कांग्रेस के पास राज्यों में लीडरशिप नहीं, क्या करेंगे राहुल:MP, UP, बिहार में बड़े नेता नहीं, राजस्थान-हरियाणा में गुटबाजी हरवा रही
नई दिल्ली
‘मैं गुजरात जाता रहता हूं। और आपको गुजरात में हराएंगे इस बार। आप लिखकर ले लो। आपको INDIA गठबंधन हराने जा रहा है।’
राहुल गांधी ने 1 जुलाई को संसद में बतौर नेता प्रतिपक्ष अपनी पहली स्पीच में ये बात कही, तो सभी को हैरानी हुई। गुजरात में 29 साल से कांग्रेस की सरकार नहीं बनी, लगातार 26 साल से राज्य में BJP की सरकार है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 99 सीटें मिलने के बाद से राहुल गांधी कॉन्फिडेंट दिख रहे हैं।
लोकसभा चुनाव के नतीजों ने भले कांग्रेस को कॉन्फिडेंस दिया हो, लेकिन राज्यों में पार्टी की स्थिति अब भी अच्छी नहीं है। सीनियर लीडर रिटायरमेंट की तरफ बढ़ रहे हैं। कभी कांग्रेस का गढ़ रहे मध्यप्रदेश में पूर्व CM कमलनाथ और राजस्थान में अशोक गहलोत के बेटे चुनाव हार गए। हरियाणा में पार्टी गुटबाजी में फंस गई है। UP, बिहार, महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्यों में पार्टी के पास चुनाव जिताने वाले चेहरे नहीं हैं।

13 जुलाई को 7 राज्यों की 13 सीटों पर हुए विधानसभा उपचुनाव के नतीजे आए। कांग्रेस 9 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। पार्टी ने हिमाचल और उत्तराखंड में दो-दो सीटें जीतीं।
फिलहाल राज्यों में कांग्रेस के सामने 3 चुनौतियां हैं
1. पार्टी के पास कोई लीडरशिप नहीं है
2. पुरानी लीडरशिप कमजोर होती दिख रही है
3. जहां सीनियर लीडर ज्यादा हैं, वहां गुटबाजी है
राज्यों में कांग्रेस कहां कमजोर है, संगठन मजबूत करने की उसकी स्ट्रैटजी क्या है, इस पर पार्टी लीडर्स, सीनियर जर्नलिस्ट और पॉलिटिकल एनालिस्ट से बात की।
सबसे पहले राजस्थान की बात
गहलोत रिटायरमेंट के मूड में नहीं, पायलट-डोटासरा विकल्प बने
अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच अब भी सियासी तल्खी है। लोकसभा चुनाव में पार्टी 0 से 8 सीटों पर पहुंची है, लेकिन इस जीत पर प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और सचिन पायलट दावा कर रहे हैं।
मई, 2024 में 73 साल के हुए अशोक गहलोत रिटायरमेंट के मूड में नहीं हैं। इसलिए राजस्थान कांग्रेस में बड़े बदलाव के आसार कम हैं। 2023 में गहलोत ने साफ कर दिया था कि उनका रिटायरमेंट का प्लान नहीं है। गहलोत अब भी उसी स्टैंड पर कायम हैं।
सूत्र बताते हैं कि गहलोत की रणनीति है कि अगर उन्हें चौथी बार लीड करने का मौका नहीं दिया जाता है, तो उनकी जगह सचिन पायलट को भी मौका न मिले। प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा भी पायलट के लिए चुनौती हैं। डोटासरा सियासी तौर पर प्रभावी जाट समुदाय से आते हैं।

फोटो 16 नवंबर 2023 की है, जब राहुल गांधी राजस्थान के हनुमानगढ़ पहुंचे थे। यहां अशोक गहलोत, सचिन पायलट और गोविंद सिंह डोटासरा एक मंच पर दिखे थे।
पॉलिटिकल एनालिस्ट रशीद किदवई कहते हैं, ‘राजस्थान में कांग्रेस की पूरी राजनीति गहलोत और पायलट के बीच ही थी। अब गोविंद सिंह डोटासरा ने जगह बना ली है। कांग्रेस में साफ नजर आता है कि इनमें से कोई भी नेता बड़ी भूमिका में आ सकता है।’
वहीं, कांग्रेस लीडर और नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली कहते हैं, ‘हमें युवा जोश के साथ अनुभव भी चाहिए। हमारे उदयपुर डिक्लेरेशन में क्लियर है कि 50% युवाओं को मौका देंगे और बाकी सीनियर रहेंगे। सीनियर नेताओं के अनुभव के बिना पार्टी नहीं चल सकती।’

महाराष्ट्र: लोकसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन सब ठीक नहीं
महाराष्ट्र में नाना पटोले पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा हैं। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की परफॉर्मेंस सबसे ज्यादा महाराष्ट्र में ही सुधरी है। 2014 में कांग्रेस ने यहां 2 सीटें जीती थीं, 2019 में एक सीट जीती और 2024 में 13 सीटें जीतकर नंबर वन पार्टी बन गई। फिर भी पार्टी की हालत बहुत अच्छी नहीं है।
सीनियर जर्नलिस्ट संदीप सोनवलकर बताते हैं, ‘कांग्रेस में अंदरखाने बहुत बिखराव है। पार्टी की फ्रंटलाइन लीडरशिप खत्म हो चुकी है। पुराने नेताओं में सिर्फ पृथ्वीराज चव्हाण बचे हैं, जो 2014 से साइड लाइन हैं। नाना पटोले सिर्फ विदर्भ के नेता हैं, पूरे महाराष्ट्र में वे अपने दम पर चुनाव नहीं जिता सकते। पार्टी के अंदर ही उनकी नहीं चल रही है।’
संदीप कहते हैं, ‘अभी विधान परिषद चुनाव में पार्टी के 7 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की। नाना पटोले BJP से आए हैं, यही वजह है कि आज भी पार्टी के कई नेता उन्हें अपना नहीं पाए हैं।’
‘अशोक चव्हाण और दूसरे बड़े नेताओं के पार्टी छोड़ने के पीछे भी नाना पटोले का ही हाथ माना जाता है। विधानसभा चुनाव से पहले हाईकमान इस ओर ध्यान नहीं देता है तो कांग्रेस में और फूट दिख सकती है।’

हरियाणा: राज्य में जीत के चांस, लेकिन गुटबाजी सबसे बड़ा चैलेंज
हरियाणा में इसी साल विधानसभा चुनाव हैं। कांग्रेस ने राज्य की जिम्मेदारी पूर्व CM भूपेंद्र सिंह हुड्डा को दे रखी है। हुड्डा विधायक दल के नेता हैं और प्रदेश अध्यक्ष उदयभान उनके करीबी माने जाते हैं। हरियाणा में दूसरा खेमा पूर्व अध्यक्ष और मौजूदा सांसद कुमारी शैलजा का है। रणदीप सिंह सुरजेवाला भी शैलजा खेमे के नेता माने जाते हैं।
2019 विधानसभा चुनाव के दौरान कुमारी शैलजा प्रदेश अध्यक्ष थीं। तब हुड्डा से उनकी अदावत की वजह से पार्टी बंटी नजर आती थी। 2022 से कांग्रेस ने एक बार फिर हुड्डा पर भरोसा जताया। उनके नेतृत्व में पार्टी ने लोकसभा चुनाव में 5 सीटें जीती हैं। विधानसभा चुनाव भी पार्टी उनके ही नेतृत्व में लड़ने वाली है।

भूपेंद्र सिंह हुड्डा हरियाणा में कांग्रेस के सबसे सीनियर लीडर हैं। कुमारी शैलजा उनके खिलाफ मुखर रही हैं। वे राज्य में लोकसभा चुनाव में टिकट बंटवारे पर भी सवाल उठा चुकी हैं। (फाइल फोटो)
सिरसा से सांसद कुमारी शैलजा ने चुनाव से पहले शहरी क्षेत्र में पदयात्रा निकालने का ऐलान किया है। इसके तुरंत बाद भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अपने सांसद बेटे दीपेंद्र हुड्डा को आगे करके रथ यात्रा का कार्यक्रम फाइनल कर दिया।
एक्सपर्ट्स मानते हैं कि हरियाणा में संगठन स्तर पर लिए जाने वाले फैसलों में भूपेंद्र सिंह हुड्डा की ही चल रही है। कुमारी शैलजा खुलेआम इसका विरोध करती रही हैं। राज्य में जाट और दलित के पॉलिटिकल एडजस्टमेंट की परेशानियां हैं, उन्हें पार्टी हाईकमान को दूर करना पड़ेगा।
हरियाणा में कांग्रेस के पास चुनाव जीतने और सत्ता में वापस आने का बड़ा मौका है। अगर हरियाणा में कांग्रेस जीत जाती है, तो इससे केंद्र की राजनीति पर असर पड़ेगा।

मध्य प्रदेश: सीनियर नेताओं के साथ युवाओं को मिलेगी जिम्मेदारी
मध्यप्रदेश में कांग्रेस पहले विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव में बुरी तरह हारी है। लोकसभा चुनाव के बाद हुई मीटिंग में पार्टी ने तय किया है कि सीनियर लीडर्स के साथ युवाओं को बड़ी जिम्मेदारी दी जाए।
प्रदेश प्रभारी भंवर जितेंद्र सिंह, प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी और नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने विधानसभा और लोकसभा चुनाव लड़ने वाले कैंडिडेट्स से बात की। उन्होंने सीनियर लीडर्स की गुटबाजी को हार की वजह बताया।
बैठक में शामिल रहे एक नेता बताते हैं कि मीटिंग में सबसे ज्यादा फोकस इसी पर रहा कि कैसे युवाओं को आगे लाया जाए। पिछले कुछ महीनों में कांग्रेस ने अलग-अलग टीमों में युवाओं को सहप्रभारी बनाकर उन्हें आगे बढ़ाने के संकेत दे दिए हैं।
मध्यप्रदेश में कांग्रेस के उपाध्यक्ष जेपी धनोपिया कहते हैं, ‘भंवर जितेंद्र सिंह, जीतू पटवारी, उमंग सिंघार और सभी सीनियर लीडर्स ने विधायकों से वन-टु-वन बात की है। अब नए लोगों को मौका मिलेगा, पुराने लोगों को भी जोड़ा जाएगा।’

छत्तीसगढ़: सीनियर नेता हटेंगे, नए लोगों को पद देने की तैयारी
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस बड़े लेवल पर संगठन में बदलाव करने की तैयारी में है। पार्टी में कई सीनियर लीडर रिटायरमेंट की उम्र में आ चुके हैं। प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट पुराने नेताओं की जगह नए चेहरों पर जोर दे रहे हैं। जिला अध्यक्ष सहित सभी पद युवा या नए चेहरों को देने का प्लान है।
अगले दो महीने में प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज को हटाने की भी चर्चा है। दो नए कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जा सकते हैं। सूत्र बताते हैं कि नए चेहरों और युवाओं को आगे करने पर सीनियर नेताओं का साथ नहीं मिल रहा है। कलह के डर से पार्टी कोई फैसला नहीं ले पा रही है। इसके अलावा 70 साल से ज्यादा उम्र के ज्यादातर नेताओं ने बेटों को राजनीति में लॉन्च कर दिया है।

छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज कहते हैं, ‘हमारे पास कई सीनियर नेता हैं। पार्टी को उनका बेहतर इस्तेमाल करना चाहिए। हम प्रदेश स्तर पर बदलाव करेंगे, तो निचले स्तर तक युवाओं के साथ अनुभवी चेहरों को भी मौका देंगे।’

झारखंड: चुनाव से पहले पार्टी में कलह, प्रदेश अध्यक्ष बदलने की मांग
झारखंड में इस साल के आखिर में विधानसभा चुनाव हैं। यहां कांग्रेस के कई नेता मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर को बदलने की मांग कर रहे हैं। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की अध्यक्षता में जून में हुई मीटिंग में भी ये मांग उठी।
सूत्र बताते हैं कि राज्य के सीनियर नेताओं ने हाईकमान के सामने कहा कि मौजूदा अध्यक्ष ने संगठन के लिए कोई खास काम नहीं किया। उन्होंने अपनी बात साबित करने के लिए लोकसभा चुनाव के रिजल्ट का सहारा लिया।
रिजल्ट के मुताबिक, कांग्रेस 13 विधानसभा सीटों पर आगे रही। झारखंड मुक्ति मोर्चा को 16 और BJP को 52 सीटों पर बढ़त मिली। इस लिहाज से देखें, तो विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार तय है। कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में दो सीटें जीती हैं।

चुनावी राज्यों में काम शुरू, UP-गुजरात में कैडर तैयार करने पर फोकस
2024 में महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और जम्मू-कश्मीर में चुनाव हैं। कांग्रेस सूत्र बताते हैं कि पार्टी ने यहां काम शुरू कर दिया है। हालांकि, कांग्रेस और राहुल गांधी के रणनीतिकार UP और गुजरात में संगठन मजबूत करने पर काम कर रहे हैं। नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद राहुल गांधी 6 जुलाई को गुजरात गए थे। वहां वे जेल में बंद कांग्रेस कार्यकर्ताओं के परिवार से मिले।

फोटो 6 जुलाई की है। अहमदाबाद में राहुल गांधी उन 5 कांग्रेस कार्यकर्ताओं के परिवार से मिले थे, जो पुलिस हिरासत में हैं।
गुजरात में 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 77 सीटें जीती थीं। BJP ने 99 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी। तब राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष थे।
UP में भी जातिगत जनगणना और संविधान के मुद्दे पर कांग्रेस को फायदा मिला है। एक्सपर्ट मान रहे हैं कि प्रदेश में सहयोगी पार्टी सपा को दलित और OBC वोट मिले, उसकी वजह भी कांग्रेस और राहुल गांधी हैं।
बिहार, ओडिशा, आंध्रप्रदेश में लीडरशिप का संकट
UP के अलावा बिहार, ओडिशा, आंध्रप्रदेश में भी कांग्रेस के पास लीडरशिप की कमी है। राहुल गांधी ने UPA सरकार में UP के जिन नेताओं को मंत्री बनाया था, वे पार्टी छोड़कर जा चुके हैं। इनमें जितिन प्रसाद और आरपीएन सिंह बड़े नाम हैं।
बिहार में भी पार्टी बहुत मजबूत स्थिति में नहीं है। इस बार लोकसभा चुनाव में उसे सिर्फ 3 सीटें मिली हैं। सांसदों के मामले में वो बड़ी पार्टियों में 5वें नंबर पर है।
आंध्रप्रदेश में पूर्व CM जगन रेड्डी की बहन शर्मिला को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन इसका फायदा नहीं हुआ। पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई। ऐसी ही कोशिश ओडिशा में भी चल रही है। यहां 24 साल से कांग्रेस की सरकार नहीं है। उसका संगठन भी नहीं है।
जम्मू-कश्मीर, UP, बिहार, ओडिशा और आंध्रप्रदेश में न तो फर्स्ट लाइन की लीडरशिप है और न सेकेंड लाइन है। वहां समीकरण के हिसाब से, सहयोगियों के हिसाब से जीत-हार होती रहती है।
लीडरशिप के मामले में राजस्थान, हरियाणा और केरल में स्थिति बेहतर
केरल में कांग्रेस के पास ओमान चांडी और एके एंटनी के बाद वीडी सतीशन और रमेश चेनिथल्ला जैसे सीनियर लीडर हैं। इनका पूरे प्रदेश में प्रभाव माना जाता है। हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी शैलजा और रणदीप सिंह सुरजेवाला हैं। राजस्थान में अशोक गहलोत, सचिन पायलट और गोविंद सिंह डोटासरा के अलावा अलग-अलग रीजन में प्रभाव रखने वाले लोकल नेता भी हैं।
सीनियर जर्नलिस्ट आदेश रावल कहते हैं, ‘यूपी, बिहार, ओडिशा, आंध्र प्रदेश को छोड़ दें, तो ये नहीं कह सकते कि बाकी राज्यों में कांग्रेस के पास लीडरशिप क्राइसिस है। मध्य प्रदेश में कमलनाथ की उम्र हो गई है। दिग्विजय सिंह चुनाव हार गए। यहां पार्टी ने जीतू पटवारी को मौका दिया, उमंग सिंघार को आगे बढ़ाया, दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह हैं, अरुण यादव हैं, ऐसी सेकेंड लीडरशिप हर राज्य में है।’
‘छत्तीसगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल हैं, टीएस सिंहदेव और चरणदास महंत हैं। केरल के केसी वेणुगोपाल दिल्ली में बहुत पावरफुल हैं। अब प्रियंका गांधी खुद वायनाड से चुनाव लड़ने जा रही हैं। जम्मू-कश्मीर में गुलाम नबी आजाद पार्टी छोड़कर चले गए। वहां लीडरशिप क्राइसिस है। ये दिक्कत कश्मीर में ज्यादा है, जम्मू में उतनी नहीं है।’
पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के बाद चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया गया। वहां भी सेकेंड लाइन की लीडरशिप है। अमरिंदर सिंह राजा वडिंग पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं, विजेंद्र सिंगला हैं, प्रताप सिंह बाजवा हैं। रवनीत सिंह बिट्टू और सुनील जाखड़ जैसे कुछ नेता पार्टी छोड़कर गए हैं, बावजूद इसके पंजाब में लीडरशिप क्राइसिस नहीं है।
हाईकमान तैयार कर रहा नई लीडरशिप
सूत्रों के मुताबिक, कमलनाथ के नेतृत्व में पार्टी मध्य प्रदेश में चुनाव हारी, तभी दिल्ली से नई लीडरशिप बनाने का आदेश हुआ। इसके बाद जीतू पटवारी को प्रदेश अध्यक्ष और उमंग सिंघार को विधायक दल का नेता बनाया गया। ये राहुल गांधी का आदेश था कि सेकेंड लीडरशिप को तुरंत मौका देना चाहिए।
ऐसे ही राजस्थान में गोविंद सिंह डोटासरा को कंटीन्यू किया गया और टीकाराम जूली को विधायक दल का नेता बनाया गया। जहां-जहां पार्टी हार रही है, वहां-वहां राहुल गांधी अपने हिसाब से लीडरशिप डेवलप कर रहे हैं।
चुनाव में लगातार हार, इसलिए राज्यों में बदल रही लीडरशिप
सीनियर जर्नलिस्ट रेणु मित्तल कहती हैं, ‘कुछ राज्यों में कांग्रेस के रीजनल लीडर ताकतवर हो गए थे। वे अपने हिसाब से राज्य चलाते थे। उनकी लीडरशिप में पार्टी लगातार हारी है, इसलिए इन राज्यों में लीडरशिप बदल रही है।’
‘कुछ नेता 2024 चुनाव के बाद खत्म हो गए हैं। इनमें एक कमलनाथ हैं और दूसरे अशोक गहलोत। उनकी लीडरशिप में पार्टी कभी नहीं जीती। पार्टी जब भी जीती, उन्हें ही मुख्यमंत्री बनाया गया। उनके CM बनने के बाद पार्टी फिर हारी। ये सिलसिला बहुत समय तक चलता रहा। इस बार भी ऐसा ही हुआ। इस बार तो उनके बेटे भी हार गए।’
रेणु मित्तल आगे कहती हैं, ‘छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की साख 5 साल में इतनी कम हुई है कि पार्टी राज्य में एक ही सीट जीत पाई। कांग्रेस की जिन राज्यों में सीधी लड़ाई है, वहां कई जगह पार्टी अच्छा परफॉर्म नहीं कर पाई। कांग्रेस ने कभी अपना संगठन बनाने की कोशिश नहीं की। वो हमेशा इस सोच में रही कि BJP डाउन होगी, तो लोग खुद हमें वोट करेंगे।’
तमिलनाडु, बिहार में कांग्रेस सहयोगियों के भरोसे
पार्टी के एक नेता कहते हैं, ‘कांग्रेस को कास्ट लीडर्स तैयार करने पड़ेंगे। ये देखना होगा कि लीडरशिप क्यों नहीं कामयाब हो पा रही है। हर बड़ा नेता चीफ मिनिस्टर बनने के लिए लड़ रहा है। कर्नाटक में अब भी महाभारत चल रही है। इसका नुकसान लोकसभा चुनाव में हुआ। हम 1 सीट से 9 सीट पर आ गए, लेकिन BJP ने फिर भी अच्छा परफॉर्म किया। हम सरकार में थे, तब भी BJP 17 सीटें जीत गई।’
‘बिहार में हम लीडरशिप तैयार नहीं कर पाए। हम RJD और लालू यादव के सहारे सरकार में आ जाते हैं। ऐसा ही तमिलनाडु में है। पश्चिम बंगाल में हम खत्म हो गए। वहां हमारे पास एक भी लीडर नहीं बचा।’
कांग्रेस में अब 4 पावर सेंटर, राहुल सबसे मजबूत
पॉलिटिकल एनालिस्ट रशीद किदवई कहते हैं, ‘राहुल गांधी ने चुनाव में अलायंस कमेटी बनाई। उसमें भूपेश बघेल और अशोक गहलोत को शामिल किया। ये मैसेज था कि पुराने लोगों को दरकिनार नहीं किया जा रहा।’
वहीं, सीनियर जर्नलिस्ट रेणु मित्तल कहती हैं कि कांग्रेस की लीडरशिप पहले सोनिया गांधी के आसपास घूमती थी। उनके सलाहकार पार्टी चलाते थे। अब गांधी फैमिली के तीन पावर सेंटर्स हैं, एक मल्लिकार्जुन खड़गे आ गए हैं। नेता प्रतिपक्ष बनकर राहुल की स्थिति और मजबूत हो गई है। राहुल गांधी आने वाले दिनों में किस तरह पार्टी को स्ट्रक्चर करते हैं, ये उन पर डिपेंड करता है।
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