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5 बड़े फैसलों की तैयारी में राजस्थान सरकार:10 जिले घटाने, महिलाओं को सभी नौकरियों में 50% आरक्षण पर विचार

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5 बड़े फैसलों की तैयारी में राजस्थान सरकार:10 जिले घटाने, महिलाओं को सभी नौकरियों में 50% आरक्षण पर विचार

राजस्थान में वर्तमान में 50 जिले हैं। हाल ही में भजनलाल सरकार ने पिछली गहलोत सरकार में बनाए गए नए जिलों की समीक्षा के आदेश जारी कर दिए हैं। सूत्रों की मानें तो प्रदेश सरकार उनमें से 10 जिले कम कर सकती है।

सरकार जिलों की संख्या 35-37 से ज्यादा नहीं रखना चाहती। ऐसे में किन्हीं 10 जिला मुख्यालयों को फिर से उपखंड मुख्यालयों में बदला जाएगा।

आगामी कुछ दिनों में सरकार ऐसे ही 5 बड़े फैसले ले सकती है। पिछली गहलोत सरकार से चल रही 3 स्कीम को भी अपने हिसाब से बदलने की तैयारी है। पढ़िए मंडे स्पेशल स्टोरी में पूरी रिपोर्ट…

फैसला नंबर- 1 : राजस्थान के नवगठित जिलों का रिव्यू, 10 पर गिर सकती है गाज

सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर क्यों जिलों की संख्या कम करने का विचार आया? चार महीने पहले राज्य सरकार को भेजी एक समीक्षा रिपोर्ट में पुलिस विभाग ने दूदू और खैरथल-तिजारा से जिले का दर्जा हटाने की मांग की थी। पुलिस मुख्यालय की इस रिपोर्ट के अनुसार, दूदू और खैरथल-तिजारा का कार्यक्षेत्र बहुत छोटा है। यह दो से तीन पुलिस थाना क्षेत्रों तक सीमित है। यहां एक वृत्ताधिकारी (सीओ-डिप्टी एसपी) का पद ही पर्याप्त है। एएसपी और एसपी का कार्यक्षेत्र बनता ही नहीं है।

इसके बाद से ही राज्य सरकार इस बात पर गहनता से विचार कर रही है कि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने राजनीतिक लाभ-हानि के हिसाब से जिले बना दिए न कि पुलिस-प्रशासन की आवश्यकता के अनुसार। ऐसे में भाजपा सरकार ने हाल ही में 5 मंत्रियों की एक कैबिनेट सब कमेटी बनाकर जिलों के स्टेटस पर एक रिपोर्ट मांगी है।

इस कमेटी से गहलोत राज में बने 17 नए जिलों और 3 नए संभागों का भजनलाल सरकार समीक्षा करवाएगी। उप मुख्यमंत्री प्रेमचंद बैरवा के संयोजन में ये कमेटी बनी है। इस कैबिनेट सब कमेटी में उद्योग मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़, पीएचईडी मंत्री कन्हैयालाल चौधरी, राजस्व मंत्री हेमंत मीणा और जल संसाधन मंत्री सुरेश सिंह रावत को सदस्य बनाया गया है।

कौन से नए जिले सरकार की मापदंडों में नहीं बैठ रहे फिट?
सूत्रों ने बताया कि राजस्व विभाग के रिकॉर्ड के अनुसार 10-12 जिलों का सीमांकन व आबादी जिला बनाने के पैमाने पर फिट नहीं बैठ रही। ये नए जिले हैं…

दूदू (जयपुर), खैरथल-तिजारा (अलवर), शाहपुरा (भीलवाड़ा), सांचौर (जालोर), डीग (भरतपुर), गंगापुर सिटी (सवाईमाधोपुर), कोटपूतली-बहरोड़ (जयपुर), सलूम्बर (उदयपुर), नीमकाथाना (सीकर), केकड़ी (अजमेर), अनूपगढ़ (बीकानेर) और फलोदी (जोधपुर) आदि जिलों से जिलों का दर्जा वापस लिया जा सकता है।

इन जिलों को बरकरार रखा जा सकता है : नए बनाए जिलों में ब्यावर, बालोतरा और डीडवाना-कुचामन आदि का स्टेटस बरकरार रहने की पूरी संभावना है।

किस आधार पर बनाए गए थे जिले, आजतक नहीं हुआ खुलासा?
रिव्यू कराने के पीछे एक कारण यह भी माना जा रहा है कि कांग्रेस सरकार ने जो नए जिले बनाए थे, उनमें से कई क्षेत्रों में तो कभी जनता के स्तर पर जिला बनाने की मांग तक नहीं की गई थी। नए जिलों के गठन के लिए रिटायर्ड आईएएस रामलुभाया की अध्यक्षता में जो कमेटी बनाई थी, उस कमेटी ने कभी भी जिला बनाने का आधार-मापदंड तक सार्वजनिक नहीं किए थे। भाजपा सरकार जल्द ही जिला बनाने के संबंध में मापदंडों को सार्वजनिक करेगी।

क्या हटाने के साथ कुछ नए जिले भी बना सकती है?
राज्य सरकार जयपुर ग्रामीण, जोधपुर ग्रामीण, कुचामन, मालपुरा, सुजानगढ़ आदि घोषित जिलों (जिनका प्रशासनिक गठन अब तक नहीं हुआ) को बरकरार रखने या नया स्वरूप तय करने की समीक्षा कर रही है। कुछ नए जिले जैसे सरदारशहर, किशनगढ़, सांभर-फुलेरा, निम्बाहेड़ा आदि भी बनाए जा सकते हैं।

नए जिलों की समीक्षा पर पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राज्य सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए हैं।

नए जिलों की समीक्षा पर पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राज्य सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए हैं।

फैसला नंबर-2 : महिलाओं के लिए आरक्षण का दायरा सभी नौकरियों में बढ़ाने की तैयारी
हाल ही में राज्य सरकार ने तृतीय श्रेणी शिक्षक भर्ती परीक्षा में महिलाओं के लिए तय आरक्षण 30 प्रतिशत को बढ़ाकर 50 प्रतिशत करने की घोषणा की है। सूत्रों का कहना है कि यह प्रयोगात्मक आधार पर किया जा रहा है। सरकार महिलाओं के आरक्षण को लेकर विधिक परीक्षण करवा रही है। जल्द ही सभी तरह की सरकारी नौकरियों में तय आरक्षण की सीमा महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत तक की जा सकती है। इसकी शुरुआत शिक्षा विभाग के विभिन्न पदों (द्वितीय श्रेणी अध्यापक व व्याख्याता आदि) से की जाएगी।

एक्सपर्ट के मुताबिक, भाजपा शासित राज्यों में महिलाओं को सरकारी नौकरियों में आरक्षण का दायरा बढ़ाने की कवायद इसलिए की जा रही है, ताकि आधी आबादी को अपना प्रशंसक मतदाता वर्ग में बदला जा सके।

फैसला नंबर- 3 : दो नगर निगम हटाकर अन्य शहरों में निगम बढ़ाने की कवायद
कांग्रेस सरकार ने जयपुर, जोधपुर व कोटा में स्थापित नगर निगमों को दो-दो कर दिया था। हाल ही प्रदेश की बीजेपी सरकार फिर से इन तीनों शहरों के नगर निगमों को एक-एक करने का फैसला किया है।

जयपुर में अभी हेरिटेज और ग्रेटर, दो नगर निगम हैं। इन्हें अब एक करने की तैयारी है।

जयपुर में अभी हेरिटेज और ग्रेटर, दो नगर निगम हैं। इन्हें अब एक करने की तैयारी है।

इसके साथ ही भीलवाड़ा, अलवर, पाली, बांसवाड़ा, सीकर, नागौर और श्रीगंगानगर में से तीन-चार शहरों में नगर निगम स्थापित करने की तैयारी भी सरकार कर रही है। इसके लिए स्वायत्त शासन विभाग के स्तर पर आबादी के आंकड़े जुटाए जा रहे हैं। निगम बनाने के लिए 5 लाख की आबादी शहरी क्षेत्र में चाहिए, हालांकि राज्य सरकार चाहे तो वो विशेष परिस्थितियों में छूट भी दे सकती है।

फैसला नंबर- 4 : गुजरात की तर्ज पर डिस्टर्ब एरिया जोन
भाजपा ने वर्ष 2018 और 2023 के विधानसभा चुनावों में राजधानी जयपुर इस बात को लगातार मुद्दा बनाया था कि परकोटे में स्थित तीन विधानसभा क्षेत्रों हवामहल, आदर्शनगर और किशनपोल में हिंदुओं की संपत्तियों को दबाव बनाकर खरीदा-बेचा जा रहा है। कई बार परकोटे में हिंदुओं की संपत्ति को खरीदने-बेचने के लिए दबाव बनाने के पोस्टर-बैनर भी लगे। बीते सप्ताह भी जयपुर की भट्टा बस्ती इलाके में इस तरह के पोस्टर-बैनर नजर आए थे।

हवामहल और किशनपोल विधानसभा क्षेत्र पिछले 11 में से 8 बार भाजपा ने जीते हैं, लेकिन अब दो बार से लगातार वो वहां से हार रही है। पार्टी की राजनीतिक समीक्षा में क्षेत्र में लगातार घटते हिन्दुओं की संख्या को चिंताजनक माना गया है।

जयपुर के नंदपुरी क्षेत्र में पलायन को लेकर लगा एक बैनर।

जयपुर के नंदपुरी क्षेत्र में पलायन को लेकर लगा एक बैनर।

ऐसे में अब भाजपा सरकार इन विधानसभा क्षेत्रों सहित प्रदेश में मालपुरा, मकराना, तिजारा, कामां, मसूदा, पुष्कर, पोकरण, जैसलमेर, नागौर, अजमेर आदि क्षेत्रों में डिस्टर्ब एरिया जोन पॉलिसी लागू कर सकती है।

यह पॉलिसी गुजरात में लागू है। इसके तहत ऐसे इलाकों में दो अलग-अलग धर्म-मजहब के लोग जब किसी सम्पत्ति को खरीदते-बेचते हैं, तो उसके लिए जिला कलेक्टर की इजाजत लेनी पड़ती है। साथ ही आस-पड़ोस में रहने वालों से भी नो-ऑब्जेक्शन (अनापत्ति) प्रमाण पत्र लेना पड़ता है। यह पॉलिसी अब यहां राजस्थान में भी लागू हो सकती है।

फैसला नंबर- 5 : सभी जिलों का एक उत्पाद तय करना, बजट में हो सकती है घोषणा
उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार ने सभी जिलों का एक पहचान चिह्न बनाते हुए किसी न किसी उत्पाद को जिला उत्पाद (डिस्ट्रिक्ट प्रोडक्ट) घोषित किया हुआ है। उसके उत्पादन के संबंध में बहुत सी प्रशासनिक व करों संबंधी छूट भी दी हुई है। इससे रोजगार, कृषि, उद्योग और पर्यटन में खासी बढ़ोतरी हुई है।

उदाहरण के तौर पर जयपुर में घेवर, बीकानेर में भुजिया, नागौर में मेथी, भरतपुर में सरसों आदि। अब राजस्थान में हर जिले का एक खास उत्पाद तय कर उसे सरकारी स्तर पर नई पहचान दी जाएगी। उस प्रोडक्ट का उत्पादन बढ़ाने पर विशेष काम हो सकेगा। जुलाई के मध्य में विधानसभा में पेश होने वाले बजट में इस बारे में घोषणा हो सकती है।

मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने सप्ताह भर में जिलों की समीक्षा, नगर निगमों की समीक्षा सहित तृतीय श्रेणी शिक्षक भर्ती परीक्षा में महिलाओं को 50 प्रतिशत पदों पर आरक्षण देने जैसे निर्णय किए हैं।

मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने सप्ताह भर में जिलों की समीक्षा, नगर निगमों की समीक्षा सहित तृतीय श्रेणी शिक्षक भर्ती परीक्षा में महिलाओं को 50 प्रतिशत पदों पर आरक्षण देने जैसे निर्णय किए हैं।

पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के इन 3 कार्यों को पूरी तरह से बदले जाने या नियमों में बदलाव को लेकर हो सकती है समीक्षा

पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने जिन 3 बड़े कामों को अपना राजनीतिक मास्टर स्ट्रोक मानकर लागू किया था, उन्हें भाजपा सरकार पूरी तरह से बदल सकती है। इसके लिए समीक्षा जल्द ही करवाकर बजट में इसकी घोषणा कर सकती है। इन कामों के जरिए कांग्रेस विधानसभा चुनावों से सत्ता में वापसी करना चाहती थी, लेकिन कर नहीं पाई। भाजपा अब इन्हें बदलना चाहती है।

1. ओल्ड पेंशन स्कीम
राजस्थान में मार्च-2022 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने बजट में कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) लागू की थी। इसके तहत 1 अप्रैल-2004 के बाद सरकारी सेवा में आए अधिकारियों-कर्मचारियों को भी पहले की तरह पेंशन लाभ मिलेगा। नई पेंशन स्कीम में रिटायरमेंट के बाद प्रतिमाह पेंशन राशि मिलने का प्रावधान नहीं था।

राजस्थान में ओपीएस लागू होने के बाद देश के पांच राज्यों में सरकारों ने ओपीएस लागू की, जिनमें छत्तीसगढ़, झारखंड, पंजाब, दिल्ली और हिमाचल प्रदेश शामिल थे। लेकिन भाजपा ने देश के किसी भी राज्य में ओपीएस लागू नहीं किया है।

मार्च 2022 में राजस्थान में कांग्रेस सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के लिए ओपीएस (ओल्ड पेंशन स्कीम) लागू की थी।

मार्च 2022 में राजस्थान में कांग्रेस सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के लिए ओपीएस (ओल्ड पेंशन स्कीम) लागू की थी।

भाजपा ओपीएस के पक्ष में नहीं है। देश के करीब 17 राज्यों में भाजपा की सरकार है और केन्द्र में लगातार तीसरी बार भाजपानीत एनडीए की सरकार बन चुकी है। ऐसे में भाजपा के लिए ओपीएस गले की फांस बनी हुई है। वो इसे राजस्थान में लागू रखती है, तो उसे नैतिक तौर पर अन्य राज्यों के सरकारी कर्मियों के लिए भी लागू करना पडे़गा।

ऐसे में वो इसे 17 राज्यों और केन्द्र सरकार के विभागों में लागू करने के बजाय राजस्थान में बंद करने का निर्णय कर सकती है, ताकि उसकी नीति पूरे देश में एक रूप में रह सके। केन्द्रीय वित्त मंत्रालय, नीति आयोग और वित्त आयोग पहले ही ओपीएस को देश व प्रदेश के आर्थिक-वित्तीय संसाधनों के लिए घातक बता चुके हैं। ऐसे में एक्सपर्ट भी बता रहे हैं कि राजस्थान में ओपीएस अब ज्यादा दिनों तक लागू नहीं रह सकेगी।

2. नई यूनिवर्सिटी और नए कॉलेजों को मर्ज किया जाएगा
कांग्रेस सरकार ने पत्रकारिता, कृषि, विधि के क्षेत्रों में यूनिवर्सिटी खोलने सहित 133 नए कॉलेज उन उपखंड मुख्यालयों पर खोल दिए थे, जहां अधिकांश जगहों पर उनके भवन भी नहीं बन पाए। वे किसी न किसी सरकारी विभाग के भवन या उच्च माध्यमिक स्कूलों के भवनों में ही चल रहे हैं।

जोधपुर में राजस्थान की पहली डिजिटल यूनिवर्सिटी बनाने की घोषणा भी पिछली गहलोत सरकार के दौरान की गई थी।

जोधपुर में राजस्थान की पहली डिजिटल यूनिवर्सिटी बनाने की घोषणा भी पिछली गहलोत सरकार के दौरान की गई थी।

इन विश्वविद्यालयों और काॅलेजों में विद्यार्थियों की संख्या भी 100, 500 या 1000 तक भी नहीं है। ऐसे में इनका संचालन न केवल वित्तीय-प्रशासनिक दृष्टिकोण से संभव नहीं है, बल्कि इनके कारण प्रदेश की शैक्षणिक गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है। ऐसे में भाजपा सरकार जल्द ही इन्हें किन्हीं मुख्य विश्वविद्यालयों व बड़े राजकीय कॉलेजों में मर्ज कर सकती है। भाजपा सरकार एक बार पहले भी (2013-2018) में ऐसा कर चुकी है।

3. पेंशन व बेरोजगार भत्ते जैसी योजनाओं में संशोधन या फिर नए सिरे से लागू करना
गहलोत सरकार ने प्रदेश में बुजुर्गों, विधवाओं, एकल महिलाओं को प्रतिमाह पेंशन (750 से 1500 रुपए आयु अनुसार) दिए जाने का फैसला किया था। साथ ही बेरोजगारों को 3000 से 4500 रुपए का मासिक भत्ता देना भी तय किया था। इन दोनों ही योजनाओं में वित्तीय वर्ष 2020 से 2023 के बीच पूरे प्रदेश में बड़ा वित्तीय घोटाला सामने आया था।

हजारों की संख्या में एक ही व्यक्ति को दोहरी पेंशन मिलने, पात्र नहीं होते हुए भी पेंशन मिलने, गलत प्रमाण पत्रों के आधार पर पेंशन मिलने जैसे मामले उजागर हुए थे। इनसे राज्य सरकार के खजाने को करोड़ों रुपयों की चपत लगी थी। अब इनकी समीक्षा कर इन्हें नए स्वरूप में लागू किया जाएगा। बेरोजगारों को भत्ता देने की वर्तमान योजना को भी बंद कर इस संबंध में कोई नई नीति लाई जा सकती है।

क्या कहते हैं एक्सपट्‌र्स

रिटायर्ड आईपीएस अफसर बीएस राठौड़ का कहना है कि छोटे जिले बनाने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन उनकी फिजिबिलिटी तो देखनी ही चाहिए। क्या वे प्रशासनिक, पुलिस, राजस्व आदि के आधार पर जिला बनने लायक हैं भी या नहीं। क्या 40-50 हजार की आबादी के लिए राज्य सरकार पर पुलिस लाइंस, जिला मुख्यालय के दफ्तरों, सरकारी कार्मिकों की फौज, उनके सरकारी आवास आदि पर पैसा खर्च किया जाना उचित है। बिल्कुल नहीं है। राजनीतिक मांग व सिफारिश के आधार पर इतना बड़ा प्रशासनिक कदम नहीं उठाना चाहिए।

रिटायर्ड आईएएस अजीत कुमार सिंह का कहना है कि अगर किसी ताकतवर विधायक की मांग के आधार पर उसके निर्वाचन क्षेत्र को जिला बना दिया गया है, तो यह गलत है। समीक्षा होनी ही चाहिए और उसके आधार पर दुबारा सीमांकन किया जाना चाहिए। अब जयपुर या जोधपुर के ग्रामीण इलाकों में कभी भी कोई मांग नहीं उठी जिला बनाने की, फिर भी बना दिए गए तो समीक्षा करके यह देखना ही चाहिए कि यह प्रशासनिक स्तर पर उचित भी है या नहीं। मेरे विचार से वे जिले जो मापदंड पूरे नहीं करते उनका बदला जाना तय है।

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