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विधायक ने क्यों जताई दिमाग हैक होने की आशंका:अंधविश्वास के शिकार एमडी बनने के इच्छुक अफसर; मंत्रीजी घर पर, स्टाफ बोला- बाहर गए

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विधायक ने क्यों जताई दिमाग हैक होने की आशंका:अंधविश्वास के शिकार एमडी बनने के इच्छुक अफसर; मंत्रीजी घर पर, स्टाफ बोला- बाहर गए

जयपुर

  • हर शनिवार पढ़िए और सुनिए- ब्यूरोक्रेसी, राजनीति से जुड़े अनसुने किस्से

सरकार के एक मंत्री इन दिनों काफी परेशान हैं। परेशानी का कारण उनके इलाके में स्टेट सर्विस के अफसर की पोस्टिंग है। मंत्री से बिना पूछे उनके शहर में लगे अफसर के खिलाफ कार्यकर्ता रोज शिकायत करते हुए ताने दे रहे हैं।

अफसर के खिलाफ कुछ पुराने मामलों की गूंज भी कार्यकर्ताओं तक पहुंच गई। अफसर के खिलाफ एसीबी तक भी शिकायतें लंबित हैं।

मंत्री अफसर से दूर रहना चाहते हैं, लेकिन अफसर शहर के दौरे के दौरान किसी न किसी बहाने मंत्री से नजदीकी दिखाने का प्रयास करते हैं। परेशान मंत्री टॉप तक अपनी दुविधा बयां कर चुके हैं। अब मंत्री को आरएएस अफसरों की ट्रांसफर लिस्ट का इंतजार है।

मुखिया के सामने विधायक ने क्यों जताई दिमाग हैक होने की आशंका?

सत्ता में सब कुछ गिव एंड टेक होता है, मतलब इस हाथ दे, उस हाथ ले। यह बात पूर्वजों ने बहुत अनुभव के बाद कही है। अब एक निर्दलीय विधायक को ही लीजिए। निर्दलीय विधायक ने सत्ता वाली पार्टी को समर्थन दे रखा है।

अब समर्थन के बदले विधायक की उम्मीदें सातवें आसमान पर हैं। पश्चिमी-दक्षिणी राजस्थान के इस इलाके में सोशल इंजीनियरिंग के तहत निर्दलीय विधायक को कुछ पद देने के सियासी फायदे सत्ता वाली पार्टी को बताए गए हैं।

कुछ दिन पहले प्रदेश के मुखिया से लेकर कई जिम्मेदारों के सामने निर्दलीय विधायक ने अपने सब्र के बांध की परीक्षा नहीं लेने की बात कह दी। निर्दलीय विधायक ने साफ संकेत दे दिए कि समर्थन का प्रतिफल देना है वो दे दीजिए अन्यथा दिमाग हैक हो सकता है। अब सियासत में दिमाग हैक होने के मायने तो आप समझ ही गए होंगे।

पूर्व मुखिया ने क्या संकेत दिए?
सियासत में कई जेस्चर होते हैं, जो किसी नेता की जमीनी पकड़ और सियासी गहराई का पैमाना होता है। प्रदेश की सबसे बड़ी पंचायत के सत्र का पहला दिन कई के लिए सियासी बैरोमीटर बन गया। प्रदेश की पूर्व मुखिया भी पहुंचीं।

पूर्व मुखिया से मिलने के लिए विधायकों का उसी तरह तांता लगा, जिस तरह किसी जमाने में लगा करता था। मतलब दबदबा कायम है।

इस जेस्चर्स ने कई चर्चाओं को जन्म दे दिया है। गलियारों में कई नेता और सियासी जिज्ञासु इसके मायने निकालते और पूछते देखे गए। अब बिना पद ऐसे जेस्चर दिखें तो चर्चाएं चलनी स्वाभाविक है।

ब्यूरोक्रेसी के मुखिया ने क्यों की बड़े अफसर की तारीफ ?

पिछले दिनों सत्ता के सबसे बड़े दफ्तर की एक बैठक ने कई को अचंभित कर दिया। अचंभा इसलिए भी कि इसमें जो हुआ उसका किसी को आभास तक नहीं था।

हुआ यूं कि ब्यूरोक्रेसी के मुखिया ने एक बड़े अफसर के कामकाज की जमकर तारीफ की। कहां तो उन अफसर की महकमे से विदाई की और जांचें खुलने की चर्चाएं चल रही थीं और कहां तारीफ मिलने लगी।

अब सब इस अनहोनी के पीछे के कारणों की तलाश कर रहे हैं, कारण देश की राजधानी में हैं। इस तारीफ के पीछे कोई रणनीतिक वजह भी हो सकती है। बड़े अफसर की एक फाइल से आगे पता लग जाएगा कि तारीफ दिल से थी या दिमागी रणनीति का हिस्सा।

एमडी बनने के लिए बड़े टेक्नोक्रेट का टोटका, कुर्सी पर बैठना छोड़ा
साइंस और टेक्नोलॉजी के फील्ड में दक्ष लोगों से उम्मीद की जाती है कि उनकी सोच वैज्ञानिक और तार्किक होगी, लेकिन ऐसा हो यह हमेशा जरूरी नहीं होता।

प्रदेश की एक बिजली कंपनी में बड़े टेक्निकल पद पर बैठे टेक्नोक्रेट को ही लीजिए। ये साहब बिजली कंपनी के एमडी बनना चाहते हैं।

इस बिजली कंपनी के बारे में एक अंधविश्वास है कि जो टेक्निकल डायरेक्टर की कुर्सी पर बैठता है वो एमडी नहीं बनता। फिजिक्स, केमिस्ट्री और इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग की जटिल गुत्थियों का चुटकियों में हल निकालने वाले टेक्नोक्रेट भी इस अंधविश्वास का शिकार हो गए।

इन साहब को उसी पद पर पर लगा दिया, जिस पर रहने वाला एमडी नहीं बनता। इन साहब ने अपनी कुर्सी पर बैठना ही छोड़ दिया। मुख्य कुर्सी से थोड़ी दूर कुर्सी लगाकर बैठते हैं। तर्क यह कि इससे अपशकुन टल जाएगा। अब दफ्तर का यह नजारा चर्चा में नहीं आए, यह कैसे हो सकता है?

मंत्रीजी घर पर लेकिन स्टाफ ने क्यों बताया बाहर?
सत्ता को साध पाना हर किसी के बस की बात नहीं है। सत्ता को साधने की शुरुआत अपने आसपास से ही होती है। बहुत से मंत्री और पावरफुल लोगों के भी दीये तले अंधेरा रह जाता है।

अब एक मंत्रीजी को ही लीजिए। पिछले दिनों मंत्रीजी से मिलने एक फरियादी उनके बंगले पर आया। स्टाफ ने मंत्रीजी के बाहर होने का हवाला देकर बाद में आने को कहा।

यह अलग बात है कि मंत्रीजी उस वक्त बंगले पर ही थे। फरियादी ने ही यह झूठ पकड़ लिया। अब ऐसे झूठ का मतलब ही क्या जो पकड़ा जाए? कुरेदने पर पता लगा कि ऐसा कई फरियादियों के साथ हो चुका है। सोचिए, साल भर में क्या इमेज बनेगी और बचेगी?

उपमुखिया और दो विधायकों पर भारी एक शिक्षक
पिछले दिनों सत्ता वाली पार्टी के दो विधायकों ने उपमुखिया को खरी-खरी सुनाने के साथ दर्द का इजहार किया। सत्ता वाली पार्टी के दोनों विधायकों ने अपने इलाके में अपने चहेतों के तबादलों की सिफारिश की। उपमुखिया ने भी विधायकों की सिफारिश को आगे बढ़ाया, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा। जब काम नहीं हुआ तो विधायकों ने उपमुखिया को आकर फिर शिकायत की।

सत्तावाली पार्टी के दो विधायक और उपमुखिया मिलकर भी लेक्चरर को नहीं हटवा सके। अब सरकार होते हुए इतना सा काम नहीं हो तो आक्रोश और दुख दोनों होना स्वाभाविक है।

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