रिलेशनशिप- अर्जुन को क्यों दिखी सिर्फ चिड़िया की आंख:क्या है ‘फ्लो स्टेट’, जहां बढ़ता फोकस, प्रोडक्टिविटी, कैसे पहुंचें वहां तक
कहने हैं कि अर्जुन अपने समय के सबसे बड़े धनुर्धारी थे। लेकिन अर्जुन ही क्यों, उनके बाकी 4 भाइयों में से कोई क्यों नहीं था? और कौरव किस मामले में अर्जुन से पीछे रह गए, जबकि सभी गुरु द्रोण से ही धनुर्विद्या सीख रहे थे।
इस सवाल का जवाब जानने के लिए अर्जुन और चिड़िया की आंख वाली कहानी एक बार नए सिरे से पढ़ते हैं।
एक बार गुरु द्रोण ने अपने सभी शिष्यों को बुलाकर पेड़ पर टंगी लकड़ी की एक चिड़िया पर निशाना साधने को कहा। इस दौरान गुरु द्रोण सबसे पूछते रहे कि उन्हें क्या दिख रहा है।
अर्जुन के अलावा सभी ने कहा कि उन्हें चिड़िया के साथ-साथ पेड़, आसमान, गुरुद्रोण और दूसरी चीजें भी दिख रही हैं। लेकिन जब अर्जुन से पूछा गया तो उनका उत्तर था कि उन्हें सिर्फ और सिर्फ चिड़िया की आंख ही दिख रही है, जिस पर उन्हें निशाना लगाने के लिए कहा गया था।
जानते हैं ऐसा क्यों था? क्योंकि धनुष से निशाना साधते हुए अर्जुन कुछ और नहीं सोचते थे। वह काम उन्हें इतना पसंद था कि वे उसमें पूरी तरह रम जाते थे। मनोविज्ञान की भाषा में कहें तो धनुष-बाण चलाते हुए अर्जुन का मन ‘फ्लो स्टेट’ में पहुंच जाता था।
काम में खोना ही है फ्लो स्टेट ऑफ माइंड
साइकोलॉजी और न्यूरोसाइंस की कठिन शब्दावली को किनारे रखकर आसान भाषा में कहें तो किसी काम में डूबना ही ‘फ्लो स्टेट ऑफ माइंड’ कहलाता है।
यह ऐसी स्थिति होती है, जिसमें काम करते हुए शख्स बहता चला जाता है। मानो वह पानी में तैर रहा हो। उसे न समय की फिक्र होती है और न ही मेहनत की चिंता।
अपनी पसंद के काम में खुद को भुला देने के बाद माइंड फ्लो स्टेट में पहुंच पाता है। इस स्थिति में पूरा ध्यान खुद से हटकर उस एक्टिविटी पर केंद्रित हो जाता है, जिसे हम कर रहे होते हैं। नतीजतन उस काम में परफेक्शन आता है।
फ्लो स्टेट में एक्टिव होता दिमाग का निष्क्रिय हिस्सा
हमारे दिमाग के कई हिस्से होते हैं। आमतौर पर अलग-अलग तरह की एक्टिविटी में अलग-अलग हिस्से एक्टिव होते हैं।
हंगेरियन-अमेरिकन साइकोलॉजिस्ट मिहाई चिकसेंतमिहाई की एक किताब है- ‘फ्लो: द साइकोलॉजी ऑफ ऑप्टिमल एक्सपीरियंस।’ अपनी इस किताब में मिहाई चिकसेंतमिहाई लिखते हैं कि जब कोई शख्स मेंटल फ्लो स्टेट में पहुंच जाता है तो उसके दिमाग के कुछ ऐसे हिस्से भी एक्टिव हो जाते हैं, जो आमतौर पर निष्क्रिय रहते हैं।
दिमाग की यही एक्ट्रा एक्टिविटी उस शख्स को दूसरों से अलग बनाती है और वह शख्स किसी भी काम में दूसरों से आगे रहता है। बिल्कुल अर्जुन की तरह उसका पूरा ध्यान अपने लक्ष्य पर केंद्रित होता है। इधर-इधर की चीजें उसका ध्यान नहीं भटका पातीं।
फ्लो स्टेट ऑफ माइंड में सिकुड़ जाती हैं आंखों की पुतलियां
‘न्यूरोसाइकोलॉजिया’ की रिपोर्ट बताती है कि जब कोई शख्स फ्लो स्टेट ऑफ माइंड में पहुंचता है तो उसकी पुतलियां काफी सिकुड़ जाती हैं। यानी उसकी आंखें कम चीजें ही देख रही होती हैं। लेकिन आंख जो कुछ भी देख रही होती है, माइंड उस पर पूरा ध्यान केंद्रित रखता है।
दूसरे शब्दों में कहें तो इस स्थिति में आंखें हमें सिर्फ उतना ही दिखाती हैं, जो उस वक्त सबसे जरूरी होता है। मसलन, अगर कोई पेंटिग कर रहा है तो उसे सिर्फ कैनवास दिखेगा, पढ़ने वाले को सिर्फ लिखे हुए शब्द नजर आएंगे। वैसे ही जैसे अर्जुन को सिर्फ चिड़िया की आंख नजर आई थी।
क्यों जरूरी है फ्लो स्टेट ऑफ माइंड
इतनी कहानी पढ़ने के बाद आप सोच रहे होंगे कि ‘फ्लो स्टेट ऑफ माइंड’ कोई ऐसी चीज है, जिसे अर्जुन जैसे बड़े-बड़े साधक ही हासिल कर सकते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। कोशिश करने पर कोई भी मन के फ्लो स्टेट में जा सकता है।
मौजूदा वक्त में पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने, दफ्तर में प्रोडक्टिविटी बढ़ाने या हायर क्रिएटिविटी हासिल करने के लिए प्रोफेशनल साइकोलॉजिस्ट इसकी प्रैक्टिस करवाते हैं।
फ्लो स्टेट ऑफ माइंड में पहुंचने के बाद शख्स अपने सपनों को पूरा करने की बेहतर स्थिति में आ पाता है। जो काम भी उसे पसंद होता है, उसमें वह काफी बेहतर करता है और दूसरों से आगे रहता है।
उदाहरण के लिए दो गायकों को लेते हैं। मान लीजिए कि दोनों रोजाना 3-3 घंटे रियाज करते हैं। पहला गायक किसी तरह अपना रियाज पूरा कर लेता है, जबकि दूसरा रियाज में बिल्कुल डूब जाता है, उसे किसी और चीज की सुध नहीं रहती। ऐसी स्थिति में वह बराबर रियाज के बाद भी पहले गायक से काफी आगे रह सकता है। क्योंकि फ्लो स्टेट में पहुंचने की वजह से उसका 3 घंटे का रियाज उतने ही समय के नॉर्मल रियाज से कहीं ज्यादा असरदार साबित होगा।
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