यूपी में करारी हार के बाद योगी को हटाएगी भाजपा, क्या सच होगी केजरीवाल की बात ?
UP Lok Sabha Election Results 2024: यूपी में करारी हार के बाद क्या भारतीय जनता पार्टी बड़ा बदलाव कर पाएगी? लोकसभा चुनाव के प्रचार अभियान के दौरान आप संयोजक अरविंद केजरीवाल ने एक बड़ी भविष्यवाणी की थी। यूपी में बदलते चुनावी परिणाम को लेकर उनकी भविष्यवाणी सही साबित हो रही है। इस पर सवाल उठ रहा है।
हाइलाइट्स
- यूपी में भाजपा को करारी शिकस्त का करना पड़ सकता है सामना
- केजरीवाल ने की थी भविष्यवाणी, हटाए जा सकते हैं सीएम योगी
- प्रदेश में इंडिया गठबंधन को 42 सीटों पर दिख रही है बढ़त
लखनऊ: उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को बड़ा झटका लगता दिख रहा है। शुरुआती रुझान में भाजपा के साथ-साथ सहयोगी दलों को भी झटका लगता दिख रहा है। अपना दल एस मिर्जापुर और रॉबर्ट्सगंज लोकसभा सीटों पर पिछड़ती दिख रही है। वहीं, सुभासपा को घोसी लोकसभा सीट पर झटका लगता दिख रहा है। अब तक के आए रुझानों में भाजपा कई सीटों पर पिछड़ती दिख रही है। इंडिया गठबंधन प्रदेश की 80 में से 42 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है। वहीं, भाजपा के नेतृत्व में एनडीए 37 सीटों पर आगे है। एक सीट पर आजाद समाज पार्टी को जीत मिलती दिख रही है। इस प्रकार की स्थिति में आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल का एक बयान खासी चर्चा में है। उन्होंने दावा किया था कि लोकसभा चुनाव के बाद यूपी में सत्ता परिवर्तन होगा। योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री पद से हटाए जाएंगे।
केजरीवाल ने क्या कहा था?
लखनऊ में इंडिया गठबंधन के प्रेस कॉन्फ्रेंस में अरविंद केजरीवाल ने सीएम योगी आदित्यनाथ पर बड़ा दावा किया था। केजरीवाल ने कहा था कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दिल्ली आए थे। उन्होंने मुझे गालियां दीं। योगी जी, मैं आपसे विनम्रता से कहना चाहता हूं कि आपके असली दुश्मन आपकी ही पार्टी में हैं। भाजपा में अपने दुश्मनों से लड़िए। आप केजरीवाल को गाली क्यों दे रहे हैं?
अरविंद केजरीवाल ने दावा किया था कि पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह आपको हटाना चाहते हैं। आपको यूपी के सीएम की कुर्सी से हटाने की पूरी तैयारी चल रही है। आप उनसे निपटिए। केजरीवाल ने लोगों से कहा था कि इंडिया को बचाना है तो इंडिया गठबंधन को जिताना है।
क्या होगा बदलाव?
यूपी के वोटिंग पैटर्न में बड़ा बदलाव होता दिख रहा है। भाजपा बड़े स्तर पर पिछड़ती दिख रही है। पार्टी को 30 से अधिक सीटों का नुकसान होता दिख रहा है। वहीं, कांग्रेस इस बार बड़ी बढ़त बनाती दिख रही है। 2009 के लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस एक बार फिर प्रदेश में बड़ी बढ़त बनाती दिख रही है। वहीं, समाजवादी पार्टी अब तक का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन करने की कगार पर है।
1992 में समाजवादी पार्टी के गठन के बाद से अब तक का शानदार प्रदर्शन है। पार्टी 35 सीटों पर बढ़त बनाती दिख रही है। इससे इंडिया गठबंधन की रणनीति बेहतर तरीके से जमीन पर उतरती दिखी। वहीं, भाजपा के पक्ष में माहौल बनता नहीं दिख पाया। ऐसे में भाजपा प्रदेश नेतृत्व में बदलाव की रणनीति पर काम कर सकता है। इस पर चर्चा शुरू हो गई है।
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Lok Sabha election results 2024: उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के नतीजों के रुझान धीरे-धीरे सामने आने लगे हैं. बीजेपी 3 …अधिक पढ़ें
नई दिल्ली. उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के नतीजों के रुझान धीरे-धीरे सामने आने लगे हैं. बीजेपी 37 सीटों पर आगे है, जबकि सपा को 33 सीटों पर बढ़त मिलती दिख रही है. वहीं कांग्रेस को 6 सीटों पर बढ़त मिलती दिख रही है. जबकि बीएसपी सुप्रीमो मायावती की पार्टी की कहीं कोई चर्चा नहीं हो रही है. बसपा को किसी भी सीट पर बढ़त मिलती नहीं दिख रही है. यूपी में बसपा की सुप्रीमों मायावती को दलितों की एकमात्र राजनीतिक मसीहा माना जाता रहा है. उनके इशारे पर दलितों का वोट पड़ता रहा है. मगर इस बार हालात इसके कुछ अलग नजर आ रहे हैं.
कभी मायावती के एक इशारे पर यूपी का 17 फीसदी दलित वोट बैंक वोटिंग के लिए तत्पर रहता था. इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि बसपा के टिकट को हासिल करने के लिए उम्मीदवारों को कड़ी मशक्कत करनी पड़ती थी. कई बार तो मायावती पर टिकट को बेचने के आरोप भी लगे. मगर इसके बावजूद बसपा के कोर वोट बैंक को कोई खास असर नहीं पड़ा. फिलहाल इस बार के नतीजों से कुछ अलग ही हालात सामने आ रहे हैं.
सूत्रों के मुताबिक बताया गया है इस बार मायावती का वोट बैंक उनके साथ नहीं रहा है. इस बार दलित वर्ग के पढ़े-लिखे नौजवानों का एक तबका इस बात से पूरी तरह सहमत था कि बीजेपी को हराने के लिए बसपा को विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन का हिस्सा होना चाहिए था. जब ऐसा नहीं हुआ तो इन लोगों ने इंडिया गठबंधन के उम्मीदवारों के समर्थन में वोट देने का फैसला किया. इससे उत्तर प्रदेश में सपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों को ऐसी सफलता मिली है, जिसकी उनको उम्मीद भी नहीं थी. इस तरह देखा जाए तो मायावती की राजनीतिक पकड़ फिलहाल अपने कोर वोट बैंक पर कमजोर होती दिख रही है.
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