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तीन तलाक कानून बनाकर मुस्लिम पर्सनल लॉ बदला:34 साल पुराना वादा पूरा, मुस्लिम बोले-हमें काबू करने की साजिश

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तीन तलाक कानून बनाकर मुस्लिम पर्सनल लॉ बदला:34 साल पुराना वादा पूरा, मुस्लिम बोले-हमें काबू करने की साजिश

16 अगस्त 2019 को तीन तलाक मामले की प्रमुख याचिकाकर्ताओं में से एक इशरत जहां ने PM मोदी को राखी बांधी।

साल 1956, प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू हिंदू कोड बिल लेकर आए। BJP की पुरानी पार्टी जनसंघ अड़ गई कि हम इसे लागू नहीं होने देंगे। अगर आप हिंदू लॉ में बदलाव कर रहे हैं, तो बाकी धर्मों के पर्सनल लॉ में भी बदलाव करिए, पर नेहरू इसके लिए तैयार नहीं हुए।

साल 1985, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तलाक के बाद मेंटेनेंस का अधिकार मुस्लिम पर्सनल लॉ से ऊपर है। मुस्लिमों के विरोध और उपचुनावों में हार से घबराई राजीव गांधी सरकार ने 1986 में कानून बनाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया।

उस वक्त BJP ने कहा- हम सत्ता में आएंगे, तो पर्सनल लॉ में बदलाव करेंगे।

साल 2017, सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक करार देते हुए सरकार से इस पर कानून बनाने के लिए कहा। पूर्ण बहुमत वाली मोदी सरकार को लगा कि दशकों पुराना एजेंडा पूरा करने का यही सही मौका है। 30 जुलाई 2019 को मोदी ने तीन तलाक के खिलाफ कानून बना दिया।

आज फैसला सीरीज के छठे एपिसोड में PM मोदी के तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाने की इनसाइड स्टोरी…

‘’हिंदू दो शादी करे। वो जेल चला जाए। उसके लिए आपको विचार नहीं आया कि तब उसके परिवार के लोग क्या खाएंगे।’’ PM मोदी ने ऐसा कब और क्यों कहा, यह हम आपको आगे बताएंगे…

तस्वीर 31 जुलाई 2019 की है। राज्यसभा से तीन तलाक बिल पास होने के बाद वाराणसी की मुस्लिम महिलाओं ने जश्न मनाया।

तस्वीर 31 जुलाई 2019 की है। राज्यसभा से तीन तलाक बिल पास होने के बाद वाराणसी की मुस्लिम महिलाओं ने जश्न मनाया।

7 फरवरी 1951, पंडित जवाहरलाल नेहरू सरकार के कानून मंत्री डॉ. भीमराव अंबेडकर लोकसभा में हिंदू कोड बिल लेकर आए। बिल पर जैसे ही चर्चा शुरू हुई, कई सांसद और मंत्री विरोध करने लगे। कांग्रेस नेता श्याम सुंदर ने कहा- ‘मैं आपको और सरकार को चेतावनी देता हूं कि हिंदू कोड बिल लाना आत्मघाती है।’ इस पर अंबेडकर ने कहा- ‘हम आत्महत्या के लिए तैयार हैं।’

सितंबर 1951… एक बार फिर से हिंदू कोड बिल सदन में पेश किया गया। राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, गृहमंत्री सरदार पटेल और कांग्रेस अध्यक्ष पट्टाभि सीतारमैया हिंदू कोड बिल के पक्ष में नहीं थे। राजेंद्र प्रसाद का कहना था कि इसमें हिंदुओं के साथ-साथ दूसरे धर्मों को भी शामिल करना चाहिए, लेकिन नेहरू इसके लिए तैयार नहीं हुए। उनका कहना था कि अभी अल्पसंख्यक रिफॉर्म के लिए तैयार नहीं हैं।

दोनों के बीच तकरार इतनी बढ़ी कि राजेंद्र प्रसाद ने हिंदू कोड बिल पर दस्तखत नहीं करने तक की बात कह दी। 15 सितंबर 1951, को राजेंद्र प्रसाद ने नेहरू को चिट्ठी लिखी- ‘’इस बिल पर सहमति देने से पहले इसकी योग्यता जांचना मेरा अधिकार है। अगर बाद में मेरे किसी भी काम से सरकार को शर्मिंदगी होने की संभावना है, तो मैं अपनी अंतरात्मा की आवाज पर ऐसी शर्मिंदगी से बचने के लिए जरूरी कार्रवाई कर सकता हूं।’’

पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और पूर्व राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के बीच हिंदू कोड बिल के अलावा सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन को लेकर भी मतभेद रहे।

पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और पूर्व राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के बीच हिंदू कोड बिल के अलावा सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन को लेकर भी मतभेद रहे।

पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष जेबी कृपलानी तब संविधान सभा के सदस्य थे। उन्होंने हिंदू कोड बिल का विरोध करते हुए कहा कि पंडित नेहरू कम्युनल हैं। हिंदू महासभा और संत समाज भी इस बिल के विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे। पुलिस के साथ झड़प में संत करपात्री महाराज का दंड टूट गया, जिस पर खूब हंगामा हुआ।

लोकसभा चुनाव में मुश्किल से एक महीने का वक्त बचा था। पंडित नेहरू अंदर और बाहर दोनों तरफ से हिंदू कोड बिल पर घिरे थे। लिहाजा बिल पर वोटिंग के लिए कोई व्हिप जारी नहीं किया गया। और 25 सितंबर 1951 को हिंदू कोड बिल वापस ले लिया गया।

इस पर भीमराव अंबेडकर नाराज हो गए। उन्होंने कहा- ‘मैंने कभी एक चीफ व्हिप का प्रधानमंत्री के प्रति बेवफा होना और एक प्रधानमंत्री का एक धोखेबाज व्हिप चीफ के प्रति इतना वफादार होना नहीं देखा।’ 27 सितंबर 1951 को अंबेडकर ने नेहरू सरकार से इस्तीफा दे दिया।

इस्तीफा देने के बाद डॉ. अंबेडकर ने कहा था कि ऐसे पद पर रहने का क्या मतलब जब कानून मंत्री सदन में कोई बिल पास नहीं करा पा रहा।

इस्तीफा देने के बाद डॉ. अंबेडकर ने कहा था कि ऐसे पद पर रहने का क्या मतलब जब कानून मंत्री सदन में कोई बिल पास नहीं करा पा रहा।

अक्टूबर 1951 और फरवरी 1952 के बीच देश में पहली बार लोकसभा चुनाव हुए। पंडित नेहरू फिर प्रधानमंत्री बने। चार साल बाद यानी दिसंबर 1956 में एक बार फिर से सदन में हिंदू कोड बिल लाया गया।

तमाम विरोधों के बाद इस बार पंडित नेहरू ने हिंदू कोड बिल पास करा लिया। इस बिल में हिंदू महिलाओं को संपत्ति में अधिकार, तलाक का अधिकार, एक से ज्यादा विवाह पर रोक और विधवा विवाह को मान्यता जैसी चीजें शामिल थीं। जनसंघ ने 1957 लोकसभा चुनाव के घोषणा पत्र में लिखा- ‘हमारी सरकार बनी, तो हिंदू कोड बिल को खत्म कर देंगे।’

1962 में जनसंघ ने हिंदू मैरिज एक्ट और हिंदू उत्तराधिकार विधेयक वापस लेने की बात कही। जबकि 1967 में उत्तराधिकार और गोद लेने के लिए एक समान कानून बनाने का वादा किया। 1971 में भी जनसंघ ने अपना ये वादा दोहराया, लेकिन 1977 और 1980 में इस मुद्दे पर कोई बात नहीं हुई।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- मेंटेनेंस का अधिकार मुस्लिम पर्सनल लॉ से ऊपर है
साल 1975… इंदौर की शाहबानो को उनके पति मुहम्मद ने पांच बच्चों सहित घर से निकाल दिया। 1978 में शाहबानो ने इंदौर की अदालत में CrPC की धारा 125 के तहत केस दर्ज कराते हुए 500 रुपए प्रति महीने गुजारा भत्ते की मांग की।

कोर्ट का फैसला आता, उससे पहले ही शाहबानो के पति ने तलाक दे दिया। उसने कोर्ट में 3000 रुपए जमा कराते हुए कहा कि ये मेहर की रकम है। अगस्त 1979 में अदालत ने शाहबानो को हर महीने 25 रुपए गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया।

शाहबानो इस फैसले से खुश नहीं हुईं और 1980 में उन्होंने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में याचिका लगाई। हाईकोर्ट ने गुजारा भत्ते की रकम 179.20 रुपए कर दी। इस फैसले के खिलाफ शाहबानो के पति सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए।

इंदौर की रहने वाली शाहबानो को उनके पति ने 1975 में घर से निकाल दिया। जब शाहबानो ने गुजारे भत्ते की मांग की, तो उनके पति ने तलाक दे दिया।

इंदौर की रहने वाली शाहबानो को उनके पति ने 1975 में घर से निकाल दिया। जब शाहबानो ने गुजारे भत्ते की मांग की, तो उनके पति ने तलाक दे दिया।

दरअसल CrPC की धारा 125 के तहत बेसहारा या तलाकशुदा औरतें पति से गुजारा भत्ता मांग सकती हैं। चूंकि शादी या तलाक का केस सिविल केस होता है, लिहाजा इस मामले में मुस्लिम पर्सनल लॉ भी लागू होता था। इसी अधार पर शाहबानो के पति ने कोर्ट में दलील दी कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक मेहर की रकम चुकाने के बाद वे गुजारा भत्ता देने के लिए बाध्य नहीं हैं।

23 अप्रैल 1985 को सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो के हक में फैसला सुनाते हुए कहा कि CrPC 125 क्रिमिनल लॉ की धारा है, इसलिए वह मुस्लिम पर्सनल लॉ से ऊपर है। मुस्लिम उलेमाओं ने इस फैसले को अपने पर्सनल लॉ में दखल माना। वे कहने लगे कि ‘इस्लाम खतरे में है।’ देश में विरोध प्रदर्शन होने लगे।

राजीव गांधी की सरकार ने पहले तो सदन में सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के पक्ष में दलील दी, लेकिन बाद में सरकार के भीतर ही विरोध के स्वर उठने लगे। पर्यावरण मंत्री जिया उर रहमान अंसारी ने कहा- ‘जजों को कुरान और हदीस का कुछ पता नहीं। पान बेचने वाला अगर तेली बनने की कोशिश करेगा, तो खराब अंजाम होना लाजिमी है।’

प्रधानमंत्री जी फैसला लीजिए, वर्ना मुसलमानों का भरोसा सरकार से उठ जाएगा
राजीव गांधी सरकार में अल्पसंख्यक आयोग का काम देखने वाले वजाहत हबीबुल्लाह अपनी किताब ‘माय ईयर्स विद राजीव’ में लिखते हैं- ‘एक दिन मैं प्रधानमंत्री के चैंबर में पहुंचा। एमजे अकबर राजीव गांधी के पास ही बैठे थे। वे उन्हें समझा रहे थे कि सरकार ने शाहबानो केस में कोर्ट के जजमेंट खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया, तो मुसलमानों को लगेगा कि प्रधानमंत्री उन्हें अपना नहीं मानते।’

द टेलीग्राफ के संपादक रहे एमजे अकबर तब राजीव गांधी के बेहद करीबी थे। बाद में उनकी सरकार में मंत्री भी बने।

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ एमजे अकबर। एमजे अकबर 2014 में BJP में शामिल हो गए।

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ एमजे अकबर। एमजे अकबर 2014 में BJP में शामिल हो गए।

मुस्लिम बहुल इलाके में कांग्रेस 40 सीटें हार गई
शाहबानो केस पर सियासी गहमागहमी के बीच 1985 में कुछ राज्यों में विधानसभा और लोकसभा के उपचुनाव हुए। असम विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 66 सीटों का नुकसान हुआ। किशनगंज लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस हार गई। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 40 सीटें गंवा दीं। ये वो सीटें थीं, जहां मुस्लिम आबादी करीब 40 फीसदी थी।

राजीव, आप मुझे नहीं समझा पा रहे, तो देश को कैसे समझाओगे- सोनिया गांधी
1985 के अंत तक मुस्लिम उलेमाओं ने राजीव गांधी को सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटने के लिए मना लिया। जब सोनिया गांधी को इसके बारे में पता चला तो वो नाराज हो गईं।

वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी अपनी किताब हाऊ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड में लिखती हैं- ‘सोनिया ने राजीव से कहा- राजीव, आप इस बिल के बारे में मुझे कन्विंस नहीं कर पा रहे हैं, तो देश को कैसे समझाओगे। आपको सुप्रीम कोर्ट के फैसले का साथ देना चाहिए।’

शाहबानो केस में सोनिया गांधी का मानना था कि अगर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सरकार पलटती है, तो BJP और संघ वाले इसका फायदा उठाएंगे।

शाहबानो केस में सोनिया गांधी का मानना था कि अगर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सरकार पलटती है, तो BJP और संघ वाले इसका फायदा उठाएंगे।

राजीव गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटा, विरोध में मंत्री आरिफ मोहम्मद खान का इस्तीफा
फरवरी 1986, राजीव गांधी ने सोनिया की सलाह को दरकिनार करते हुए सदन में द मुस्लिम वुमन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन डाइवोर्स) एक्ट 1986 पेश किया। 5 मई को सदन से कानून भी पास हो गया। नए कानून के तहत मुस्लिम महिलाएं गुजारा भत्ते का हक नहीं मांग सकती थीं।

इस बिल के विरोध में राजीव गांधी सरकार में मंत्री रहे आरिफ मोहम्मद खान ने इस्तीफा दे दिया। आरिफ मोहम्मद खान ने कहा- ‘कुछ महीने पहले, मैंने जिस जजमेंट के पक्ष में सदन में दलील दी और राजीव गांधी ने मेरे भाषण की तारीफ की थी, अब उसी जजमेंट के खिलाफ मैं कैसे खड़ा हो सकता हूं।’

‘नरसिम्हा राव ने मुझसे कहा ‘मुस्लिम गटर में रहना चाहते हैं तो रहने दो’- आरिफ मोहम्मद खान
2019 में एक टीवी इंटरव्यू में आरिफ मोहम्मद खान ने बताया, ‘जिस दिन राजीव गांधी बिल लेकर आए, उसी दिन मैंने इस्तीफा दिया। अगले दिन जब मैं पार्लियामेंट पहुंचा, तो अर्जुन सिंह (मध्य प्रदेश के पूर्व CM और गांधी परिवार के करीबी) मुझसे मिले। इस्तीफा वापस लेने की बात कहते हुए वे मुझे एक वेटिंग रूम में ले गए। वहां तीन केंद्रीय मंत्री मुझे समझाने आए।

इसके बाद नरसिम्हा राव मुझसे मिले। उन्होंने कहा- ‘शाहबानो ने अपना केस वापस ले लिया है, लेकिन तुम जिद पर अड़े हो। अगर कोई वर्ग गटर में पड़ा रहना चाहता है, तो तुम्हें उस पर दबाव डालने की क्या जरूरत है। हम राजनीतिक पार्टी हैं, कोई समाज सुधारक थोड़े हैं।’

साल 1984 की तस्वीर। आरिफ मोहम्मद खान (बाएं से पहले) और पूर्व राजीव गांधी (दाएं से दूसरे)। तब आरिफ मोहम्मद खान गृह राज्य मंत्री थे।

साल 1984 की तस्वीर। आरिफ मोहम्मद खान (बाएं से पहले) और पूर्व राजीव गांधी (दाएं से दूसरे)। तब आरिफ मोहम्मद खान गृह राज्य मंत्री थे।

हिंदुओं की नाराजगी बैलेंस करने के लिए राम मंदिर का ताला खुलवाया
साल 1989, नवंबर-दिसंबर में लोकसभा चुनाव होने थे। शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटने के बाद सरकार के खिलाफ एंटी हिंदू सेंटिमेंट का माहौल था। BJP सरकार पर आरोप लगा रही थी कि हिंदू पर्सनल लॉ में तो रिफॉर्म कर दिया गया, लेकिन वोट बैंक के चक्कर में सरकार मुस्लिम तुष्टिकरण कर रही है।

वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी बताती हैं- ‘अरुण नेहरू ने राजीव को सलाह दी कि बाबरी मस्जिद का ताला खोल दीजिए। इससे हिंदुओं की नाराजगी बैलेंस हो जाएगी।’ अरुण नेहरू तब राजीव गांधी के सलाहकार थे। फरवरी 1989 में राम मंदिर का ताला खोल दिया गया।’

BJP ने मैनिफेस्टो में लिखा- हमारी सरकार आई तो पर्सनल लॉ में बदलाव करेंगे
1956 में जब हिंदू कोड बिल आया, तो जनसंघ पर्सनल लॉ में रिफॉर्म के खिलाफ था। जनसंघ के नेताओं का कहना था कि सरकार को धार्मिक मामलों में दखल नहीं देना चाहिए, लेकिन 1989 में BJP ने अपने मैनिफेस्टो में लिखा- ‘हमारी सरकार बनी तो पर्सनल लॉ में बदलाव के लिए कमीशन बनाएंगे।’

एक्सपर्ट्स मानते हैं कि शाहबानो केस के बाद BJP हिंदू कोड बिल वापस लेने की बात तो नहीं कर सकती थी, लेकिन उसे अपने वोटर्स को यह मैसेज देने का मौका मिल गया कि हिंदुओं के पर्सनल लॉ में बदलाव हुआ है, तो दूसरे धर्मों के पर्सनल लॉ में भी बदलाव होगा।’

1989 के लोकसभा चुनाव में BJP शाहबानो मामले को बहुत हद तक भुनाने में कामयाब भी रही। 1984 में 414 सीटें जीतने वाली कांग्रेस 197 सीटों पर सिमट गई। दूसरी तरफ 1984 में 2 सीटें जीतने वाली BJP 85 सीटों पर पहुंच गई।

PM बनने के दो साल बाद मोदी ने पहली बार तीन तलाक का जिक्र किया
फरवरी 2016, नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बने करीब दो साल हुए थे। इसी बीच उत्तराखंड की रहने वाली सायराबानो ने सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक के खिलाफ याचिका लगाई। सायराबानो के पति ने डाक के जरिए चिट्ठी लिखकर तीन तलाक दिया था। सियासी गलियारे में 31 साल बाद फिर से तीन तलाक और पर्सनल लॉ का मुद्दा गूंजने लगा।

तारीख 25 अक्टूबर 2016, UP विधानसभा चुनाव में तीन-चार महीने का वक्त बचा था। महोबा में PM मोदी ने एक रैली में कहा- ‘हम किसी भी मुस्लिम महिला की जिंदगी, तीन तलाक के चलते बर्बाद नहीं होने देंगे।’

यह पहली बार था जब प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने तीन तलाक का जिक्र किया।

जनवरी 2017 में BJP ने UP चुनाव के लिए मैनिफेस्टो लॉन्च किया। इसमें पार्टी ने तीन तलाक का जिक्र किया। तब BJP अध्यक्ष अमित शाह ने कहा- तीन तलाक का मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। UP में हमारी सरकार आती है, तो हम इस पर मुस्लिम महिलाओं से राय लेंगे।’

22 अगस्त 2017, सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक करार देते हुए केंद्र से इस पर कानून बनाने के लिए कहा। इस फैसले से BJP को अपना दशकों पुराना वादा पूरा करने का मौका मिल गया।

पहली बार 2017 में BJP ने UP विधानसभा चुनाव के दौरान अपने मैनिफेस्टो में तीन तलाक का जिक्र किया था।

पहली बार 2017 में BJP ने UP विधानसभा चुनाव के दौरान अपने मैनिफेस्टो में तीन तलाक का जिक्र किया था।

मोदी सरकार ने एक साल में दो बार तीन तलाक बिल पेश किया
28 दिसंबर 2017, मोदी सरकार ने तीन तलाक बिल पेश किया। तब कांग्रेस, राजद, AIADMK, BJD सहित कई पार्टियों ने बिल का विरोध किया। हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि तीन तलाक देने के बाद शौहर जेल चला जाएगा, तो उस महिला को मेंटेनेंस कौन देगा।

इस पर PM मोदी ने 7 फरवरी 2018 को राज्यसभा में कहा – ‘’हिंदू दो शादी करे। वो जेल चला जाए। उसके लिए आपको विचार नहीं आया कि तब उसके परिवार के लोग क्या खाएंगे।’’

यह बिल लोकसभा में ध्वनि मत से पास हो गया, लेकिन राज्यसभा में बहुमत नहीं होने की वजह से सरकार ने इसे होल्ड कर दिया।

करीब 9 महीने बाद यानी सितंबर 2018 में एक बार फिर से मोदी कैबिनेट ने तीन तलाक के अध्यादेश को मंजूरी दी। तब मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मिजोरम और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव में एक महीने का वक्त बचा था।

दिसंबर 2018 में एक बार फिर से तीन तलाक बिल पेश किया गया। इस बार भी यह बिल लोकसभा से पास हो गया, लेकिन राज्यसभा में अटक गया। एक्सपर्ट्स का मानना है कि मोदी सरकार 2019 लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे को लेकर जाना चाहती थी। इसलिए राज्यसभा में बहुमत नहीं होने के बाद भी इसे सदन में लेकर आई।

दोबारा PM बनने के दो महीने बाद बनाया तीन तलाक कानून
10 मार्च 2019 को लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई। BJP ने मैनिफेस्टो में तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाने की बात कही। करीब एक महीने बाद यानी 14 अप्रैल को अलीगढ़ में एक चुनावी सभा में मोदी ने कहा- ‘मैं पीड़ित बहनों को भरोसा दिलाना चाहता हूं कि 23 मई को फिर एक बार मोदी सरकार बनने के बाद तीन तलाक पर बना कठोर बिल, सदन में लाया जाएगा।’

30 मई 2019 को नरेंद्र मोदी 303 सीटें जीतकर दोबारा प्रधानमंत्री बने। जून 2019 में नई सरकार के पहले ही पार्लियामेंट सेशन में तीन तलाक बिल पेश किया गया। इस पर लोकसभा में जोरदार हंगामा हुआ।

कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा- ‘पांच साल से देश में लिंचिंग हो रही है। सुप्रीम कोर्ट ने कानून बनाने के लिए कहा, लेकिन आपने कानून नहीं बनाया। जहां आपको सूट करता है, वहां आप सुप्रीम कोर्ट का सहारा लेते हैं।’

हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा- ‘इस्लाम में शादी एक कॉन्ट्रैक्ट है। हम उसमें खुश हैं। आप कह रहे हैं जन्म-जन्म का साथ है। नहीं बाबा एक ही जिंदगी काफी है। जो शादी कर चुके हैं, जिनके पास बीवी है, उनको मालूम है कि क्या तकलीफ है।’

इस पर सदन में ठहाका लगता है… फिर ओवैसी कहते हैं- ‘गैरमुस्लिम पति तलाक देता है, तो एक साल की सजा और मुसलमान के लिए तीन साल की सजा। यह संविधान के आर्टिकल 14 और 15 के खिलाफ है?’

इस पर कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद कहते हैं- ‘हम संसद हैं, हमारा काम कानून बनाना है और जनता ने हमें कानून बनाने के लिए चुना है। कानून पर बहस अदालत में होती है, लोकसभा को अदालत न बनाएं।’

रविशंकर प्रसाद आगे कहते हैं- ‘संविधान के आर्टिकल 15 में कहा गया है कि यह आर्टिकल सरकार को महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान बनाने से नहीं रोकता है।’

तीन तलाक बिल पर बहस के दौरान PM मोदी ने कहा कि कांग्रेस के पास 34 साल पहले महिलाओं को न्याय दिलाने का मौका था, लेकिन वो चूक गई।

तीन तलाक बिल पर बहस के दौरान PM मोदी ने कहा कि कांग्रेस के पास 34 साल पहले महिलाओं को न्याय दिलाने का मौका था, लेकिन वो चूक गई।

राज्यसभा में अल्पमत में रहने के बाद भी मोदी ने बिल पास करा लिया
26 जुलाई 2019 को तीन तलाक बिल लोकसभा से पास हुआ। इसके बाद 30 जुलाई को यह राज्यसभा से भी पास हो गया। राज्यसभा में इसके पक्ष में 99 वोट पड़े और विपक्ष में 84 वोट। वोटिंग के दौरान JDU, AIADMK सदन से वॉक आउट कर गए। कांग्रेस के तीन सांसद, NCP के दो सांसद, TMC के दो सांसद, RJD के दो और सपा के एक सांसद सदन में मौजूद नहीं थे।

इससे राज्यसभा में अल्पमत में रहने के बाद भी मोदी सरकार ने बिल पास करा लिया। इस कानून के बनने के बाद इंस्टैंट तीन तलाक यानी एक ही बार में तीन तलाक देना अपराध हो गया। ऐसा करने वालों के लिए तीन साल तक की सजा का प्रावधान किया गया।

प्रधानमंत्री मोदी ने तीन तलाक कानून क्यों बनाया… 5 बड़े मकसद

1. हिंदू कोड बिल से नाराज वोटर्स को साधना : 1956 में जब देश में हिंदू कोड बिल लागू हुआ, तो देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए। हिंदू महासभा और संत समाज ने इसका जोरदार विरोध किया। तब जनसंघ ने कहा था कि उसकी सरकार बनी, तो हिंदू कोड बिल वापस लिया जाएगा।

जमाते इस्लामी हिन्द के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रोफेसर मोहम्मद सलीम इंजीनियर बताते हैं, ‘तीन तलाक पर कानून बनाकर सरकार ने अपने वोटर्स को यह मैसेज दिया कि देखो हम ही वो हैं, जो मुसलमानों को काबू में रख सकते हैं। उन पर कड़ी कार्रवाई कर सकते हैं। सरकार की मंशा तीन तलाक कानून के जरिए हिंदू बनाम मुसलमान करने की साजिश है, ताकि चुनावों में पोलराइजेशन हो सके।’

2. मोदी का एजेंडा : प्रधानमंत्री बनने के बाद ही मोदी ने अपने फैसलों से यह दिखाने की कोशिश की है कि वे मजबूत फैसला लेते हैं। तीन तलाक करीब तीन दशक पुराना मामला था। दबाव के चलते राजीव गांधी को सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटना पड़ा था। मोदी ने PM बनने के पांच साल बाद ही राजीव गांधी के कानून को बदलकर तीन तलाक को अपराध बना दिया।

3. पार्टी का एजेंडा : शाहबानो केस के बाद BJP ने मैनिफेस्टो में पर्सनल लॉ में सुधार करने की बात कही थी। UP चुनाव के दौरान 2017 में और फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने मैनिफेस्टो में तीन तलाक खत्म करने का वादा किया। जुलाई 2019 में मोदी सरकार ने तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाकर BJP के 1989 के वादे को पूरा किया।

4. प्रोग्रेसिव इमेज बनाने की कोशिश: तीन तलाक कानून बनने के बाद 30 जुलाई 2019 को मोदी ने सोशल मीडिया पर लिखा- ‘तीन तलाक बिल का पास होना महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक बहुत बड़ा कदम है। तुष्टिकरण के नाम पर देश की करोड़ों माताओं-बहनों को उनके अधिकार से वंचित रखने का पाप किया गया। मुझे इस बात का गर्व है कि मुस्लिम महिलाओं को उनका हक देने का गौरव हमारी सरकार को प्राप्त हुआ।’

15 अगस्त 2019 को प्रधानमंत्री ने लाल किले से तीन तलाक का जिक्र करते हुए कहा- ‘तीन तलाक खत्म करने का फैसला सदियों तक माताओं-बहनों की रक्षा की गारंटी देता है। इस साल यानी 10 फरवरी 2024 को 17वीं लोकसभा सत्र के आखिरी दिन PM ने कहा- ‘तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाना गेम चेंजर है।’

5. मुस्लिम वोटर्स में सेंधमारी की कोशिश : लोकसभा की 543 सीटों में से 145 सीटें ऐसी हैं, जिन पर 10 से 20% मुस्लिम आबादी है। 35 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम आबादी 30% से ज्यादा है। 28 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम आबादी 20 प्रतिशत से ज्यादा है। इस तरह कुल 208 सीटों पर मुस्लिम वोटर्स की मजबूत पकड़ है।

CSDS की रिपोर्ट के मुताबिक 2017 के UP चुनाव में BJP को 7 प्रतिशत मुस्लिम वोट मिले, जबकि 2022 के चुनाव में उसे 8 प्रतिशत मुस्लिम वोट मिले।

RSS की मुस्लिम विंग मानी जाने वाली संस्था राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के संयोजक मोहम्मद फैज खान बताते हैं, ‘प्रधानमंत्री ने सदियों से जिल्लतभरी जिंदगी जी रही महिलाओं को इंसाफ दिलाया। ऐसे में जाहिर सी बात है कि उन महिलाओं का BJP के प्रति रुख नरम होगा।’

हालांकि, प्रोफेसर मोहम्मद सलीम इंजीनियर का कहना है कि मुस्लिम महिलाएं मोदी के झांसे में नहीं आएंगीं। वे अच्छी तरह समझती हैं कि यह एक सियासी फैसला है। इसके पीछे राजनीति है।

तस्वीर 2021 की है। भोपाल की मुस्लिम महिलाएं प्रधानमंत्री मोदी के स्वागत में उनका पोस्टर लिए खड़ी हैं। पोस्टर में लिखा था- तीन तलाक खत्म करने के लिए धन्यवाद मोदी जी।

तस्वीर 2021 की है। भोपाल की मुस्लिम महिलाएं प्रधानमंत्री मोदी के स्वागत में उनका पोस्टर लिए खड़ी हैं। पोस्टर में लिखा था- तीन तलाक खत्म करने के लिए धन्यवाद मोदी जी।

प्रधानमंत्री जी… हिंदू महिलाओं की तरह अधिकार दिला दीजिए- तीन तलाक पीड़ित महिला
अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक तीन तलाक के खिलाफ कानून बनने के बाद जेल जाने के डर से बिना तलाक दिए पत्नी को छोड़ने के मामले बढ़े हैं। मथुरा की रहने वाली रोशनी के साथ भी ऐसा ही हुआ।

वे बताती हैं- ‘’2022 में मेरी शादी हुई। कुछ महीने बाद ही ससुराल वाले मेरे साथ मार-पीट करने लगे। दहेज का दबाव बनाने लगे। फिर मुझे घर से निकाल दिया। सबके सामने मेरे चरित्र पर इल्जाम लगाया। कुछ महीने बाद पति ने बिना तलाक दिए दूसरी शादी कर ली। इसकी शिकायत लेकर जब मैं थाने गई, तो पुलिस ने कहा कि इस्लाम में चार शादियों की इजाजत है, हम कुछ नहीं कर सकते।

मैं प्रधानमंत्री से कहना चाहती हूं कि तीन तलाक कानून बहुत अच्छा है, लेकिन अब जेल जाने के डर से मर्द तलाक दिए बिना पत्नी को छोड़ दे रहे हैं। इससे महिलाओं का जख्म और बढ़ गया। आप मुस्लिम महिलाओं को भी हिंदू महिलाओं की तरह अधिकार दिला दीजिए।’’

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