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वेद से अर्थशास्त्र, गुप्त से शिवाजी तक… भविष्य के युद्धों के लिए अतीत में क्यों झांक रही सेना ? From Vedas to Arthashastra, Gupta to Shivaji… Why is the army looking into the past for future wars?

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वेद से अर्थशास्त्र, गुप्त से शिवाजी तक… भविष्य के युद्धों के लिए अतीत में क्यों झांक रही सेना?

परंपरा और आधुनिकता का गठजोड़ हो जाए तो परिणाम काफी पुष्ट आ सकता है। यही वजह है कि भारतीय सेना आधुनिकीकरण की राह पर आगे बढ़ते हुए स्वदेशीकरण को भी साथ ले जा रही है। भारतीय सेना अब वेदों, पुराणों से लेकर महान योद्धाओं से सीख लेकर भविष्य के युद्धों की तैयारी में जुटी है।

हाइलाइट्स

  • भारत ने अपनै सैन्य आधुनिकीकरण की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है
  • इसी क्रम में परंपरागत युद्ध नीतियों के अध्ययन का काम भी जारी है
  • प्रॉजेक्ट उद्भव के तहत वेदों से लेकर योद्धाओं तक से सीख ली जा रही है

नई दिल्ली: परंपरा की मजबूत नींव पर आधुनिकता की गगनचुंबी मीनार कैसे खड़ी की जाए, इस दिशा में भारतीय सेना तेजी से कदम बढ़ा रही है। सेना भविष्य की युद्ध रणनीतियों के लिए महाभारत जैसे महाकाव्य से लेकर प्राचीन राजवंशों तक राष्ट्र शक्ति के विभिन्न पहलुओं पर ज्ञान अर्जित कर रही है। सेना प्रमुख मनोज पांडे ने कहा, ‘भारतीय सेना ने ‘महाभारत के युद्धों’ और ‘मौर्यों, गुप्तों एवं मराठों’ की ‘रणनीतिक प्रतिभा’ का अध्ययन किया है, जिन्होंने ‘भारत की समृद्ध सैन्य विरासत’ को आकार दिया। यह ‘प्रॉजेक्ट उद्भव’ नामक एक पहल का हिस्सा है। इसका उद्देश्य राष्ट्र के ऐतिहासिक सैन्य ज्ञान से अंतर्दृष्टि प्राप्त करके सैन्य बल को ‘प्रगतिशील और भविष्य के लिए तैयार’ बनाना है।’

प्रॉजेक्ट उद्भव में वेद, पुराण से अर्थशास्त्र तक का अध्ययन

थल सेना प्रमुख 1870 में स्थापित भारत के सबसे पुराने थिंक टैंक यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूशन (यूएसआई) के बैनर तले आयोजित ‘भारतीय सामरिक संस्कृति में ऐतिहासिक प्रतिमान’ सम्मेलन में बोल रहे थे। उन्होंने भारतीय सेना के ‘प्रॉजेक्ट उद्भव’ के बारे में बात की जिसका उद्देश्य महाभारत, वेदों, पुराणों, उपनिषदों और अर्थशास्त्र में वर्णित ज्ञान को सेना की मजबूती का आधार बनाना है। इस प्रॉजेक्ट को पिछले साल रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लॉन्च किया था। इसका शुभारंभ सेना और यूएसआई के आपसी सहयोग से अक्टूबर, 2023 में भारतीय सैन्य विरासत महोत्सव में हुआ था।

सेना प्रमुख ने कहा कि इस परियोजना से ‘प्रतिष्ठित भारतीय और पश्चिमी विद्वानों के बीच पर्याप्त बौद्धिक समानता का पता चला है।’ उन्होंने कहा, ‘इस परियोजना में वेदों, पुराणों, उपनिषदों और अर्थशास्त्र जैसे प्राचीन ग्रंथों का गहन अध्ययन किया गया है, जो आपसी संबंध, धार्मिकता और नैतिक मूल्यों पर आधारित हैं

योद्धाओं की युद्ध नीतियों से सीख

अंग्रेजी न्यूज वेबसाइट द हिंदुस्तान टाइम्स ने सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से कहा कि ‘प्रॉजेक्ट उद्भव’ के तहत जुटाए गए परंपरागत ज्ञान को तुरंत यूएसआई वेबसाइट पर अपलोड कर दिया जाएगा। वहीं, सामरिक मामलों के विशेषज्ञ एयर मार्शल (रिटायर्ड) अनिल चोपड़ा ने कहा कि भारत में महाराजा रणजीत सिंह से लेकर छत्रपति शिवाजी महाराज तक महान योद्धा राजाओं का समृद्ध इतिहास है, जिन्होंने शानदार नेतृत्व और युद्ध कौशल का प्रदर्शन किया। चोपड़ा ने कहा, ‘लंबे समय से भारत पश्चिमी समझ पर युद्ध संबंधी अवधारणाओं का अध्ययन कर रहा है। हो सकता है कि वे हमारे क्षेत्र और संदर्भ में सबसे अधिक प्रासंगिक न हों। हमारी समृद्ध विरासत हमें मार्गदर्शन देने और भविष्य के लिए रणनीति बनाने में बड़ी भूमिका निभाएगी।’

विश्व की दूसरी सबसे बड़ी सेना भारतीय सेना है। यह प्राचीन भारतीय दर्शन से शासन कला, रणनीति, कूटनीति और युद्ध कौशल की शिक्षा लेने के लिए कौटिल्य के अर्थशास्त्र, कामन्दक के नीतिसार और तमिल कवि-संत तिरुवल्लुवर के तिरुक्कुरल जैसे ग्रंथों का सहारा ले रही है। जनरल पांडे ने कहा, ‘प्राचीन भारतीय ज्ञान 5,000 साल पुरानी सभ्यतागत विरासत में निहित है, जहां ज्ञान को बहुत महत्व दिया जाता है। इस विरासत का उदाहरण बौद्धिक साहित्य का विशाल भंडार, दुनिया की सबसे बड़ी पांडुलिपियों का संग्रह और विभिन्न क्षेत्रों में विचारकों और स्कूलों की बहुलता का पोषण है।’

उन्होंने कहा कि इस परियोजना में वेद, पुराण, उपनिषद और अर्थशास्त्र जैसे प्राचीन ग्रंथों का गहन अध्ययन किया गया है, जो परस्पर जुड़ाव, धार्मिकता और नैतिक मूल्यों पर आधारित हैं। ‘इसके अलावा, इसमें महाभारत के महाकाव्य युद्धों और मौर्य, गुप्त और मराठों के शासनकाल के दौरान रणनीतिक प्रतिभा का पता लगाया गया है, जिसने भारत की समृद्ध सैन्य विरासत को आकार दिया है।’

बदलते युद्ध क्षेत्र के लिए तैयार हो रही सेना

इसी कार्यक्रम में बोलते हुए रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट ने इस पहल के लिए सेना और यूएसआई की सराहना की। भट्ट ने कहा, ‘जियो-पॉलिटिकल लैंडस्केप का निरंतर उभार हो रहा है, और हमारे सशस्त्र बलों को अपनी सोच नई और प्रासंगिक होनी अनिवार्य है। हमारे प्राचीन ग्रंथों और परंपराओं में गहराई से उतरकर, उद्भव जैसी परियोजनाएं न केवल सामरिक संस्कृति की हमारी समझ को समृद्ध करती हैं, बल्कि युद्ध में अपरंपरागत युद्ध रणनीतियों, कूटनीतिक प्रथाओं और नैतिक विचारों में मूल्यवान अंतर्दृष्टि भी प्रदान करती हैं।’

यह कदम शिक्षा, स्वास्थ्य और विज्ञान सहित विभिन्न क्षेत्रों में ‘भारतीयकरण’ को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार के प्रयासों की पृष्ठभूमि में उठाया गया है। सेना ने पहले प्राचीन ग्रंथों पर आधारित भारतीय रणनीतियों के संकलन से संबंधित एक परियोजना का समर्थन किया था। इसके परिणामस्वरूप 75 सूत्रों पर एक पुस्तक और एक अन्य प्रकाशन, पारंपरिक भारतीय दर्शन – रणनीति और नेतृत्व के शाश्वत नियम – युद्ध और नेतृत्व के शाश्वत नियम, प्रकाशित हुआ। सेना सभी रैंकों को इस पुस्तक को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित कर रही है।


यह कदम ऐसे समय उठाया गया है जब सशस्त्र बल सैन्य रीति-रिवाजों के स्वदेशीकरण पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं और उन्होंने औपनिवेशिक परंपराओं को मिटाने के लिए कुछ कदम उठाए हैं। इनमें नौसेना द्वारा मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज की मुहर से प्रेरित होकर नया ध्वज अपनाना और सेंट जॉर्ज के क्रॉस को हटाना शामिल है। साथ ही वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा डंडे रखने की प्रथा को भी समाप्त कर दिया गया है, और रक्षा मंत्रालय ने ब्रिटिश काल की छावनियों का नाम बदलकर सैन्य स्टेशन करने का अभियान शुरू किया है।

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