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मेगा एंपायर- Indigo का रेवेन्यू 55 हजार करोड़:उधार के जहाज से भरी थी पहली उड़ान; आज भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन

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मेगा एंपायर- Indigo का रेवेन्यू 55 हजार करोड़:उधार के जहाज से भरी थी पहली उड़ान; आज भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन

मिडिल क्लास को हवाई जहाज में बैठाने का सपना पूरा करने वाली इंडिगो एयरलाइन अक्सर किसी न किसी वजह से चर्चा में रहती है। इस एयरलाइन को इंटरग्लोब एविएशन नाम की कंपनी ऑपरेट करती है। हाल ही में इंटरग्लोब एविएशन के MD राहुल भाटिया, जो इंडिगो के को-फाउंडर हैं, उन्होंने कंपनी में अपनी 2 प्रतिशत हिस्सेदारी बेच दी है। राहुल ने 3,292 करोड़ रुपए में 2% शेयर बेचे हैं। इसके बावजूद उनके पास कंपनी में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी है।

आज मेगा एंपायर में बात इंडिगो की…

1984 का साल था। दिल्ली के रहने वाले राहुल भाटिया कनाडा से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर भारत लौटे। वह कनाडा की नॉर्टेल कंपनी के साथ मिलकर भारत में टेलिकॉम बिजनेस शुरू करना चाहते थे। इसी सपने के साथ वह भारत लौटे थे। उस दौर में भारत सरकार विदेशी टेक्नोलॉजी के पक्ष में नहीं थी इसलिए उनका यह सपना अधूरा ही रह गया।

राहुल एक मिडिल क्लास फैमिली से थे। उनके पिता ‘दिल्ली एक्सप्रेस’ नाम से एक एयरलाइन टिकट बुकिंग एजेंसी चलाते थे। इस एजेंसी को उनके पिता ने 1964 में 9 पार्टनर के साथ मिलकर शुरू किया था। दिल्ली एक्सप्रेस में कुछ पार्टनर की धोखाधड़ी और पिता की बिगड़ती तबीयत को देखते हुए राहुल की एंट्री फैमिली बिजनेस में हुई।

राहुल ने पिता के साथ मिलकर 1989 में इंटरग्लोब एंटरप्राइजेज नाम से नई शुरुआत की। इसके बाद एयरलाइन और होटल्स के साथ बिजनेस को आगे बढ़ाने के लिए कई डील की।

राहुल ने पिता के साथ मिलकर 1989 में इंटरग्लोब एंटरप्राइजेज नाम से नई शुरुआत की। इसके बाद एयरलाइन और होटल्स के साथ बिजनेस को आगे बढ़ाने के लिए कई डील की।

इसी बीच 1992 में भारत सरकार ने एयरलाइंस के लिए प्राइवेट लाइसेंस देने की शुरुआत की। इस वजह से कई प्राइवेट कंपनियां एविएशन इंडस्ट्री में आ रही थीं। राहुल इस इंडस्ट्री में आना तो चाहते थे, लेकिन उन्हें इसकी हड़बड़ी नहीं थी। राहुल ने वक्त लिया, बेहतर रणनीति बनाई और उसके बाद एविएशन मार्केट में कदम रखा। एयरलाइन बिजनेस के लिए उन्हें एक पार्टनर की जरूरत थी, जो बने NRI राकेश गंगवाल।

राहुल भाटिया और राकेश गंगवाल की पहली मुलाकात
राहुल की राकेश से पहली मुलाकात काम के सिलसिले में ही हुई थी। राकेश अमेरिका में यूनाइटेड एयरलाइंस से जुड़े थे। राहुल की कंपनी इंटरग्लोब ग्रुप, इसी यूनाइटेड एयरलाइंस की भारत में जनरल सेल्स एजेंट थी।

बार-बार होने वाली मुलाकात की वजह से दोनों की दोस्ती बढ़ती गई। एक दिन राहुल ने राकेश से अपनी एयरलाइन कंपनी खोलने की बात की और दोनों इसका प्लान बनाने में जुट गए।

राकेश गंगवाल दशकों से एयरलाइंस में काम कर रहे थे। उन्होंने IIT कानपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग और व्हार्टन से MBA की पढ़ाई पूरी की थी। 1994 में गंगवाल एयर फ्रांस के एग्जीक्यूटिव वाइस प्रेसिडेंट बने, जिसके चार साल बाद 1998 में उन्हें US एयरवेज का प्रेसिडेंट और CEO बनाया गया।

इंडिगो की शुरुआत से पहले गंगवाल वर्ल्डस्पैन टेक्नोलॉजीज के चेयरमैन और CEO थे। यह कंपनी इंडस्ट्री को ट्रैवल टेक्नोलॉजी और इन्फॉर्मेशन सर्विस देती थी। (यूएस एयरलाइंस में काम करने के दौरान अवॉर्ड्स के साथ दायीं ओर खड़े राकेश गंगवाल)

इंडिगो की शुरुआत से पहले गंगवाल वर्ल्डस्पैन टेक्नोलॉजीज के चेयरमैन और CEO थे। यह कंपनी इंडस्ट्री को ट्रैवल टेक्नोलॉजी और इन्फॉर्मेशन सर्विस देती थी। (यूएस एयरलाइंस में काम करने के दौरान अवॉर्ड्स के साथ दायीं ओर खड़े राकेश गंगवाल)

2004 में इंडिगो ने दी दस्तक
काफी मशक्कत के बाद राहुल और राकेश को 2004 में इंडिगो एयरलाइन के लिए लाइसेंस मिला। इसी साल दोनों ने इंटरग्लोब एविएशन लिमिटेड की नींव रखी। इस कंपनी में दोनों की हिस्सेदारी बराबर की थी।

दिलचस्प यह है कि इंडिगो ने उस वक्त मार्केट में एंट्री ली, जब फ्यूल की कीमत में उछाल और रुपए में भारी गिरावट थी। इस समय भारतीय एयरलाइन इंडस्ट्री बुरे दौर से गुजर रही थी। किंगफिशर और स्पाइसजेट जैसी कंपनी घाटे में चल रही थीं।

100 जहाज के ऑर्डर के साथ सबको चौंकाया
2005 में पेरिस में एयर शो का आयोजन हुआ था। जिसमें इंडिगो ने एक साथ 5 लाख 43 हजार करोड़ (6.5 बिलियन डॉलर) के 100 एयरबस A320 एयरक्राफ्ट का ऑर्डर देकर सबको चौंका दिया था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक राकेश और राहुल ने सिर्फ 100 करोड़ लगाकर कंपनी शुरू की थी। ऐसे में हैरानी जायज थी, आखिर इतने कम इन्वेस्टमेंट में 100 जहाज कैसे लिया जा सकता है।

पता चला कि इसके पीछे राकेश गंगवाल का हाथ था। राकेश पिछले तीन दशक से एविएशन फील्ड में काम कर रहे थे। इस वजह से एयरबस कंपनी में उनकी अच्छी जान-पहचान थी। एयरबस कंपनी उनके नाम पर उधार में जहाज देने को राजी हो गई। इंडिगो ने 4% डाउनपेमेंट पर 100 जहाज उठाए, उन्हें इसके साथ 40% का डिस्काउंट भी मिला।

एक ही मॉडल के 100 जहाज लेने का यह फायदा भी हुआ कि पायलट से लेकर क्रू तक को एक बार और एक तरह की ट्रेनिंग देनी पड़ी।

एक ही मॉडल के 100 जहाज लेने का यह फायदा भी हुआ कि पायलट से लेकर क्रू तक को एक बार और एक तरह की ट्रेनिंग देनी पड़ी।

पहला जहाज उड़ाने में दो साल का वक्त लगा
कंपनी को अपना पहला जहाज उड़ाने में 2 साल का वक्त लग गया। 28 जुलाई 2006 को इंडिगो को अपना पहला एयरबस मिला। जिसके एक हफ्ते बाद 4 अगस्त 2006 को दिल्ली से गुवाहाटी के लिए इंडिगो की पहली फ्लाइट ने उड़ान भरी। यहां से भारतीय एविएशन इंडस्ट्री की तस्वीर बदलनी शुरू हो गई।

इंडिगो मिडिल क्लास को ध्यान में रखते हुए बनाई गई थी। फ्लाइट का किराया कम होने की वजह से यह जल्द ही लोगों के बीच काफी पॉपुलर हो गई।

पहली उड़ान भरने के लगभग चार साल में ही इंडिगो ने एअर इंडिया को पीछे छोड़ते हुए 17.3% मार्केट शेयर के साथ तीसरा स्थान हासिल कर लिया। आज कंपनी लगभग 61% मार्केट शेयर के साथ सबसे बड़ी भारतीय एयरलाइन कंपनी है।

मिडिल क्लास को किया टारगेट
इंडिगो ने पूरी तरह से मिडिल क्लास पर फोकस किया। कंपनी ने अपने जहाज में सिर्फ इकोनॉमी क्लास की सीटें लगाईं। हर फ्लाइट में 180 लोगों के बैठने की जगह बनाई गई। कॉस्ट कटिंग के लिए सफर के दौरान फ्री का खाना हटा दिया गया।

कंपनी ने अपने स्टाफ को भी अलग तरह से ट्रेन किया। सभी को खास इंस्ट्रक्शन दिया गया कि 25 मिनट के अंदर जहाज फिर से उड़ने के लिए तैयार हो जाना चाहिए। ग्राउंड स्टाफ को भी ट्रेनिंग दी गई कि वह 6 मिनट के अंदर सभी पैसेंजर को जहाज से उतार दें। पैसेंजर के लगेज को 10 मिनट के अंदर लोड और अनलोड कर दिया जाए। इसी स्ट्रैटजी की वजह से आज भी इंडिगो की फ्लाइट्स दूसरी एयरलाइन की तुलना में ज्यादा उड़ान भर पाती हैं।

इस वजह से दोस्तों में छिड़ गया विवाद

इंडिगो के लगातार बढ़ते कद को देखते हुए राकेश गंगवाल इसे तेजी से आगे बढ़ाना चाहते थे। उन्होंने फरवरी 2018 में बताया था कि वित्त वर्ष 2019 में इंडिगो अपनी क्षमता में 52% का इजाफा करेगी। यानी कंपनी अपने बेड़े का आकार 155 से बढ़ाकर 250 एयरक्राफ्ट करने जा रही है।

इसको लेकर कंपनी के तत्कालीन प्रेसिडेंट आदित्य घोष ने सीधे विरोध किया था। राहुल भी जल्दबाजी न दिखाते हुए सावधानी के साथ आगे बढ़ना चाहते थे। इस कारण धीरे-धीरे दोनों के बीच असहमति बढ़ती चली गई।

राकेश इंडिगो के कॉर्पोरेट गवर्नेंस से नाराज थे। उन्होंने इंडिगो की तुलना पान की दुकान से कर दी।

दोनों के बीच दरार इस कदर बढ़ गई कि राकेश ने भारत के प्रधानमंत्री ऑफिस (PMO) और सेबी को लेटर लिखकर राहुल पर इंडिगो के जरिए निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने का आरोप तक लगा दिया।

दोनों के बीच दरार इस कदर बढ़ गई कि राकेश ने भारत के प्रधानमंत्री ऑफिस (PMO) और सेबी को लेटर लिखकर राहुल पर इंडिगो के जरिए निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने का आरोप तक लगा दिया।

इसके जवाब में राहुल ने कहा था, ‘राकेश ऐसा एक भी मामला पेश नहीं कर पाए हैं जिससे इंडिगो को नुकसान का पता चलता हो। सच तो यह है कि मेरी पान की दुकान अच्छी चल रही है।’

लंबे चले विवाद के बाद 2022 में राकेश गंगवाल ने एयरलाइन के बोर्ड से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने बीते साल में अपने कुछ शेयर भी बेच दिए।

रोजाना 2000 जहाजों की उड़ान
इंडिगो रोजाना 2000 से ज्यादा फ्लाइट ऑपरेट कर रही है। देश के 88 शहरों और विदेश के 34 शहरों में इंडिगो के जहाज उड़ान भरते हैं। कंपनी के बेड़े में 360 जहाज हैं। भारत में इंडिगो का 61.4% मार्केट शेयर है। यानी हर 10 में से 6 भारतीय इंडिगो फ्लाइट से सफर कर रहा है। कंपनी का दावा है कि वह हर 6 साल में अपने जहाज को रिटायर करती है।

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