सेहतनामा- मलयालम सुपरस्टार फहद फाजिल को ADHD:बच्चा हाइपर एक्टिव तो हो सकती है ये कंडीशन, इन संकेतों पर करें गौर
मलयालम सुपरस्टार फहद फाजिल इन दिनों अपनी फिल्म ‘आवेशम’ को लेकर चर्चा में हैं। वह एक और चीज को लेकर चर्चा में हैं, वो है उनकी मेंटल हेल्थ कंडीशन। हाल ही में उन्होंने खुलासा किया है कि वह एक मेंटल डिसऑर्डर ADHD से जूझ रहे हैं।
ADHD का फुल फॉर्म है- ‘अटेंशन डिफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर।’ यह डिसऑर्डर छोटे बच्चों या वयस्कों, दोनों को हो सकता है। हालांकि आमतौर पर यह डिसऑर्डर बच्चे के मानसिक विकास के दौरान यानी 3 से 12 वर्ष के बीच डेवलप होता है। तभी इसे न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर भी कहते हैं।
इसलिए आज ‘सेहतनामा’ में बात ADHD की। साथ ही जानेंगे कि-
- ADHD के क्या लक्षण हैं?
- कैसे पहचानें कि बच्चा ADHD से पीड़ित है?
- इसका इलाज क्या है?
5 से 14 साल के 13 करोड़ बच्चों को ADHD
जर्नल ऑफ ग्लोबल हेल्थ में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, दुनिया भर में 5 से 14 साल के करीब 13 करोड़ बच्चे और किशोर ADHD से जूझ रहे हैं। जबकि 36 करोड़ से ज्यादा वयस्क इस मेंटल हेल्थ कंडीशन का सामना कर रहे हैं। भारत में 5 से 8% स्कूली बच्चे इस मेंटल हेल्थ कंडीशन का शिकार हैं।
फोर्टिस हॉस्पिटल, गुरुग्राम के प्रिसिंपल डायरेक्टर और न्यूरोलॉजी के प्रमुख डॉ. प्रवीण गुप्ता कहते हैं कि असल में भारत के स्कूली बच्चों में ADHD का आंकड़ा 10% से ऊपर होगा। मेंटल हेल्थ को लेकर जागरुकता न होने के कारण बहुत से मामले सामने ही नहीं आ पाते हैं और लोग अपनी पूरी जिंदगी इस डिसऑर्डर के साथ गुजार देते हैं।
कैसे पहचानें कि बच्चा ADHD से पीड़ित है?
ADHD की शुरुआत बचपन से ही हो जाती है। 3 से 12 वर्ष की उम्र में जब बच्चों का दिमाग विकसित हो रहा होता है, उसी समय यह डिसऑर्डर भी विकसित हो रहा होता है। इससे कॉग्निटिव फंक्शनिंग प्रभावित होती है।
कई बार इसके सिंप्टम्स इसी उम्र में दिखने लगते हैं, जबकि बहुत बार लक्षण वयस्क उम्र में जाकर नजर आते हैं।
इसे कैसे पहचान सकते हैं, ग्राफिक में देखें-
हालांकि हाइपर एक्टिविटी, इंपल्सिविटी या डिफिकल्टी फोकसिंग के अलग-अलग लक्षण हो सकते हैं।
डॉ. प्रवीण गुप्ता कहते हैं कि यह जरूरी नहीं हैं कि हर किसी में ADHD के कॉमन लक्षण दिखाई दें। हो सकता है कि उसमें सिर्फ हाइपरएक्टिविटी या फोकस न कर पाने के लक्षण ही विकसित हुए हों।
3 तरह का होता है ADHD
ADHD के कारण पैदा होने वाली मेंटल कंडीशंस को तीन अलग समूहों में बांटा गया है।
- प्रीडॉमिनेंटली इनअटेंटिव
- प्रीडॉमिनेंटली हाइपरएक्टिव-इंपल्सिव
- कंबाइंड प्रीडॉमिनेंटली हाइपरएक्टिव-इंपल्सिव एंड प्रीडॉमिनेंटली इनअटेंटिव
ADHD क्यों होता है?
- हमारे दिमाग के आगे का हिस्सा प्री फ्रंटल लोब होता है। प्लानिंग, जिम्मेदारी, अटेंशन, विवेक और निर्णय लेने की क्षमता दिमाग के इसी हिस्से में होती है। जो लोग ADHD से पीड़ित होते हैं, उनका यह हिस्सा या तो देर से विकसित होता है या फिर अधूरा ही रह जाता है।
- नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, ADHD होने के पीछे दूसरी वजह न्यूरॉन्स का ठीक से काम न करना है। हमारे दिमाग तक किसी अहसास, संवेदना या किसी भी मैसेज पहुंचाने का काम न्यूरॉन्स के जिम्मे होता है। ADHD से पीड़ित लोगों के न्यूरॉन्स में रिसेप्टर्स की कमी देखी गई है।
- जिन बच्चों के दिमाग के ग्रे मैटर का आकार छोटा होता है, उन्हें ADHD की समस्या हो सकती है। दिमाग का यह हिस्सा स्पीच, सेल्फ कंट्रोल, निर्णय लेने और मसल कंट्रोल के लिए जिम्मेदार होता है।
- जिन बच्चों के पेरेंट्स में से किसी एक या दोनों को ऐसी समस्या रही है, उनके बच्चों को ADHD होने की आशंका अधिक होती है।
डॉ. गाबोर माते की एक किताब है, ‘स्कैटर्ड माइंड्स: द ओरिजिन्स एंड हीलिंग ऑफ अटेंशन डिफिसिट डिसऑर्डर।’ इस किताब में डॉ. माते लिखते हैं, “मनुष्य के ब्रेन का 70% हिस्सा जन्म के बाद विकसित होता है और इसके स्वस्थ विकास के लिए जरूरी है स्वस्थ इनवायरमेंट। अगर बच्चे के इनवायरमेंट में प्यार, सुरक्षा, संवेदना और खुशी जैसी बुनियादी चीजें नहीं हैं, इनवायरमेंटल टॉक्सिन्स हैं, डर, भय, अकेलापन, असुरक्षा है तो ये सारी चीजें ब्रेन डेवलपमेंट को प्रभावित करती हैं। इसका नतीजा कई तरह के मेंटल डिसऑर्डर के रूप में सामने आ सकता है। ADHD और ADD उनमें से एक है।”
ADHD से पीड़ित लोगों को क्या नुकसान हो सकते हैं?
स्वस्थ व्यक्ति की तुलना में ADHD से पीड़ित व्यक्ति में आत्मसम्मान की कमी होती है। बच्चा है तो उसकी एकेडेमिक्स और गेम्स में परफॉर्मेंस कमजोर होगी।
इसका इलाज क्या है?
डॉ. प्रवीण गुप्ता कहते हैं कि ADHD एक मेंटल हेल्थ कंडीशन है। इसके इलाज में दवाओं और काउंसिलिंग दोनों की जरूरत पड़ती है। पेशेंट के साथ उनकी फैमिली की भी काउंसिलिंग होती है ताकि जरूरी बिहेवियरल बदलाव किए जा सकें और पीड़ित व्यक्ति को हर तरह से सपोर्ट मिल सके।
हालांकि डॉ. गाबोर माते और विश्वप्रसिद्ध साइकिएट्रिस्ट डॉ. ब्रूस डी. पैरी छोटे बच्चों के मेडिकेशन के सख्त खिलाफ हैं। वो बच्चे और माता-पिता की काउंसिलिंग और मेंटल हेल्थ एक्सरसाइज पर ही जोर देते हैं। कम उम्र में दवाइयों के जरिए बच्चों का इलाज उनकी फिजिकल और मेंटल ग्रोथ को प्रभावित करता है और इसके सीवियर साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं।
सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के मुताबिक, लाइफस्टाइल में कुछ जरूरी बदलावों से भी मेंटल कंडीशन में सुधार हो सकता है। जैसे-
- न्यूट्रिशियस और बैलेंस्ड डाइट लें।
- प्रतिदिन 1 घंटे फिजिकल एक्टिविटी जरूरी है।
- रोजाना 7 से 8 घंटे की भरपूर नींद लें।
- फोन, कंप्यूटर और टीवी का स्क्रीन टाइम सीमित करें।
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में साल 2015 में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक इलाज के साथ माइंडफुल मेडिटेशन करने से ADHD के सिंप्टम्स में तेजी से सुधार होता है। इसलिए योग और मेडिटेशन भी एक बेहतर ऑप्शन हो सकता है।
क्या वयस्क उम्र में ADHD का इलाज संभव है?
डॉ. प्रवीण गुप्ता कहते हैं कि ADHD के इलाज में इस बात से बहुत फर्क नहीं पड़ता है कि किसी की उम्र कितनी हो गई है। हां, यह जरूर है कि अगर बचपन में ही इसका इलाज हो जाए तो आगे की जिंदगी सामान्य ढंग से बीतती है। जबकि जिन्हें इसका पता देर से चला है, उनकी एक बड़ी उम्र इसके साथ बीत चुकी होती है। वह कई रिश्तों में, पढ़ाई में, कामकाज में बुरे शख्स की तरह देखे जा रहे होते हैं। समय पर इसका इलाज हो जाए तो वे इससे बच सकते हैं और ज्यादा बेहतर जिंदगी जी सकते हैं।
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