
बीकानेर। भारत में सूफी संगीत का इतिहास लगभग 900 वर्ष पुराना है। वस्तुतः सूफी संगीत के प्रारम्भिक दौर में खुदा से इष्क की भावना रही है। सूफी कलाम खुदा की खिदमत में उसके प्रति समर्पण के भाव से गाया जाता था। यह जानकारी आज टी.एम. ऑडिटोरियम में सूफी व गज़ल की प्रस्तुतियों के प्रारम्भ में टोडरमल लालानी ने सभी कलाकारों व संगीत रसिकों का स्वागत करते हुए दी। लालानी ने कहा कि उसी समर्पण परम्परा में समयानुकूल परिवर्तन होकर सूफी में आज का यह स्वरूप बना है। टोडरमल लालानी ने बताया कि दिल्ली घराना में इकबाल खान व उनके पूर्वजों का बहुत महत्व रहा है। आज की मुख्य गायिका वुसत इकबाल खान उसी विरासत का आगे वर्धापन कर रही है।
वुसत इकबाल खान ने अपनी प्रस्तुतियों का आगाज ’जुगनी’ से किया। छाप तिलक, आपकी नजरों ने, आज जाने की जिद्द न करो, मीरां के कृष्ण प्रेम को दर्शाते हुए ’सासों की माला में सिंवरू मैं पी का नाम आदि समधुर प्रस्तुतियों से श्रोताओं का मन मोह लिया। सूफी व गज़ल पर केंद्रित इस कार्यक्रम में गायक आशुतोष शर्मा ने ग़ज़लें प्रस्तुत की। इस दौरान वुसत व आशुतोष ने लंबी जुदाई, आज जाने की ज़िद ना करो सहित कई गज़लों की जुगलबंदी की।

इस अवसर पर हेमन्त डागा ने भी ’कोई सागर दिल को बहलाता नहीं’ गजल सुना कर श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया। पं. पुखराज शर्मा ने राजस्थानी विरासत के मांड गीत ’हेलो देतां लाज मरूं, झालो म्हासूं दियो नहीं जाय’ गाया तो ऑडिटोरियम तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
वालिफ इकबाल, शहदाब खान व महरोज ने कोरस दी। वहीं अदनान खान ने तबले पर, फ़ैज़ आरिफ़ ने ढ़ोलक, समीर अहमद ने की-बोर्ड व चांद मोहम्मद ने ऑक्टोपेड पर संगत की। तबला उस्ताद गुलाम हुसैन ने पंडित पुखराज शर्मा के साथ संगत की।
इस दौरान एडिशनल एसपी सीमा हिंगोनिया, कामेश सहल, मनोहर सिंह, जतनलाल दूगड़, भैरव प्रसाद कत्थक, संपतलाल दूगड़, पंकज ओझा, चंपालाल डागा, एडवोकेट किशन लाल बोथरा, प्रीति डागा, शांतिलाल कोचर, हेमंत डागा, गिरीराज खैरीवाल, डॉ पीडी तंवर व रोशन बाफना सहित गणमान्य उपस्थित रहे।













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