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गायत्री मंत्र की महत्ता: युवा पीढ़ी को दिशा देने में इसकी भूमिका ; डॉ अजीता शर्मा

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गायत्री मंत्र की महत्ता: युवा पीढ़ी को दिशा देने में इसकी भूमिका

भारतीय संस्कृति अपनी विविधता और आध्यात्मिकता के लिए विश्वभर में जानी जाती है। यह संस्कृति हमें न केवल जीवन जीने की कला सिखाती है, बल्कि हमारे अंतर्मन को शुद्ध और संतुलित करने में भी सहायक होती है। प्राचीन काल से ही भारतीय सभ्यता में अध्यात्म और नैतिक मूल्यों का प्रमुख स्थान रहा है। आज के दौर में, जब समाज में तनाव, असंतोष और भटकाव तेजी से बढ़ रहा है, गायत्री मंत्र जैसे दिव्य स्रोत न केवल समाधान प्रदान करते हैं, बल्कि युवाओं को सही मार्गदर्शन भी देते हैं।

गायत्री मंत्र: दिव्यता और सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत

गायत्री मंत्र, जिसे वैदिक ग्रंथ ऋग्वेद में उल्लेखित किया गया है, मानव जीवन के उत्थान और आध्यात्मिक प्रगति का आधार है। यह मंत्र केवल उच्चारण के लिए नहीं है, बल्कि इसमें छिपा गूढ़ अर्थ और सकारात्मक ऊर्जा की तरंगें जीवन को नई दिशा प्रदान करती हैं। इस मंत्र का पाठ करते समय ध्यान परमात्मा के उस दिव्य तेज पर केंद्रित होता है, जो हमारे अंतर्मन को शुद्ध करने और हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करने का कार्य करता है।

मंत्र इस प्रकार है:
ॐ भूर्भुवः स्वः। तत्सवितुर्वरेण्यं। भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्।

इसका अर्थ है कि हम उस परमात्मा के तेज का ध्यान करें, जो हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करे। यह मंत्र तीन लोकों (पृथ्वी, अंतरिक्ष और स्वर्ग) की ऊर्जा को समाहित करता है और मानव मस्तिष्क को दिव्यता की ओर ले जाता है।

वर्तमान संदर्भ में गायत्री मंत्र की प्रासंगिकता

आज की पीढ़ी तकनीकी युग में जी रही है, जहां इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और सोशल मीडिया उनके जीवन का अहम हिस्सा बन गए हैं। इस तकनीकी निर्भरता के चलते युवा अपने अंदर झांकने और आत्मचिंतन करने की आदत खोते जा रहे हैं। आत्मविश्वास की कमी, भावनात्मक अस्थिरता, और सामाजिक दूरी जैसी समस्याएं बढ़ती जा रही हैं।

गायत्री मंत्र का नियमित जाप न केवल इन समस्याओं से निजात दिला सकता है, बल्कि यह आत्मविश्वास, मानसिक शांति और सृजनात्मकता को भी बढ़ावा देता है। वैज्ञानिक शोधों ने यह प्रमाणित किया है कि मंत्र उच्चारण से उत्पन्न ध्वनि तरंगें मस्तिष्क में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती हैं और तनाव को कम करती हैं।

युवा पीढ़ी को सही दिशा देना

भटकती हुई युवा पीढ़ी को समाज और राष्ट्र निर्माण के नैतिक दायित्वों की ओर प्रेरित करना आज के समय की सबसे बड़ी चुनौती है। परिवार और समाज को मिलकर यह जिम्मेदारी उठानी होगी कि वे बच्चों को नैतिक मूल्यों के साथ-साथ आध्यात्मिक ज्ञान भी दें। गायत्री मंत्र इसका एक अद्भुत माध्यम बन सकता है।

अभिभावकों की भूमिका:
– बच्चों को बचपन से ही नैतिक मूल्यों और आध्यात्मिकता का पाठ पढ़ाएं।
– पितृसत्ता और परिवार के अन्य सदस्य बच्चों को प्रतिदिन गायत्री मंत्र का उच्चारण करने के लिए प्रेरित करें।
– परिवार में संस्कारशील वातावरण तैयार करें।

शिक्षा का योगदान:
शिक्षण संस्थानों में नैतिक शिक्षा को अनिवार्य किया जाना चाहिए। गायत्री मंत्र जैसे प्राचीन और दिव्य मंत्रों को पाठ्यक्रम में शामिल कर, बच्चों को ध्यान और प्रार्थना के महत्व से अवगत कराया जा सकता है।

आध्यात्मिकता और तकनीकी युग का संतुलन

युवाओं को यह समझना चाहिए कि तकनीकी उपकरण केवल एक साधन हैं, जीवन का उद्देश्य नहीं। इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का उपयोग सीमित मात्रा में करें और आत्मचिंतन व आत्मशोधन के लिए समय निकालें। आध्यात्मिकता की ओर झुकाव न केवल मनुष्य को अपने जीवन की वास्तविकता से जोड़ता है, बल्कि समाज में सकारात्मकता और सामूहिक चेतना को भी बढ़ावा देता है।

निष्कर्ष

गायत्री मंत्र केवल एक मंत्र नहीं, बल्कि एक जीवनशैली है। यह जीवन में शांति, सुख, और सफलता का मार्ग प्रशस्त करता है। यदि हम अपने दैनिक जीवन में इस मंत्र का जाप शामिल करें और इसके मूल अर्थ को आत्मसात करें, तो न केवल व्यक्तिगत जीवन में बदलाव आएगा, बल्कि समाज और राष्ट्र को भी नई दिशा मिलेगी।

आइए, हम सब मिलकर इस दिव्य मंत्र की शक्ति को पहचानें और इसे अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाएं। यही हमारा युगधर्म और सामाजिक कर्तव्य है।

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