजूद रहे।
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