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एनआरसीसी बीकानेर द्वारा पीपलखूंट में जनजातीय कृषि–उद्यमिता शिखर सम्मेलन: किसानों और कृषि स्टार्टअप्स को जोड़ने की पहल

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भाकृअनुप–राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एनआरसीसी), बीकानेर द्वारा “जनजातीय गौरव वर्ष पखवाड़ा–2025” के अंतर्गत निर्धारित गतिविधि — “किसानों और कृषि स्टार्टअप्स को जोड़ने के लिए जनजातीय कृषि–उद्यमिता शिखर सम्मेलन का आयोजन (Tribal Agri-Entrepreneurship Summits connecting farmers and agri-start-ups)” आज दिनांक 13 नवम्बर 2025 को राजस्थान के प्रतापगढ़ ज़िले के पीपलखूंट ग्राम में किया गया जिसमें कृषक–वैज्ञानिक संवाद एवं पशु स्वास्थ्य जागरूकता शिविर भी शामिल रहा। यह एनआरसीसी की जनजातीय उप–योजना (TSP) के अंतर्गत आयोजित किया गया जिसमें इंडियन फार्म फॉरेस्ट्री डेवलपमेंट कोऑपरेटिव लिमिटेड (IFFDC), प्रतापगढ़ का विशेष सहयोग रहा। कार्यक्रम में लगभग 100 जनजातीय पशुपालक परिवारों ने सक्रिय भागीदारी की। इस दौरान किसानों को पशु आहार, खनिज मिश्रण तथा कृषि संबद्ध संसाधन (जैसे तिरपाल, ग्रीन नेट, वॉटर कैम्पर आदि) वितरित किए गए। संवाद सत्र के दौरान पशुपालकों की पशु–स्वास्थ्य एवं कृषि-उद्यमिता आदि से संबंधित जिज्ञासाओं का समाधान वैज्ञानिकों द्वारा विस्तारपूर्वक किया गया।
केन्‍द्र की टीएसपी योजना के नोडल अधिकारी डॉ. श्‍याम सुन्दर चौधरी ने बताया कि इस पहल का उद्देश्य किसानों को नवाचार आधारित कृषि–उद्यमिता से जोड़ते हुए वैज्ञानिक दृष्टिकोण के माध्यम से उन्हें आत्मनिर्भर एवं प्रतिस्पर्धी बनाना है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार की जनजातीय उप-योजना का लक्ष्य जनजातीय क्षेत्रों के निवासियों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ना है, अतः किसानों को चाहिए कि वे इन योजनाओं के प्रति जागरूक रहकर अधिकतम लाभ प्राप्त करें। डॉ. चौधरी ने पशुधन प्रबंधन में वैज्ञानिक तरीकों को अपनाने पर बल देते हुए कहा कि इससे पशुपालक अपने पशुओं को स्वस्थ रखकर उत्पादन व आय दोनों में वृद्धि कर सकते हैं। उन्होंने शिक्षा और जागरूकता को आत्मनिर्भर कृषि का आधार बताया तथा ऊँट पालन की वैज्ञानिक विधियों और स्वच्छ दूध उत्पादन के प्रति विशेष सावधानी बरतने की सलाह दी।
इस अवसर पर केन्‍द्र के वैज्ञानिक डॉ. राजेन्द्र कुमार ने जनजातीय पशुपालकों को बताया कि दूध के प्रसंस्करण एवं दुग्ध प्रौद्योगिकी के सरल घरेलू उपाय अपनाकर पशुपालक बिना शीत भंडारण के भी दूध को अधिक समय तक सुरक्षित एवं उपयोगी रख सकते हैं। उन्होंने स्वच्छ दुग्ध उत्पादन की वैज्ञानिक विधियाँ अपनाने पर जोर देते हुए कहा कि इससे दूध की गुणवत्ता और किसानों की आय दोनों में वृद्धि संभव है।
केन्‍द्र की वैज्ञानिक टीम के माध्‍यम से अपनी बात रखते हुए निदेशक डॉ. अनिल कुमार पूनिया ने कहा कि एनआरसीसी, केन्‍द्र सरकार की जनजातीय उपयोजना के अंतर्गत केन्‍द्र ग्रामीण क्षेत्रों में नवाचार आधारित पशुपालन, पशु उत्पाद विकास तथा मूल्य संवर्धन आदि की दिशा में कार्य कर रहा है, जिससे पशुपालक समुदाय आर्थिक रूप से सशक्त और आत्मनिर्भर बन सके। डॉ. पूनिया ने कहा कि वैज्ञानिक पशुधन प्रबंधन और उद्यमिता को अपनाना ही सतत ग्रामीण विकास का आधार है, और एनआरसीसी इस दिशा में पशुपालकों का विश्वसनीय सहयोगी बना रहेगा।
इस अवसर पर पीपलखूंट के सरपंच श्री प्रभु लाल जी ने एनआरसीसी के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि यह आयोजन जनजातीय क्षेत्रों में पशुपालन एवं उद्यमिता विकास को प्रोत्साहित करने वाली सार्थक एवं प्रेरणादायक पहल है, जिससे ग्रामीण युवाओं में आत्मनिर्भरता की भावना को बल मिलेगा तथा वे उद्यमिता की दिशा में आगे बढ. सकेंगे।
आई.एफ.एफ.डी.सी. की श्रीमती संतोष चौधरी, वरिष्‍ठ अधिकारी (परियोजना) ने उपस्थित जनजातीय परिवारों को सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने हेतु विशेष प्रोत्‍साहित किया तथा कार्यक्रम का संचालन भी किया। एन.आर.सी.सी. द्वारा जनजातीय उपयोजना के अंतर्गत समन्वयात्मक रूप से आयोजित इस कार्यक्रम की विभिन्न गतिविधियों के सफल संचालन में केन्‍द्र के सहायक मुख्य तकनीकी अधिकारी श्री राजेश चौधरी, श्री जितेंद्र कुमार, तकनीकी अधिकारी, श्री हरजिंदर आदि का उल्लेखनीय सहयोग एवं सक्रिय योगदान प्राप्त हुआ, जिनके समर्पण से यह आयोजन सफल एवं उद्देश्यपरक बन सका।

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