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रिलेशनशिप- क्या आप हमेशा जल्दी में रहते हैं:बोलने की, खाने की, पहुंचने की जल्दी में, कैसे जानें कि कहीं ये ‘हरी सिकनेस’ तो नहीं

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रिलेशनशिप- क्या आप हमेशा जल्दी में रहते हैं:बोलने की, खाने की, पहुंचने की जल्दी में, कैसे जानें कि कहीं ये ‘हरी सिकनेस’ तो नहीं

यह सच्चा वाकया है। एक दोस्त दफ्तर में हमेशा शाम छह बजते ही बैग उठाकर घर जाने के लिए बेताब हो जाता। अगर दो मिनट की भी देर हो तो उसे घबराहट होने लगती थी।

एक दिन बॉस ने मजाक में कहा, “ये साहब हमेशा घर जाने की जल्दी में रहते हैं।”

इस पर उसके दोस्त ने हंसकर कहा, “ये दफ्तर आने की भी उतनी ही जल्दी में रहते हैं।”

मामले की मजमून ये था कि चाहे दफ्तर से घर जाना हो या दफ्तर से घर आना, बाजार या सिनेमा जाना हो या किसी दोस्त के घर शादी-पार्टी में जाना, वो हमेशा, हर वक्त जल्दी में ही रहते थे। हर जगह पहुंचने की जल्दी में और उस जगह से निकलने की जल्दी में।

मनोविज्ञान की भाषा में इसे कहते हैं हरी सिकनेस (Hurry Sickness.)

तो चलिए, सेल्फ रिलेशनशिप कॉलम में आज बात करते हैं हरी सिकनेस की। जानते हैं ये क्या है, क्यों होता है और इस भागती-दौड़ती दुनिया में खुद भी लगातार भागते रहने की बजाय भीतर और बाहर थोड़ी शांति कैसे पाई जाए।

मनोविज्ञान में कैसे खोजा गया यह टर्म

अमेरिकन साइकोलॉजिस्ट मेयर फ्रीडमैन और रे एच. रोसेनमैन ने 1985 में एक किताब लिखी, ‘टाइप ए बिहेवियर एंड योर हार्ट।’ उस किताब में पहली बार इस शब्द ‘हरी सिकनेस’ को कॉइन किया गया।

फ्रीडमैन और रोसेनमैन लिखते हैं कि हरी सिकनेस कोई मेडिकल कंडीशन तो नहीं है, लेकिन यह कई दूसरी मेडिकल कंडीशंस का कारण बन सकती है। उन्होंने पाया कि टाइप ए पर्सनैलिटी के लोग अकसर हरी सिकनेस का शिकार होते हैं और इसका उनकी हार्ट हेल्थ पर बुरा असर पड़ता है। ऐसे लोगों का नर्वस सिस्टम हमेशा एक किस्म के दबाव में रहता है।

कैसे जानें कि कहीं आप हरी सिकनेस का शिकार तो नहीं

इन बातों से काफी लोग रिलेट कर सकते हैं। उन्हें लग सकता है कि वो भी अकसर जल्दबाजी करते हैं या किन्हीं खास मौकों पर हड़बड़ाहट में रहते हैं।

कभी-कभी किन्हीं खास परिस्थितियों में ऐसा हो सकता है। लेकिन इसका अर्थ ये नहीं कि यह हरी सिकनेस ही हो। खुद को इस पैरामीटर पर परखने के लिए नीचे दिए ग्राफिक को ध्यान से देखें और सोचें कि उसमें लिखी कितनी बातें आप पर लागू होती हैं।

अगर 5 से ज्यादा चीजें आप पर लागू होती हैं तो मुमकिन है कि आप हरी सिकनेस का शिकार हों। लेकिन सेल्फ डायग्नोस करने की बजाय बेहतर होगा किसी साइकिएट्रिस्ट की मदद लेना।

हरी सिकनेस का असर हमारी सेहत पर

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित एक स्टडी के मुताबिक टाइप ए पर्सनैलिटीज में हाइपरटेंशन डेवलप होने का खतरा अन्य पर्सनैलिटी टाइप के मुकाबले 17% ज्यादा होता है। इस स्टडी में 422 ऐसे लोगों का अध्ययन किया गया, जिनकी पर्सनैलिटी ए टाइप थी यानी जो हरी सिकनेस का शिकार थे। रिसर्चर्स ने पाया कि उनका हार्ट रेट और ब्लडप्रेशर रेस्टिंग स्टेज में भी सामान्य से ज्यादा होता था।

लगातार लंबे समय तक ब्लड प्रेशर और हार्ट रेट ज्यादा रहने का अर्थ है कि दिल पर दबाव बढ़ता है और हाइपरटेंशन हो सकता है।

इसके अलावा हरी सिकनेस होने पर यह लक्षण भी दिखाई पड़ सकते हैं-

हरी सिकनेस को दूर करने के लिए क्या करें

1985 में जब फ्रीडमैन और रोसेनमैन पहली बार हरी सिकनेस के बारे में लिखा, तब से लेकर अब तक मनोविज्ञान काफी आगे बढ़ चुका है। वे पर्सनैलिटी टाइप बता रहे थे, लेकिन अब साइंस के पास इस सवाल का भी जवाब है कि कुछ लोगों की पर्सनैलिटी एक खास तरह की ही क्यों होती है।

इसकी जड़ें हमारी परवरिश और बचपन के परिवेश में हैं। अगर हम शांत और सुकूनदेह वातावरण में पले तो हमारा मन, दिमाग और नर्वस सिस्टम काफी हद तक शांत रहेगा। इसके लिए शरीर के केमिकल और हॉर्मोनल डिसबैलेंस भी काफी हद तक जिम्मेदार होते हैं।

कारण जो भी हों, मनोविज्ञान कहता है कि उन कारणों को समझकर उसे दूर करना भी मनुष्य के ही हाथ में है। इंसान इतना विकसित प्राणी है कि वह अपनी कमियों-कमजोरियों को आइडेंटीफाई करके उसे दूर कर सकता है।

फ्रीडमैन और रोसेनमैन के मुताबिक माइंडफुलनेस का रियाज और स्वस्थ जीवन शैली इसमें काफी हद तक मददगार हो सकते हैं।

नीचे ग्राफिक में देखिए कि हम किन रास्तों से हरी सिकनेस से निजात पा सकते हैं।

ब्रीथिंग एक्सरसाइज का अभ्यास

जीवन में धैर्य और शांति अभ्यास की चीज है। जल्दबाजी से तनाव बढ़ता है और तनाव से हार्टबीट बढ़ती है। इसलिए बॉडी और ब्रेन में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। जब हम ठहरकर गहरी सांस लेते हैं तो ब्रेन सेल्स को ज्यादा ऑक्सीजन मिलती है और वह रिलैक्स मोड में चली जाती हैं।

अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में यह प्रयोग करके देखिए। जब भी हड़बड़ाहट हो तो रुककर गहरी सांस लीजिए। बेहतर महसूस करेंगे। इस आदत को अपनी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बनाइए।

प्रतिदिन सुबह 15 मिनट मेडिटेशन

रोज सुबह उठकर 15 मिनट मेडिटेशन या ध्यान करिए। इससे दिमाग का फोकस बढ़ता है, धैर्य और प्रशांति बढ़ती है।

माइंडफुलनेस का रियाज

माइंडफुलनेस का अर्थ है अतिरेक, भावनाओं और अवचेतन से कंट्रोल होने की बजाय हर वक्त सचेत रहना। माइंडफुलनेस अभ्यास की चीज है। इसे अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल करने की कोशिश करें। रोज खुद को एक टास्क दें। आज ऑफिस जाते हुए अगर मैं ट्रैफिक में फंसा तो अपना धैर्य नहीं खोऊंगा। शांति से गाने या पॉडकास्ट सुनते हुए ट्रैफिक के मूव होने का इंतजार नहीं करूंगा। मैं जितनी देर कार में हूं, शांत रहूंगा।

आज जब कोई कुछ बोल रहा होगा तो मैं उसे बीच में टोकूंगा नहीं। मैं पहले उसे अपनी बात खत्म करने का मौका दूंगा।

माइंडफुलनेस जर्नल

रोज माइंडफुलनेस का जो अभ्यास कर रहे हैं, उसे अपनी डायरी में नोट करें। रोज खुद को जो नया टास्क दिया है, उसे पूरा करने में कितनी सफलता मिली, इस बात को डायरी में दर्ज करें।

इससे यह समझने में आसानी होगी कि आप कैसे रोज एक कदम ज्यादा बढ़ाते हैं। कैसे हर दिन की छोटी-छोटी सफलताएं मिलकर एक दिन आपके स्वभाव और आदत का हिस्सा बन जाती हैं।

जल्दबाजी हो तो उस वक्त काम को बिलकुल रोक दें

आप ऑफिस में किसी काम को लेकर जल्दबाजी में हैं या घर पर ग्रॉसरी ऑर्डर करने जैसे साधारण काम को लेकर भी हड़बड़ाहट में हैं। जैसे ही यह महसूस हो कि हरी सिकनेस हावी हो रही है तो उस क्षण बिलकुल रुक जाएं। उस काम को वहीं रोक दें और सोचें, अगर यह काम दस मिनट बाद भी किया जाए तो क्या इससे कोई नुकसान होगा। लेकिन मैं इस काम को लेकर जो इतनी एंग्जाइटी और जल्दबाजी महसूस कर रहा हूं, उससे नुकसान जरूर होगा।

सिर्फ पांच मिनट ठहरकर देखने से भी बहुत फर्क पड़ेगा।

अपनी प्राथमिकताएं तय करें

हर वो बात, जिसे लेकर आपको जल्दी है, वह जरूरी नहीं है। हर काम को ठीक अभी ही कर लेना भी जरूरी नहीं है। इसलिए अपनी प्राथमिकताएं तय करें। रोज सुबह उठकर एक टू डू लिस्ट बनाएं और अपने कामों को प्रिऑरिटी के हिसाब से नंबर दें और उसे फॉलो करें।

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