रिलेशनशिप- हर 7 में से 1 मां को पोस्टपार्टम डिप्रेशन:मंदिरा बेदी, फ्रिडा पिंटो भी इससे गुजरीं, शिशु जन्म के बाद डिप्रेशन से कैसे बचें

नौ महीने अपनी कोख में रखकर अपने बच्चे के दुनिया में आने का बेसब्री से इंतजार करती है हर मां। नन्ही सी जान के जन्म के बाद मानो वो सातवें आसमान पर होती है। उसके मन में खुशी की लहर दौड़ रही होती है। लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि बच्चे की खुशी कुछ दिनों बाद स्ट्रेस और अवसाद में भी बदल जाती है। जब मां को चिड़चिड़ापन, गुस्सा, तनाव और अधूरापन महसूस होने लगता है।
बच्चे को जन्म देने के बाद कुछ महिलाएं डिप्रेशन से गुजर रही होती हैं। इसे मेडिकल की भाषा में कहते हैं- ‘पोस्टपार्टम डिप्रेशन’ (PPD)। इसका असर न सिर्फ महिला, बल्कि उसके बच्चे और परिवार पर भी पड़ता है। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के अनुसार, पूरी दुनिया में लगभग हर 7 में से 1 महिला को पोस्टपार्टम डिप्रेशन हो सकता है।
हाल ही में एक्ट्रेस मंदिरा बेदी ने ‘ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे’ को बताया कि वे अपने बेटे वीर के जन्म के बाद पोस्टपार्टम डिप्रेशन से गुजर चुकी हैं। उन्होंने कहा कि उनके लिए ये झटका था। किसी ने उन्हें इस बारे में नहीं बताया था।
मंदिरा ने कहा, “जब मैंने बच्चे को जन्म दिया तो उस समय मैं उससे जुड़ाव महसूस नहीं कर पा रही थी। मैं बस रोती रहती थी और अपने शरीर को लेकर अच्छा महसूस नहीं करती थी।”
वहीं स्लमडॉग मिलेनियर की एक्ट्रेस फ्रीडा पिंटो भी पोस्टपार्टम डिप्रेशन झेल चुकी हैं। बॉलीवुड एक्ट्रेस समीरा रेड्डी के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ था। अपने इंस्टाग्राम पर उन्होंने पहले बच्चे के जन्म के बाद मानसिक अस्थिरता की बात शेयर की थी। हाल ही में पाकिस्तानी एक्ट्रेस सरवत गिलानी ने भी बताया कि वे अपने 4 दिन की बच्ची को मारना चाहती थी। इसका कारण था पोस्टपार्टम डिप्रेशन।
तो आज ‘रिलेशनशिप’ में बात करेंगे पोस्टपार्टम डिप्रेशन की और जानेंगे कि नई मांएं इससे कैसे डील कर सकती हैं।

क्या होता है पोस्टपार्टम डिप्रेशन और क्या हैं इसके लक्षण
पोस्टपार्टम डिप्रेशन एक गंभीर बीमारी है, जो बच्चे के जन्म के कुछ दिनों बाद मां को हो सकती है। किसी महिला को गर्भपात या मृत बच्चा पैदा होने से इस बीमारी की संभावना और भी बढ़ जाती है।
बच्चे को जन्म देने के बाद महिला को डिप्रेशन अचानक से हो सकता है।
ये प्रसव के पहले, दूसरे और तीसरे में से किसी भी महीने में हो सकता है। ऐसे में वो अपने बच्चे की तरफ भी बिल्कुल ध्यान नहीं दे पाती और उसका शिशु के प्रति भावनात्मक लगाव खत्म होने लगता है।
- विश्व स्वास्थय संगठन (WHO) के अनुसार विकासशील देशों में 19.8 % महिलाएं पोस्टपार्टम डिप्रेशन से गुजर सकती हैं। यह स्थिति मां के अपने बच्चे के साथ रिश्ते को प्रभावित कर सकती है।
- नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में भारत में पोस्टपार्टम डिप्रेशन पर की गई एक स्टडी के मुताबिक, भारत में 22% महिलाएं पोस्टपार्टम डिप्रेशन से गुजरती हैं।
- गर्भावस्था के दौरान या उसके बाद थकावट, उदासी या निराशा की भावनाओं का अनुभव करना असामान्य नहीं है, लेकिन अगर ऐसी भावनाएं आपको अपने रोजमर्रा के कामों को करने से रोकती हैं तो यह पोस्टपार्टम डिप्रेशन का संकेत हो सकता है।
- 1819 में पोस्टपार्टम डिप्रेशन के बारे में पहली बार पता लगा था। पेरिस के साल्पेट्रिएरे अस्पताल में एक सर्वे में कुछ महिलाओं में इसके लक्षण देखे गए थे।
- फिर 1980 के बाद से पोस्टपार्टम डिप्रेशन के प्रति विश्व में जागरुकता बढ़ी।

डिलिवरी के दो हफ्ते बाद हो सकता है पोस्टपार्टम डिप्रेशन
डॉक्टर्स का मानना है कि यह बीमारी बच्चे के जन्म के 1-2 हफ्ते बाद शुरू हो सकती है। ये महिला की मां बनने की खुशी को पूरी तरह छीन लेती है। शिशु को जन्म देने के बाद महिला बहुत थकान महसूस करती है। डिलीवरी के दर्द और मेंटल प्रेशर से गुजरने के बाद वह खुद को भी नहीं पहचान पाती। अगर ये ज्यादा गंभीर हो जाए तो मां को सुसाइडल थॉट्स भी आ सकते हैं।
वैसे अगर सही इलाज और काउंसलिंग ली जाए तो यह स्थिति एक महीने में सही भी हो जाती है।
बता दें कि जनवरी, 2022 में कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा की 30 साल की नातिन डॉ. सौंदर्या नीरज ने पोस्टपार्टम डिप्रेशन की वजह से अपनी जान ले ली थी।
फैमिली सपोर्ट न होने के कारण भी हो सकता पोस्टपार्टम डिप्रेशन
पोस्टपार्टम डिप्रेशन किसी भी उम्र में हो सकता है। 2018 में विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 20,043 महिलाएं इसकी शिकार थीं।
डॉ. मंजू बताती हैं कि बढ़ती उम्र में अक्सर महिलाएं ब्लड प्रेशर, थायरॉइड और डायबिटीज का शिकार हो जाती हैं। इससे उनकी प्रेग्नेंसी स्ट्रेसफुल रहती है। इसके अलावा आजकल लोग एकल परिवार में रह रहे हैं। सपोर्ट न मिलने की वजह से महिलाएं पोस्टपार्टम डिप्रेशन की चपेट में ज्यादा आती हैं। पति भी उनके मूड में आए बदलावों को समझ नहीं पाते।

बेबी ब्लूज और पोस्टपार्टम डिप्रेशन में क्या अंतर
डॉक्टर्स के मुताबिक बच्चे की डिलीवरी के बाद 70% महिलाएं बेबी ब्लूज का शिकार होती हैं। लेकिन इसे डिप्रेशन नहीं कहा जाता। बेबी ब्लूज में मूड स्विंग होते हैं। हॉर्मोन्स का लेवल डिस्टर्ब होने से महिला उदास रहती है। उसे लगता है कि वह बच्चे को संभाल नहीं सकती। छोटी-छोटी बातों पर रोने लगती है। लेकिन यह डिलीवरी के 2 हफ्ते के बाद अपने आप ठीक भी हो जाता है।
अगर महिला पोस्टपार्टम डिप्रेशन से गुजर रही है तो यह स्थिति 2 हफ्ते के बाद शुरू होती है और लंबे समय तक बनी रह सकती है।
पोस्टपार्टम डिप्रेशन से कैसे बचें
अगर आप सचेत रहें और समय रहते पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लक्षणों को पहचा लें तो समय पर इसका इलाज हो सकता है। एक सकारात्मक मानसिकता ऐसी समस्याओं से लड़ने में हमेशा सहायक होती है।
फ्लोरिडा अटलान्टिक यूनिवर्सिटी की एक स्टडी के अनुसार जिन महिलाओं को पहले से ही डिप्रेशन या एंग्जाइटी होती है, उनमें पोस्टमार्टम डिप्रेशन 30-35% तक देखा गया है।
वहीं, जो महिलाएं पहली डिलीवरी के बाद पोस्टपार्टम डिप्रेशन से गुजरीं, उनमें दूसरे बच्चे के जन्म के बाद 50% में यह लक्षण दिखे। मनोचिकित्सक मानते हैं कि 50% महिलाओं में प्रेग्नेंसी के दौरान ही पोस्टमार्टम डिप्रेशन के लक्षण दिखने लगते हैं। ऐसे में समय रहते उनका इलाज शुरू हो जाए तो डिलीवरी के बाद पोस्टपार्टम डिप्रेशन नहीं झेलना पड़ता।
Add Comment